Baat bus itni si thi - 9 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | बात बस इतनी सी थी - 9

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बात बस इतनी सी थी - 9

बात बस इतनी सी थी

9

लगभग तीन महीने बीतने के बाद एक दिन मेरे मोबाइल पर एक अज्ञात नंबर से कॉल आयी । मेरे कॉल रिसीव करने पर उधर से एक लड़की बोली -

"हैलो ! जीजू नमस्ते ! मैं रंजना बोल रही हूँ !"

"नमस्ते !"

मैंने अभिवादन स्वीकार किया और चुप हो गया । हालांकि में रंजना नाम की किसी लड़की को नहीं जानता था और उस लड़की की आवाज मेरे लिए एकदम अपरिचित थी । फिर भी उसके 'जीजू' संबोधन से मैंने यह अनुमान अवश्य लगा लिया था कि निश्चित ही यह मंजरी की कोई नाते- रिश्तेदारी की बहन या कोई सखी सहेली हो सकती है । उस समय मेरे दिल और दिमाग में एक अनजानी-सी आशंका के साथ कई प्रश्न उठ रहे थे, इसलिए मैं चुप रहकर उसके दुबारा बोलने का इंतजार करने लगा ।

"जीजू ! आपने मुझे पहचाना नहीं ? मैं रंजना बोल रही हूँ, मंजरी की फ्रैंड ! कैसे हैं जीजू आप ?" दूसरी ओर से फोन पर बोलने वाली लड़की ने अपना परिचय देते हुए कहा ।

"सॉरी ! मैं आपको पहचान नहीं पाया था ! मैं अच्छा हूँ ! आप बताइए, आप कैसी हैं ? मुझे कैसे याद किया ?"

"जीजू-ऊ-ऊ-ऊ ! अच्छे ढंग से, थोड़ा-सा प्यार से बात कीजिए ! मैं आपकी साली हूँ ! साली से तो बंदर भी प्यार से बोलता है !"

"मैं बंदर नहीं हूँ न !" मैंने उतनी ही बेरुखी से कहा, क्योंकि उसके कॉल करने के पीछे मंजरी की मुझे प्रताडित करने की कोई नयी और घटिया चालाकी महसूस हो रही थी ।

"जीजू ! आपके इस व्यवहार के बारे में क्या कहा जाए ? मैं आपसे इतने सम्मान से बातें कर रही हूँ और आप मेरे साथ इस तरह बेरुखी से पेश आ रहे हैं !"

"मैंने आपको कोई अपशब्द तो नहीं कहा है !"

"जीजू, आप मुझे अपशब्द कह भी नहीं सकते, क्योंकि मैं मंजरी नहीं हूँ ! लेकिन, आपसे बात करके मुझे इतना जरूर समझ में आ रहा है कि आप एक संवेदनशील, सामाजिक और सभ्य इंसान तो बिल्कुल भी नहीं है !"

रंजना के कमेंट पर मुझे बहुत गुस्सा आया था, लेकिन मैं लगातार मेरे अंदर के गुस्से को होठों पर आने से मैं रोक रहा था । रंजना की अब तक की बातों से मुझे यह स्पष्ट हो चुका था कि मंजरी ने मेरे बारे में कुछ आधारहीन नकारात्मक बातें कहकर अपनी सखी-सहेलयों की खूब सहानुभूति बटोरी है और उसने ही रंजना को मेरा फोन नंबर देकर मुझसे बात करने के लिए कहा होगा।

"मंजरी सही कहती है, आप बहुत ही ...!"

"क्या बहुत ? क्या कहती है मंजरी ?" अनायास ही मेरे मुँह से निकल पड़ा था । लेकिन मैं उसकी बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहता था, इसलिए तुरंत अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा -

"मंजरी क्या कहती है, इस बात को छोड़िए ! आपने मुझे किस लिए कॉल की है ? अपनी बताइए !"

"ठीक है, जीजू ! मैं काम की बात करती हूँ ! बात यह है कि जब से मंजरी आपके घर से लौटी है, वह बहुत ही उदास-उदास-सी रहती हैं ! आप दोनों की शादी को अब लगभग चार महीने बीतने वाले हैं, आप एक बार भी मंजरी से मिलने के लिए नहीं आए हैं ! मिलना तो छोड़िए, आप मंजरी से बात करने के लिए कभी कॉल भी नहीं करते हैं ! क्यों जीजू ? क्यों ?" यह कहकर पल-भर तक उसने मेरी ओर से किसी जवाब का इंतजार किया । मैंने कुछ नहीं कहा, तो अगले ही पल उसने फिर कहना शुरू कर दिया -

"जीजू ! सच बताइए मुझे, आप मंजरी से मिलने के लिए क्यों नहीं आते हैं ?"

मेरे पास रंजना के सवाल का कोई जवाब नहीं था और मैं जवाब देना भी नहीं चाहता था । मेरे मन में अनायास ही यह प्रश्न उठ रहा था -

"यह मेरा पर्सनल मैटर है ! रंजना कौन होती है मुझसे पूछने वाली कि मैं अपनी पत्नी से मिलने के लिए क्यों नहीं आता हूँ ? या क्यों फोन पर बात नहीं करता हूँ ?"

मुझे मौन पाकर रंजना ने कहा -

"देखिए, जीजू ! मैं पेशे से वकील हूँ ! रोज कोर्ट में मैं ऐसे हजारों केस देखती हूँ ! इसलिए आपको समझा रही हूँ ! मंजरी धीरे-धीरे डिप्रेशन की ओर बढ़ रही है ! वह पूरी तरह से डिप्रेशन का शिकार हो जाए, इससे पहले ही हालात को सम्भाल लेना ठीक होता है ! आपको मंजरी से फोन पर बात करनी चाहिए ! उससे मिलना भी चाहिए ! आप ऐसा नहीं करेंगे, तो उसकी हालत बिगड़ने के आप ही जिम्मेदार होंगे और कानूनन आपको इसकी सजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा !"

"आप मुझे धमकी दे रही है ? या सलाह ... ?" रंजना मेरे सवाल को सुनती, तो पता नहीं उसका क्या जवाब देती । लेकिन उसने मेरी पूरी बात नहीं सुनी । मेरी पूरी बात सुनने से पहले ही उसने फोन काट दिया था ।

रंजना की बातें सुनने से पहले तक मेरे मन में केवल मंजरी के उस व्यवहार के लिऐ गुस्सा था या यह कहूँ कि बहुत ही हल्की-सी नाराजगी थी, जो उसने हमारी शादी हो जाने के बावजूद दो सप्ताह तक मेरे साथ रहते हुए हम दोनों के बीच दूरी बनाए रखने के लिए किया था । मंजरी के जिस कृत्य से मेरे मन में आक्रोश पनप रहा था, उससे मंजरी भी अच्छी तरह परिचित थी । अपने उस कृत्य को वह कई बार सही ठहराकर खुद को आरोप-मुक्त कर चुकी थी और अपनी सखी सहेलियों के बीच अब उसने मुझे ही आरोपित करके मेरा तमाशा बना दिया था । फिर भी मेरे मन में उसके लिए प्रेम और विश्वास की जड़ें मजबूती से जमी हुई थी ।

हालांकि आज जो बात मंजरी ने रंजना से कहलवायी थी, उसी बात को आज से पहले भी मंजरी खुद दो बार फोन करके कह चुकी थी । तब मेरा आक्रोश तो बढ़ा था,.पर प्यार और विश्वास की जड़े नहीं हिल सकी थी । खुद मंजरी ने तब अपनी बात शिकायत के लहजे में कही थी, लेकिन आज वही बात जब रंजना ने कानून के डंडे की धमकी देकर कही, तो मुझे ऐसा लगा कि हमारे प्यार और विश्वास कि नींव शायद बहुत कमजोर है ! मैं सोचने लगा -

"मैंने जो बात इन दो महीनों में अपने किसी घनिष्ठ मित्र या परिवार के किसी सदस्य को नहीं बताई, मंजरी अपनी फ्रैंड से उसी बात का ढिंढोरा पीटकर मुझे कानून की धमकी दिलवा रही है । वह मुझ पर अपनी जीत दर्ज करके अपनी विजय गाथा सबको सुनाती फिर रही है ।"

हम दोनों के बीच की वे बातें, जो कभी भी किसी तीसरे व्यक्ति तक नहीं पहुँचनी चाहिए थी, मंजरी ने न जाने समाज में कितने लोगों को बता दी थी । उसकी इस अबूझ नासमझी से खीझकर मैं अपने अन्तर्मुखी स्वभाव को अपनी कमजोरी की तरह देखने लगा था । मेरे दुखी अंतर्मन से एक मूक आवाज आई -

"मैं आज तक मेरे प्यार, मेरे विश्वास, मेरी उदारता और कोमल-मधुर व्यवहार के साथ मंजरी से हारता ही रहा हूँ ! अपनी पराजय को लेकर मैं अपनी शादी के बाद से आज तक पल-पल तनाव में जीता रहा हूँ ! इस पराजय को ; इस अपमान को कोई अपने परिवार और दोस्तों के साथ कैसे बाँट सकता है ?"

तभी आशा की चमक लेकर एक और आवाज मेरे अन्दर से गूँजी -

"प्यार में और पति-पत्नी के रिश्ते में जीत-हार नहीं होती !"

"कौन-सा प्यार ? जो सिर्फ मेरी तरफ से है ? और पति-पत्नी का रिश्ता तो अभी तक बना ही नहीं है ! क्या पति-पत्नी बनने के लिए समाज के कुछ लोगों के बीच मंडप के नीचे बैठकर अग्नि के सात फेरे ले लेना काफी है ? जबकि किसी वजह के बिना ही यह सब होने के बाद भी आज तक हम दोनों एक-दूसरे से उतनी ही दूर रहे हैं, जितनी दूर शादी से पहले थे !"

"पर केवल शारीरिक संबंध बनाने मात्र से कोई रिश्ता पति-पत्नी का नाम नहीं पा जाता ! उसके लिए समाज और कानून के साक्ष्य होने के साथ-साथ आपस में एक-दूसरे के लिए मन में प्यार और विश्वास होना भी जरूरी होता है !" फिर मेरे भोले-भाले दिल ने एक आशा भरा तर्क दिया ।

मेरे दिल और दिमाग से दो विरोधी आवाजें लगातार आने लगी थी । एक आवाज अब तक घटित घटनाओं को नजरअंदाज करके हमारे रिश्ते में आशा की किरण बनाए रखने के पक्ष में थी, तो दूसरी आवाज अब तक की सभी घटनाओं और हमारे बीच हुई मीठी-कड़वी बातों का विश्लेषण करके ही हमारे रिश्ते के भविष्य का निर्णय करने के पक्ष में थी ।

दिल और दिमाग से आने वाली दोनों आवाजों का अपना-अपना जो भी मत क्यों न हो, परन्तु इस विषय पर दोनों आवाजें एकमत थी कि पति-पत्नी का रिश्ता तभी लंबे समय तक चल सकता है, जब दोनों में एक-दूसरे के लिए प्यार और विश्वास होने के साथ-साथ आपस में शारीरिक संबंध भी बने और दोनों मे परस्पर मधुर व्यवहार भी हो ! जबकि मेरे और मंजरी के रिश्ते में से इन तीनों की ही उपस्थिति धीरे-धीरे खिसकती जा रही थी ।

रंजना ने मुझसे जो बातें कही थी, उनका विश्लेषण करते-करते मंजरी के लिए मेरे प्यार और विश्वास का जगह अविश्वास और अनजाने डर ने ले ली थी और मेरे मन में अपने भविष्य को लेकर सुरक्षा का भाव महत्वपूर्ण होने लगा था । बार-बार दिमाग में एक ही विचार आने लगा था -

"पहले मंजरी से प्यार करके और फिर शादी करके मैं बूरी तरह फँस गया हूँ !"

फँसने का विचार दिमाग में आते ही मुझे रंजना द्वारा दी गई चेतावनी याद हो आई कि मंजरी के साथ कुछ भी अनहोनी होने पर मुझे सजा भुगतने के लिए तैयार रहना होगा ! रंजना की चेतावनी याद करके मेरे मस्तिष्क में अचानक ही एक प्रश्न उठा -

"आखिर मंजरी को क्या होने वाला है ? कहीं मंजरी ने मुझे ब्लैकमेल करने के लिए अपनी सखी-सहेलियों में यह प्रचार तो नहीं कर दिया है कि वह खुद ही कुछ ऐसा-वैसा करने जा रही है ? और उसका आरोप मेरे ऊपर मढ़कर मुझे उसकी सजा दिलाने के लिए प्लान तैयार किया जा रहा है ?"

मेरे मस्तिष्क में यह विचार आते ही मेरे निर्मल मन में मंजरी के लिए प्यार और आत्मा का लगाव कम होने लगा । धीरे-धीरे उसके प्रति मेरा यह विरक्ति भाव उस दिशा में आगे बढ़ने लगा, जहाँ मेरे और मंजरी के रिश्ते का अंत होना निश्चित था ।

यह भी निश्चित था कि कम-से-कम मैं इस रिश्ते के टूटने पर खुश नहीं रह सकूँगा, क्योंकि मैंने मंजरी को अपने दिल की गहराइयों से प्यार किया था । मंजरी के मन की दशा उस समय क्या होगी ? इसके बारे में अच्छी तरह तो वही जानती-समझती है, लेकिन जितना मैं उसे जानता हूँ, वह भी शायद इस रिश्ते का अंत करके खुश नहीं होगी !

इतना सब सोचने-विचारने के बाद अब मुझे यह खुशी हो रही थी कि अच्छा ही हुआ कि दो सप्ताह तक साथ रहने के बाद भी हम दोनों के बीच एक दूरी बनी रही । शारीरिक दूरी के साथ ही मंजरी को लेकर अब मेरे मन में भी पहले से ज्यादा दूरी बनती जा रही थी और मंजरी से मेरे मन में पनप रहे अलगाव को मजबूत करके मेरे पुराने निश्चय को दृढ़ से दृढ़तर कर रही थी । अपने दृढ़ से दृढ़तर होते जा रहे निश्चय को मैं एक बार फिर दोहराने लगा था -

"कुछ भी हो जाए, मैं मेरे पूरे जीवन में मंजरी के साथ कभी शारीरिक रिश्ता नहीं बनाऊँग ! मैं हमारे बीच की उस दूरी को कभी खत्म नहीं होने दूँगा, जिस दूरी को मंजरी ने बनाया था और जिस दूरी को उसने शादी के बाद दो सप्ताह तक हर एक रात हम-बिस्तर होकर भी बरकरार रखा था !"

उस दिन मेरा वह पूरा दिन मेरे और मंजरी के रिश्ते के भविष्य को लेकर कडुवाहट के साथ चिंता करते हुए कई प्रकार के निर्णय-अनिर्णय में बीत गया ।

अगले दिन मंजरी की कॉल आयी । मैंने तुरन्त उसकी कॉल रिसीव नहीं की, क्योंकि अब तक मेरे मन में मंजरी से इतनी दूरी बन चुकी थी कि मोबाइल में मंजरी की कॉल देखकर ही मेरे मन में किसी तरह की खुशी या गुस्से की जगह अजीब-सी अरुचि पैदा हो रही थी । लेकिन कॉल रिसीव नहीं होने पर मंजरी तब तक कॉल करती रही, जब तक कि मैंने उसकी कॉल रिसीव नहीं कर ली ।

क्रमश..