Those days of school were good in Hindi Poems by Tarkeshwer Kumar books and stories PDF | स्कूल के वो दिन ही अच्छे थे

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स्कूल के वो दिन ही अच्छे थे

प्रिय दोस्तो,

जिंदगी बहुत तेज़ी से अपने मुक़ाम की और दौड़ रहीं हैं। इस छोटी सी जिंदगी में अनेकों पड़ाव आते हैं जिन्हें पार कर के हम आगे बढ़ते रहते हैं। इस दौरान बहुत ही अच्छे, बुरे, और यादगार पल बन जाते हैं जो हमें कभी ना कभी बहुत याद आते हैं और सताते हैं। उन्हीं यादों में एक बहुत ही प्यारी याद रह जाती हैं जो स्कूल की होती हैं। स्कूल में हम छोटे बच्चे थे मासूम से जिन्हें अच्छे बुरे का कोई ज्ञान नहीं होता था। ना नौकरी की चिंता ना ही रोटी की फ़िक्र होती थीं। बस जो भी दोस्त बनते थे वो सच्चे होते थे और मतलबी दोस्ती नहीं हुआ करती थीं। जैसे जैसे हम बड़े होने लगे और बड़ी कक्षा में जाने लगें तब थोड़ी थोड़ी दुनियादारी समझ आने लगीं। एक ऐसा भी वक्त आ जाता था जब हम स्कूल को कोसते थे और स्कूल जाने से दूर भागते थे। कई बार हम सोचते थे के काश हम बड़े हो जाये जिससे स्कूल जाना नहीं पड़ेगा। आज जब बड़े हुए और नौकरी करने लगे और सैकड़ो जिम्मेदारियां सर पर आ गयी तो सोचते हैं कि काश! हम बच्चे ही रहते और स्कूल में ही रहते तो अच्छा था। आइये एक कविता के माध्यम से उन दिनों को जानते हैं। मुझे विश्वास हैं कि जी तरह मैं अपने स्कूल को बहुत याद कर रहा हूँ ठीक उसी प्रकार आप भी उन दिनों को याद करने लगेंगे।

सालों बाद स्कूल के सामने से गुज़रा
अचानक मेरी आँखें उसपर ठहर गयी
अजीब सी बैचेनी मन में उठने लगी
भावनाएं मानों सैलाब सी उमड़ गयी

आँसुओं की नदी आँखों में बहने लगी
बिना बोले यादें मुझे क्यों कुरेदने लगी
क्या वही जगह हैं जो क़ैद सी लगती थी
ये सवाल मुझसे अंतरात्मा पूछने लगी

कभी क्लास से भाग जाने का मन करता था
क्यों आज फिर वहाँ जाने को जी चाहता हैं
मेरे क्लास का वो बेंच जहाँ में बैठता था
आज क्यों उससे लिपट जाने को जी चाहता हैं

अचानक मेरे स्कूल ने पूछा मुझसे उदास होकर
बेटा तुम तो चले गये थे ना मुझसे नाराज़ होकर
तुम तो चले गये थे कभी ना लौटोगे ये बोलकर
खरी कोटि भी सुनाई थी मुझे दिल खोलकर

स्कूल की परीक्षा कभी ना भाती थी तुम्हें
फिर बताओ जिंदगी का इम्तेहान कैसा हैं
यहाँ खूब खेलता कूदता था पगले बच्चे
ये छोड़ अपनी सुना के तू नादान कैसा हैं

ये सवाल मेरे स्कूल के मेरा दिल कुरेद दिया
मानों जैसे किसीने तीर से मुझे भेद दिया
देख उसकी दीवारों को में यादों में खो गया
बहुत रोका खुदको लेकिन फुट फुट के रो गया

मैंने कहाँ ऐ मेरे बचपन के सखा मेरे साथी
किसने कहाँ के मैं तुम्हें भूल गया था
बस जीवन जीने के भाग दौड़ में
दुनियादारी के झूले में झूल गया था

ये दुनियाँ तो मतलबी हैं मेरे दोस्त
सच कहूँ तो वो दिन ही बस अच्छे थे
ना नौकरी की चिंता ना रोटी की फ़िकर
बस वही यार दोस्त ही सच्चे थे

जिंदगी में लोग चहुँओर हैं झूठे
वो स्कूल के लोग बस सच्चे थें
आज कल कहीं मन नहीं लगता
वो स्कूल के दिन ही अच्छे थें

दोस्तों,

ये वो अनमोल यादें हैं जो हमेशा याद आती रहेंगी।

जो दोस्त उस वक्त जान से भी प्यारे हुआ करते थे और जिनके साथ हमारा पूरा दिन बीत जाया करता था उनमें से कुछ दोस्त आज कहाँ हैं ये हमें पता भी नहीं पर उनकी यादें साथ हैं।

वो हमारे गुरु अध्यापक कहाँ हैं नहीं पता पर हमारी यादों में आज भी मौजूद हैं।

अच्छी यादें बुरे वक्त में होटों को मुस्कुराहट देकर चिंता को कम कर देती हैं।

जिंदगी बहुत छोटी हैं इसके हर एक पल को जियें।

व्यर्थ की चिंता ना करें क्योंकि सोच के ना तो हम बुरे वक्त को टाल सकते हैं और ना हीं अच्छे वक्त को ला सकते हैं।

आपको अगर अच्छी लगी ये कविता तो ज़रूर अपने अमूल्य कमेंट करें और इसे शेयर करें।