नि.र.स. - कलम के किरदार
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Dedicate to my pen
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नज्में
१. खुद की तलाश
२. अंहकार की कलम
३. लिखना तो हमें आता ही नहीं
४. मुझे कौन जाने
५. उलझे हुए सवाल
६. ये डर क्यो है?
७. कलम के किरदार
८. क्या ये अंधेरा मेरा है?
९. मेरी कलम से कुछ मांग तो
१०. ये नग्में आपके है
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खुद की तलाश
खुद को बनाने बैठा था "मै"।
"पर", न जाने कितने रिश्ते खो गए।।
और गर रिश्तो "पर" आश लिए बैठा रहता।
तो "मै" का वजूद, शायद खो सा जाता।।
"मै" का स्वालंभी होना गर गलत है,
तो ये कलम का अहं है मान लिया।
और ये "मै" उन सब "पर" बातो पर,
अंकुश का एकमात्र वहम है, मान लिया।।
"मै" कलम के लिए यश, वैभव
व सम्पूर्णता की परिभाषा है।
गर अहं मानो, तो भी "पर" झूठ रूपी निराशा पर
शायद सुनहरे सच की एकमात्र आशा है।।
- नि.र.स.
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अहंकार में कलम
शब्द मेरे अनजान है,
अलंकारों की पृष्ठभुमि पर,
ढूंढते कोई एक नयी पहचान है,
शब्द मेरे अनजान है।।
जाने ना, क्यों ये ठगी शब्द मुझे,
कह रहे कि, तु महान रचनाकार हैं।
जब कि अलंकारों की पृष्ठभुमि पर,
मेरे शब्द ढूंढते अभी, खुद नयी पहचान है।।
शायद ये शब्द मेरे अनजान है...
मेरे हाथों से कलम डगमगा रही,
ये कैसा रचा विधी का विधान है।
न जाने क्यों मेरे गर्वित शब्दों को,
हुआ अपने रूप का अहंकार है।।
जबकि अभी शब्द मेरे अनजान है,
अलंकारों की पृष्ठभुमि पर,
ढूंढते कोई एक नयी पहचान है,
शब्द मेरे अनजान है।।
- नि.र.स.
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लिखना तो हमें आता ही नहीं
आज यूं ही कलम थाम क्या ली हाथों में।
और लिख दिये कुछ शब्द जोड़ - जोड़ कर जज्बातो में।।
तो फिर पता चला,
कि लिखना तो हमें आता ही नहीं है।।
यूं ही जुड़े हुए उन जज्बातो के वे कुछ टुटे फुटे शब्द।
जब सुना दिये भरी महफिल में बेफिक्र हो मैनें।।
तो फिर पता चला,
कि कहना तो हमें आता ही नहीं है।।
पर जब तालियों की गड़गड़ाहट और
वाह-वाह की गुंज मेरे कानों में पडी।
जैसे मेरी बेमतलबी बातों में
भावनाओं,
उपनिषदों,
दोहे, गद्द, पद्द
के समान अलंकार लग गए हो।।
तो फिर पता चला
कि जमाने को समझना आता ही नहीं।।
- नि.र.स.
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मुझे कौन जाने
जब मैं कुछ नहीं था।
तो मुझे कौन जानता था।।
जब मैं भूतकाल की नि:शब्द, बेनाम कोठरी में बंद था।
तब मुझे कौन जानता था।।
मेरी कलम को कौन जानता था।
मेरे ख्वाबों को कौन जानता था।।
कल तक जो मैं था।
उसे कौन जानता था।।
आज मैं मशहूर हूं।
हर किसी के दिल का सरूर हूं।।
कल फिर जब गुजर जाऊंगा हसीन पलों की तरह।
जब मुझे कौन जानेगा,
जब मुझे कौन पहचानेगा।।
- नि.र.स.
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उलझे हुए सवाल
क्या लिख रहा हूं,
न जाने क्यो लिख रहा हूं।
न जाने कौन सी बात,
मेरी कलम पे तराना बन जाये।।
कैसे बिन लिखे,
ये ज्यो कि त्यो रात कटे।
और कलम की अधुरी बुनी बाते,
कोई अपनी नींदे गँवा के कैसे पूरी करे।।
बस इन्ही सवालो के जवाब ढूंढ रही है वो,
क्या, क्यो, कौन, कैसे हो।
शब्दो के इस गहरे जंजाल में,
मेरी कलम के ये नि.र.स. नग्मे,
कुछ ऐसे ही उलझे हुए है।।
- नि.र.स.
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ये डर क्यो है?
मैं क्या लिखूं,
कोरे कागज पर काले शब्दों से।
लोग कहीं उस कागज की सुंदरता पे,
मेरे काले शब्दों को दाग ना समझ ले।।
बस इसी डर से-२,
मैं अपनी खूबियां दर्शाता नही हूं।
लोगों को सिर्फ और सिर्फ,
सुंदरता से प्यार है।
मेरे शब्दों के कुरूप से,
कहा उनका मन बहलेगा।।
बस इसी डर से-२,
मैं अपनी खूबियां दर्शाता नही हूं।।
- नि.र.स.
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कलम के किरदार
मेरी कलम किरदार बदलती रहती है।।
कभी सच, तो कभी झूठ बताती है।
मेरी कलम किरदार बदलती रहती है।।
कभी खामोश, तो कभी चिल्लाती है।
मेरी कलम किरदार बदलती रहती है।।
कभी अपनों की बातें, तो कभी पराई हो जाती ।
मेरी कलम किरदार बदलती रहती है।।
कभी लगता है मानो बेगानी हो चुकी है।
तो कभी लगता है सयानी हो गई।।
मेरी कलम किरदार बदलती रहती है।
- नि.र.स.
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क्या ये अंधेरा मेरा है?
मेरे उजालो का लिखा,
अंधेरे को समझ ना आया।
शायद ये अंधेरा,
मुझे बडे करीब से जानता है।।
मै लिख रहा था,
उजालो में भंवरो को देखकर,
फूलो का र.स.,
मगर अंधेरा मुझको नि.र.स. मानता है।।
मेरे उजालो का लिखा,
अंधेरे को समझ ना आया।
शायद ये अंधेरा,
मुझे बडे करीब से जानता है।।
- नि.र.स.
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मेरी कलम से कुछ मांग तो
मेरी आवाज से डर निकल गया है।
कहते हैं वह मासूम बदल गया है।।
निशान आवाज के मिट चुके हैं।
कलम के लिखे, सब बिक चुके हैं।।
बोल अब तू मांगता क्या है?
एक कलम में,
हुस्न है, शराब है,
फिजा है, गुलाब है।
एक कलम में,
खुदा है, आसमां है,
जमीं है, हिसाब है।।
एक कलम में,
मैं हूं, मेरे गीत है,
मेरे लेख हैं, मेरे ख्वाब है।
एक कलम में,
आप हो, दिल है,
सवाल है, उन सवालों के जवाब है।।
एक कलम में,
वस्ल है, हिज्र है,
उरूज है, जवाल है।
बोल तो तू मांगते हैं...
- नि.र.स.
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ये नग्में आपके है
सुबह की उजाले से,
मेरी कलम को डर लगे।
रात तो इसकी अपनी हैं,
बेखौफ होकर घूमे।।
अपनों के करीब जाते हुए,
मेरी कलम घबरा जाती है। अकेलेपन में तो ये,
बेपरवाह होकर खुद को ढुंढ लाती है।।
मेरी कलम है, मेरी नग्मे है।
मेरी तराने है, मेरी जिंदगी है।।
जिन्हे सुन के वाह-वाह करने वाले,
खुद गवाह है इसकी लिखी कविता का।
बस इतनी सी कहानी है मेरी,
जिसमें मरने के बाद भी मै याद आता।।
मेरी कलम, मेरे नग्में,
जिस में बस आप ही आप हैं।।
- नि.र.स.
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