Dani ki kahani - 4 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 4

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

दानी की कहानी - 4

प्रार्थना (दानी की कहानी )

-----------------------

दानी की एक पक्की दोस्त हुआ करती थी चुन्नी ,जो आज भी अमेरिका के ओहायो से उनसे अक्सर बात करती रहती हैं |

उस दिन फ़ोन पर दोनों ठहाके लगाकर हँस रही थीं | अब बच्चों से कुछ छिप जाए ,ये संभव है क्या ?

"ज़रूर दानी की उन्हीं बचपन की दोस्त का फ़ोन है ---"

"हमें भी बताइये न दानी ,क्यों हँस रही थीं?"

दानी ने जो कहानी सुनाई वो यह थी |

उन दिनों हम दोनों सहेलियाँ शायद पाँच/छह साल की रही होंगी | एक दिन शाम को हम दोनों चुन्नी के आँगन में खेल रहे थे |

अचानक एक बड़ा सा कॉक्रोच दिखाई दिया ,हम दोनों चिल्लाने लगे | हमें ,ख़ासकर मुझे कॉक्रोच से बहुत डर लगता था | डर क्या चितली सी चढ़ती |

हम दोनों उसे पैर से इधर से उधर भगाने की कोशिश करने लगे|

पता नहीं कैसे हम दोनों के उसे इधर-उधर भगाने की कोशिश में कॉक्रोच अधमरा सा हो गया |

हम सहमते हुए उसके पास गए देखा,उसके तो प्राण-पखेरू ही उड़ गए थे |

हमारी कुछ समझ में नहीं आया ,मैं तो रोने ही लगी |

"रो क्यों रही है ? चुप हो जा ---" चुन्नी ने गुस्से से कहा |

वो बहुत बहादुर ,पक्की जाटनी !

"ये मर गया न ---? अब --?" मेरे आँसू तो रुक ही नहीं रहे थे |

"चल ,जीजी के पास चलते हैं --" उसने मेरा हाथ पकड़ा और जीजी के कमरे की तरफ़ चली |

वह अपनी मम्मी को जीजी कहती थी,उसके मां वहाँ रहतर थे ,उन्हीं की देखादेखी उनके सभी मम्मी को जीजी कहने लगे थे |

मुझे रोते देखकर जीजी भी गुस्सा हुईं ;

"फिर से लड़ी-मरी होंगी दोनों ---" हम दोनों की तो रोज़ ही लड़ाई होती थी ,हम लड़ते तो न्यायाधीश उन्हें बनना पड़ता |

"नहीं लड़े ,जीजी ?" चुन्नी ने उन्हें पूरी कहानी सुनाई |

"अब क्या करोगी ,तू पहले रोना बंद कर ---" जीजी ने मुझे तगड़ी डाँट पिलाई|

"जीजी ,कुछ तो करना पड़ेगा न ?"मेरी सुबकियाँ बंद नहीं हो रही थीं ,चुन्नी भी मुझे देखकर ढीली पड़ गई |

'आपको नहीं लगता ,हमें उसका कुछ तो करना चाहिए --"

"चलो ---" वो हमारे साथ आईं ,देखा बेचारे कॉक्रोच को फिर अंदर चली गईं |

जब बाहर आईं ,उनके हाथ में एक छोटा सा सफ़ेद कपड़ा था |

"लो ,डालो ,इसके ऊपर और ले आओ उठाकर बाहर ,बगीचे की मिट्टी में गाड देंगे --"

मैं तो उसे छू भी नहीं सकती थी ,चुन्नी थी शेरनी |

उसने बड़े आराम से झाड़ू की एक सींक लेकर कॉक्रोच को किसी तरह कपड़े तक पहुँचाया जो मैंने ज़मीन पर बिछा दिया था |

हम सब बाहर क्यारी के पास आए |

चुन्नी ने तो उसे लपेटने का काम कर लिया था अब गड्ढा खोदने की बारी मेरी थी | वैसे ज़मीन पर कपड़ा बिछाने का काम मैं कर चुकी थी |

अगर ना-नुकर करती तो वह मेरे ऊपर उस कॉक्रोच को फेंक ज़रूर देती |

मैंने चुपचाप किचन से एक चाकू लाकर क्यारी के पास एक छोटा गड्ढा खोदा | उसमें कॉक्रोच महाराज को लिटाया गया ,फिर हम दोनों ने उसे मिट्टी से ढका |

जीजी बड़े आराम से मुस्कुराते हुए सब देखती रहीं |

जब हम उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे थे ,जीजी भी हम दोनों के साथ हाथ जोड़कर खड़ी थीं |

हम दोनों ही अपराध -बोध से घिरे हुए थे | हमने प्रार्थना की ;

भगवान ! इसकी आत्मा को शांति देना ,हमें माफ़ कर देना |

जीजी का स्वर भी हमारे स्वर में मिल रहा था |

ॐ शांति ,शांति ,शांति ॐ

डॉ. प्रणव भारती