Deewali of that old men in Hindi Poems by Tarkeshwer Kumar books and stories PDF | उस बुजुर्ग की दीवाली

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उस बुजुर्ग की दीवाली

जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई हैं मृत्यु, पर उससे भी कटु सत्य हैं वृद्धावस्था।

एक कविता के माध्यम से मैंने बुज़ुर्गों के प्रति अपने कर्तव्यों को और इस अवस्था में उनके भावों को समाज तक पहुचाने की कोशिश की हैं, इसे पढें और थोड़ी सी खुशियां इनके साथ भी बाटें।

दीवाली का समय था एक रेलवे स्टेशन पर एक बूढ़े बाबा अकेले कमजोर अवस्था में सोए हुए थें,कोई भी उनकी मदद नहीं कर रहा था।सब अपने में ही लगे हुए थें पर कुछ अच्छे लोगों ने उनकी मदद की और दीवाली की कुछ खुशियां उनके साथ बाटी, पर मदद मिलने से पहले उनकी क्या अवस्था थीं और क्या अवस्था रहीं होगी ये मैं यहाँ बताने की कोशिश कर रहा हूँ।कविता कुछ इस प्रकार हैं:

यहां पर पूरा शहर खुशियां मना रहा था।
चप्पा चप्पा कोना कोना जगमगा रहा था।
पर वहीं स्टेशन पर वो गरीब बूढा भूखा सो रहा था।


रोशन था हर घर इतना कि सूरज भी फीका पड़ जाए।
थी रौनक ऐसी जगमग के चाँद भी रूखा पड़ जाए।
छप्पन भोग बने हर घर में,खाने वाला स्वाद में मोह रहा था।
पर वही स्टेशन पर वो गरीब बूढा भूखा सो रहा था।


था अँधेरा इतना वहाँ के पाताल भी शरमा जाए।
था सन्नाटा इतना वहाँ के काल भी घबरा जाए।
अपनी इस दयनीय हालत पर वो चुपके से बस रो रहा था।
हाँ सच में वहीं स्टेशन पर वो गरीब बूढा भूखा सो रहा था।


ढूंढता है वो एक साथी ,बात करने को सोचता है।
क्या खेल खेला किस्मत ने ये सोच के खुद को कोसता हैं।
मदद करने को कोई नही,कौन जहर दिलों में बो रहा था।
हाँ सच में वहीं स्टेशन पर वो गरीब बूढा भूखा सो रहा था।


बचपन में जो साथ खेलें वो आज नजर चुराते क्यों है।
जो भाई भाई करते थे वो आज आंख झुकाते क्यों है। क्या गलती है जो गरीब बना वो,सब रिश्ते नाते खो रहा था।
हाँ सच में वहीं स्टेशन पर वो गरीब बूढा भूखा सो रहा था।


क्यों ना मिलके एक काम करें हम,
कुछ खुशियां इनके नाम करें हम,
अपनों के लिए अब तक जिये हैं,
एक शाम इन गैरों के नाम करें हम।


कुछ पटाख़े हम इनके लिये भी लाये
कुछ मिठाई हम इनको भी खिलाये,
कुछ दीये हम इनके साथ जलाये,
कुछ नये कपड़े हम इन्हें दिलाये।


मिलके साथ आगे बढ़े ,दूर उनका अँधेरा करें।
बन बुरे वक्त में सहारा उनके जीवन मे सवेरा करें।
जब तू हर दिलो में बीज प्यार का निष्पाप होके बोयेगा।
तब जाके कोई भी गरीब फिर न भूखा सोएगा।

जब तू अपने मन का मैल निष्पाप होके धोएगा।
तब कोई गरीब दोबारा खून के आँसू न रोयेगा।
तब जाके कोई भी गरीब फिर न भूखा सोएगा।
तब जाके कोई भी गरीब फिर न भूखा सोएगा।


खुशियां बांट के देखिए बहुत खुशी मिलेगी आपको।उस रात जो नींद आएगी आपको वो चैन की नींद होगी।मदद कर के देखिए अच्छा लगेगा।


इस कविता के माध्यम से मैंने अपनी भावना और अपनी सोच प्रकट करने की कोशिश की हैं,अगर अनजाने में किसी की भावना को ठेस पहुँचा तो क्षमा चाहता हूं।