आत्म-अनुशासन,
प्रगति की पहली योग्यता है।
किसी सुबह आवेश में आकर आप प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से अमुक कार्य को प्रारंभ कर सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेने तक निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे। पहले दिन आप उस कार्य की विस्तृत रूपरेखा तैयार करते हैं। दूसरे दिन भी इस कार्य की रूपरेखा के प्रथम चरण को बड़ी तन्मयता के साथ प्रारंभ करते हैं। परंतु धीरे-धीरे आपके कार्य की गति शिथिल होती चली जाती है और अंततः आप इस कार्य को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। कुछ समय अंतराल पर आप पुनः ऐसे ही किसी अन्य कार्य को प्रारंभ करने का संकल्प लेते हैं, और उसे भी अपूर्ण अवस्था में ही छोड़ देते हैं। परिणाम होता है कि आप किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान नहीं कर पाते। ऐसा आपके आत्म-अनुशासन की कमी के कारण होता है।
अपनी भावनाओं से प्रभावित हुये बिना खुद से कार्य कराने की योग्यता को आत्म-अनुशासन कहते हैं। यदि आपके पास पर्याप्त आत्म-अनुशासन है, तो यह निश्चित है कि आप अपने लक्ष्य को पूर्णतया भेद पाएंगे। इसमें लेस-मात्र भी संशय नहीं है। यह आपके आत्म-अनुशासन की पराकाष्ठा का परिणाम होता है, कि जब समाज व स्वयं आप को यह पूर्ण विश्वास हो जाता है कि आप अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य को निश्चय ही पूर्ण कर लेंगे।
आत्म-अनुशासन कोई चमत्कारी जड़ी-बूटी नहीं है। जीवन में स्वयं के विकास के लिए जो संसाधन उपलब्ध होते हैं, आत्म-अनुशासन भी उसमें से एक है। यह सत्य ही है कि आत्म-अनुशासन आपके जीवन पथ पर मिलने वाली बहुत सी समस्याओं का समाधान कर सकता है। यह आत्म-अनुशासन ही है जो आपको इतना सामर्थवान बना देता है कि आप किसी भी लत से छुटकारा तक पा सकते हैं।
जीवन में आत्म-अनुशासन के विकास हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य की अंतरात्मा में कुदरत ने कुछ मात्रा में आत्म-अनुशासन अवश्य दे रखा है, परंतु इसकी वृद्धि का प्रयत्न स्वयं मनुष्य को करना होता है। यह भी एक अद्भुत सत्य है कि आत्म-अनुशासन के निर्माण के लिए आत्म-अनुशासन की ही आवश्यकता होती है। आत्म-अनुशासन के निर्माण का बुनियादी सिद्धांत यह है कि आप निरंतर उन चुनौतियों को हाथ में लेते रहे जिन्हें आप सरलता से हल कर सकते हो। धीरे-धीरे चुनौतियों के स्तर में वृद्धि करते जाइए। कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आप अब वह कार्य भी बड़ी सरलता से पूर्ण कर लेते हैं जिसे करने के लिए आप पहले सोचते भी ना थे। यदि आप जीवन में निरंतर चुनौतियों का सामना नहीं करेंगे तो, आप अपने भीतर आत्म-अनुशासन को और नहीं बढ़ा सकेंगे। आप जितने ज्यादा अनुशासित होते जाएंगे, जिंदगी उतनी ही सरल होती चली जायेगी।
आत्म-अनुशासन के निर्माण की वृद्धि हेतु यदि आप स्वयं पर अत्यधिक दबाव डालने का प्रयत्न करते हैं तो यह आपके लिए एक भूल साबित होगी। जिंदगी में रातों-रात कायाकल्प कर लेने की उम्मीद से यदि आप अपने लिए दर्जन-भर लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं, तो निश्चित मानिये कि आप सफल नहीं होने वाले हैं। आत्म-अनुशासन एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे क्रमिक प्रशिक्षण द्वारा ही विकसित होती है। यदि आप इस प्रक्रिया का अनुसरण नहीं करेंगे तो आप जीवन में अनाड़ी नजर आएंगे और समाज में हास्य का पात्र बन जाएंगे।
आप स्वयं की तुलना किसी दूसरे से कभी मत कीजिए। इससे किसी प्रकार का लाभ नहीं होने वाला है। आप अपने आप को स्वयं पर केंद्रित करने का प्रयास करिए और स्वयं को बेहतर साबित करने की दृष्टि से अपने लक्ष्यों का निर्धारण कीजिए। स्वयं को दूसरों से कम अनुशासित मानकर कुंठित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। समय बहुत बलवान होता है, संभव है आप के क्रमिक प्रयास एक दिन आपको दूसरों से कहीं अधिक अनुशासित और प्रगतिशील सिद्ध कर दें, और समाज आपके आत्म-अनुशासन की दुहाई देने लग जाए।
स्वीकृति, आत्म-अनुशासन निर्माण का दूसरा सबसे अहम सूत्र है। स्वीकृति का अभिप्राय है कि आप अपने यथार्थ के वास्तविक रूप को समझें, और जो आपने समझा है उसे जागृत अवस्था में स्वीकार करें। अपने आत्म-अनुशासन का यथार्थ आंकलन अत्यंत कठिन है। संभव है, आप अपने जीवन की वास्तविक कमजोरियों की अवहेलना कर रहे हो। साधारणतयः मनुष्य अपनी कमजोरियों को अपनी विशेषता मान कर उसे स्वीकार कर लेता है। जबकि वास्तविकता यह है कि मनुष्य की यह दुर्बलतायें ही उसकी प्रगति का रोड़ा बन जाती हैं। अपनी दुर्बलताओं को सच्चे मन से स्वीकार कर और उस पर नियंत्रण प्राप्त करके ही, आप आत्म-अनुशासन में वृद्धि कर सकते हैं।
स्वीकृति के अभाव में, आप अज्ञानता की अवस्था में रहेंगे। अज्ञानता की इस अवस्था में, आपको कोई अनुमान ही न होगा कि आप वास्तव में कितने अनुशासित हैं। आप अपनी क्षमताओं के बारे में या तो बहुत निराशावादी या फिर बहुत आशावादी हो जाएंगे। आपका स्वयं के प्रति त्रुटिपूर्ण आंकलन आपकी आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देगा। अतः स्वयं का निष्पक्ष मूल्यांकन कर अपनी दुर्बलताओं को सुधारने का प्रयास करें।
जीवन में आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया यूं ही प्रारंभ नहीं हो जाती। यह एक सुविचारित सतत प्रक्रिया है और इसके विनिर्माण के पीछे सालों की कड़ी मेहनत छुपी होती है। आपकी इच्छाशक्ति भी आपके आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया में एक अहम स्थान रखती है। इच्छाशक्ति आपको वह सामर्थ देती है, जिसके प्रभाव से आप अपनी कार्य-विधि को ना केवल विनिर्मित कर सकते हैं, अपितु उसका प्रभावी संचालन भी कर सकते हैं। इच्छा-शक्ति, इस प्रक्रिया में एक बेहद शक्तिशाली परन्तु अस्थायी बल है। इच्छा-शक्ति के लिए सचेत एकाग्रता की जरूरत होती है और सचेत एकाग्रता बहुत थका देने वाली प्रक्रिया होती है। यह लंबे समय तक बरकरार नहीं रखी जा सकती। आखिरकार कोई न कोई चीज आपका ध्यान भंग कर ही देगी। अतः केवल इच्छाशक्ति की सघनता को स्थिर कर ही आप आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया चिरस्थाई बना सकते हैं।
इच्छाशक्ति पर विजय प्राप्त कर आप आत्म-अनुशासन की प्रक्रिया को अपनी आदत में परिवर्तित कर देते हैं। जब आत्म-अनुशासन आपकी आदत बन जाता है, तब कोई भी कार्य आपके लिए असंभव नहीं होता। क्योंकि आदत आपको न्यूनतम ऊर्जा व्यय के साथ लक्ष्य की ओर अग्रसर करने की क्षमता रखती है। अतः इच्छाशक्ति की प्रचंड ज्योति प्रज्वलित कर आप अपने आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया को आदत में बदल डालिए।
कठिन-परिश्रम, आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया का सबसे सबसे बड़ा रहस्य है। कठिन-परिश्रम सर्वव्यापी है। कठिन-परिश्रम को अंगीकार कर आप कोई भी सकारात्मक लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। आपकी जिंदगी की राह में कुछ ऐसे लक्ष्य भी आते हैं, जिन्हें आप कठिन-परिश्रम के बिना भेद नहीं सकते। जब आपके आत्म-अनुशासन निर्माण की प्रक्रिया के सभी द्वार बंद हो जाते हैं, तब कठिन-परिश्रम ही इन बंद द्वारों को खोलने की राह प्रदर्शित करता है। जब आप कठिन-परिश्रम को टालने और उससे घबराने की बजाय खुद को सहज ही उसके हवाले कर देने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर लेंगे तो आपकी जिंदगी एक बिलकुल ही नए स्तर पर पहुँच जाएगी।
अंत में परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह हमारे जीवन में आत्म-अनुशासन के विकास हेतु इतना सामर्थ, प्रयत्नशीलता, यथार्थवादिता, कठिन-परिश्रम और प्रचुर इच्छाशक्ति उत्पन्न करें कि हम विश्व में आत्म-अनुशासन का पर्याय हो जाए।