कार्यावकाश,
उन्नति का बाधक है।
कार्य में सफलता और जीवन में उन्नति का मूल मंत्र श्रम है। श्रम के बिना सफलता प्राप्ति की कामना पूर्णतया असंभव है। जिंदगी में आगे बढ़ने, सुख सुविधा पूर्ण जीवन व्यतीत करने और समाज में एक सफल व्यक्तित्व की छवि विकसित करने का एकमात्र उपाय श्रम ही है।
जरा इतिहास के पन्नों को पलट कर देखिए। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस जैसे इतिहास में अमर हो चुके महापुरुषों से लेकर भारत के आज के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी तक कोई भी महापुरुष जिसको आप अपना आदर्श मानते हों, उसके जीवन की कथा को जानने का प्रयास कीजिए। अपने जीवन के प्रारंभ से अंतिम चरणों तक इन सभी ने कठिन परिश्रम किया। यह उनके जीवन के परिश्रम का परिणाम ही था, जो आज आप उन्हें अपने आदर्श की श्रेणी में रखते हैं।
परिश्रम के बारे में एक अच्छी बात यह है कि यह सर्वव्यापी है। व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों श्रम के बिना व्यक्ति की प्रगति पूर्णतया असंभव है। आप किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हों, आप कंप्यूटर इंजीनियर हों, आप किसी सरकारी विभाग में कार्यरत हों, आप स्वयं का कारोबार करते हों, आप शिक्षक हों, या आप किसी गैर सरकारी संस्था में ही कार्यरत क्यों न हों, सभी स्थानों पर आपकी प्रगति का एक और एक मात्र उपाय श्रम ही है। जिसके द्वारा आप अपने मातहतों को प्रसन्न कर उन्नति प्राप्त कर सकते हैं। आपका अधिकारी आपसे त्रुटिरहित त्वरित कार्य की अपेक्षा रखता है। आशा अनुरूप कार्य की समाप्ति पर वह, आपको सम्मानित व लापरवाही पर अपमानित तक कर सकता है। अपमान से बचने व सम्मान प्राप्त करने का एक ही सूत्र है कि हम अपने कार्य से प्रेम करें। जो भी कार्य हमारे लिए निर्धारित किया गया हो हम उस कार्य को समय से अपनी सर्वोच्च क्षमता के साथ पूर्ण करने का प्रयत्न करें। आज के कार्य को कल के लिए स्थगित न करें यह कार्य के प्रति उदासीनता प्रकट करता है।
कबीरदास जी ने कहा है कि
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
अर्थात भविष्य किसी ने नहीं देखा, कल की परिस्थितियां हमारे अनुकूल या प्रतिकूल कुछ भी हो सकती हैं। जो हमारे कार्य को पूर्ण करने में बाधक भी हो सकती हैं। अतः आज के कार्य को कल पर टालकर कार्य को पूर्ण होने से मत रोकिए।
एक मनोवैज्ञानिक, ओपरा विनफ्रे के कथनानुसार, “जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि इस में कोई बड़ा रहस्य नहीं है। आपका लक्ष्य कोई भी हो, आप उसे हासिल कर सकते हैं, अगर आप काम करने के लिए तैयार हैं।” इसमें लेशमात्र भी संशय नहीं कि आप परिश्रम को सकारात्मक परिणाम हासिल करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। परिश्रम करने की जितनी ज्यादा क्षमता आपमें होगी उतना ही बड़ा फल आपकी पकड़ में आएगा। जितना गहरा आप खोदेंगे, उतना ही बड़ा खजाना आपके हाथ आएगा।
मनुष्य में निरंतर आगे बढ़ने की भूख ईश्वर प्रदत्त है। मनुष्य अपनी अपूर्णता को मिटाकर निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होना चाहता है। मामूली सी उन्नति हो जाने पर कुछ मनुष्य संतुष्ट प्रतीत होने लगते हैं और कहते हैं कि जो पा लिया वही काफी है। अब अतिरिक्त श्रम करने का क्या प्रयोजन। मनुष्य की यह विचारधारा अनात्मवादी विचारधारा है, जो पूर्णतया प्रकृति के विपरीत है। पेट भर भोजन प्राप्त करने के उपरांत तो मनुष्य संतुष्ट हो सकता है, परंतु अपनी उन्नति से कोई संतुष्ट नहीं होता। हर मनुष्य अधिक से अधिक उन्नति की अभिलाषा रखता है। जिसकी प्राप्ति का एकमात्र आधार श्रम ही है।
छोटी चींटी का उदाहरण लीजिए वह वर्षा ऋतु में अंन्न की अनुपलब्धता की चिंता कर निरंतर प्रयत्नशील रह कर अपने बिल में दाने एकत्रित करती रहती है। मधुमक्खियां विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए अपने छत्तों में मधु एकत्रित करती रहती हैं। मधुमक्खियां और चीटियां तक भविष्य की चिंता कर जीवन संघर्ष में अधिक दृढ़ता पूर्वक खड़े रहने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहती हैं। इनके जीवन में कार्यावकाश का कोई स्थान नहीं है। यह भविष्य की चिंता कर आज का कार्यक्रम निर्धारित करती है। आज की जरूरत पूरी कर के चुप बैठे रहना उचित भी नहीं है। यदि आपको उन्नति पथ पर चलना है, तो यह अत्यंत आवश्यक है कि इस यात्रा में जितना बन सके बल संचय कर कार्य करना चाहिए और कर्महीन मनुष्य का अनुकरण करने से बचना चाहिए।
यह संसार मनुष्य की कर्मभूमि है। मनुष्य यहां कर्तव्य पूर्ण करने हेतु ही अवतरित हुआ है। अपने समस्त उद्देश्यों की पूर्ति व वैभवशाली व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए हमें उत्साह के साथ हर पल लगे रहना चाहिए। कार्यावकाश की कल्पना मात्र भी हमें अपने वास्तविक पथ से विचलित कर अवनति की राह पर अग्रसर कर देती है। यदि आप ईश्वर पर विश्वास रखते हैं तो आपको यह जानकर खुशी होगी कि ईश्वर भी हमसे अपेक्षा रखता है कि आप पराक्रमी, पुरुषार्थी, उन्नतशील, विजयी, वैभव युक्त, महान, कर्मठशील, गुणवान, विद्वान तथा चरित्रवान व्यक्तित्व के रूप में उभरकर देश और समाज के लिए एक आदर्श बने । ईश्वर इस बात की लेशमात्र भी इच्छा नहीं रखता कि आप पूजा पाठ, भोग आरती करते हैं अथवा नहीं क्योंकि उस सर्वशक्तिमान प्रभु को आप की सहायता की आवश्यकता नहीं है। वह अपनी ईश्वरी शक्ति के द्वारा संसार के समस्त कार्यों को कर सकने की क्षमता रखते हैं। वह तो सिर्फ इस बात से खुश होते हैं उनके द्वारा रचित सृष्टि का प्रत्येक प्राणी उन्नति करें। अपनी रचना की सार्थकता का अनुभव ही उनकी प्रसन्नता को प्रस्फुटित कर देता है।
अब हम वैज्ञानिकता के आधार पर प्रगति का विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं। विचार कीजिए कि कैसे हम में से एक व्यक्ति उन्नतशील रास्ते का अनुसरण करते हुए प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाता है। जबकि अन्य व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं तक को पूर्ण करने की क्षमता उत्पन्न नहीं कर पाता। इसका मूल कारण हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति है। जब आप किसी कार्य को कर लेने की प्रतिज्ञा कर लेते हैं तब आपका मस्तिष्क उस कार्य की पूर्ति में सहायक तत्वों के खोज में लग जाता है। मस्तिष्क सकारात्मक विद्युत चुंबकीय तरंगों को उत्सर्जित कर संपूर्ण ब्रह्मांड से समान विचारधारा वाले व्यक्तियों को आकर्षित कर आपसे मिलाने का कार्य प्रारंभ कर देता है। जैसे-जैसे यह प्रयास सफल होता है आप प्रगतिशील व्यक्तियों का एक समूह तैयार कर लेते हैं। ऐसी प्रगतिवाद की सोच रखने वाले व्यक्तित्व आपके कार्यों को शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण कर आपको उन्नति के शिखर पर पहुंचा देते हैं।
हम यह भी कह सकते हैं कि उन्नतिशील स्वभाव के लोगों को उनकी उचित प्रवृत्ति में सहायता प्रदान करने के लिए परमपिता परमेश्वर ऐसे साधन उत्पन्न कर देता है जिनसे उनकी उन्नति की यात्रा आसान हो जाती है। रामायण में महाकवि तुलसीदास जी ने कहा है कि
जिहि कें जिहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ।।
अर्थात व्यक्ति का जिस कार्य पर सच्चा स्नेह होता है, या वह जिस कार्य को पूर्ण कर लेने का हृदय से संकल्प कर लेता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। उसके कार्य को पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता। श्रम को आप अपना दोस्त बना लें यह एक ऐसा शक्तिशाली औजार हैं जो जीवन भर आपका साथ देगा। श्रम को टालने और उससे घबराने की बजाय आप स्वयं को सहज ही उसके हवाले कर दें तो आपकी जिंदगी बिलकुल ही नए स्तर पर पहुँच जाएगी।
अपने को असमर्थ, आसक्त या असहाय मत समझिए। ऐसे नकारात्मक विचारों को अपने हृदय पर कोई स्थान न दीजिए। यह एक प्रमाणिक वैज्ञानिक तर्क है कि प्रकृति योग्यतम का चुनाव करती है, जो बलवान है उसकी रक्षा करती है और कमजोरों को नष्ट कर देती है। यहां पुरुषार्थयों को विजय माला पहनाई जाती है और निर्बलों को निष्ठुरता पूर्वक निकाल बाहर किया जाता है। अतः निर्बल नहीं पुरुषार्थी बनिए। समय की महत्ता को पहचानिए। निरंतर कार्यशील रहकर उन्नति किसी राह पर अग्रसर हो जाइए। उन्नति प्राप्त करने की साधना को जारी रखिए। उस महान पथ की योग्यता बनाए रखने के लिए सांसारिक उन्नतियों को एकत्रित कीजिए। उच्च, प्रतिष्ठित, शक्तिशाली, और वैभवशाली बनाने की दिशा से सदैव प्रगति करते रहिए।
अंत में परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह हमें उन्नति के शिखर पर पहुंचने हेतु निरंतर प्रयासरत रहने की शक्ति प्रदान करें।
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