Aaghaat - 34 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 34

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आघात - 34

आघात

डॉ. कविता त्यागी

34

प्रेरणा जब मेरठ पहुँची, तब तक सूर्य डूब चुका था और थोड़ा-थोड़ा अंधेरा होने लगा था। वह जब घर पर पहुँची, कौशिक जी द्वार पर खड़े थे। किसी पूर्व सूचना के बिना बेटी को घर पर आया हुआ देखकर उन्हें किसी अनिष्ट की शंका होने लगी थी। एक पिता के लिए बेटी की कुशलता को लेकर चिन्तित होना और इस प्रकार उसे अपने घर देखकर शंका उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। वे क्षण-भर तक प्रेरणा को ऐसे ही देखते रहे, मानों उनकी आँखें पहचानने का प्रयास कर रही थी कि वह उनकी बेटी प्रेरणा ही है या कोई अन्य लड़की ? क्षणभर पश्चात् कौशिक जी ने भ्रम, शंका और आश्चर्य की मुद्रा में कहा -

‘‘प्रेरणा ?’’

प्रेरणा ने पिता के भावों को भाँप लिया था । अतः उनकी शंका और भय का निवारण करते हुए कहा -

‘‘मैं बिल्कुल कुशलमंगल हूँ और मेरी सुसराल में भी सब कुछ ठीक चल रहा है ! आज मुझे आपकी बहुत याद आ रही थी ! बस, मैंने आप सबसे मिलने की योजना बनायी और चली आयी !’’

‘‘पहले सूचना दे दी होती, तो तुम्हें लाने के लिए मैं यश को भेज देता !’’

‘‘सुबह ही आने का कार्यक्रम बनाया था, इसलिए सूचना देकर यश भैया को बुलाने का समय नहीं मिल पाया था। वैसे भी, अपनी व्यस्तता के चलते हमें लाने के लिए जाना और फिर लौटाने के लिए जाना यश भैया के लिए कितना कठिन है ! इसलिए मैने सोचा कि हमें स्वयं आना-जाना आरंभ कर देना चाहिए ! आप भी तो यही चाहते हैं !’’

प्रेरणा का उत्तर सुनकर कौशिक जी सन्तुष्ट नहीं हुए, परन्तु उस समय उन्होंने कोई प्रतिवाद नहीं किया ।

घर में बैठकर कुछ समय तक प्ररेणा ने अपनी माँ रमा, भाभी रेशमा तथा भाई यश से बातें की तत्पश्चात् सबके साथ बैठकर भोजन किया। भोजन करने के उपरान्त कौशिक जी ने प्रेरणा को अपने पास अपने कमरे में बुलाकर बिठाया और उससे कहा कि वह अपने पिता के समक्ष अपनी सारी स्थिति स्पष्ट करें ! अपने आने के उस वास्तविक कारण को बताए, जिसे उसने अभी तक नहीं बताया है ! उन्होंने प्ररेणा को आश्वस्त किया कि वे अपनी सामर्थ्य भर उसकी सहायता करेंगे, निस्संकोच होकर अपने हृदयस्यथ भावों और समस्या को व्यक्त करे !

पिता का आश्वासन पाकर प्ररेणा ने उनके समक्ष पूजा का पिछले कई वर्ष तक का घटनाक्रम बताते हुए उसकी वर्तमान विषम-परिस्थिति का यथातथ्य वर्णन कर दिया और उसकी आर्थिक सहायता करने के लिए प्रार्थना की।

अपनी बेटी की दयनीय दशा के विषय में सुनकर कौशिक जी अत्यन्त व्यथित हुए। अपने वैवाहिक जीवन में निरन्तर कष्ट झेलते रहने वाली बेटी की नियति और पिछले कई वर्षों से अपनी समस्याओं को किसी के समक्ष प्रकट किये बिना अकेले उन समस्याओं से जूझने वाली बेटी की हिम्मत पर कौशिक जी का हृदय रोते हुए भी गर्व से सीना चौड़ा हो गया। काश ! वे अपनी उस बेटी के भाग्य का लिखा बदल सकते ! फिर भी, अपने अनुभवों से और उदार प्रकृति से वे उसकी विषमताओं को कम करने का प्रयास तो कर ही सकते थे।

कौशिक जी ने अपनी बेटी प्ररेणा को आश्वस्त किया कि वे पूजा के परिवार का आर्थिक-भार अपने ऊपर ले लेंगे ! उन्होंने प्रेरणा को समझाया कि जीवन में अनेक समस्याओं का समाधन समय का प्रवाह स्वयं कर देता है ! रणवीर भी धीरे-धीरे समय के साथ-साथ अपने दोषों का परिहार करके अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करने लगेगा ! तब उसके प्रति पूजा के मन में कटुता तथा अविश्वास के लिए कोई जगह शेष नहीं बचेगी और तब उनका परिवार सुखी-सम्पन्न होगा ! अपने पिता से आश्वस्त होकर प्रेरणा के मनःमस्तिष्क से पूजा और उसके बच्चों को लेकर चिन्ता का भार हट गया था। अगले दिन प्रातः शीघ्र ही वह मायके से विदा लेकर अपनी ससुराल चली गयी।

कौशिक जी भी प्रातः शीघ्र ही पूजा के घर के लिए प्रस्थान कर गये। पूजा के पास पहुँचकर उन्होंने उसकी समस्याओं को सुनकर साझा किया। उन्होंने उसको आर्थिक समस्याओं के प्रति निश्चिन्त करते हुए समझाया कि जिस प्रकार उसने आज तक जीवन की विषम से विषम समस्याओं के सामने घुटने नहीं टेके हैं, उसी प्रकार भविष्य में भी कभी हार नहीं माननी है ! अन्त में जीत उसी की निश्चिन्त है, क्योंकि धैर्य के साथ समस्याओं से संघर्ष करने वालों की कभी हार नहीं होती है !

कौशिक जी ने एक पिता होने के नाते पूजा का सहयोग किया और सांत्वना दी -

"समय बीतने के साथ रणवीर स्वयं उचित-अनुचित का भेद समझ जाएगा ! इतना ही नहीं, करणीय-अकरणीय का भेद समझ में आते ही वह अपना कर्तव्य-निर्वाह भी करेगा तथा पूर्व में की गयी अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप भी करेगा !"

पूजा को अपने पिता की बातों से सकारात्मक ऊर्जा मिल रही थी । वह उनके सभी विचारों से सहमत होकर उनसे आर्थिक सहायता लेने के लिए तैयार हो गयी। अब कौशिक जी भी बेटी को समझाकर, सांत्वना के साथ बेटी को अपना आशीर्वाद देकर, अपने मस्तिष्क में उनके सुखी-सम्पन्न परिवार के लिए निश्चय-अनिश्चय की चिन्ता लेकर अपने घर वापस लौट गये। पूजा भी पिता द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता-वृत्ति से परिवार का संचालन करने लगी, और धैर्य धारण करके उस दिन की प्रतीक्षा करने लगी, जब रणवीर उचित-अनुचित, करणीय-अकरणीय को समझकर पूर्ण तन-मन-धन से घर लौट आएगा !

परन्तु, कभी-कभी अनुभव और विवेक के आधर पर धैर्यपूर्वक लिये गये निर्णयों को भी समय मिथ्या सिद्ध कर देता है। कौशिक जी के अनुभवों और विवेक के आधर पर पूजा द्वारा लिये गये निर्णय तथा धैर्य को भी समय ने झुठला दिया। कौशिक जी द्वारा दी गयी सहायता-वृत्ति से पूजा द्वारा घर का संचालन करने पर भी रणवीर की सोच में अपेक्षा के अनुरूप सकारात्मक परिवर्तन नहीं हुआ।

लगभग एक वर्ष तक कौशिक जी रणवीर सहित उसके परिवार का आर्थिक-भार वहन करते रहे। इस अन्तराल में रणवीर परिवार के एक दायित्वविहीन सदस्य के रूप में अपने घर आता रहा। उसका खाना-पीना, सोना, नहाना सब कुछ घर पर होता था। किन्तु एक वर्ष में कभी भी उसने न तो यह जानने का प्रयास किया कि घर की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पूजा के पास आय का क्या स्रोत है ? न ही किसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए उस एक वर्ष में पूजा को या दोनों बेटों में से किसी को कोई छोटी-बड़ी धनराशि कभी दी । पूरे वर्ष अधिकांशतः रणवीर घर से नहा-धेकर नाश्ता करके सुबह नौ बजे निकल जाता था और रात में दस-ग्यारह बजे लौटता था। बीच-बीच में कभी-कभी चार-छ- दिन घर से अनुपस्थित भी रहता था, जिसके विषय में वह पूजा द्वारा फोन करने पर ही सूचना देता था। उसके इन सभी व्यवहारों से ऐसा प्रतीत होता था कि उसके मन-मस्तिष्क पर कौशिजी की उदारता का तथा पूजा की सहनशीलता और धैर्य का उनकी आशा के विपरीत नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था। अनेक बार वह अपने व्यवहारों से ऐसा प्रदर्शित करता था कि वह उन सभी व्यक्तियों को मूर्ख मानता है, जो अपने स्वार्थ-सुख का त्याग करके दूसरों के हित और सुख-दुख की चिन्ता करते हैं तथा दूसरों के कल्याणार्थ उनके कष्ट निवारण हेतु अपने धन तथा समय का अपव्यय करते हैं। कौशिक जी को वह इसी श्रेणी के व्यक्तियों में गिनता था। कौशिक जी की उदार-वृत्ति को रणवीर उनकी मूर्खता मानता था और पूजा द्वारा धैर्यपूर्वक रणवीर के अनुचित व्यवहारों के प्रति सहिष्णुता को उसकी विवशता और अक्षमता। पूजा ने इस एक वर्ष में एक बार भी किसी बात को लेकर रणवीर से कोई प्रश्न नहीं किया था और न ही किसी विषय पर मतभेद या वाद-प्रतिवाद ही किया था। वह सकारात्मक और आशान्वित विचार-दृष्टि लेकर आगे बढ़ रही थी । उसके मस्तिष्क में निरन्तर एक ही विचार रहता था कि तनावों, अभावों की इस कष्टकारक रात्रि के पश्चात् सुख-सम्पन्नता का सूर्य अवश्य उदय होगा ! एक दो बार पूजा के भाई यश ने उसकी तथा पिता की कार्यशैली पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा था -

‘‘पूजा, बड़ा बेशरम इंसान है, रणवीर ! मुझे नहीं लगता कि इस प्रकार उसे सुधरा जा सकता है !’’

‘‘आप सबको आज पता चला है कि यह बेशरम इंसान है ! मैं इस बात को बहुत वर्षों पहले से जानती हूँ ! लेकिन ........!’’ पूजा ने सहजता से उत्तर दिया था। अपने इन्हीं विचारों को यश ने अपने पिता के समक्ष भी व्यक्त किया था, परन्तु उन्होंने उसे निर्देश दिया कि जैसा चल रहा है, चलने दें !

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com