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ये चाहत नहीं उल्फत है तुमसे आदत नहीं इबादत है तुमसे कैसे कहें हम तुमसे जांनां हमें बेइंतहा मोहब्बत है तुमसे तुम मान भी सम्मान भी तुम ही मेरा अभिमान भी हर नफ़स में बसता तू मेरे है बसता तुझमें जान भी... तु पाक का प्रतीक है इल्लत मुझमें कतिक है तू है मेरा और मुझ में भी मुझमें तू शरीक है...
एक सपना है मेरा, मेरे सफर में तुम साथ रहो हाँ, हमसफर हो तुम हर सफर मे साथ रहो - Rover prashant
जो मिल गया आसानी से तो क्या ही कदर करोगे l अगर खो गया वो भीड़ में, तो फिर. तुम ढूंढते ही फिरोगे || - Rover prashant
अर्धांगिनी, प्रेम, प्रतीक्षा हो तुम, ईश्वर से मांगी हुई इच्छा हो तुम | - Rover prashant
मेरी प्रथम प्राथमिकता तुम और तुम्हारा पता नहीं | सारा कुसूर हमारा था पर तुम्हारा कोई खता नहीं || - Rover prashant
आखिर क्या है कर्म ? यह कुछ अलग नहीं बस आपका ही प्रतिबिंब है| ये आपके किए का परिणाम है और यही कटु सत्य है और सत्य यही है कि आपका वर्तमान का नियत ही भविष्य की नियति तय करती है | हालांकि… कर्म सुनने में जितना सरल है यह उतना ही जटिल है या कहे तो जितना जटिल हम सोचते हैं उतना ही सरल है ||| - Rover prashant
समाज की बेड़ियों को पहन आसमां छूने वो चली अंगारों पर चलकर पैदल 'अर्श को पाने वो चली समाज की ऐसी दक़ियानूसी कोई बैठे करे जासूसी कभी ना खुद को परखे वो पर दिन भर करते कानाफुश़ी | कोई कहे के ब्याह करा दो कहता कोई घर बिठा दो क्यों देखेगी 'अर्श के सपने पहले ही तुम ख्वाब मिटा दो बेड़ियों को तोड़ के वो रूढ़िवादी छोड़ के वो हासिल 'अर्श को कर रही दक़ियानूसी मसल रही समाज बदलाव के खातिर भी बेटियां भी पढ़ रही बिटिया रानी रफ्ता - रफ्ता देखो आगे बढ़ रही |||
रफ्ता रफ्ता हर दर्द को, कागज पर मैं लिख रहा हूं | शिकस्त भरी इस जिंदगी में, मुस्कुराता दिख रहा हूं ||
तलब, तड़प, बेचैनी, शिकस्त, काश ये तु समझ पाए। ग़र ये तु समझ पाए, तो ये मलाल फिर क्यों आए... - Rover prashant
ग़र कदाचित ऐसा हो जाए तो फिर तुम क्या करोगी तुझे मुझसे मुझसा इश्क हो जाए तो फिर तुम क्या करोगी क्या करोगी ग़र मुझको भी तुझसा इश्क हो जाए फ़ज़ीलत पहला काम हो दूजा इश्क हो जाए | क्या लड़ोगी तुम भी मिलने को जैसे मैं तुझसे लड़ता हूं साथ रहने के लिए जो तुझसे मैं झगड़ता हूं उल्फत हाथों में लिए जो अंगारों पर चल रहा काश कभी समझ जाए जो मेरे मन में चल रहा ||
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