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Sonu Kumar Gami

Sonu Kumar Gami

@sonugami228606


भारत देश में जांच के लिए नार्को टेस्ट इन पब्लिक और जूरी सिस्टम की व्यवस्था नहीं होने के कारण इस तरह के बहुत सारे गलत मामले बनाए जाते हैं और गलत लोग जेल में डाल दिए जाते हैं इन सब के पीछे पुलिस अदालत का भ्रष्टाचार जिम्मेदार है अगर आप भारत की पुलिस और अदालत को सुधारना चाहते हैं तो जुरी कोर्ट कानून लागू करने की मांग प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से जरूर करें l

https://www.amarujala.com/madhya-pradesh/mandsaur/mandsaur-news-woman-returned-alive-18-months-after-her-death-revealed-inside-story-to-police-2025-03-19
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नियम और कानून में क्या अंतर है ?

क्या करने की अनुमति है, एवं क्या करने की अनुमति नहीं है की सूचना देने वाले पाठ्य को नियम या क़ानून कहते है। विशिष्ट एवं संक्षिप्त होने के कारण इन्हें हमेशा बिन्दुओ के रूप में लिखा जाता है।

नियम एवं कानून में अंतर :

नियम निजी संस्थाओ द्वारा बनाए जाते है, जबकि क़ानून बनाने की शक्ति सिर्फ सरकार के पास होती है
नियमों को तोड़ने पर आर्थिक या करावासीय दंड का सामना नहीं करना पड़ता, जबकि क़ानून तोड़ने पर हमेशा दंड का सामना करना पड़ता है।
मूल अंतर इतना ही है। इससे सम्बंधित कुछ अन्य मूल्यपरक विवरण निचे दिए गए है

(1) सरकार किसे कहते है ?

अमुक क्षेत्र में जिस संस्था के पास सेना रखने की शक्ति होती है, उस संस्था को सरकार कहते है।

(2) सरकार में कौन लोग होते है ?

मुख्यत: सांसदो और विधायको के समूह से सरकार बनती है। सांसद संसद में बैठते है, और विधायक विधानसभाओ में।

(3) सरकार का मुख्य काम क्या है ?

सरकार का एक मात्र काम क़ानून बनाना है। क़ानून बनाने के अलावा उन्हें कुछ नहीं करना होता। संसद और विधानसभा उनके दफ्तर है, जहाँ बैठकर वे क़ानून बनाते है।

(4) जो लोग क़ानून तोड़ते है क्या उन्हें पकड़ना सरकार का काम नहीं है ?

नहीं। सरकार का काम उन्हें पकड़ना नहीं है। सरकार उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस के क़ानून बना देगी और पुलिस वाले कानून तोड़ने वालो को पकड़ते रहेंगे। इसी तरह जो भी काम करना हो सरकार उस काम को करने के लिए क़ानून बनाती है बस। क़ानून बनाने के अलावा सरकार और कुछ नहीं करती, और न ही कुछ कर सकती है।

क़ानून बनाने के अलावा आप सरकार के अंगो (सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री) को जो भी करते देखते है, वह एक तमाशा होता है। तमाशे से ज्यादा उसमें कोई कीमत नहीं होती।

(5) व्यवस्था (System) किसे कहते है ?

नियमों एवं कानूनों के समुच्चय (Set) को व्यवस्था कहते है।

(6) क्या सरकार व्यवस्था नहीं बनाती ?

नहीं। सरकार व्यवस्था नहीं बनाती। दरअसल व्यवस्था अपने आप में स्वतन्त्र रूप से कुछ नहीं होता। व्यवस्था का मूल तत्व क़ानून है। सरकार सिर्फ क़ानून बनाती है, और कानूनों के सेट को आप व्यवस्था कहने लगते है। तो दरअसल जब आप कहते है कि, भारत की व्यवस्था (System) खराब है, तो आप कह रहे होते है कि भारत के क़ानून ख़राब है।

यह बात दीगर है कि जब आप कहते है कि अमुक क़ानून खराब है, तो इसमें एक विशिष्टता होती है। जबकि व्यवस्था खराब है, वक्तव्य एक नारा बन कर रह जाता है !!

(7) किसी व्यवस्था में परिवर्तन कैसे किया जा सकता है ?

जैसा ऊपर बताया है कि व्यवस्था अपने आप में कानूनों का एक सेट है, अत: जैसे ही कानून में बदलाव किया जायेगा वैसे ही व्यवस्था बदल जायेगी। क़ानून को बदले बिना आप व्यवस्था बदल ही नहीं सकते। क्योंकि व्यवस्था जैसा कुछ होता ही नहीं है, जिसे कानून को बदले बिना बदला जा सके।

भारत की ट्रेफिक व्यवस्था के उदाहरण से इसे समझते है :

भारत में सड़कें बनाने और टोल वसूलने के कुछ कानून है, गाड़ी खरीदने और इसे चलाने के फिर से कुछ क़ानून है। इसी तरह चालको के सड़क पर व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए RTO एवं ट्रेफिक पुलिस विभाग है, और इन विभागों में काम करने वाले अधिकारीयों के लिए सेवा शर्तो के फिर से कुछ क़ानून है।

इस तरह भारत भर में कुछ 100 से ज्यादा तरह के क़ानून मिलकर भारत में ट्रेफिक व्यवस्था का निर्माण करते है। और इसी तरह से पुलिस व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, बिजली व्यवस्था, जलदाय व्यवस्था आदि सैंकड़ो व्यवस्थाएं है, और प्रत्येक व्यवस्था के पीछे फिर से सैंकड़ो क़ानून है।

इन सैंकड़ो कानूनों में से आप जैसे ही किसी एक कानून को छेड़ेंगे वैसे ही व्यवस्था बदल जायेगी। उदारहण के लिए ट्रेफिक व्यवस्था का एक क़ानून यह कहता है कि – जब भी आप कोई वाहन सड़क पर लायेंगे तो इसके आगे पीछे वाहन का नंबर लिखा होना चाहिए।

अब यदि आप इस बिंदु को निकाल देते है, तो सड़क पर अनियंत्रित गति से दौड़ने वाले वाहनों की संख्या बढ़ जायेगी और लोग बेतहाशा ट्रेफिक रूल तोड़ने लगेंगे। क्योंकि अब ट्रेफिक रूल तोड़ने वालो को चिन्हित करके पकड़ा नहीं जा सकता। इस तरह क़ानून के सिर्फ एक बिंदु में बदलाव करने से पूरी व्यवस्था में दोष आना शुरू हो जाता है।

यदि कानूनों में दोष नहीं है तो व्यवस्था में भी दोष नहीं रहेगा, और यदि कानून दोषपूर्ण है तो व्यवस्था भी दोषपूर्ण हो जाएगी। और एक दोषपूर्ण व्यवस्था हमेशा दोषपूर्ण ढंग से ही काम करगी। क्योंकि प्रक्रिया एवं नतीजो का दोहराव ही व्यवस्था की मुख्य विशेषता है।

सार : यदि आपको देश का सिस्टम सुधारना है तो आपको क़ानून सुधारने होंगे। जैसे जैसे क़ानून सुधरेंगे वैसे वैसे सिस्टम में सुधार आएगा।

और क़ानून सुधारने की दिशा में काम करने का पहला कदम यह है कि राजनैतिक विमर्श करने वाले ऐसे बुद्धिजीवियों से दूरी बनाकर रखें जिन्हें व्यवस्था बदलनी चाहिए, भारत का सिस्टम ही खराब है, पूरा सिस्टम भ्रष्ट हो चूका है टाइप की बौद्धिक जुगाली करने का व्यसन है।

जब भी आपका सामना किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो देश की व्यवस्था में बदलाव लाने की बात कर रहा हो तो उससे पूछे भारत की अमुक व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए वे किन क़ानूनो को बदलने का प्रस्ताव कर रहे है ?

और आप देखेंगे कि उसके पास कानूनों में बदलाव की न तो कोई रूप रेखा है और न ही प्रस्तावित कानूनों के ड्राफ्ट है। वह सिर्फ व्यवस्था परिवर्तन शब्द बेचकर तमाशा खड़ा कर रहा है

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रतन टाटा के बारे में कोई महत्वपूर्ण जानकारी क्या हो सकती है ?

गोरे जब भारत से गए तो अपने वफ़ादार जवाहर लाल को लाल क़िला और टाटा को झारखंड में अगले 999 वर्षों तक कोयला खोदने के राइट्स लगभग फ़्री में देकर चले गये थे !!

A Tata Coalgate? 999-yr mine lease at 25p a bigha! - A Tata Coalgate? 999-yr mine lease at 25p a bigha!

नागरिकों की इस संपत्ति को टाटा ने लूटा और लूट के इस पैसे के लगभग 20% हिस्से का निम्नवत बँटवारा किया :

(1) लूट का एक हिस्सा मीडिया पर खर्च किया ताकि इस लूट के बारे में जनता को पता न लगे।

(2) कुछ हिस्सा नेताओ पर खर्च किया ताकि प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री आदि गोरो द्वारा दिये गये मुफ़्त के ये माइनिंग राइट्स ख़त्म न कर दे।

(3) एक हिस्सा चैरिटी पर खर्च किया, और जितना चैरिटी पर खर्च किया उसका 4 गुणा इस चैरिटी को प्रचारित करने में खर्च किया। ताकि अपनी छवि चमका कर रखी जा सके।

डाकू ज़ालिम सिंह भी जब डाका डालते थे, तो लूट के माल को जायज़ और नैतिक बनाने के लिए कबूतरों के आगे धान और गायों को चारा डाल दिया करते थे।

पर ज़ालिम सिंह और टाटा में एक फ़र्क़ है -

चूँकि ज़ालिम सिंह उच्च शिक्षित नहीं थे इसीलिए 100 रू लोगो से लूटते थे और 20 रू कबूतरों और गायों के खाते में खर्च कर देते थे। दूसरे शब्दों में उन्होंने पैसा ताकतवर से खींचकर कमजोरो की तरफ़ भेजा। और बदनाम हुए।

पर टाटा अलग ही तरह के रॉबिनहुड थे। वे नागरिकों का 100 रू लूटते थे तो उसमें से 80% ख़ुद रख लेते थे, 20% मीडिया कर्मियों, जजो और नेताओ जैसे ताकतवर लोगो को दे देते थे, और सिर्फ़ 5% की चिल्लर चैरिटी के रूप में उन नागरिकों पर खर्च कर देते थे, जिनसे 100 रू लूटा गया है !! और चैरिटी पे खर्च की गई राशि के बराबर टैक्स में छूट भी प्राप्त कर लेते थे। इस तरह दान दिया गया यह पैसा फिर से उनके पास लौट आता था।


महान आदमी थे। बिना घुमाव फ़िराव के प्लेन बिज़नेस करते थे। फ़्री में कोयला खोदते थे, और बाज़ार में बेच देते थे। न रॉयल्टी जमा कराने का झंझट न हिसाब किताब का झगड़ा। जिस भी भाव में बिके, पूरा मुनाफ़ा ही है।

यदि खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिकों के खाते में भेजने का क़ानून पास कर दिया जाता तो प्रत्येक नागरिक को प्रति महीने 3,000 (पाँच सदस्यीय परिवार को 3,000x5= 15,000 महीना) प्राप्त होता है। पर चूँकि टाटा मुफ़्त में कोयला खोद रहे थे, और रॉयल्टी नहीं चुकाना चाहते थे, अत: रतन टाटा ने अंतिम साँस तक “खनिज का पैसा सीधे नागरिकों के खाते में भेजने” के क़ानून का विरोध किया।

टाटा ने देश की बेंड बजाने के लिए और क्या क्या कांड किए है, इस बारे फिर कभी और विस्तार से लिखा जाएगा।

हमारे यहाँ परंपरा है कि परलोक सिधार चुके व्यक्ति की निंदा नहीं की जाती। पर मेरे विचार में यह बात ठीक नहीं है। व्यक्ति के सत्कर्मों के साथ ही कुकर्मों को भी इंगित किया जाना चाहिए। और ऐसा करना तब और भी अपरिहार्य हो जाता है जब किसी व्यक्ति के कर्म सार्वजनिक हितों (larger public interest) प्रभावित करते हो। वर्तमान में भी और भविष्य में भी।

एक प्रश्न यह है कि, टाटा ने जो अच्छे काम किए मुझे उस पर भी तो लिखना चाहिए, मैं सिर्फ़ उनके कुकर्मों पर ही क्यों लिख रहा हूँ, सत्कर्मों पर क्यों नहीं ?

जवाब यह है कि उनके सत्कर्मों की चर्चा प्रसारित करने के लिये कई लाख करोड़ का पूरा टाटा ग्रुप+पेड मीडिया मौजूद है, और अपना काम 1946 से ही भलीभाँति कर रहे है। कुकर्मों के बारे में कोई नहीं कर रहा। इसीलिए हम संतुलन लाने का प्रयास कर रहे है।

चूँकी अब वे मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर परलोक गमन कर चुके है, अत: ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

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भारत की हर प्रमुख पार्टी अंग्रेजों की तरह ही भारतीय नागरिकों को निहत्था रखना चाहती है और उनके निहत्थे होने के कारण जो असुरक्षा पैदा होती है उसका भरपूर फायदा उठाकर वोट जमा करके शासन करना चाहती है शासन करने का मतलब हुआ यह सभी साजिश करने वाले लोग सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं

सारे अधिकार चाहते हैं ब्लॉक से लेकर कचहरी से लेकर डीएम ऑफिस से लेकर छोटे से स्कूल आंगनबाड़ी तक के लोगों का दबदबा है पुलिस स्टेशन पर इनकी चलती है इसीलिए यह जनता के साथ साजिश करते हैं।

हमें तो चाहिए पुलवामा फाइल्स हमें तो चाहिए बिपिन रावत फाइल्स हमें चाहिए हरेन पांड्या फाइल्स हमें चाहिए हमें चाहिए कमलेश तिवारी फाइल्स हमें चाहिए रंजीत बच्चन फाइल्स कोई बनाओ इन फिल्मों को लोगों को मूर्ख बनाना छोड़ो कश्मीर से भी हिंदुओं के पलायन में भाजपा ही जिम्मेदार थी कोई मूर्ख ही होगा जो कोई और एंगल निकाल कर इसे झूठ का पड़ोसएगा का वैसे भी परोसने वालों की कमी नहीं है क्योंकि सत्ता और पैसा जिसके हाथ है

वही जनता के दिमाग में बातें भरता है आखिर यह सीकरी में यह भारी संख्या में पाकिस्तान से घुसपैठिए हो चुके थे और आतंक समर्थित मटेरियल कश्मीर के अंदर बांटे जा रहे थे लाउडस्पीकर पर लोगों को धमकियां दी जा रहे थे उस समय भी सामान्य नागरिकों को प्रशासन ने हथियार क्यों नहीं दिया ताकि वह अपनी तथा अपने प्रिय जनों की तथा अपने समुदाय की रक्षा कर पाते।

साफ बात है कि सत्ता को हमेशा अफसर साही चाहिए अफसरशाही से ही इनकी दबदबा बनी रहती है

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ध्यान क्या है?

ध्यान एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना को केंद्रित करता है और विचारों को नियंत्रित करके आत्मिक शांति प्राप्त करता है। यह हजारों वर्षों से योग और आध्यात्मिक साधना का अभिन्न हिस्सा रहा है।

ध्यान करने के फायदे

1. मानसिक शांति – ध्यान करने से मन की बेचैनी और नकारात्मक विचारों में कमी आती है।
2. एकाग्रता बढ़ती है – यह ध्यान शक्ति को तेज करता है और निर्णय लेने की क्षमता को सुधारता है।
3. तनाव और चिंता में राहत – नियमित ध्यान से मानसिक तनाव और चिंता में कमी आती है।
4. शरीर को आराम मिलता है – ध्यान करने से रक्तचाप संतुलित रहता है और हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा कम होता है।
5. रचनात्मकता में वृद्धि – ध्यान से मस्तिष्क अधिक रचनात्मक और नई चीज़ों के प्रति खुला बनता है।
ध्यान करने की विधि

http://qtwnews.blogspot.com/2025/03/benefits-of-meditation-method-of.html

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ईवीएम हटाओ सेना

(राइट टू रिकॉल पार्टी और 40 अमान्यताप्राप्त पार्टियों का समूह)

सत्ता पक्ष जो कि अभी बीजेपी यानी कहिए नरेंद्र मोदी वे तो EVM और VVPAT के काले कांच के साथ हैं। पर विरोधी पक्षों के प्रमुख नेता और अध्यक्ष किस प्रकार EVM और VVPAT के काले कांच के साथ हैं, यह यह समझने का प्रयत्न करते हैं। इसके बाद क्यों चुनाव हार कर भी वे EVM और VVPAT के काले कांच के विरोध का नाटक करते हैं यह समझेंगे।

1. चुनाव आयोग की वेबसाइट कहती है कि 384 कैंडिडेट अधिकतम EVM से चुनाव लड़ पाएंगे। यह सारे पार्टी अध्यक्षों को पता होने पर भी उन्होंने 384 कैंडिड से अधिक चुनाव में खड़े क्यों नहीं किया? अगर उन्होंने 384 प्रत्याशियों से ऊपर खड़ा करने की सार्वजनिक घोषणा भी की होती तो चुनाव आयोग पहले ही बैलट पेपर से चुनाव कराना तय कर लेता और EVM अपने आप रद्द हो जाती। (इतिहास में एक बार यह चंद्रशेखर राव की तेलुगु राज्य समिति पार्टी ने 2010 में किया था। 2010 में केवल 64 कैंडिडेट EVM से अधिकतम चुनाव लड़ सकते थे। TRS पार्टी ने 64 प्रत्याशियों के ऊपर चुनाव में खड़े किए थे, और चुनाव आयोग को EVM रद्द करनी पड़ी थी। आज 384 के ऊपर प्रत्याशी खड़े करने होंगे। अब यह कितना संभव है यह प्रश्न बात का है पर विरोधी पार्टी अध्यक्षों ने इस बात का प्रयत्न भी क्यों नहीं किया, यह समझ में नहीं आता। (हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम इतने प्रत्याशी खड़े कर सकें।) हमारा मानना है कि 384 प्रत्याशियों को खड़ा करने की सार्वजनिक घोषणा करते ही चुनाव आयोग बैलट पेपर से चुनाव करने के लिए बाध्य हो जाएगा।

2. संविधान के राज्य सूची का अनुच्छेद 328 जिससे कोई भी राज्य सरकार राज्य चुनाव आयोग के साथ मिलकर नगर निगम, ग्राम पंचायत,जिला पंचायत यहां तक की विधानसभा के चुनाव किस प्रकार करवाना है इस पर कानून बना सकती है। विरोधी पक्ष के किसी भी पार्टी ने आज तक राज्य सरकार के लिए यह कानून क्यों नहीं बनाया कि वह राज्य का चुनाव बैलट पेपर से करवाएंगे ना कि ईवीएम मशीन और काले कांच वाले, लाइट सेंसर वाले VVPAT से।

3. 2010 में श्री हरिप्रसाद जी जो की इलेक्शन कमिशन में काम करते थे उन्होंने कलेक्टर ऑफिस से EVM मशीन चुराकर EVM में उस समय किन अलग-अलग प्रकार से वोटों की चोरी हो सकती है इसे नागरिकों को समझाया था, जिसका वीडियो आज भी यूट्यूब पर है। किसी भी पार्टी अध्यक्ष ने इस वीडियो को अभी तक फैलाने की कोशिश नहीं की।

4. आज भी ग्राम पंचायत, नगर निगम और जिला परिषद के चुनाव ऐसे EVM से होते हैं जिसमें VVPAT नहीं लगा हुआ है (जो की 2025 में भी होने जा रहे हैं)। यानी मतदाता मत देने के बाद अपनी स्लीप या चिन्ह नहीं देख पाएगा, जबकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि EVM के साथ में VVPAT होना चाहिए जिसमें मतदाता मत देने के बाद अपनी स्लिप देख सके। यहां तक की कोई भी EVM विरोधी वकील भी इस बारे में याचिका लगवा कर चुनाव आयोग को यह आदेश नहीं दिलवाता है कि आने वाले नगर निगम के चुनाव में EVM के साथ VVPAT जरूर लगाई जानी चाहिए। इससे इन EVM विरोधी वकीलों का पाखंड भी स्पष्ट समझ में आता है। ना ही कोई पार्टी अध्यक्ष इस बारे में कुछ कहता या करता है।

5. कोई भी EVM विरोधी पार्टी ने आज तक चुनाव आयोग को EVM से चुनाव ना कराने का कोई पत्र लिखा है, ऐसा सार्वजनिक मंच या सोशल मीडिया पर प्रदर्शित नहीं किया। यानी हमारा मानना है कि उन्होंने लिखित तौर में चुनाव आयोग को EVM से चुनाव न कराने का कोई पत्र नहीं लिखा है। वे केवल EVM का मौखिक विरोध करते हैं। (इंडिया यानि विरोधी पार्टियों का ग्रुप, अगर कोई पत्र व्यवहार किया है तो इलेक्शन कमीशन यह कहकर अपनी जान छुड़ा सकता है कि यह कोई पार्टी नहीं है बल्कि यह पार्टियों का ग्रुप है जिसे हम नहीं पहचानते।(चुनाव आयोग केवल पंजीकृत पार्टियां और वोटरों को ही पहचानता है)

6. ईवीएम हटाओ सेना (जो की राइट टू रिकॉल पार्टी का EVM रद्द कराने की एक इकाई है और जिसमें 40 से अधिक छोटी पार्टियों ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले लिखित तौर पर समर्थन दिया है) EVM मशीन के एक डेमो मशीन बनाकर EVM के VVPAT के काले कांच और उसमें लगे हुए लाइट सेंसर के द्वारा किस प्रकार चोरी हो सकती है इसका खुला प्रदर्शन कर रही है। इस ईवीएम मशीन के डेमो को कई मीडिया आधारित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के अध्यक्ष और प्रमुख नेताओं ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देखा है। जैसे की कांग्रेस के राहुल गांधी,प्रियंका गांधी, दिग्विजय सिंह, उदित राज, पृथ्वीराज चव्हाण, अशोक गहलोत और कई चुनाव हारे विधायक प्रत्याशी, उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट के आदित्य ठाकरे जी, संजय राउत जी और कई विधायक, प्रत्याशी एनसीपी के शरद पवार जी, सुप्रिया सुले जी, जयंत पाटिल जी और कई चुनाव हारे विधायक प्रत्याशी, अरविंद केजरीवाल जी। इसके बाद, हमारा मानना है कि सारे EVM विरोधी पार्टियों के अध्यक्ष और प्रमुख नेता (अन्य पार्टी अध्यक्षों जिन्होंने डेमो नहीं देखा है) को इस डेमो के बारे में बता ही दिया होगा और अगर नहीं बताया या इसका प्रचार जोर-शोर से नहीं किया तो इन पार्टियों के EVM विरोध पर स्पष्ट संदेह होता है।

(हमारा मानना है कि विरोधी पार्टियों ने खासकर कांग्रेस ने लोकसभा 2024 के समय हमारी ईवीएम मशीन के डेमो को उतना ही जनता में प्रदर्शन किया जिससे कांग्रेस बीजेपी के साथ सौदा करके अपनी सीट बढ़वा सके।)
अब यह समझते हैं कि यह विरोधी पक्ष के अध्यक्ष चुनाव हारने के बाद भी क्यों EVM और काले कांच वाले VVPAT को जिंदा रखना चाहते हैं।

1. विदेश से प्रायोजित न्यूज़ चैनल,न्यूज़ पेपर,यूट्यूब,फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया के मंचों पर किसी भी पार्टी को खड़ा करने फैलाने और भ्रष्टाचार करने के बाद भी देश की प्रमुख पार्टी बना के रखना में विदेशी प्रायोजित भ्रष्ट मीडिया का प्रमुख हाथ होता है। तो जो मीडिया इन भ्रष्ट पार्टियों के भ्रष्टाचारी होने के बावजूद इन्हें देश की प्रमुख पार्टियां बनाकर जीतने योग्य रख सकती है वो उनके भ्रष्टाचार को अगर खुलकर प्रदर्शित करना शुरू कर दे तो उस पार्टी के कार्यकर्ता भाग जाएंगे, पार्टी ऑफिस में ताला लग जाएगा और पार्टी अध्यक्ष जेल चला जाएगा। इससे यह सिद्ध होता है कि किसी भी पार्टी को भ्रष्टाचार करने के बाद भी जिंदा रहने के लिए विदेशी प्रायोजित भ्रष्ट मीडिया की आवश्यकता है। अगर किसी पार्टी के अध्यक्ष ने EVM और काले कांच वाले VVPAT जिसका चोरी का प्रोग्राम विदेश से लिखकर आया है, इसका सच्चा विरोध किया तो विदेशी प्रायोजित भ्रष्ट मीडिया उस पार्टी को ही खत्म कर देगी क्योंकि इन सारी पार्टियों के भ्रष्टाचार तो जग जाहिर है। इस प्रकार EVM और काले कांच वाले VVPAT से चुनाव हारना, पार्टी बंद हो जाने और जेल जाने से तो सस्ता सौदा है।

2. अगर EVM और काले कांच वाले VVPAT के विरोध का नाटक करके भविष्य में विदेशियों के साथ मिलकर चुनाव जीत जाते हैं तो भ्रष्टाचार करके भी चुनाव जीतेते रहेंगे और सत्ता बनी रहेगी, जैसे कि आज बीजेपी कर रही है।

3. अगर कोई अपने ही पार्टी में अपने विरोध में जा रहा हो तो EVM और काले कांच वाले VVPAT से पार्टी के अंदर अपने ही विरोधी को हराया जा सकता है। इससे पार्टी में कोई पार्टी अध्यक्ष के विरोध में नहीं जाएगा और पार्टी में खानदान शाही चलती रहेगी।

पार्टी अध्यक्षों, EVM और काले कांच वाले VVPAT का विरोध का नाटक करने वाले और इलेक्शन कमीशन द्वारा दिशा भूल करने वाले मुद्दे और उस पर हमारा स्पष्टीकरण ।

1. क्या केवल EVM का विरोध काफी है?
आज EVM का संरक्षण काले कांच वाले VVPAT द्वारा हो रहा है तो जो EVM विरोधी काले कांच वाले VVPAT में कागज की स्लिप किस प्रकार चोरी हो सकती है यह नहीं बताता वो या तो चोरी समझता नहीं है और या तो जानबूझकर छुपा रहा है, चाहे वह विरोधी पक्ष हो या सत्ता पक्ष या कोई वकील।

2. अगर काले कांच वाले VVPAT की सारी पर्चियां गिन ली जाए तो क्या चोरी पकड़ी जाएगी ?
ईवीएम हटाओ सेना के श्री राहुल चिमनभाई मेहता द्वारा बनाई EVM यह स्पष्ट रूप से दिखाती है कि EVM के इलेक्ट्रॉनिक वोट के साथ काले कांच वाले VVPAT के कागज के वोट भी एक साथ बदले जाएंगे यानी चोरी होंगे। तो सारी पर्चियां गिनने के बाद भी चोरी पकड़ में नहीं आएगी और चोरी हो भी जाएगी। यह इन पार्टी अध्यक्षों को अच्छे से पता है फिर भी यह इस मांग को दोहरा रहे हैं, खासकर राहुल गांधी।

3. क्या ईवीएम हैक हो सकती है ?
ईवीएम हटाओ सेना ईवीएम हैकिंग द्वारा चोरी हो रही है इस बात को कोई बल नहीं देती। पर नीदरलैंड से आई EVM की चिप में चोरी का प्रोग्राम डालकर इलेक्ट्रॉनिक और काले कांच वाले VVPAT में 100% मैचिंग के साथ किस प्रकार चोरी हो सकती है यह करके दिखा रही है। यानी चोरी का प्रोग्राम अंदर डाला है ऐसा हमारा मानना है पर चोरी हैकिंग से हो रही है इस बात को हम बल नहीं देते।

4. वोटिंग लिस्ट में 74 लाख लोगों के नाम बदली होना, वोटिंग के बावजूद 100% EVM की बैटरी का मिलना, अंत के समय में तेजी से वोटिंग होना, 20 लाख EVM गायब होना, चुनाव से संबंधित डॉक्यूमेंट और वीडियो ग्राफी का ना देना यह सारे इतने कमजोर और शायद झूठे मुद्दों को उठाकर EVM के विरोध का नाटक करने वाले पार्टी अध्यक्षों, चुनाव की प्रक्रिया चुनाव आयोग ने सही से लागू नहीं की। यह झूठे EVM विरोधी वकील और कदाचित बीजेपी के गठजोड़ से EVM विरोध को कमजोर करने की और दिशा भूल करने का एक षड्यंत्र है। क्योंकि इन सारे मुद्दों से कहीं पर भी ईवीएम में और काले कांच वाले VVPAT में वोटों की चोरी हो सकती है यह बात सिद्ध नहीं होती।

5. ईवीएम हटाओ सेना अपना डेमो लेकर इलेक्शन कमीशन के पास क्यों नहीं जाती ?
अगर ईवीएम मशीन में जो चोरी का प्रोग्राम है वह चुनाव आयोग की ईवीएम मशीन में भी है तो चुनाव आयोग के चुनिंदा लोग यह चोरी खुद करवा रहे हैं। तो उनके पास जाकर क्या फायदा ? वैसे 12 फरवरी 2024 को ईवीएम हटाओ सेना (राइट टू रिकॉल पार्टी) ने पत्र द्वारा इलेक्शन कमीशन से उनकी ईवीएम मशीन मांगी है जिसमें हम अगर वह पासवर्ड इत्यादि के साथ हमें EVM मशीन देते हैं तो हम उसमें अपना प्रोग्राम डालकर चोरी करके दिखा देंगे।

6. ईवीएम हटाओ सेना अपने डेमो को लेकर कोर्ट में क्यों नहीं जाती ?
2024 लोकसभा के समय ईवीएम हटाओ सेना सेना देशभर में 15 पत्रकार परिषद ली थी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद कई प्रमुख न्यूज़ चैनलों,यूट्यूब चैनल और समाचार पत्रों में ईवीएम हटाओ सेवा के EVM और काले कांच वाले VVPAT से किस तरह चोरी संभव है इसे दिखाया गया तो कोई हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज इसका स्वयं संज्ञान क्यों नहीं लेता। हमें सरकारी जज पर विश्वास नहीं ना ही सरकारी जज के पास जाने के लिए पैसे हैं। हम आंदोलन पर विश्वास करते हैं ।

7. हम इलेक्शन कमीशन द्वारा बुलाए जाने पर वहां पर जाकर चोरी क्यों नहीं करके दिखाते हैं ?
चुनाव आयोग वहां पर केवल ईवीएम मशीन को हैक करके देने की बात करता है जबकि हम कहते हैं कि ईवीएम मशीन के माइक्रोकंट्रोलर में चोरी का प्रोग्राम रखा हुआ है जिससे चोरी हो रही है और ईवीएम मशीन में हैकिंग हो रही है इस बात पर हम कोई बल नहीं देते। पर इलेक्शन कमीशन का कहना है कि इसमें चोरी केवल हैकिंग से करके दिखाइए ।

8. क्या VVPAT की पर्ची अगर हम अपने हाथ से किसी डिब्बे में डालें तो चोरी पकड़ी जाएगी ?
VVPAT में उपयोग आने वाला थर्मल पेपर बाजार में सहज मिलता है और कई व्यवसाययों में बिल देने के काम आता है। तो ऐसे में यह बिल्कुल संभव है कि जो चुनाव हार रहा है उस पार्टी के कार्यकर्ता अपने साथ VVPAT के थर्मल पेपर की कई पर्चियां एक ही पर्ची में छुपा कर लेकर आएंगे और VVPAT के बक्से में डाल देंगे। जिससे वोटो की संख्या में उलट फेर होकर चुनाव रद्द हो जाएगा। साल 2010 ? में इलेक्शन कमीशन ने इस उपाय को पहले ही टाल दिया है जिसे सारी पार्टियों ने माना भी था। फिर पता नहीं क्यों राहुल गांधी इस उपाय को दोहरा रहे हैं और कार्यकर्ताओं का समय खराब कर रहे हैं।

9. क्या सत्ता पक्ष यानी कि नरेंद्र मोदी केवल EVM और काले कांच वाले VVPAT से चोरी कर सकते हैं ?

भारत में उपयोग में आने वाली EVM और काले कांच वाले VVPAT के माइक्रोकंट्रोलर और उसके प्रोग्राम को एक डच कंपनी NXP जो की नीदरलैंड में है, बनाती है। पर कोई भी माइक्रोचिप बनाने वाली कंपनी बिना अमेरिका के सिलिकॉन वैली के सपोर्ट के बगैर ज्यादा दिन तक नहीं चल सकती तो इसके पीछे अमेरिका का हाथ है इसका पूर्ण संदेह बनता है। (अमेरिका के सिलिकॉन वैली में माइक्रोचिप की डिजाइनिंग, उच्च शुद्धता के साथ सेमीकंडक्टर मैटेरियल, केमिकल, माइक्रोचिप बनाने वाले अत्यधिक उपकरण, इत्यादि हैं जिस कारण से वह NXP जैसी कंपनी को अपने हिसाब से काम करने के लिए मजबूर कर सकते हैं।) इसके अंदर का प्रोग्राम उनका डाला हुआ है जो वहां के इंजीनियर ही खोल सकेंगे। उनके पास ही चोरी के प्रोग्राम का पासवर्ड और उपयुक्त अत्यधिक संसाधन है। इसलिए केवल भारत के राजनीतिक चाहे वे विरोधी पक्ष हो या सत्ता पक्ष यह चोरी अकेले नहीं कर सकता। इसमें विदेशी, भारत की पार्टियां खासकर सत्ताधारी पार्टी इस समय की बीजेपी और इलेक्शन कमीशन के केवल खास लोग सम्मिलित होने चाहिए।

10. बीजेपी सारे चुनाव क्यों नहीं जीत लेती ?
विदेशी जो यह पूरा षड्यंत्र प्रमुख पार्टी अध्यक्षों के साथ में मिलकर चला रहे हैं उनके लिए EVM और काले कांच वाला VVPAT, ज्यादा कीमती है तुलना में की कोई एक पार्टी बीजेपी गट या कांग्रेस गट चुनाव जीते या हारे। वे सत्ता को बाट कर EVM को जिंदा रखना चाहते हैं। उन्होंने सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की कहानी बहुत बढ़िया से पढ़ा और समझा है और उसे मुर्गी को एक बार में नहीं काटना चाहते।

11. चुनाव हो जाने के बाद भी 100% बैटरी का मिलना जबकि उपयोग के बाद बैटरी कम होती है ?

अगर EVM का विरोध का नाटक करने वाले यह कहना चाहते हैं कि ईवीएम की मशीन बदली गई है तो वे जानबूझकर ईवीएम मशीन में हो रही वोटो की चोरी से ध्यान हटाना चाहते हैं। "एक चुनाव" में कुछ EVM बदली हुई इस बात का आरोप लगाकर हर चुनाव में हर EVM में वोट चोरी हो सकता है इस बात को दबाना चाहते हैं। अगर यह बेईमानी हुई है तो यह इलेक्शन कमिशन की चोरी है ना कि ईवीएम मशीन की चोरी है।

12. 6 महीने के अंतराल में वोटिंग लिस्ट में बहुत ज्यादा लोगों के नाम जोड़े जाने का आरोप ?

लाखों वोट 6 महीने के अंतराल में जोड़े गए तो वह वोट किसी एक पार्टी को ही मिलेंगे यह सुनिश्चित कैसे किया जा सकता है, जब तक की EVM में वोटो की चोरी संभव न हो, और यह चोरी हमारे डेमो से स्पष्ट होने के बावजूद विपक्ष इस पर शांत क्यों है ? अगर देखे तो फिर से यह आरोप ऐसा है जो केवल "एक चुनाव" से संबंधित है जबकि ईवीएम मशीन में प्रोग्राम डालकर हर चुनाव में चोरी किस प्रकार संभव है, यह हम बता रहे हैं। और अगर इसमें कोई धांधली हुई भी है तो उसके लिए इलेक्शन कमीशन जिम्मेदार है ना की EVM मशीन की चोरी तो इस प्रकार EVM मशीन की चोरी छुपाने का प्रयत्न है।

13. चुनाव के दिन के आखिरी के घंटे में तेजी से वोटिंग हुई ?

अंत समय में तेजी से वोटिंग होकर सारे वोट सत्ता पक्ष यानी बीजेपी को गए, यह EVM में चोरी के प्रोग्राम के बगैर कैसे संभव है ? इस चोरी के बारे में विपक्ष डेमो दिखाकर सबको क्यों नहीं बताता ? और फिर ये 17C फॉर्म और फॉर्म नंबर 20 से कैसे मैच होंगे, यह कोई बताएं ?

14. इलेक्शन कमिशन में प्रमुख पदों पर मोदी के या सत्ता पक्ष के लोग बैठे हुए हैं ?

यह बेवकूफना आप है, हर पार्टी अपने ही लोगों को प्रमुख पद पर बैठी है। क्या कांग्रेस के लोग सत्ता में रहकर संघ के लोगों को प्रमुख पद पर बैठाते थे ? अगर विपक्ष यह चाहता है कि इलेक्शन कमीशन नागरिकों के लिए ईमानदारी से कम करें तो इलेक्शन कमिश्नर पर राइट टू रिकॉर्ड यानी वोट वापसी आनी चाहिए (यानी नागरिक सीधे जब चाहे इलेक्शन कमिश्नर की कुर्सी सरकार से जनमत करवा के सीधे बदली करवा ले, ऐसे में नागरिक से डर कर इलेक्शन कमिश्नर नागरिकों के लिए काम करेगा सत्ता पक्ष या विपक्ष के लिए नहीं)

15. इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार का बदली होना या कोई भी कमिश्नर बदली होना, जीत है?

विपक्ष ने सारे आप ही इसी प्रकार लगाए हुए हैं कि वह इलेक्शन कमीशन पर लग रहे हैं ना की काले कांच वाले EVM और VVPAT पर जिससे चोरी हो रही है। यह एक तरीका है कि ईवीएम की चोरी को इलेक्शन कमिशन की चोरी से बदली करके इलेक्शन कमिश्नर को बदली करवा दो, जिससे नागरिक और अपने विधायक प्रत्याशी खुश हो जाएंगे ।

16. EVM मैं चोरी बताने के लिए आपके डेमो को क्यों फैलाए ? आपका नाम क्यों ले ? आप क्रेडिट लेने के लिए कर रहे हैं ?

इस समय एवं में इलेक्ट्रॉनिक वोट की चोरी का संरक्षण VVPAT की पेपर स्लिप कर रही है, तो पेपर स्लिप की चोरी दिखाएं बगैर EVM की चोरी सिद्ध नहीं की जा सकती और यह चोरी केवल ईवीएम हटाओ सेना (राइट टू रिकॉल पार्टी) का डेमो ही दिखा रही है। जिसको क्रेडिट खुद चाहिए वह अपनी डेमो मशीन बनाएं और इसे फैलाएं और क्रेडिट ले जाए। हम उसे अपने तरफ से मशीन देने को भी तैयार है पर वो कार्यकर्ता पहले 500 लोगों को डेमो दिखाए।

17. ईवीएम मशीन रद्द कैसे होगी ?

ईवीएम मशीन रद्द होने के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि EVM के विरोध का नाटक करने वाले वकील, बड़ी पार्टियों के अध्यक्ष, NGOS खासकर जो विदेश से चल रहे हैं और विदेशी इन सब के उठाए हुए सारे फेक मुद्दों को दरकिनार करके EVM में किस प्रकार काले कांच वाले VVPAT और लाइट सेंसर के माध्यम से चोरी हो रही है यह अधिक से अधिक लोगों को दिखाया जाए। इन नेताओं के बिना जो भी आंदोलन खड़ा होगा वो इलेक्शन कमिशन की ईवीएम मशीन में प्रोग्राम डालकर चोरी को एकदम सटीकता से लोगों के सामने लेकर आएगा। आज तक एवं विरोध का कोई भी आंदोलन EVM की चोरी को सटीकता से नहीं दिखता या बताता है इसीलिए EVM रद्द नहीं होता।

आवश्यक है कि हर महीने की 5 तारीख को या महीने की किसी भी तारीख को एक ही दिन, एक ही समय ज्यादा से ज्यादा लोग अपने पास के पोस्ट बॉक्स पर जाकर इलेक्शन कमीशन और प्रधानमंत्री कार्यालय को EVM रद्द करके बैलट पेपर से चुनाव करने की मांग और खासकर चोरी का कारण VVPAT का काला कांच और EVM लाइट सेंसर के बारे में हर महीने ज्यादा से ज्यादा संख्या में लिखते रहे।

ईवीएम हटाओ सेना की मशीन का प्रदर्शन देखने के बाद के कुछ प्रश्न पर स्पष्टीकरण

1. मैंने अपने दिए हुए वोट की पर्ची ऊपर से आते हुए, 8 सेकंड के लिए ठहरते हुए और कट के गिरते हुए देखी जो की सभी वोटरों ने देखी होगी, तो फिर चोरी किस प्रकार हुई?
EVM और काले कांच वाले VVPAT में लाइट सेंसर भी लगा हुआ है जो मतदाता की उपस्थिति को भांप लेता है। मतदाता अगर मत की पर्ची देखे बगैर (जो कि अधिकतर मतदाता नहीं देखते हैं) चला जाता है तो EVM और काले कांच वाला VVPAT आपका वोट चुरा लेगा। इस तरह ज्यादा कर यह चोरी मतदाता की अनुपस्थिति में होती है जब वह बटन दबाकर पर्ची देखे बगैर या देखकर भी पर्ची कटने से पहले चला जाए। अधिक समझने के लिए कृपया ईवीएम हटाओ सेना के बने हुए EVM मशीन का प्रदर्शन देखें और समझे। उदाहरण, एक विधानसभा में मान लीजिए 3 लाख वोटर हैं जिसमें से 50% यानी डेढ़ लाख लोगों ने ही मतदान किया। जिस प्रत्याशी को चोरी से जिताना है वह मान लीजिए 10000 वोट से हार रहा है और उसे 12000 की बढ़त से जीतना है, तो इस डेढ़ लाख में से 22000 लोगों का ही वोट EVM और काले कांच वाले VVPAT एवं लाइट सेंसर के द्वारा चोरी किया जाएगा। बाकी सब को पर्ची ऊपर से आते हुए, ठहरते हुए और कट के गिरते हुए दिखाई देगी जिससे EVM की विश्वसनीयता बनी रहे और चोरी भी होती रहे।

11. मैंने अपने वोट की पर्ची आते हुए, ठहरते हुए देखी. तो क्या तो भी मेरा वोट चोरी हो सकता है ?
हां, EVM और काले कांच वाले VVPAT में लगा हुआ लाइट सेंसर मतदाता के जाने के बाद अगर पर्ची कटकर नहीं गिरी है तो भी आपकी छपी हुई परची को वापस पीछे की तरफ घुमा कर काट कर डाल सकता है और आपकी अनुपस्थिति में दूसरी पर्ची छाप कर आपका वोट चुरा लेगा।

12. क्या हारे हुए विधायक प्रत्याशी EVM के प्रोग्राम को चेक करके यह सिद्ध कर पाएंगे कि इसके अंदर चोरी का प्रोग्राम है ?(Burnt Memory checking)

EVM के माइक्रोचिप के अंदर के प्रोग्राम को चेक करने के लिए चुनाव आयोग के टेक्निशियन को एक प्रोग्राम दिया जाएगा। संभवत जो प्रोग्राम दिया जाएगा वह केवल यह बता पाएगा कि माइक्रोचिप के अंदर शुरू से डाला हुआ प्रोग्राम वही है या नहीं, पर वह चोरी का है या नहीं यह वह नहीं बता पाएगा। वहां पर मशीन खोलकर प्रोग्राम निकालने का ना तो संसाधन है, ना तो वह संभव है, और न इलेक्शन कमीशन के लोग करेंगे। इस तरह Burnt Memory Checking से कुछ नहीं मिलेगा।

ईवीएम हटाओ सेना की उपलब्धियां

1. हमारा मानना है कि श्री राहुल चिमनभाई मेहता द्वारा बनाई गई EVM और काले कांच वाले VVPAT मशीन का "सीमित प्रदर्शन" करके कांग्रेस ने लोकसभा 2024 में भाजपा के साथ में सौदा करके अपनी 50 सीटें बढ़ा ली और भाजपा 400 पार नहीं कर पाई।

2. हमने EVM के विरोध का नाटक करने वाले पार्टियों, संगठन,वकीलों और नियंत्रित विपक्ष के द्वारा उठाए कमजोर या झूठे मुद्दों को जनता के सामने लाने का प्रयास किया है। 100% बैटरी के साथ में EVM मिलना, EVM मशीन का लाखों की संख्या में चोरी हो जाना, ईवीएम हैकिंग, चुनाव आयोग द्वारा चुनावी प्रक्रिया को ठीक से लागू नहीं करना, चुनाव के आखिरी घंटे में तेजी से वोटिंग होना, वोटर लिस्ट में लाखों के वोटरों को जोड़ा जाना या निकाला जाना,100% VVPAT के पर्चियां की गिनती करना, मेरी पर्ची मेरे हाथ, EVM के माइक्रोचिप के प्रोग्राम को चेक करना यह सब भ्रामक और कमजोर मुद्दे हैं और असल में यह जनता की दिशा भूल करके EVM और VVPAT के काले कांच एवं लाइट सेंसर से किस प्रकार चोरी हो सकती है यह छुपाने का षड्यंत्र है, जनता को समझने का प्रयास किया है।

3. 100% पर्ची गिनने के बाद भी चोरी नहीं पकड़ी जाएगी इस राहुल गांधी द्वारा बनाए गए भ्रम को दूर करने की कोशिश किया जिसका परिणाम अब वे इसके बारे में बहुत कम बोलते हैं।

4." मेरी पर्ची मेरे हाथ" यानी अपने हाथ से अपनी पर्ची बैलट बॉक्स में डालने से चोरी बंद हो जाएगी इस भ्रम को भी दूर कर रहे हैं। इसे भी राहुल गांधी बहुत तेजी से फैलने की कोशिश कर रहे हैं।

5. कर्नाटक के गांव के सरपंच प्रत्याशियों ने तहसीलदारों के माध्यम से राज्य चुनाव आयोग को बैलेंस से चुनाव करवाने के लिए दबाव डाला है। राज्य चुनाव आयोग ने इस पर विचार करने की बात भी कही है। इसकी पूरी संभावना है कि ईवीएम हटाओ सेवा के डेमो को देखकर जो देश में एवं विरोधी लहर चली है यह उसका प्रभाव है

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