Baat bus itni si thi - 6 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | बात बस इतनी सी थी - 6

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बात बस इतनी सी थी - 6

बात बस इतनी सी थी

6

प्रोजेक्टर के पर्दे पर चल रही फिल्म में मंजरी के पिता का वाक्य समाप्त होते ही मंडप में मंजरी की आवाज गूंज उठी -

"यह तो बस ट्रेलर है ! पिक्चर तो अभी बाकी है !" कहते हुए मंजरी ने अपनी उंगली लैपटॉप पर घुमाई और एक क्लिक में पर्दे पर से फिल्म गायब हो गई ।

फिल्म को देखकर मेरा सिर चकराने लगा था । मैं कभी इस बात पर भरोसा नहीं सकता था कि मेरी माता जी, जो अपने बेटे की शादी के लिए दिन-रात तड़पती रहती थी, वह उसी बेटे की अपनी पसंद की लड़की से शादी तय करने के लिए अस्सी लाख रुपये की बात कर सकती है । लेकिन मंजरी ने प्रोजेक्टर पर जो फिल्म दिखायी थी, उससे तो साफ-साफ यह बात सिद्ध हो रही थी कि मेरी माता जी ने मंजरी के पापा से अस्सी लाख रुपये लेने की बात की थी । यही सब सोचते-सोचते मैं अपना सिर पकड़कर बैठ गया । मेरे सिर पर सजा हुआ शादी का साफा धरती पर गिर पड़ा था । मंजरी ने वह साफा उठाकर मेरे सिर पर रखा और बोली -

"कूल चंदन ! कूल ! एकदम कूल ! तुम्हारा तो नाम ही चंदन है, जो हमेशा कूल रहता है । वह चंदन, जिससे लिपटकर विषधर भी कूल हो जाते हैं !"

मंजरी की सांत्वना के मधुर शब्दों को सुनकर एक पल के लिए मुझे लगा कि मैं सचमुच शीतल चंदन का एक विशाल वृक्ष हूँ और मेरे चारों ओर इंसान के भेष में अनगिनत जहरीले नाग अपना-अपना फन उठाए हुए खड़े हैं । उसी समय मेरे कानों में मेरे ताऊ जी का स्वर सुनाई पड़ा, जो अपनी वकालत के अनुभव का परिचय देते हुए कह रहे थे -

"यह वीडियो फर्जी है ! एकदम फर्जी ! ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था, जो इस विडियो में दिखाया जा रहा है । चलो, एक पल के लिए हम मान भी लेते हैं कि हमने दहेज में अस्सी लाख रुपये माँगे थे और तुम्हारे पिता ने देने के लिए हाँ भी कर दी थी । पर सिर्फ दहेज माँगने से दहेज का केस नहीं बन जाता है ! दहेज का केस बनाने के लिए दहेज देना जरूरी होता है ! तुम्हारे पिता ने हमें दिया ही नहीं, क्योंकि तुम्हारी माँ ने दहेज देने के लिए साफ-साफ मना कर दिया था । बाद में तुम दोनों बच्चों की पसंद और भावनाओं को सबसे ऊपर रखकर हमने भी तुम्हारी माँ की बात मान ली थी और दान-दहेज के बिना ही शादी करने के लिए तैयार हो गए थे ।"

मेरे ताऊ जी के पक्ष को सुनकर मेरे नैतिक व्यक्तित्व को थोड़ा-सा बल और चित्त को थोड़ी-सी शांति मिली थी । मेरी माता जी के लिए भी यह सोचकर मेरी श्रद्धा वापस लौटेने लगी थी कि गलती किससे नहीं होती ? कभी-कभी तो स्वयं भगवान से भी गलती हो जाती है । फिर मेरी माँ तो मात्र एक इंसान है । इंसान की सबसे अच्छी बात यही होती है कि वह अपनी गलती को सुधार लेता है, जो कि मेरी माता जी पहले ही कर चुकी हैं । मेरी माता जी ने गलती तो की थी, पर उन्होंने अपनी भूल समय रहते ही सुधार ली थी ! ताऊ जी के शब्दों में यह पता चलते ही मेरा सीना गर्व से फूलने लगा । तभी एक सामूहिक स्वर उभरा -

"बिल्कुल सही कह रहे हैं, वकील साहब ! जब दहेज न तो दिया गया और न ही लिया गया, तो फिर जेल भिजवाने की धमकी देने का क्या मतलब बनता है ? यह तो सरासर गलत बात है ! बहुत ही बड़ा अन्याय है ! यह घोर अत्याचार है !"

उन सबका तर्क सुनकर मंजरी खूब जोर से हँसी और मेरे ताऊ जी से बोली -

वकील अंकल ! आप अपने बेटे की शादी तय करके निश्चित समय पर बारात लेकर आये थे ! अब आप शादी के मंडप में वर-वधू का पाणिग्रहण संस्कार पूरा होने से पहले ही बीच में ही अपने बेटे को मंडप से उठाकर ले जा रहे हैं ! क्यों ? क्योंकि आपको अपना मुँह माँगा पूरा दहेज नहीं मिला है ! क्या आपको इसका भी सबूत चाहिए ?"

कहते-कहते मंजरी ने गंभीर और कठोर मुद्रा धारण कर ली और बोली -

"एक दूल्हा अपने माता-पिता की बात मानकर दुल्हन को शादी के मंडप में रोती हुई छोड़कर बारात वापस लौटा ले जाए, तो ऐसी हालत में उस लड़की के पास मरने के अलावा और कौन सा-रास्ता बचता है ? आप मुझे बताइए ! बहुत सोच-समझकर मुझे यह भी बताइए, क्या यह केस नहीं बनता है ?"

धीरे-धीरे मंजरी की भाव-भंगिमा गंभीर से कठोर और कठोरतर होती जा रही थी । उसने फिर सख्त लहजे में कहा -

"पर आप सब चिन्ता मत कीजिए ! मैं मरने वाली लड़की नहीं हूँ ! मैं आपको अपनी फिल्म का दूसरा ट्रेलर दिखाती हूँ, जिसको देखकर आप सब समझ जाएँगे कि मंजरी जब कोई काम करती है, तो उसे पूरा करती हैं । सिर्फ धमकी वह कभी नहीं देती है । अभी-अभी आपको जो फिल्म दिखायी गयी थी, वह फिल्म भी धमकी देने के लिए नहीं दिखाई गई थी । मेरा विनम्र निवेदन है कि इस फिल्म के मेरे दूसरे ट्रेलर को देखें और अपने आप को सुधारने की कोशिश करें !

यह कहते हुए मंजरी की उंगलियाँ दुबारा लैपटॉप पर थिरकने लगी । कुछ ही पल के बाद प्रोजेक्टर के पर्दे पर एक दूसरी फिल्म चलने लगी । इस बार पर्दे पर मंजरी के पापा के हाथ में एक ब्रीफकेस था । वे दो-दो हजार के गुलाबी रंग के नोटों से भरे ब्रीफकेस को खोलकर मेरी माँ के सामने रखते हुए कह रहे थे -

"यह लीजिए, बहन जी ! गिन लीजिए, पूरे अस्सी लाख है ! अपने पूरे परिवार के विरोध के बावजूद मैंने पूर्वजों से मिली हुई जमीन का टुकड़ा बेचकर ये रुपये जुटाये हैं और इस उम्मीद के साथ ये रुपये आपको दे रहा हूँ कि अब आपके घर में मेरी बेटी को कष्ट नहीं होगा !"

"अरे, नहीं-नहीं भाई साहब ! गिनने की कोई जरूरत नहीं है ! यह कहते हुए मेरी माता जी ने मंजरी के पापा के हाथ से ब्रीफकेस ले लिया । मेरी माता जी ने मंजरी के पापा के हाथ से ब्रीफकेस लेकर एक बार फिर खोला और नोटों की गड्डियाँ देखकर यह निश्चय किया कि रुपये पूरे अस्सी लाख हैं !

"बहन जी, ठीक है ! पूरे अस्सी लाख हैं ?" मंजरी के पापा ने मेरी माता जी से पूछा ।

फिल्म में दीख रही मेरी माता जी के हाथ में अस्सी लाख रुपए आते ही उसके चेहरे का पर चमक आ गई थी । उसी समय मैंने फिल्म से अपनी नजर हटाकर मेरी बगल में बैठी हुई मेरी माता की और देखा । वह ब्रीफकेस अभी भी मेरी माता जी के हाथ में था ।

मेरी माता जी के हाथ में उस ब्रीफकेस को प्रत्यक्ष देखकर मेरा सिर शर्म से झुक गया था । मेरी हालत चुल्लू भर पानी में डूब मरने की हो गई थी । एक बार भी मुझे यह देखने की जरूरत महसूस नहीं हुई कि मंजरी के पापा द्वारा दिए गए अस्सी लाख रुपए अब भी उस ब्रीफकेस में मौजूद हैं या नहीं ? मैं सिर झुकाकर मौन होकर बैठ गया , क्योंकि उस फिल्म को देखने के बाद किसी से नजरें मिलाने की मेरी हिम्मत नहीं रह गई थी ।

"अंकल-आंटी ! अब बताइए, आपका क्या विचार है ? दहेज का केस बनाने के लिए यह सबूत काफ़ी हैं ? या और कुछ देखना अभी बाकी है ?"

मंजरी ने आत्मविश्वास से भरे लहजे में कहा था । मेरी माता जी और ताऊ जी ने मंजरी के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया । वे दोनों ही अब चिंतन-मनन की मुद्रा ग्रहण कर चुके थे । मंजरी ने मेरी माता जी और ताऊ जी से प्रश्न करके उनके उत्तर की जरूरत भी नहीं समझी थी । उसने मुझसे कहा -

"तुम्हारा क्या इरादा है ? अभी भी शादी आधी छोड़कर अपनी माता जी के साथ जाना चाहते हो ? या ... ?"

मंजरी के प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैंने उसकी ओर इस ढंग से देखा कि मेरी वह नजर ही उसके सवाल का जवाब है ! मेरी नजर उससे कह रही थी -

"सब-कुछ तो तुम्हारी इच्छा के अनुरूप हो रहा है ! जो कुछ भी, जैसे भी तुम करना चाहती हो, वैसे ही कर रही हो, क्योंकि तुममें वैसा करने की शक्ति है ! फिर मुझसे क्या पूछ रही हो ? और क्यों ?"

अगले ही क्षण मेरी नजर मेरी माता जी पर जाकर टिक गयी, जो किसी पंख कटे पंछी की तरह उड़ने को तड़प रही थी, लेकिन उड़ने की शक्ति अब उसमें नहीं थी । मेरी माता जी की उस हालत को देखकर मेरा हृदय रो उठा -

"काश ! माता जी, मैं आपकी कुछ सहायता कर पाता ! यह सब करने से पहले आपने मुझे इसके बारे में कुछ क्यों नहीं बता दिया था ! क्यों छुपाया आपने मुझसे यह सब कुछ ?"

मैं जानता था, जो कुछ हुआ था, वह ठीक नहीं था । लेकिन, मेरी माता जी के लिए अब भी मेरे दिल में पूरी श्रद्धा थी । मैं उनको अपमानित होते हुए नहीं देख सकता था, इसलिए मेरा मन चाह रहा था कि मंजरी के सवाल का जवाब देने के लिए उसी समय मैं मेरी माता जी के साथ शादी का मंडप छोड़कर बाहर निकल जाऊँ ! परन्तु, मंजरी की जेल भेजने की चेतावनी ने मुझे जड़ बना दिया और किसी मजबूत जंजीर की तरह मुझे उसी जगह पर जकड़ लिया, जहाँ मैं पहले से बैठा था । मैं अपनी जगह से एक इंच भी इधर-उधर नहीं हिल सका ।

मैं मेरी माता जी को अच्छी तरह जानता था, इसलिए बार-बार मुझे मेरे ताऊ जी पर गुस्सा आ रहा था कि मेरी माता जी को इस घृणित कार्य से रोकने के बजाय वे हर पल उनके साथ ही नहीं रहे होंगे, बल्कि उन्होंने इस कृत्य के लिए कई बार माता जी की हौसला अफजाई भी की होगी !

मेरी माता जी मेरे मन की हालत को मेरे बिना बताए भी अच्छी तरह समझ सकती थी । इसलिए माता जी ने अपनी सफाई देते हुए मुझसे कहा -

"चंदन, बेटा ! मैंने मंजरी के पापा से दहेज नहीं माँगा था । बात बस इतनी सी थी, मंजरी के पापा चाहते थे कि उनकी बेटी दिल्ली में रहे और उसके रहने के लिए हम दिल्ली में एक फ्लैट खरीदकर दें । मंजरी के पापा ने कहा था कि शादी के गिफ्ट के तौर पर अगर हम मंजरी को रहने के लिए फ्लैट खरीद कर देंगे तो, उसको ज्यादा अच्छा लगेगा । उनका कहना था कि मंजरी अपने पापा से वह फ्लैट लेना पसंद नहीं करेगी । मैंने जब उन्हें बताया कि हमारे आर्थिक हालत हमें दिल्ली में फ्लैट खरीदने की इज़ाज़त नहीं देती है, तब उन्होंने खुद ही मुझे फ्लैट खरीदने के लिए एक करोड़ देने का वादा किया । जब मैंने एक करोड़ का फ्लैट तलाश करके उनसे रूपये माँगे, तब वे एक करोड़ की जगह अस्सी लाख रुपये देने के लिए तैयार हुए । इस ब्रीफकेस में वही अस्सी लाख रुपए हैं । मैंने तो यह सब तूम दोनों बच्चों की खुशी के लिए किया था । मुझे नहीं पता था कि ऐसा कुछ हो सकता है ।

मुझे मेरी माता जी पर और उनकी बतायी हुई एक-एक बात पर पूरा भरोसा था । लेकिन उस समय के हालात पर अपना कोई वश न चलते देखकर मैं मौन होकर बैठा रहा । मुझे मौन बैठा देखकर मंजरी ने पुरोहित से कहा -

"पंडित जी, मंत्र-उच्चारण शुरू कीजिए ! आपके द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त में शादी संपन्न हो जानी चाहिए !"

मंजरी का आदेश मिलते ही पुरोहित ने मंत्रोच्चारण शुरू कर दिया । मंजरी की ताकत की बानगी देखकर गाँव के कुछ लोग वहाँ से खिसकने लगे थे । जो लोग वहाँ रुके रहे थे, वे सभी अब चुप बैठे थे । अंततः शांत वातावरण में हमारी शादी संपन्न हो गई, जब पुरोहित ने घोषणा करके कहा -

"विवाह संपन्न हो चुका है ! अब वर-वधू अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें !"

"पुरोहित जी के निर्देश से मंजरी ने मुझे साथ लेकर पहले अपने मम्मी-पापा का आशीर्वाद लिया । उनका आशीर्वाद लेने के लिए मैं जैसे ही उनके चरणों की ओर नीचे झुका, मंजरी की मम्मी जी ने मंजरी को और उसके के पापा ने मुझे बाहों में भरकर अपने सीने से लगा लिया और हमारे सिर पर हाथ रख कर ढेर सारे आशीर्वाद दे डालें । मंजरी के पापा बोले -

"बेटी और दामाद का स्थान हमारे चरणों में नहीं, हमारे सिर पर हैं !"

वह क्षण सचमुच मेरे लिए बहुत सुख देने वाला था । मुझे अनुभव हो रहा था कि मंजरी के माता-पिता का हृदय इतना विशाल है कि मेरे जैसे अनेकानेक लोग उसमें समा सकते हैं ।

क्रमश..