Aaghaat - 33 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 33

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आघात - 33

आघात

डॉ. कविता त्यागी

33

पूजा की स्वीकृति पाने के पश्चात् रणवीर ने पुनः कहना आरम्भ किया -

‘‘वह लड़का जिसके साथ वाणी ने विवाह किया था, करोड़ो की सम्पत्ति का मालिक था। जबकि मैं अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए भी उस समय घरवालों पर निर्भर रहता था। अब मैं आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं हूँ और मेरा काम भी अच्छा चल रहा है !’’

‘‘तुम तो कहते थे कि तुम्हारी कम्पनी घाटे में चल रही है ?’’

‘‘हाँ, घाटे में चल रही है, पर यह बात किसी बाहर के व्यक्ति को थोड़े ही पता है ! ..... और वाणी मुझसे आर्थिक सहायता नहीं चाहती है !’’

‘‘तो फिर क्या चाहती है ?’’

‘‘पूजा, वाणी के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। उसने जिस लड़के के साथ विवाह किया था, जैसा कि मैं अभी बता चुका हूँ, वह अपने पिता की अकूत चल-अचल सम्पत्ति का एकमात्र उत्तराधिकारी था । वर्षो पूर्व उसके माता-पिता का देहान्त हो गया था और तब से वही लड़का उस सम्पत्ति की देखरेख करता रहा था और वह सम्पत्ति उसकी आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी । किन्तु ...!’’

‘‘किन्तु....?"

पूजा ने व्यंग्यात्मक मुद्रा में रणवीर से कहानी को आगे बढ़ाने का संकेत किया और रणवीर के चेहरे पर जिज्ञासु दृष्टि गड़ा दी।

‘‘किन्तु, पति की मृत्यु के उपरान्त जब वाणी वहाँ पहुँची, तब उसे ज्ञात हुआ कि उस सम्पूर्ण चल-अचल सम्पत्ति की स्वामिनी उसके पति की पूर्व पत्नी है ! वहाँ पर वाणी को यह भी पता चला कि उसके पति के माता-पिता को जब यह ज्ञात हुआ था कि उनके बेटे ने अपनी शील स्वभावी पतिव्रता पत्नी को त्याग कर दूसरा विवाह कर लिया है, तब वे बहुत क्षुब्ध् हुए थे । बेटे से क्षुब्ध होकर उन्होने अपनी सारी चल-अचल सम्पत्ति की उत्तराधिकारी अपनी पुत्रवधू को बना दिया और अपने पुत्र को अपना उत्तराधिकारी होने के अयोग्य घोषित कर दिया।

वाणी को उसके पति की पूर्व पत्नी ने बताया कि वह अपनी इकलौती बेटी को उसके पिता के स्नेह से वंचित नहीं देख सकती थी । बेटी का पिता घर पर आता रहे और बेटी के प्रति अपना कुछ कर्तव्य निर्वाह करता रहे, इसलिए उनकी आवश्यकता के अनुरूप धनराशि उन्हें दे दी जाती थी। लेकिन, अब, जबकि उसकी बेटी का पिता इस दुनिया में नहीं है, तो वह उस स्त्री को अपनी सम्पत्ति का छोटा-सा अंश भी नहीं दे सकेगी, जिसने उसकी हँसती-मुस्कुराती गृहस्थी को उजाड़ दिया था। उसकी छोटी-सी बगिया के नन्हें से पौधे का माली उससे उस समय छीन लिया, जबकि उसे अपने पिता के स्नेह की अत्यधिक आवश्यकता थी । उस समय वह नन्हीं-सी बच्ची अपने साथी बच्चों को उनके पिता के साथ देख-देखकर रोती थी और अपने पिता के विषय में अपनी माँ से ढेरों प्रश्न करती थी, जिनके उत्तर उसकी माँ अपने बेटी को उसकी छोटी-सी आयु में नहीं समझा सकती थी।’’

रणवीर से वाणी के विषय में सुनते-सुनते इस बार पूजा के चेहरे पर सन्तोष और पीड़ा मिश्रित भाव उभर रहे थे। वह सन्तोष की एक लम्बी साँस लेते हुए पीड़ा में पगे हुए स्वर में बोली -

‘‘ईश्वर के घर में देर है, अंधेर नहीं ! कहते हैं, उसकी लाठी में कभी आवाज नहीं होती है ! सबको अपनी करनी का फल इसी दुनिया में मिल जाता है ! वाणी को भी अपने कर्मों का फल मिला है ! फिर भी, उसको अभी तक ईश्वर के न्याय का एहसास नहीं हुआ है ! तभी तो वह दुश्चरित्रा स्त्री मेरी गृहस्थी को उजाड़ने में लगी हुई है ! ईश्वर उसे कभी क्षमा नहीं करेगा !’’

पूजा के मुख से निस्सृत अन्तिम शब्द इतनी कड़वाहट भरे थे कि उनसे व्यंजित वाणी के प्रति पूजा के हृदय की कटुता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। रणवीर के लिए यह असहनीय था। उसने पूजा का प्रतिवाद करते हुए वाणी का पक्ष लिया। कुछ ही क्षणों में यह वाद-प्रतिवाद इतना बढ़ गया कि अन्त में वे दोनों एक दूसरे के प्रति अनिवर्चनीय कटुता से भर गये।

आज तक रणीवर आर्थिक अभावों का बहाना अपनी कम्पनी में घाटा होना बताता रहा था, परन्तु आज सारी स्थिति स्पष्ट हो गयी थी। पूजा भी आज तक विश्वास-अविश्वास के बीच ही झूलती रही थी। कभी-कभी उसको रणवीर में दोष दिखाई देता था, तो कभी स्वयं को दोषी मानकर पति के साथ सामंजस्य करने का प्रयत्न करने लगती थी। कभी-रणवीर की बातों पर विश्वास करके उसको लगता था कि वास्तव में रणवीर की कम्पनी घाटे में चल रही है, इसलिए घर में पैसों का अभाव है और इसलिए घर को मितव्ययी ढंग से ही चलाना चाहिए ताकि रणवीर को घर की ओर से तनाव न हो ! कभी पूजा को लगता था कि उसका पति उसे धोखा देकर धन का दुरुपयोग कर रहा है !

आज पूजा को अपने सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गये थे और उसके सभी भ्रम दूर हो गये थे। दूसरी ओर, सारी स्थिति स्पष्ट करने के पश्चात् आज रणवीर को भी एक प्रकार का हल्कापन अनुभव हो रहा था। हल्का अनुभव करने पर भी उसे एक प्रश्न निरन्तर भारी पड़ रहा था - उसकी पारिवारिक सुख-शान्ति बनी रहेगी ? अथवा वह पूर्णतः नष्ट हो जाएगी ? अथवा आंशिक बचेगी और आंशिक नष्ट हो जाएगी ?शायद इसका निर्णय समय ही बेहतर कर सकता है !

पूजा के साथ वाद-प्रतिवाद से उत्पन्न कटुता को मन में लिये हुए रणवीर उसी समय घर से बाहर चला गया। उस दिन जाने के पश्चात् वह चार-पाँच दिन तक न तो घर आया और न ही घर पर किसी प्रकार से कोई संपर्क ही किया। यहाँ तक कि उसने अपना मोबाइल भी स्विच ऑफ कर दिया, ताकि पूजा या उसके बेटे उसके साथ सम्पर्क न कर सकें। पूजा के चित्त में भी रणवीर के प्रति कटुता भरी हुई थी। वह सप्ताह भर तक स्वयं को संयत-सन्तुलित न कर पायी थी। दिन-रात निरन्तर अपने पति के अन्य स्त्री के साथ अवैध सम्बन्ध तथा अपने और बच्चों के प्रति उसकी उपेक्षा के विषय में सोच-सोचकर वह अपने दुर्भाग्य पर आँसू बहाती रहती थी। उसके दोनों बेटे भी माँ के साथ गम्भीर मानसिक तनाव को झेल रहे थे। माँ की दयनीय दशा, पिता का अनिश्चित समय के लिए घर से चले जाना और इस सबके साथ आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए घर में धन का अभाव आदि समस्याएँ उनके जीवन को एक अनिश्चित दिशा की ओर धकेल रही थीं। ये सारी नकारात्मक स्थितियाँ सामूहिक रूप से एक समय में एक स्थान पर एकत्र होकर उनके जीवन को दुरूह से दुरुहतर बना रही थी। दोनों किशोरवयः बेटे अपने परिवार की विषम स्थिति को समझने लगे थे, इसलिए उन्होंने पिता को घर से जाने के तत्काल पश्चात् उनके मोबाइल पर प्रतिदिन कई-कई बार सम्पर्क करने का प्रयास करते रहे थे, किन्तु पिता के साथ सम्पर्क करने में उन्हें सफलता नहीं मिल सकी थी। दसवें दिन रणवीर ने सुधांशु का फोन रिसीव करके उसको बताया कि वह अपनी माँ के पास है और अभी शीघ्र उनके पास लौटकर नहीं आयेगा।

अब तक पूजा स्वयं को सम्हाल चुकी थी और समय की विषमता को वह भली-प्रकार पहचान रही थी। पति की अनुपस्थिति से जीवन में आने वाली रिक्तता और नीरसता को वह अपने वैवाहिक जीवन के आरम्भ से ही अनुभव करती रही थी। पति की उपेक्षा से उत्पन्न नीरसता और रिक्तता को उसने भोगा था। नीरसता और अनकहा एकाकीपन उसके जीवन का एक अंग बन चुका था। कभी जीवन के उस अनचाहे अंश से बचने के लिए, तो कभी उस अनचाहे अंश को अपने समग्र जीवन से निकाल फेंकने के असफल प्रयास में वह आज तक रणवीर के साथ सामंजस्य करती रही थी । उसके प्रत्येक दुर्व्यवहार और अत्याचार को सहन करती रही थी।

पूजा के समक्ष आज पुनः वही चिर-परिचित पुरानी परिस्थिति आ खड़ी हुई थी और उसे चीख-चीखकर कह रही थी कि रणवीर के साथ समझौता कर ले ! उसके समक्ष झुक जा, इसी में तेरी और तेरे बच्चों की भलाई है ! अन्यथा तू भी टूट जाएगी और बच्चे भी.....! बच्चों की उदासी, उनके भविष्य की चिन्ता और पति पर आर्थिक निर्भरता ने पूजा को एक बार फिर विवश कर दिया कि वह अपने पति और अपने दो बच्चों के पिता से घर वापिस लौटने के लिए प्रार्थना करे !

मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है, यह बात पूजा पर भी शत-प्रतिशत लागू होती थी । उसने अपनी परिस्थिति से विवश होकर रणवीर से उसके मोबाइल पर सम्पर्क किया और उससे घर वापिस लौटने की प्रार्थना की । प्रथम प्रयास में पूजा को रणवीर की ओर से अत्यन्त तिरस्कारपूर्ण नकारात्मक उत्तर मिला । उसके तिरस्कार को अपने दुर्भाग्य का दबाव मानकर पूजा दो-तीन दिन तक निरन्तर अनुनय-विनय और क्षमा-प्रार्थना करती रही, तो रणवीर घर लौट आया।

पूजा की विनय और प्रार्थना से रणवीर घर तो लौट आया था, परन्तु इस बार उसका लौटना, लौटना नहीं कहा जा सकता था । अब उसने परिवार का आर्थिक-भार वहन करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से नकारात्मक संदेश दे दिया था। बच्चे अथवा पूजा जब भी किसी आवश्यक आवश्यकता के लिए रणवीर से रुपयों-पैसों की माँग करते थे, उसका केवल एक ही नकारात्मक उत्तर होता था -

‘‘मेरे पास नहीं हैं !’’

पिता से नकारात्मक उत्तर पाकर बच्चे माँ की ओर देखते थे, जैसे पूछ रहे हों - "अब क्या होगा ?"

पूजा अपने बच्चों की मायूसी देखकर व्याकुल हो उठती थी । उसका विवश हृदय रोते हुए फूट पड़ता -

‘‘आपके पास नहीं हैं, तो किसके पास है ? अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन्हें किसके पास जाकर प्रार्थना करनी पडे़गी ! इन्हें अपनी स्कूल-फीस देने के लिए, कपडे़-जूते खरीदने के लिए या खाना खाने के लिए पैसों की आवश्यकता है, तो किससे माँगने चाहिए इन्हें ? बताइये इन्हें !’’

‘‘यह सब मैं नहीं जानता ! मैं केवल इतना जानता हूँ कि मेरे पास रुपये नहीं हैं !’’

रणवीर के नकारात्मक व्यवहार से पूजा का आर्थिक और मानसिक तनाव बढ़ने लगा था । एक ओर, रणवीर का व्यवहार निरन्तर नकारात्मक होता जा रहा था। उसके व्यवहार से सकारात्मक संकेत विलुप्त हो चुके थे। दूसरी ओर, पूजा का मानसिक तनाव और घर में आर्थिक अभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। उस विषमतर परिस्थिति से निकलने का पूजा को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। वह अपनी दयनीय स्थिति के विषय में अब चित्रा बुआ को, अपने मायके वालों को अथवा अन्य अपने किसी परिचित को बताना नहीं चाहती थी और न ही किसी से सहायता लेना चाहती थी। अपना सारा जीवन कष्टों में व्यतीत करना अब उसने अपनी नियति मान ली थी । परन्तु, वह अपने बच्चों को इन कष्टों से दूर रखना चाहती थी। उनकी छोटी-सी आयु में वह उनके मनोमस्तिष्क पर तनाव का बोझ नहीं डालना चाहती थी । इसके लिए वह दिन-रात विचार-मंथन करती रहती थी, परन्तु उसको अपनी विषम परिस्थितियों की दलदल से बच्चों को बाहर निकालने का कोई सुलभ मार्ग नहीं सूझ रहा था।

चिन्ता में डूबी हुई चेतनाहीन-सी पूजा अपने बिस्तर पर पड़ी हुई रो रही थी । तभी अचानक उसको प्रेरणा का स्मरण हो आया। प्रेरणा उसकी छोटी बहन ही नहीं थी, अपितु वह उसकी अभिन्न मित्र भी थी । कई वर्ष पूर्व प्रेरणा का विवाह हो चुका था और अब वह दो-बच्चों - एक बेटा तथा एक बेटी की माँ थी। पूजा को आशा थी कि यदि वह प्रेरणा से मिलकर अपनी विषम परिस्थितियों के विषय में चर्चा करेगी, तो उसका तनावग्रस्त मनोमस्तिष्क अवश्य हल्का हो जायेगा। यह भी सम्भव था कि दोनों के परस्पर विचार-विमर्श करने से समस्या का कुछ समाधन भी सूझ जाए ! इस प्रकार सोचते-सोचते उसने प्रेरणा को अपने पास बुलाने का निश्चय किया और अपने निश्चय के अनुरूप तुरन्त उसको फोन करके अगले दिन आने के लिए आग्रह किया !

प्रेरणा को फोन करके पूजा पुनः निश्तेज-सी होकर अपने बिस्तर पर लेट गयी। दोनों बच्चे भी माँ के पास उदास और चिन्तित बैठे थे। रात के नौ बज गये थे और दोनों बच्चे भूखे-प्यासे, शान्त-उदास माँ के पास बैठे रहे। पूजा ने उनकी दशा का अनुभव करते हुए प्रियांश को भेजकर होटल से खाना मँगवाया और दोनों बच्चों को अपने पास बिठाकर स्नेहपूर्वक खिला दिया। दोनों बच्चे खाना खाकर सो गये, परन्तु पूजा ने न तो खाना खाया और न ही वह सो सकी। पूरी रात वह अपने दुर्भाग्य के बारे में सोच-सोचकर अपने विचारों के भँवर में फँसी रही।

अगले दिन प्रातः काल यथाशीघ्र प्ररेणा अपनी ससुराल से पूजा के घर आ पहुँची। वहाँ पहंँचकर उसने देखा कि पूजा की दशा ऐसी हो गयी है, जैसे वह महीनों से रुग्ण हो। बच्चों ने प्रेरणा को बताया कि वह पिछली सुबह से उदास लेटी हुई निरन्तर आँसू बहाती रही है और तब से कुछ खाया भी नहीं है। दोनों बच्चों की मायूसी देखकर प्ररेणा का हृदय व्यथा से भर गया। उसके मुख से अनायास ही निकल पड़ा -

‘‘ईश्वर ने रणवीर को कैसा मनुष्य बनाया है, जो इतने मासूम अपने बच्चों की मासूमियत में न बंध सका और उनकी पीड़ा का अनुभव करके द्रवित नहीं हुआ।’’ प्रियांश और सुधांशु की उदासी अब प्रेरणा को असह्य होती जा रही थी। अतः उनके चित्त से तनाव दूर करने के लिए प्ररेणा ने उनसे बातें करना आरम्भ किया -

‘‘तुम दोनों आज स्कूल नहीं गये ?’’

‘‘नहीं !’’ सुधंशु ने उत्तर दिया।

‘‘क्यों ? गलत बात है, स्कूल से छुट्टी करना !’’

‘‘स्कूल जाने का मन नहीं था !’’ इस बार प्रियांश बोला।

‘‘मन नहीं था स्कूल जाने का ? यह बहुत गलत बात है !’’ प्ररेणा ने सुधांशु की ओर दृष्टि करके पूछा। प्रश्न को सुनकर एक क्षण के लिए दोनों प्रेरणा की ओर देखते रहे।

‘‘नाश्ता नहीं बना था ! न ही लंच बॉक्स तैयार हुआ था ! बस इसीलिए नहीं गये ! ’’ इतना कहकर सुधांशु उदास हो गया और उसकी आँखे भर आयी।

‘‘तुमने अभी तक नाश्ता नहीं किया ?’’

‘‘नहीं !’’

‘‘क्यों ?’’ सारी स्थिति को देखते-जानते-समझते हुए भी प्ररेणा के मुख से अनायास ही यह प्रश्न निकल पड़ा था । उसके प्रश्न से दोनों बच्चे झुँझला उठे। झुँझलाते हुए सुधांशु ने कहा -

‘‘नाश्ता बना ही नहीं, तो खाते कहाँ से ? आप मम्मी की दशा नहीं देख रही हैं ? हम दोनों ने रात होटल से लाकर खाना खाया था, मम्मी ने तब भी कुछ नहीं खाया था ! हमने बहुत कहा, प्रार्थना की, पर मम्मी ने खाने से मना कर दिया था !’’

‘‘अच्छा, तो ठीक है, अब मैं सबसे पहले नाश्ता बनाऊँगी ! उसके बाद हम सब एक साथ नाश्ता खायेंगे। बताओ, नाश्ते के लिए क्या बनवाओगे।’’

‘‘लेकिन मम्मी ?’’ सुधाशु ने सशंक मुद्रा में कहा।

‘‘मम्मी क्या ? वे भी हमारे साथ खाना खाएँगी ! अब तुम मम्मी की चिन्ता बिल्कुल मत करो ! मैं आ गयी हूँ ना ! मैं अब उन्हें जादू से बिल्कुल स्वस्थ कर दूँगी। ठीक है ना ?’’

‘‘ठीक है !’’ प्रियांश और सुधांशु दोनों एक साथ बोल पडे़।

प्ररेणा ने कुछ ही समय में भोजन तैयार कर दिया और बच्चों के लिए परोसकर पूजा से भोजन करने का आग्रह किया। पूजा का कुछ भी खाने का मन नहीं था, किन्तु प्रेरणा के साथ बच्चे भी आग्रह करने लगे कि उसके बिना उनमें से कोई भी नहीं खाएगा ! सबके आग्रह से विवश होकर पूजा ने भोजन कर लिया। भोजन करने के पश्चात् प्रेरणा ने बच्चों को उनके तथा अपने बचपन की सुखद घटनाएँ सुनाना आरम्भ किया। प्रियांश और सधांशु अपने बचपन की शरारतों के विषय में सुनकर हँसते-हँसते लोट-पोट हो गये। बच्चों को प्रपफुल्लित देखकर पूजा भी सामान्य-सी हो गयी थी । अब घर का वातावरण बोझिल नहीं रह गया था। घर के वातावरण को तनावमुक्त अनुभव करके अपनी माँ को स्वस्थचित्त देखकर दोनों बच्चे माँ को प्ररेणा मौसी के पास छोड़कर खेलने के लिए बाहर चले गये।

दोनों बच्चों के जाने के पश्चात् पूजा ने अपने दाम्पत्य जीवन के अनुभवों को प्रेरणा के साथ बाँटा। उसने वाणी के साथ रणवीर के सम्बन्धों को लेकर अपने तथा रणवीर के बीच उत्पन्न हुई कटुता भरी दूरी का सारा वर्णन प्रेरणा के समक्ष कर दिया और अपने मन का भार हल्का कर लिया था। परन्तु, प्ररेणा ? उसके जीवन में अपनी समस्याएँ भी इतनी अधिक थी कि दिन-रात उनके समाधन के विषय में सोचती रहती थी। अब पूजा की स्थिति देख-सुनकर उसका मनःमस्तिष्क अतिरिक्त भार का अनुभव कर रहा था । पूजा के कष्टों का अनुभव करके अपनी समस्याएँ उसको अपेक्षाकृत बहुत छोटी और महत्वहीन लगने लगी थी । पर्याप्त समय तक वह पूजा के साथ उसकी विषम परिस्थितियों और उनसे मुक्त होने के विषय में चर्चा करती रही, किन्तु उन दोनों में से किसी को भी कोई समाधान नहीं सूझा।

अन्त में प्ररेणा के मस्तिष्क में एक विचार कौंधा कि वह स्वयं पूजा के मानसिक-आर्थिक तनाव को कम नहीं कर सकती, परन्तु यदि वह उसकी आर्थिक समस्या को अपने पिताजी के समक्ष प्रस्तुत कर दे, तो वे अवश्य ही अपनी बेटी की आर्थिक सहायता करेंगे ! प्रेरणा ने अपना विचार पूजा को बताया। पूजा ने उस विचार के प्रति अपनी असहमति प्रकट करते हुए कहा कि वह अपने पिताजी को अपने कष्टों से अवगत कराके उन्हें कष्ट नहीं पहुँचाना चाहती है। प्रेरणा ने उस समय पूजा की बात का प्रतिवाद नहीं किया। वह जानती थी कि उस समय प्ररेणा की ओर से पूजा को प्रतिवाद प्रिय न लगेगा । परन्तु, उसने अपने मन में निश्चिय कर लिया था कि वह मायके जाकर अवश्य ही अपने पिता से पूजा की तनावपूर्ण परिस्थिति के विषय में बतायेगी।

प्ररेणा से बातें करके दोपहर तक पूजा का चित्त स्वस्थ हो चुका था और उसके अन्दर अपनी कष्टकारक परिस्थितियों से संघर्ष करने के लिए नई ऊर्जा का संचरण होने लगा था । पूजा को स्वस्थचित्त अनुभव करके प्ररेणा ने दोपहर पश्चात् वापिस लौटने की अनुमति माँगी। पूजा ने उसे उस रात को वहीं रुकने का आग्रह किया, किन्तु प्ररेणा ने आवश्यक कार्य बताकर उसके आग्रह को अस्वीकार कर दिया और शाम को ही उसके घर से प्रस्थान करके वह अपने पिता के घर चली गयी।

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com