इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य के भीतर कुछ ऐसे विशिष्ट गुण होते हैं, जिनके कारण वह दूसरों से भिन्न होता है। यह विशेष गुण यदि सकारात्मक होते हैं तो वे व्यक्ति को महान बना देते हैं, परंतु यदि ये गुण नकारात्मक प्रकृति के होते हैं तो वे व्यक्ति को दुर्गुणों से युक्त कर देते हैं। विश्व में अवतरित सभी महापुरुष अपने विशिष्ट सकारात्मक गुणों के कारण ही संसार में ख्याति अर्जित कर सकें। यदि इन सभी महापुरुषों के चरित्र का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए, तो कोमलता एक ऐसा चारित्रिक गुण है, जो सभी महापुरुषों में अनिवार्य रूप से उपस्थित पाया गया। जो मनुष्य, अपनी इच्छित वासनाओं के प्रति कठोर परंतु समाज के दुखों के प्रति कोमल भाव प्रदर्शित करता है, ही वास्तव में महापुरुष की संज्ञा प्राप्त करने का अधिकारी है।
कोमल आचरण के प्रदर्शन से व्यक्ति अपने आसपास उपस्थित सभी मनुष्यों के साथ-साथ पशु पक्षियों से भी मधुर संबंध स्थापित कर सकता है। कहते हैं, कोमलता वह भाषा है जिसे गूंगा बोल सकता है, बहरा सुन सकता है और अंधा देख सकता है। बेजुबान पशु-पक्षी भी इसका एहसास कर लेते हैं। वास्तविक जीवन में इसका उदाहरण प्राणी उद्यान में कार्यरत वे कर्मचारी हैं, जो अपने कोमल व्यवहार के कारण वहां के पशुओं से इतना अन्तरंग हो जाते हैं कि वे ऐसे पशुओं के बाड़ों के भीतर जाकर उनकी देखरेख करते हैं, जिन पशुओं के नाममात्र से आप घबरा जाते हैं। ऐसा, उन कर्मचारियों का पशुओं के साथ निरंतर प्रदर्शित कोमल व्यवहार के कारण ही संभव हो सकता है।
कोमलता और दयालुता एक दूसरे के पर्याय हैं। शब्दों में प्रकट किया जाने वाला व्यवहार कोमल कहलाता है जबकि आचरण द्वारा किया जाने वाला सद्व्यवहार दयालुता की श्रेणी में आता है। कोमलता एक ऐसा गुण है, जो दूसरों के प्रति उदार भाव दर्शाता है। आधुनिक युग में मनुष्य अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में इतना व्यस्त हैं कि उसे कोमलता जैसा नेक आचरण अपने चरित्र में ढ़ालने का समय तक नहीं मिलता। वे सभी भावनाओं से विरक्त होकर केवल अपने व अपने परिवार के कल्याण के विषय में ही चिंतित रहते हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि मनुष्य के भीतर दयालुता और कोमलता का भाव उत्पन्न करने के लिए राष्ट्रों को वर्ष में एक दिन दयालुता अथवा कोमलता दिवस मनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, नाइजीरिया, सिंगापुर, इटली, संयुक्त अरब अमीरात और भारत जैसे देश भी अब 13 नवंबर को विश्व दया दिवस (वर्ल्ड काइंडनेस डे) के रूप में मनाते हैं। इन देशों का यह मानना है कि यह एक दिन है जो व्यक्तियों को सीमाओं, जाति और धर्म की अनदेखी कर एक दूसरे की मदद करने को प्रोत्साहित करता है।
यदि हम अपनी आंख खोलकर देखें तो दयालुता और कोमलता के अनगिनत उदाहरण प्रकृति की संरचना में नजर आ जाएंगे। जैसे पेड़ निष्पक्ष रुप से सभी प्राणियों को अपना फल, फूल और छाया देता है। समुद्र वर्षा देता है। नदियां पानी देती है, और वायु समस्त प्राणी जगत को जीने के लिए प्राणवायु देती है। प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। प्रकृति की इस भावना को हमें भी अंगीकार करना चाहिए। हमें भी प्रकृति के समान अपक्षपाती, पूर्वाग्रहरहित, नि:स्वार्थ, दानशील और परोपकारी व्यक्तित्व धारण करना चाहिए।
भारत एक दयालुता प्रधान देश है। हमारी क्षमाशीलता, दानशीलता, नेकदिली, परोपकारता, उदारता और दातव्यता के किस्से विश्व में प्रसिद्ध है। हमारे पौराणिक व आध्यात्मिक ग्रंथ हमारे व्यवहार के ज्वलंत प्रमाणों से भरे पड़े हैं। परंतु आधुनिकता की दौड़ और अर्थ की प्यास ने हमको अपनी सांस्कृतिक विरासत से विरक्त कर दिया है। हम धीरे-धीरे आधुनिकीकरण की आड़ में असहिष्णुता, अधीरता, बेसब्री, आतुरता, व्यग्रता, उतावलापन तथा संताप को अंगीकार कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप कोमलता का भाव हमारे जीवन से विलुप्त होता चला जा रहा है और हम अपने परिवार तक से दूर हो रहे हैं।
अध्ययनों से पता चलता है, कि शारीरिक आकर्षण, सामाजिक स्थिति और उम्र के साथ-साथ दोनों पुरुष और महिलाएं अपने संभावित साथी में कोमलता, दयालुता और बुद्धिमानी का गुण भी देखना चाहते हैं। दयालुता को हम व्यक्ति के धर्मार्थ व्यवहार, सुन्दर स्वभाव, सुखदाता और दूसरों की चिंता करने वाले स्वभाव के रूप में पहचानते हैं। यह गुण हर एक के पास नहीं होता है। यह कुछ विरले लोगों के पास ही होता है जिन पर ईश्वर की महान अनुकंपा होती है। यह एक ईश्वर प्रदत वरदान है, जब आप कोई अच्छा काम करते हैं तो वह आपको दयालुता का सुखद अहसास कराता है। वक्त रहते यदि आप इस अनुभूति को पहचान कर अपने आचरण में उतार लेते हैं तो सच मानिए आप साक्षात् ईश्वरीयता को धारण करने का मार्ग प्रशस्त कर लेते हैं।
कई संस्कृतियों और धर्मों में इसे एक पुण्य के रूप में पहचाना जाता है, जिससे लोग अत्याधिक प्रभावित होते है। जैन धर्म तो मानो दयालुता का पर्याय ही है। मेहेर बाबा के अनुसार आज के समय में भगवान ही कोमलता के सच्चे समानार्थी बचे हैं। कोमलता, बौद्ध धर्म में, दस विशेष संक्रमणों में से एक है, जो ईर्ष्या के बिल्कुल विपरीत है। एक चीनी गुरु, कन्फ्यूशियस, ने अपने अनुयायियों से कोमलता के साथ दयालु बनने का आग्रह किया।
कोमलता एक आत्मिक गुण है जिसके धारण करते ही आपके शीर्ष मंडल से इसकी सकारात्मक चुंबकीय तरंगों का उत्सर्जन प्रारंभ हो जाता है। जो भी प्राणी इन तरंगों के संपर्क में आकर उन्हें अवशोषित करता है, उसके भीतर आप की कोमलता का भाव प्रतिबिंबित हो जाता है। वह प्राणी आपका अनुचर हो आपसे मिलने को प्रयत्नशील हो जाता है। संपूर्ण ब्रह्मांड ऐसे व्यक्ति को आपसे मिलाने का प्रयास प्रारंभ कर देता है। परिणाम स्वरूप आपके चारों ओर समान प्रवृत्ति के व्यक्ति एकत्रित हो जाते हैं। आप ऐसे व्यक्तियों के समूह के केंद्र में स्थापित हो जाते हैं। सृष्टि का यह अचल नियम है कि जब हम किसी की मदद करते हैं तो वह मदद हमारे जीवन में कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में वापस अवश्य आ जाती है। इसका सुखद अहसास उस वक्त होता है, जब हमें इस मदद की आवश्यकता होती है। अतः हमें अपने भविष्य के लिए, समाज की मदद कर सकारात्मक ऊर्जा का संरक्षण अवश्य करना चाहिए। दूसरों की मदद के लिए बिताया गया हर एक क्षण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर एक स्थायी प्रभाव डालता है।
अंत में परम पिता परमेश्वर से यही निवेदन है कि वह जीवन में हम सभी को एक दूसरे के साथ दया और कोमलता का भाव रखने की शक्ति प्रदान करें जिससे विश्व में एकता बनी रहे और एक दूसरे को समझने का मौका मिलता रहे।
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