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आरज़ू-ए-दिल में एक शम्मा जला कर देखो, जिंदगी कितनी हसीन है, मुस्कुरा कर देखो। कदम-कदम पर मिलेंगी नई मंज़िलें तुम्हें, हौसलों के परों को जरा फैल कर देखो। गम की परछाइयां भी छू न पयेगी तुम्हें, उम्मिद का सूरज जरा चमका कर देखो। इश्क़ की गहराइयों में छुपा है एक जहाँ, दिल के दरिया में जरा उतार कर देखो। हर लम्हा एक नई कहानी है यहाँ, अपनी तरफ से कि दास्तां बना कर देखो। ये जिंदगी एक खुला मैदान है, राजेश अपनी ख्वाहिशों की पतंग उड़ कर देखो
ज़िन्दगी के सफर में, थोड़ा ठहर कर तो देखो, हर लम्हे की खूबसूरती को महसूस करके तो देखो। भीड़ में भी तन्हाई का एक सुकून मिलता है, अपने आप से कभी मुलाकात करके तो देखो। दुनिया की दौड़ में क्या खोया क्या पाया, अपने दिल से ज़रा ये सवाल करके तो देखो। ग़मों की शाम ढलेगी, खुशियों का सवेरा आएगा, बस एक नई सुबह का इंतज़ार करके तो देखो। लोग क्या कहेंगे, इस फ़िक्र को छोड़ दो, अपनी ख्वाहिशों की उड़ान भर कर तोे देखो। ये ज़िंदगी एक खुली किताब है, दोस्त, इसमें एक नई कहानी लिख कर तो देखो।
लगता है मुझे मोहब्बत हो गई है दिन भाग रहा है, रात छोटी पड़ रही है, वक्त का पता नहीं चल रहा नींद आँखों से कोसों दूर हो गई है लगता है मुझे मोहब्बत हो गई है कभी चाँद में तेरा चेहरा दिखता है आईनों में एक्स तेरा रहता है यह कैसा जादू है, जो मुझ पर हो गया है वह दिख नहीं रही कहां खो गई है लगता है मुझे मोहब्बत हो गई हर लम्हा बस तेरा इंतज़ार है मिलने को दिल बेकरार है, नज़रों को बस तेरा दीदार चाहिये तुझे ढूंढ रहा हूं तेरा प्यार चाहिए अब ये जिंदगी बेपरवाह सी हो गई लगता है मुझे मोहब्बत हो गई है तू साथ न हो, तो हर पल अधूरा लगता है तेरे बिन अब, जीना भी गवारा लगता है दुनिया के असुलो से टकरा सकता हूं मौत के दरवाजे पर मुस्कुरा सकता हूं तुझे पाने की जिद हो गई है लगता है मुझे मोहब्बत हो गई है इश्क के दरिया में डूब रहा हूँ पानी ही पानी है मगर सुख रहा हूं कोई जिंदा रहने का मकसद बता दे कोई अपना कह कर गले लगा दे जिंदा रहने की ख्वाहिश मर सी गई है लगता है मुझे मोहब्बत हो गई है। (राजेश कालिया)
हमेशा दूरियों से दिल का रिश्ता हो, ये ज़रूरी तो नहीं, पास रहकर भी अजनबी हो जाएं, ये ज़रूरी तो नहीं| तेरी यादों के सहारे ही तो कटती है ये रातें मेरी, हर रात तेरी बाहों में ही गुज़रे, ये ज़रूरी तो नहीं| कई ख्वाब अधूरे हैं, कई बातें अनकही सी हैं, हर बात लबों तक आए, ये ज़रूरी तो नहीं| कभी तो लौट आएगा वो, इसी आस में बैठे हैं, हमेशा ही इंतेज़ार में रहें, ये ज़रूरी तो नही| ये जुदाई का मौसम भी गुज़र जाएगा इक दिन, हर मौसम ही दर्द भरा हो, ये ज़रूरी तो नही|
उसकी आँखों का नशा होने लगा है, इश्क़ में जीने का मज़ा होने लगा है। चाँदनी रातें, ये महकती हुई हवा, मौसम कुछ ज़्यादा ही हसीं होने लगा है। पहले तो खुद में ही गुम रहते थे हम, अब किसी और पे दिल फ़िदा होने लगा है। उसकी हर बात, हर एक नाज़-ओ-अदा, मेरे हर दर्द की दवा होने लगा है। क्या कहें 'राजेश' आलम इस दिल का, वो अजनबी अब मेरा खुदा होने लगा है।
आ बैठ पास कुछ गुनगुनाते हैं, हाल-ए-दिल क्या है तुम्हें बताते हैं। कुछ तुम कहो कुछ हम कहें, बेचैनियों को ज़रा सुलाते हैं। तन्हाई का ये आलम अजीब है, आओ, एक-दूजे में खो जाते हैं। जो दर्द दबा है इन साँसों में, आँखों से आज छलकाते हैं। इश्क़ का ये रंगीन समां है, चलो, दुनिया को भुलाते हैं। राजेश कालिया
कोई तो बुझाओ विरह की आग को, मत बजाओ अब सावन के राग को। नफ़रत-सी हो गई है अब उजालों से, अंधेरा रहने दो, बुझा दो चिराग़ को। धो भी देता अगर दामन में होता, कैसे मिटाऊँ दिल पर लगे दाग़ को। उनके बग़ैर जीना दुस्वार हो गया, दवा फेंक दो, डसने दे नाग़ को। ज़ख़्म-ए-हिज्र कब तक सहूँ मैं अकेला, कर दो कभी तो ख़ुदा इस इंतक़ाम को।
अचानक तेरा मिलना फिर आँखों में डूब जाना, इस मोहब्बत को मैंने बड़े करीब से जाना! अधूरी साँसों को फिर से पूरा कर जाना, हर लम्हे को तेरे संग, एक कहानी बना जाना। बेचैन दिल को मेरे, फिर से करार दे जाना, गुमसुम रातों में भी, उम्मीद की किरण जगा जाना। तेरी मुस्कान को देख कर, सब कुछ भूल जाना, इस मोहब्बत को मैंने बड़े करीब से जाना!
वह यूं ही नहीं बेवफ़ा हुआ होगा अभी खुलने कई राज़ बाकी है मुझे इस रास्ते से न हटाओ अभी तो उसका इंतज़ार बाकी है मैं खुश हूं कि उनकी जीत हुई मुझे देखनी बस मेरी हार बाकी है वो लम्हे जो साथ गुज़ारे थे हमने दिल में उनके निशान बाकी है न मुझसे वो अब कोई बात करे पर आँखों में अब तक प्यार बाकी है
शाम तो होने दो, शराब तो पीने दो, इतना ना सताओ, मुझे चैन से जीने दो। वो यादें जो आँखों में बस कर रहीं हैं, कुछ देर को सीने में चुपचाप रहने दो। मक़सद नहीं हर बार ग़म से लड़ जाना, कभी-कभी टूट कर भी तो जीने दो। महफ़िल में हँसना कोई आसान नहीं, परदा न उठाओ, ये नक़ाब ही रहने दो। लबों पे शिकायत नहीं, फिर भी दर्द है, इस खामोशी को थोड़ा सा कहने दो। 'दिल' कह रहा है आज कुछ पुराना सुने, साज़ को छेड़ो ना, सुरों को बहने दो।
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