नि.र.स. - इंतजार - एक लम्बा सफर
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Dedicate to my Pen
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नज्मे
१. प्यार के सवाल - जवाब
२. हवा नें दखल दी
३. मै क्या लिखूँ?
४. बहुत देर तक
५. मै, तुम और उलझन
६. मै खफा हूँ, बस बेवजह हूँ
७. एक अंजान सफर
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प्यार के सवाल - जवाब
उसने अगर पूछ लिया,
कि तुम कितना प्यार करते हो?
तो हम धरा क्षितिज से,
गगन धुरी तक गहरा प्यार बता देंगे।।
उसने अगर पूछ लिया,
कि तुम इतना क्यो प्यार करते हो ?
तो हम आँखो के नम से,
उसको रूह तक समाई दिखा देंगे।।
उसने अगर पूछ लिया,
कि गर मैं तुम्हारी जिंदगी नही हुई तो?
तो हम तेरे प्यार की गिरफत में,
ताउम्र कैद की गुहार करेगें।
उसने अगर पूछ लिया,
कि ये ताउम्र कैद, दुख के सिवा क्या देगी?
तो हम खुद को शब्दो में समेटकर,
ये नि.र.स. कविता कह देंगे।।
- नि.र.स.
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हवा नें दखल दी
राहगीर को उम्मीद छांव की थी दरख्त से।
मगर हवा नें पत्तो को छिटक दखल दी।।
मेरे बस में होता,
तो लबों के रंग से भर लेता जिंदगी।
मगर उस मदहोशी के प्यालो के लिए,
कहाँ हमको फुरसत मिली।।
मै राहगीर था, तो चल रहा हूँ,
मेरे नसीब में उस खुदा ने कहाँ कोई मंजिल लिखी।।
राहगीर को उम्मीद छांव की थी दरख्त से।
मगर हवा नें पत्तो को छिटक, दखल दी।।
मेरे बस में होता,
तो रेश्म के धागो में पिरो लेता ख्वाब।
मगर उस छांव के नजरानो के लिए,
कहाँ हमको फुरसत मिली।।
मै राहगीर था, तो चल रहा हूँ,
मेरे नसीब में उस खुदा ने कहाँ कोई मंजिल लिखी।।
राहगीर को उम्मीद छांव की थी दरख्त से।
मगर हवा नें पत्तो को छिटक, दखल दी।।
- नि.र.स.
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मै क्या लिखूं?
आज क्या लिखूं ऐसा,
मै सोच रहा था,
तेरा प्यार लिखूं मैं,
या तेरी नफरत लिखूं,
लिखूं जग सारा या
सारा जग छोड़ कर,
सिर्फ तुझे ही लिखूं ।
मेरी कलम ना जाने,
मुझसे चाहती क्या है,
रोज सोचता हूं मै,
कि आज क्या लिखूं,
हर रोज रात मुझको,
यही सवाल सताता है
कि तेरा प्यार लिखूं,
या मै फिर तेरी ...।।
-नि.र.स.
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बहुत देर तक
बहुत देर तक,
तेरी बाँट में,
राह निहारते रहे।
बहुत देर तक,
तेरे इंकार की,
वजह तलाशते रहे।।
बहुत देर तक,
अपनी आखों से,
तस्वीर बहाते रहे।
बहुत देर तक,
तेरे साये से,
अंधेरे निभाते रहे।।
बहुत देर तक,
जीवन लहर में,
नौका डुबाते रहे।
बहुत देर तक,
तेरी यादो को,
नि.र.स. बनाते रहे।।
बहुत देर तक,
तेरी बाँट में,
राह निहारते रहे।
बहुत देर तक,
तेरे इंकार की,
वजह तलाशते रहे।।
- नि.र.स.
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मै, तुम और उलझन
मै एक सवाल हूँ।
तुम जवाब हो।।
तुम एक सवाल हो।
तो मै जवाब।।
जब तुम एक सवाल हो।
तो मै जवाब हूँ।।
तो फिर मै एक सवाल क्यो?
और तुम एक जवाब क्यो?
यूंही उलझनो से उलझा -
एक सवाल मै,
मेरा जवाब तुम।
यूंही उलझनो से उलझा -
एक सवाल तुम,
तेरा जवाब मै।।
- नि.र.स.
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मै खफा हूँ, बस बेवजह हूँ
यू ही गर मै कह दूँ,
कि मै खफा हूँ।
तो बताओ तो सही,
कि कौन हो तुम मेरे मन को बहलाने वाले।।
मै अपनो से कट के गैर हो चुका हूँ,
तो तुम मुझ गैर को अपनाकर क्या करोगे।
जिंदगी में दे नही पाऊँगा तुझे कोई खुशी,
हर वक्त मेरी नि.र.स. कलम में आहे भरोगे।।
अच्छा चलो! यू ही गर मै कह दूँ,
कि मै खफा हूँ, इस बार तुमसे।
तो क्या मेरे एक छोटे से झूठ को,
सच बनाने के लिए दूरिया बढा लोगे।।
इतनी सी कोशिश तो करती,
मेरे आखों का ऐतबार बरकरार तो रहता।
तु गैर ही रहने दे मुझे अब,
अब वजह मेरी आँखो में तलाश क्या करोगी।।
- नि.र.स.
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एक अंजान सफर
कल लाखो की भीड. में,
वो एक चेहरा ना होगा।
जिस चहेरे के नूर से,
मेरी कलम निखरी है।।
मै अकेला हूँ,
अकेला ही रहूँगा।
वो निक्की-सी जिंदगी में,
लम्बी रात दे गई है।।
मैने बडी कोशिश की,
खुद को नि.र.स. ना बनाऊँ।
मगर मेरे बिछडने को,
कहाँ अभी प्यार की आकृति मिली है।।
कल लाखो की भीड. में,
वो एक चेहरा ना होगा।
जिस चहेरे के नूर से,
मेरी कलम निखरी है।।
- नि.र.स.