Aadhar - 7 in Hindi Motivational Stories by Krishna Kant Srivastava books and stories PDF | आधार - 7 - सहृदयता, जीवन का अनिवार्य अंग है।

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आधार - 7 - सहृदयता, जीवन का अनिवार्य अंग है।

सहृदयता,
जीवन का अनिवार्य अंग है।
आपने महसूस किया होगा कि आपके घर के आसपास, आपके नाते रिश्तेदारों में या आपके साथ कार्य करने वाला आपका कोई साथी, अपने साथियों के साथ समन्वय नहीं बैठा पाता और सदैव बुझा-बुझा व तनावग्रस्त नजर आता है। उसका अपने साथियों के प्रति व्यवहार बड़ा ही नीरस, रूखा शुष्क, निष्ठुर, कठोर और अनुदार होता है। यह व्यक्ति के रूखे स्वभाव का परिणाम है। रूखापन मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है। उसे अपने साथियों में कोई दिलचस्पी नहीं होती, किसी की हानि-लाभ, उन्नति-अवनति, दुख-सुख व अच्छाई-बुराई इत्यादि से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता। उसे अपने साथियों के हर काम में कोई ना कोई खोट नजर आती है।
ऐसे व्यक्तियों का दायरा अत्यंत संकुचित होता है। वे अपने स्त्री, पुत्र-पुत्री, धन-संपत्ति आदि में तो थोड़ी रुचि अवश्य लेते हैं परंतु बाकी अन्य वस्तुओं के प्रति उनके मन में बहुत ही अनुदारता दिखाई देती है। उनमें से कोई-कोई तो इतने कंजूस भी होते हैं कि वे अपने शरीर के साथ में भी उदारता दिखाना नहीं चाहते। ऐसे व्यक्ति अच्छे भोजन, अच्छे वस्त्र, अच्छे मकान आदि आवश्यक वस्तुओं में भी आवश्यकता से अधिक कठोरता प्रदर्शित करते हैं। ऐसे रूखे व्यक्ति यह समझ ही नहीं पाते कि मनुष्य जीवन में आनन्द नाम की भी कोई वस्तु है जिससे वे वंचित हो रहे हैं। अपने रूखेपन के अत्युत्तर में दुनिया उन्हें बड़ी रूखी, नीरस, कर्कश, खुदगर्ज, कठोर और कुरूप मालूम होती है।
इसके विपरीत जो व्यक्ति भावना से कोमल, वाणी से मृदुल, व्यवहार में सरल, हृदय से उदार होता है, वह सहृदयी व्यक्तियों की श्रेणी में गिना जाता है और जिसमें यह गुण नहीं होता उसे हृदय हीन कहा जाता है। सहृदयता व्यक्ति के भीतर उदारता और आत्मीयता का ऐसा समन्वय उत्पन्न कर देती है कि मनुष्य देवतुल्य हो जाता है। समाज में ऐसे मनुष्यों का वैभव और ख्याति चरम सीमा तक पहुंच जाती है और मनुष्य अनुकरणीय हो जाता है। अतः सहृदयता को शिष्टाचार की उच्च स्थिति कहा जाएं तो अतिशयोक्ति ना होगी।
सहृदयता और दयालुता से ओतप्रोत व्यक्तियों का ह्रदय अभावग्रस्त व कष्ट पीड़ितों को सामने देख कर उनकी मदद के लिए मचलने लगता है। उनके लिए ना कोई अपना होता है और ना कोई पराया। सहृदयी व्यक्ति का हृदय इतना विशाल होता है कि वे उन से बैर भाव रखने वाले व्यक्तियों की भी उनके कठिन समय पर सहायता के लिए तत्परता पूर्वक तैयार रहते हैं।
साधारण व्यक्ति अपने देशाटन के समय अथवा राह चलते वक्त सड़क किनारे पड़े इसी असहाय व्यक्ति को देख कर मुंह फेर लेते हैं और अपने गंतव्य को चले जाते हैं। परंतु सहृदयी व्यक्ति का लक्षण मनुष्यता प्रधान होता है। वह ऐसी स्थिति को प्राप्त व्यक्ति को देख कर अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकता। सहृदयता सिखती है कि इस संसार के सभी मनुष्यों में परमात्मा का वास होता है और हम सब उस परमात्मा का अंश हैं। आवश्यकता पड़ने पर जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करना हमारा प्रथम कर्तव्य है।
हमारा इतिहास ऐसे सहृदयी व्यक्तियों के उदाहरणों से पटा पड़ा है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे व्यक्तियों की मदद कर मानवता की मिसाल कायम की। ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री और अब्राहिम लिंकन जैसे हजारों ऐसे व्यक्तियों का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने अपनी सहृदयता का परिचय देते हुए, अपने मानवीय मूल्यों के दायित्वों का अभिलंब निर्वहन कर सामान्य जन के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत किया।
इस संसार के मूर्धन्य महापुरुषों ने हृदय की महानता को अपने भीतर विकसित करने पर सबसे अधिक जोर दिया है। यहां जितने भी महापुरुष हुए हैं उनमें चाहे अन्य कोई विशेषता रही हो अथवा नहीं परंतु सहृदयता की मात्रा उनके आचरणों में प्रचुर मात्रा में अवश्य मौजूद रही थी। योग्यता, प्रतिभा, बुद्धि और धन से संपन्न होते हुए भी जिस व्यक्ति में सहृदयता का अभाव होता है वह अपने आपमें अपूर्ण माना जाता है। समृद्धि, वैभव एवं बौद्धिक प्रखरता की प्रचुर मात्रा के बावजूद सहृदयता के अभाव में व्यक्ति समाज में अपना उचित स्थान नहीं बना पाता है। अतः मानवीय गुणों में सहृदयता का सर्वोच्च स्थान होता है।
वैज्ञानिकता के आधार पर देखा जाए तो हम पाते हैं कि सहृदयी व्यक्ति के मस्तिष्क से सदा सकारात्मक विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्सर्जन होता है। जो समतुल्य व्यक्तियों के साथ-साथ विपरीत प्रकृति के व्यक्तियों को भी आकर्षित करने का गुण रखती हैं। यही कारण है कि सहृदयी व्यक्ति सामान्य जनों के साथ-साथ उन व्यक्तियों को भी आकर्षित करते हैं जो रूखे व कठोर प्रवृत्ति के होते हैं। सहृदयता को जीवन में अपनाकर मनुष्य वास्तविक आनंद की प्राप्ति कर सकता है।
मनुष्य को जीवन के वास्तविक आनंद के लिए अपने भीतर कुछ विशेष गुणों को संचित करना आवश्यक है जो उन्हें सामान्य से विशेष की ओर अग्रसारित करते हैं। जिसमें से सबसे पहला गुण है, खुशी।
खुशी, आनंद की एक विशेष अवस्था मानी जाती है। इस स्थिति में रहने के लिए यदि आप अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित कर लेते हैं तो धीरे-धीरे आपका मस्तिष्क इसका अभ्यस्त हो जाएगा। हालांकि यह उतना आसान नहीं है जितना लगता है, परंतु अभ्यास सभी क्रियाओं को आसान बना देता है। आप समय-समय पर खुशी का अनुभव कर सकते हैं लेकिन खुशी की इस अवस्था को आत्मसात करने में कुछ लंबा समय भी लग सकता है। आपके पास सकारात्मक भावनाओं की सहायता से खुशी को स्थायी बनाए रखने की शक्ति है, जो अच्छे विचारों से ही प्राप्त की जा सकती है।
सहृदयी व्यक्ति जीवन की विभिन्न पस्थितियों में ना तो अति-उत्साहित होता है और ना ही अति-उदास। वह इन दोनों परिस्थितियों में शांति और संतोष का परिचय देता है। आपके विचार आपकी वास्तविकता बताते हैं। सकारात्मक विचार और सकारात्मक मन जीवन में सकारात्मक चीजों को आकर्षित करते हैं और नकारात्मक विचार नकारात्मक अनुभवों का अहसास कराते हैं। इसलिए जीवन में खुश रहने का एकमात्र यही उपाय है कि आप अपने आस-पास रहने वाले सभी इष्ट मित्रों के बारे में अच्छा सोचें। क्योंकि जब हम दूसरे व्यक्तियों के बारे में अच्छा सोचते हैं तब ही हम उनके साथ अच्छा व्यवहार भी कर सकते हैं। नकारात्मक विचारों को मन में पालने से जीवन में चिंता और तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यदि आप स्वयं तनावग्रस्त अथवा चिंतित रहेंगे तो धीरे-धीरे सहृदयता आपके जीवन से दूर होती चली जाएगी। अतः आपको हमेशा अपने अच्छे समय और सभी अच्छी चीजों के बारे में याद करना चाहिए। यह आपनी मनोदशा को नकारात्मक से सकारात्मक अवस्था तक स्थानांतरित करने की एक अच्छी विधि है।
सहृदयता का दूसरा रूप दयालुता है। भारत की कई संस्कृतियों में दया को सहृदयता का एक आवश्यक गुण माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य के सात महत्वपूर्ण गुणों जैसे अंतरात्मा, सम्मान, सहिष्णुता, आत्म-नियंत्रण, निष्पक्षता और सहानुभूति में दया एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को ईश्वर से वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ है। दयालु होने से हमारा तात्पर्य अपने आसपास के लोगों के प्रति विनम्र और मैत्रीपूर्ण होकर उनकी सहायता करना है।
आधुनिक युग में हमारा समाज अत्यंत आत्म-अवशोषित हो गया है। हम केवल स्वयं के बारे में सोचते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को बेहतर बनाने में व्यस्त है और दुनिया को यह दिखाना चाह रहा है कि उनकी ज़िंदगी दूसरों की तुलना में कहीं अधिक सुव्यवस्थित और श्रेष्ठ है। वह जो चाहता है उसे प्राप्त करने के लिए कोई भी रास्ता चुनने में संकोच नहीं करता है। हालांकि अपने आप को सुधारने और उन्नति करने में कोई बुराई नहीं है परंतु दूसरों के हितों पर अतिक्रमण कर इसे प्राप्त करना उचित नहीं ठहराया जा सकता।
कोई भी व्यक्ति अशिष्ट, अभिमानी, स्वार्थी और घमंडी लोगों का साथ करना पसंद नहीं करता। प्रत्येक व्यक्ति उन लोगों को पसंद करता है जो नम्र, विनम्र, दयालु और उदार हों। विनम्रता के ये सभी गुण सहृदयी व्यक्ति के मूल चरित्र में पाए जाते हैं। सहृदयी व्यक्ति को समाज का प्रत्येक व्यक्ति ना केवल प्यार करता है बल्कि उसके बारे में चर्चा करना पसंद करता है। अतः सहृदयता, एक निस्वार्थ भाव है जो मनुष्य को मनुष्य के निकट लाने में मदद करता है।
अंत में परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि सहृदयता को अपनाकर व्यक्ति स्वयं के भीतर देवतत्व का उदय कर अपने को धन्य करे और असंख्य अन्य लोगों को भी धन्य बनाएं, जिसके संबल से मानवता गौरवान्वित हो और समाज में सुख शांति विनिर्मित हो।

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