नि.र.स.
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DEDICATED TO MY PEN
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नज्में
1. कुछ तो बात होगी
2. वो एक तस्वीर
3. मै नि.र.स. हो जाता हूँ
4. काली बिंदी
5. क्या प्यार इसको कहते हैं?
6. ढूंढता अपनी पहचान हूं
7. तुम हो ना
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कुछ तो बात होगी
ठहर जाता हूँ,
अक्सर तेरे यहाँ,
कुछ तो बात होगी।।
तूमने भी कभी
सवाल नही किया,
कुछ तो बात होगी।।
मै भटका रहा,
तेरे से पहले,
कुछ तो बात होगी।।
तूने पनाह दी,
बिन किराये के,
कुछ तो बात होगी।।
मै डरता हूँ,
तेरी जुदाई से,
कुछ तो बात होगी।।
तूमने निडर कर,
मुझे नि.र.स. किया,
कुछ तो बात होगी।।
नि.र.स.
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वो एक तस्वीर
वो एक तस्वीर, जो अक्सर छुपाये रखता था,
आज उसे ढुँढने का मन नही करता।
वो एक खत, जो अक्सर भिजवाया करता था,
आज उसे लिखने का मन नही करता।।
वो एक ताबीज, जो अक्सर मेरी हिफाजत करता था,
आज उसे बाजू पर रखने का मन नही करता।
वो एक नजराना, जो अक्सर
तेरी इबादत की दुआ करता था,
आज इबादत में तुम हो, पर सजदा करने का मन नही करता।।
वो एक तस्वीर, खत, ताबीज और नजराना, जो अक्सर तेरे होने का जिक्र करता था,
आज इनके वजूद को ख्वाब में खोजने का मन नही करता।
वो एक चाहने वाला मै, जो अक्सर तुझे सब जता दिया करता था,
आज र.स. से नि.र.स होने पर भी तूझे जताने का मन नही करता।।
वो एक तस्वीर, जो अकसर ...
नि.र.स
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मै नि.र.स. हो जाता हूँ
मै गर कुछ ना कहूँ,
तो क्या तुम चुप्पी समझ लेती हो।
मै गर कुछ ना लिखूँ,
तो क्या तुम आँखे पढ लेती हो।।
मै गर हकीकत बयान करूँ,
तो क्या तुम ख्वाब रच लेती हो।
क्या तुम्हे पता है कि -
गर तुम कुछ ना कहो, ना लिखो,
ना ही मेरी हकीकत में हो,
तो मै नि.र.स. हो जाता हूँ।
मै गर कोरा खत भेजूँ,
तो क्या तुम सब समझ लेती हो,
मै गर तुझे याद करूँ,
तो क्या तुम सिसकियाँ भर लेती हो,
मै गर तुम्हे ना दिखूँ,
तो क्या तुम आँखे बंदकर लेती हो।
क्या तुम्हे पता है कि -
गर तुम कोरा खत ना भेजो, ना याद करो,
ना ही जमाने में दिखो,
तो मै नि.र.स. हो जाता हूँ।
नि.र.स.
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काली बिंदी
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी,
तेरे माथे पर,
दिनभर की थकी,
मेरी लिखावट में,
आकर के सोने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
न जाने क्यों,
यह तेरे माथे सजी,
इसके नूर से,
मेरी कलम निखरने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
मुझको मनमोहित कर,
अपने गहरे रूप से,
मेरी कलम की,
मानो सुद्ध-बुद्ध हरने लगी,
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
रंग से काली,
दुनिया को पसंद नहीं,
पर श्याम रंग में,
राधा के माथे सजने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
थोड़ी सी ठग है,
अलंकार रूप में,
सब को भ्रमित करने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
ना केवल मुझको,
इसने तुझको भी ठगा,
क्योकिं तेरे रूप से,
ज्यादा सुंदर अब यह लगने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
इस कविता में,
तेरी काली बिंदी को,
मुझ नि.र.स. में,
एक आकृति मिलने लगी।।
तेरी काली बिंदी,
अब मेरी होने लगी।।
नि.र.स.
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क्या प्यार इसको कहते हैं?
तुझे लिखने लगा हूं, यादों में मेरी,
तुझे कहने लगा हूं, बातों में मेरी,
तुम बसने लगी हो, सांसों में मेरी,
तू बता आ करके मुझको,
क्या प्यार इसको कहते हैं?
तुझे सोचने लगा हूं, हर वक्त में मेरे,
तुझे चाहने लगा हूं, हर शख्स में मेरे,
तुम रचने लगी हो, हाथों पर मेरे
तू बता आ करके मुझको,
क्या प्यार इसको कहते हैं?
तुझे महसूस करने लगा हूं, हवा में मेरे,
तुझे छूने लगा हूं, ख्वाब में मेरे,
तुम इजाजत देने लगी हो, इबादत में मेरी,
तू बता आ करके मुझको,
क्या प्यार इसको कहते हैं?
तुझे रचने लगा हूं, कविता में मेरे,
तुझे चाहने लगा हूं, जीवन में मेरे,
तुम बहने लगी हो, रग रग में मेरे,
तू बता आ करके मुझको,
क्या प्यार इसको कहते हैं?
तुझे बनाने लगा हूं, कल्पनाओ में मेरे,
तुझे पाने लगा हूं, हर पल में मेरे,
तुम महक ने लगी हो, नि.र.स. मे मेरे,
तू बता आ करके मुझको,
क्या प्यार इसको कहते हैं?
नि.र.स.
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ढूंढता अपनी पहचान हूं
लिखे हुए कुछ पन्नों पर,
ढूंढता अपनी पहचान हूं।
प्यास लगी है मुझको,
कि पानी ले आया करो,
उसमें तुम प्यास,
अपनी भी मिटा लेना।
और गर मेरी प्यास ना बुझे,
तो तुम दामन को अश्कों से भीगा लेना,
की तेरे अश्कों के नमक से,
मैं तेरा शुक्रगुजार हूं।। ...
कुछ कहना है मुझको,
कि तुम आ जाया करो,
मुझे तुम कह,
अपनी बात पूरी कर लेना।
और गर मेरी बात पूरी ना हो पाए,
तुम एक जन्म और ले लेना,
तेरे जन्म के कर्ज में,
मैं तेरा शुक्रगुजार हूं।।...
याद आ रही है मुझको,
एक खत ले आया करो,
उसमें तुम हाल-ए-दिल,
अपना भी बयान करो।
और गर मेरा हाल बयां ना हो पाए,
तो तुम अपनी आंखों से समझ लेना,
कि तेरी इन गहरी आंखों में,
मैं तेरा शुक्रगुजार हूं।।...
थकान हो रही है मुझको,
कि बिस्तरा ले आया करो,
उसमें तुम सो,
अपनी थकान मिटा लेना।
और गर मेरी थकान ना मिट पाए,
तो तुम अपनी गोद में मुझ को सुला लेना,
कि तेरी गोद के नरमपन में,
मैं तेरा शुक्रगुजार हूं ।।...
किसी से प्यार है मुझको,
कि इकरार ले आया करो,
उसमें तुम प्यार,
अपना भी जता लेना।
और गर मेरा प्यार पुरा ना हो पाए,
तो तुम मेरे संग यादें बना लेना,
कि तेरी नि.र.स. यादों में,
मैं तेरा शुक्रगुजार हूं।।...
नि.र.स.
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तुम हो ना
मेरी कविता में, मेरे किस्सो में,
मेरे शब्दों में, मेरी लिखावट में,
मेरी नज्मों में, मेरे जख्मों में,
मेरे जज्बातों में, मेरी यादों में,
मेरी आखों में, मेरे अश्को में,
मेरे सपनों में, मेरी हकीकत में,
मेरे जुनून में, मेरे सुकुन में,
मेरे साँसों में, मेरी धडकनों में,
मेरी हिदायत में, मेरे रूसवायत में,
मेरी मोहब्बत में, मेरी चाहत में,
मेरे पागलपन में, मेरे आवारापन में,
मेरे सुनेपन में, मेरी अधुरेपन में,
मेरे सच में, मेरे झूठ में,
मेरे विश्वास में, मेरे खुदा में,
मेरे बचपन में, मेरी जवानी में,
मेरे बुढापे में, मेरे हर पल में,
मेरी आत्मा में, मेरे शरीर में,
मेरी रूह में, मेरे हर कण में,
मेरे आदि में, मेरे अंत में,
मेरे धर्म में, मेरे कर्म में,
मेरे अंदर में, मेरे बाहर में,
मेरे र.स. में, मेरे नि.र.स. में,
तुम हो ना?
नि.र.स.