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Manish Borana

Manish Borana

@manishborana.210417


अध्याय : शब्दों में छिपा आत्मा का रहस्य ✧

“हर हर महादेव”, “राम राम”, “ॐ नमः शिवाय”, “सत्यम् शिवम् सुंदरम्”—
ये शब्द डायलॉग या जयकार नहीं हैं।
ये ध्वनि के रूप में वह द्वार हैं, जिनसे आत्मा अपने ही स्रोत को छू सकती है।

पर मनुष्य ने इन्हें रहस्य से काटकर परंपरा बना दिया।
अब ये शब्द सिर्फ़ नारों की तरह गूँजते हैं—भीड़ को गरमाते हैं,
लेकिन साधक को भीतर नहीं उतारते।

रहस्य के अर्थ

हर हर महादेव : हर आत्मा में वही महादेव। यह घोषणा है कि कोई छोटा-बड़ा देवता नहीं—हर प्राणी स्वयं शिव है।

राम राम : “रा” = प्रकाश, “म” = मौन। राम = प्रकाश और मौन का संगम।
“राम राम” = मेरे भीतर वही, तेरे भीतर वही। आत्मा का आत्मा को नमन।

ॐ नमः शिवाय : अपने ही मूल स्वरूप को प्रणाम।

सत्यम् शिवम् सुंदरम् : सत्य ही शिव है, और शिव ही सुंदर।

प्रयोग : “राम राम” का अनुभव

1. ध्यान में

बैठो शांत।

श्वास के साथ भीतर कहो: “रा…” (श्वास अंदर),
श्वास छोड़ते हुए: “…म।”

दूसरी बार वही दोहराओ: “रा… म।”

यह “राम राम” अब गाथा नहीं, बल्कि श्वास और मौन का संगम बन जाता है।
धीरे-धीरे यह अनुभव कराओ कि प्रकाश (रा) और मौन (म) एक ही बिंदु में मिल रहे हैं।

2. रोज़मर्रा में

जब किसी को अभिवादन में कहो “राम राम”—
तो मन में स्मरण करो: मैं तेरे भीतर की आत्मा को नमन कर रहा हूँ, जैसे अपनी आत्मा को करता हूँ।

यह अभ्यास धीरे-धीरे शब्द को आदत से उठाकर अनुभव में बदल देगा।

3. भीतर के संकेत

जब “राम राम” का उच्चारण भीतर पक्का हो जाता है,
तब यह तुम्हें याद दिलाता है कि मैं और तू अलग नहीं हैं।

तब शब्द नहीं, बल्कि उसकी तरंग ही ध्यान बन जाती है।

निष्कर्ष

शब्द सरल हैं, पर उनमें ब्रह्मांड का रहस्य भरा है।
“राम राम” या “हर हर महादेव”—ये भीड़ के नारे नहीं,
बल्कि आत्मा के दर्पण हैं।
जो इनका रहस्य अनुभव करता है,
वह बड़े शास्त्रों की किताबों का मोहताज नहीं रहता।

अध्याय : उद्घोषों में छिपा ब्रह्मांड ✧

धार्मिक परंपरा में जो शब्द हम रोज़ सुनते हैं—
“हर हर महादेव”, “राम राम”, “ॐ नमः शिवाय”, “सत्यम् शिवम् सुंदरम्”—
उन्हें आमतौर पर जयकार समझा गया।
पर उनका असली स्वरूप उद्घोष नहीं,
बल्कि आत्मा–परमात्मा का रहस्य है।

---

१. हर हर महादेव

अर्थ : हर आत्मा में वही महादेव। कोई एक देवता नहीं, बल्कि यह घोषणा कि हर जीव स्वयं शिव है।

गुण :

दुख, पाप, अज्ञान—सबका हरण।

मृत्यु और जन्म के चक्र से मुक्ति।

अहंकार का संहार और आत्मा का उदय।

प्रतीक :

भीड़ ने इसे युद्धनारा बना दिया,
जबकि यह था—हर प्राणी में देवत्व को पहचानने का उद्घोष।

अनुभव प्रयोग :

आँखें बंद करके किसी भी व्यक्ति को देखो और मन में कहो: “हर हर महादेव।”

भीतर से स्मरण करो—उसमें भी वही महादेव है।

धीरे-धीरे यह अभ्यास सबमें देवत्व देखने का ध्यान बन जाता है।

२. राम राम

अर्थ : “रा” = प्रकाश, अग्नि, विस्तार। “म” = मौन, बिंदु, लय।
राम = प्रकाश और मौन का संगम।
“राम राम” = मेरे भीतर वही, तेरे भीतर वही।

गुण :

आत्मा को आत्मा का नमन।

स्मरण कि मैं और तू अलग नहीं हैं।

प्रतीक :

गाथा और कथा ने इसे राजा राम तक सीमित कर दिया।

पर असली “राम” शब्द भीतर से सहज उठी ध्वनि है, जैसे बच्चा पहली बार “मां” कहता है।

अनुभव प्रयोग :

1. श्वास अंदर खींचते हुए मन में “रा”, बाहर छोड़ते हुए “म”।

2. दूसरी बार फिर “राम”—प्रकाश और मौन को मिलाना।

3. किसी को “राम राम” कहते समय भीतर स्मरण करना कि मैं तेरी आत्मा को नमन कर रहा हूँ।

३. ॐ नमः शिवाय

अर्थ : “ॐ” = अस्तित्व का मूल नाद।
“नमः” = झुकना, समर्पण।
“शिवाय” = शिवस्वरूप को।
यानी “मैं अस्तित्व के मूल शिवस्वरूप को नमन करता हूँ।”

गुण :

अहंकार का गलना।

आत्मा का अपने ही स्रोत के आगे समर्पण।

यह जप व्यक्ति को धीरे-धीरे भीतर के शिव में स्थिर करता है।

प्रतीक :

आज इसे यांत्रिक जप बना दिया गया, पर असली अर्थ है—
मैं स्वयं को अपने ही अनंत स्वरूप के हवाले कर रहा हूँ।

अनुभव प्रयोग :

बैठो, गहरी श्वास लो, और धीमे स्वर में “ॐ नमः शिवाय” बोलो।

हर बार अनुभव करो कि तुम अपने ही भीतर के अनंत को नमन कर रहे हो।

४. सत्यम् शिवम् सुंदरम्

अर्थ :

सत्यम् = सत्य, जो है वही।

शिवम् = कल्याणकारी, जो मुक्ति देता है।

सुंदरम् = सौंदर्य, जो आत्मा को भर देता है।
यानी सत्य ही शिव है, और शिव ही सुंदरता।

गुण :

यह उद्घोष जीवन के तीन मूल स्तंभ बताता है।

सत्य से शिवत्व, शिवत्व से सौंदर्य।

प्रतीक :

इसे महज़ मंदिर की दीवारों की सजावट बना दिया गया,
जबकि यह तीन शब्द जीवन का पूर्ण दर्शन हैं।

अनुभव प्रयोग :

जब कोई सुंदर दृश्य देखो, मन में स्मरण करो—
“यह सुंदरता सत्य और शिव से जन्मी है।”

जब कोई सत्य स्वीकारो, अनुभव करो—यही सुंदरता का मूल है।

निष्कर्ष

ये चार उद्घोष केवल जयकार नहीं।
ये साधारण शब्दों में छिपे ब्रह्मांड हैं।
“हर हर महादेव” से लेकर “राम राम” तक—
हर ध्वनि आत्मा को उसके ही मूल की याद दिलाती है।

पर दुर्भाग्य यह है कि धर्म ने इन्हें भीड़ की आदत बना दिया।
जयकार बाकी रही, पर रहस्य खो गया।
साधक का काम है इन्हें फिर से जीवित करना—
आवाज़ नहीं, अनुभव बनाना।

क्योंकि सच्चा शास्त्र किताबों में नहीं,
बल्कि हमारी रोज़मर्रा की ध्वनियों में छिपा है।

सत्य छुपा नहीं है,
सत्य रोज़ बोलने वाली ध्वनियों में ही बसा है।

#agyatagyan

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जीवन का संतुलन — विज्ञान, धर्म और आत्मा का संगम
📖 यह ग्रंथ किसी धर्म की पुनरावृत्ति नहीं, न ही विज्ञान का विरोध।
यह मनुष्य के भीतर से निकला हुआ सत्य है —
जहाँ विज्ञान की खोज, शास्त्र की दृष्टि, और अनुभव का मौन एक साथ मिलते हैं।https://atamagyam.blogspot.com

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जीवन का संतुलन — विज्ञान, धर्म और आत्मा का संगम
📖 यह ग्रंथ किसी धर्म की पुनरावृत्ति नहीं, न ही विज्ञान का विरोध।
यह मनुष्य के भीतर से निकला हुआ सत्य है —
जहाँ विज्ञान की खोज, शास्त्र की दृष्टि, और अनुभव का मौन एक साथ मिलते हैं।https://atamagyam.blogspot.com

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✧ जीवन का संतुलन — विज्ञान, धर्म और आत्मा का संगम ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

📖 यह ग्रंथ किसी धर्म की पुनरावृत्ति नहीं, न ही विज्ञान का विरोध।
यह मनुष्य के भीतर से निकला हुआ सत्य है —
जहाँ विज्ञान की खोज, शास्त्र की दृष्टि, और अनुभव का मौन एक साथ मिलते हैं।

🌱 अध्याय झलक:

1. पाना बनाम जीना

2. पुरुष और स्त्री — हृदय–बुद्धि का संतुलन

3. धर्म और विज्ञान की सीमा
... कुल 12 अध्याय।

✨ जीवन को पाने नहीं, जीने का आमंत्रण।

🔗 पूरा ग्रंथ (फ्री में पढ़ें):
https://atamagyam.blogspot.com

#आध्यात्मिक #IndianPhilosophy #spirituality #osho #AI #vedanta

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सूक्ष्मे सत्यं, स्थूले माया।”
(सूक्ष्म में सत्य है, स्थूल में केवल छाया।)
✍🏻 — 🙏🌸 Agyat Agyani

प्रस्तावना

मनुष्य ने शक्ति को हमेशा बाहरी रूप में देखा — धन, साधन, सेना, विज्ञान।
पर सृष्टि बार-बार दिखाती है कि असली शक्ति सूक्ष्म में छिपी है।
एक अदृश्य जीव दाँत और हड्डी को गलाता है, जिन्हें अग्नि तक नष्ट नहीं कर पाती।
नन्हा बीज विशाल वृक्ष बनता है।
सूक्ष्म श्वास ही जीवन का आधार है।
विज्ञान हमें प्रमाण देता है, शास्त्र गूढ़ संकेत देता है, तर्क दिशा देता है और श्लोक सत्य को सूत्र में बाँध देते हैं।
इन्हीं चार दृष्टियों से यहाँ २१ सूत्र रखे गए हैं
मनुष्य की प्रवृत्ति रही है कि वह शक्ति को हमेशा बाहरी रूपों में ढूँढता है।
उसे लगता है कि शक्ति वही है जो दिखाई दे — धन का अंबार, साधनों की अधिकता, हथियारों का शोर, या विज्ञान की बड़ी-बड़ी मशीनें।
परंतु सृष्टि का नियम इससे भिन्न है।

विज्ञान (scientific fact/observation)

शास्त्र (scriptural echo/quote style)

तर्क (logical reflection)

विस्तृत पढ़े 👉 https://atamagyam.blogspot.com

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✧ गीता-सूत्र श्लोक १ ✧

नाहं कर्ता न च भोक्ता, नाहं सत्यनिर्णायकः।
अस्तित्वमेव सर्वकर्ता, तस्मै समर्पये मनः॥

---

📖 अर्थ :
“न मैं कर्ता हूँ, न भोग करने वाला, और न ही सत्य का निर्णायक।
सर्वकर्ता तो केवल अस्तित्व है — उसी को मैं अपना मन अर्पित करता हूँ।”

गीता-सूत्र ✧

(कर्तापन का त्याग – अकर्तापन का धर्म)

1. मैं न सही हूँ, न ग़लत —
सत्य का निर्णय अस्तित्व करता है।

2. जो स्वयं को सही कहता है,
वह भविष्य के दुःख का बीज बोता है।

3. कर्ता बनने की आकांक्षा ही बंधन है।

4. अकर्तापन ही मुक्ति है।

5. जो भीतर से सहज आता है,
वही पालन करने योग्य धर्म है।

6. परिणाम मेरा नहीं,
परिणाम अस्तित्व का है।

7. मैं साधन नहीं, साक्षी हूँ।

8. मैं करने वाला नहीं,
अस्तित्व मेरे द्वारा करता है।

9. फल की चिंता करने वाला
पहले ही बंधन में गिर चुका है।

10. कर्म निष्काम है तो शुद्ध है।

11. स्वार्थ ही कर्म को कलुषित करता है।

12. अस्तित्व के प्रवाह को समर्पित हो जाना ही योग है।

13. कर्तापन अहंकार है,
अकर्तापन आत्मा है।

14. जो “मैं करता हूँ” कहता है,
वह दुःख का निर्माता है।

15. जो “अस्तित्व करता है” देखता है,
वह आनंद का साक्षी है।

16. कर्ता बने रहना मृत्यु का बोझ ढोना है।

17. अकर्तापन में ही जीवन का नृत्य है।

18. जो परिणाम को छोड़ दे,
वही वास्तव में कर्म करता है।

19. करना तुम्हारा है,
फल अस्तित्व का है।

20. यही कृष्ण का गीता-संदेश है —
कर्म करो, कर्ता मत बनो।

21. जब कर्तापन मिटता है,
तभी आत्मा प्रकट होती है।
अज्ञात अज्ञानी

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भाइयो, यह गर्व नहीं, यह शर्म है।
यह आत्मा का पतन है।

भाइयो और बहनो,

आज हम अपने आपको “सोने की चिड़िया की संतान” कहते हैं, “विश्वगुरु” कहते हैं, और यह दावा करते हैं कि हम दुनिया का सबसे उच्च आध्यात्मिक देश हैं। लेकिन ज़रा ठहरकर आईना देखिए — क्या सचमुच ऐसा है?

⚑ दृश्य देखिए —

गाँव-शहर में, गाँव के चौराहे पर, मंदिरों और आश्रमों में, लोग भूख से पीड़ित होकर भीड़ की तरह इकट्ठे हैं। उन्हें बस दो वक्त की रोटी चाहिए। और जब कोई ठग या नकली संत उन्हें यह रोटी भंडारे में परोस देता है, तो वही भूखे लोग उसे “भगवान” कहने लगते हैं।


क्या यही है सोने की चिड़िया की संतान का गर्व?

क्या यही है विश्वगुरु का प्रमाण?

⚑ भाईयो, यह सच्चाई एक करारा तमाचा है —

उन सब दावों के गाल पर जो कहते हैं कि हम आध्यात्मिक राष्ट्र हैं।

तमाचा है उन नेताओं और गुरुओं पर जो हमें विकसित और सम्पन्न बताते हैं।

तमाचा है उस पूरे समाज पर जो भूख को मिटाने के बजाय उसे धर्म और भक्ति का साधन बना देता है।

⚑ याद रखिए —

असली आध्यात्मिकता भूखे पेट पर भंडारे की रोटी डालना नहीं है।

असली आध्यात्मिकता है —

कि कोई भूखा सोने ही न पाए।

कि हर बच्चा शिक्षा और सम्मान पाए।

कि हर परिवार अपने श्रम और आत्मनिर्भरता से जिए।

और जब कोई गुरु सामने आए, तो वह पेट भरने नहीं, आत्मा जगाने का काम करे।

⚑ लेकिन आज क्या हो रहा है?

रामपाल जैसे ढोंगी, रोटी बाँटकर भीड़ इकट्ठी करते हैं और भीड़ उन्हें भगवान कह देती है।

भीड़ सोचती है कि दो वक्त का भोजन ही भक्ति है।

और इस भीड़ को देखकर हम फिर भी गर्व से कहते हैं — “हम विश्वगुरु हैं।”

भाइयो, यह गर्व नहीं, यह शर्म है।

यह आत्मा का पतन है।

यह उस “सोने की चिड़िया” की असली तस्वीर है —

जहाँ सोना नहीं बचा, केवल भूखी चिड़िया फड़फड़ा रही है।

⚑ इसलिए मैं कहता हूँ —

जिस दिन लोग भंडारे की थाली छोड़कर अपने श्रम और आत्मज्ञान से जीना सीखेंगे,

जिस दिन लोग किसी ढोंगी को भगवान कहने के बजाय अपने भीतर के भगवान को पहचानेंगे,

उसी दिन हमें अधिकार होगा “विश्वगुरु” कहने का।

तब तक, यह हर मुफ्त की थाली और हर ढोंगी संत —

हमारे दावों के गाल पर एक करारा तमाचा हैं।

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲

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मेरे Mntrrubhati 🆔 (Longn) में पिछले कई दिनों से OTP नहीं आ रहा है।
इस कारण मैं अपनी ID खोलने में असमर्थ हूँ।

मैंने इस समस्या की जानकारी मेल और व्हाट्सएप दोनों माध्यमों से भेज दी है।
समाधान मिलने तक मैं अन्य 🆔 के माध्यम से पोस्ट / सूचना साझा करूंगा।

आप सभी सहयोग बनाए रखें। 🙏

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जीवनोंपनिषद

✧ भूत, भविष्य और धर्म ✧

✍🏻 — 🙏🌸 अज्ञात अज्ञानी

भूत की ज़रूरत (विस्तार)

भूत का महत्व तब है जब हमें किसी समस्या की जड़ खोजना हो।
बीमारी की दवा तब ही चुनी जाती है जब डॉक्टर उसके कारण (भूत) को समझे।
किसी दुर्घटना का कारण जानने के लिए भी पीछे जाना पड़ता है।
समाज में भ्रष्टाचार क्यों है, हिंसा क्यों है, या संस्कृति क्यों बिगड़ी —
इन प्रश्नों के उत्तर भूत में ही मिलते हैं।

👉 भूत इसलिए उपयोगी है कि वह कारण बताता है।
लेकिन भूत पर अटक जाना, बार-बार वही कहानियाँ दोहराना —
यह समाधान नहीं, बल्कि रुकावट है।

श्लोक १

भूतं कारणमित्युक्तं, रोगदुःखविनाशनम्।
अन्वेष्टव्यं प्रयोजनं, न तु तत्र निवेशनम्।।

व्याख्या:
भूत कारण को बताता है,
दुःख और रोग का निदान वहीं से समझ आता है।
पर भूत को केवल खोजो,
उसमें बसो मत।

भविष्य की ज़रूरत

भविष्य दिशा देता है।
समाज को सुधारने के लिए कानून चाहिए, शिक्षा चाहिए, योजनाएँ चाहिए।
ये सब भविष्य की ओर दृष्टि रखकर ही बनते हैं।
किसान भी बोआई करते समय भविष्य की फसल देखता है।
माता-पिता बच्चों को पढ़ाते हैं क्योंकि वे उनके भविष्य की कल्पना करते हैं।

👉 भविष्य इसलिए आवश्यक है कि वह दिशा और आशा देता है।
लेकिन भविष्य पर ही टिका रहना,
अभी को भूल जाना,
सिर्फ सपनों में खो जाना —
यह भ्रम है।

श्लोक २

भविष्यं मार्गदर्श्यर्थं, नियमशिक्षापरायणम्।
दृष्टव्यं केवलं तत्र, न तु स्वप्नविलासनम्।।

व्याख्या:
भविष्य मार्ग दिखाने के लिए है,
शिक्षा और व्यवस्था का आधार है।
लेकिन भविष्य में खोकर जीना
सिर्फ स्वप्न का खेल है।

धर्म और आध्यात्म में भूत–भविष्य

जब हम धर्म और आध्यात्म की बात करते हैं,
तो वहाँ भूत और भविष्य की कोई आवश्यकता नहीं।
क्योंकि धर्म सत्य है,
और सत्य केवल इस क्षण में उपलब्ध है।

👉 जो गुरु केवल पुरानी कहानियाँ सुनाकर भूत का महिमामंडन करते हैं,
या भविष्य के स्वर्ग और मुक्ति के सपने बेचते हैं,
वे धर्म नहीं, बल्कि पाखंड करते हैं।

श्लोक ३

न भूतं धर्ममार्गे, न चापि स्वप्नभविष्यकम्।
वर्तमानं तु धर्मः स्यात्, साक्षात् सत्यं सनातनम्।।

व्याख्या:
धर्म में न भूत का कोई महत्व है,
न भविष्य का कोई स्थान है।
धर्म केवल वर्तमान है,
यही सनातन सत्य है।

अनुभव और भूत

हाँ, हमारे अनुभव भूत में दर्ज रहते हैं।
हम पीछे देखकर सीख सकते हैं।
लेकिन अनुभव को पकड़कर बैठ जाना,
या उनका अंध-पूजन करना —
यह अज्ञान है।

👉 अनुभव का उपयोग है केवल सीखने के लिए,
ना कि पूजा करने के लिए।

श्लोक ४

अनुभवो भूतनिष्ठः, शिक्षार्थं परिगृह्यते।
पूज्यं न तु संसक्त्यै, ज्ञानं तत्र विवेकतः।।

व्याख्या:
अनुभव भूत में हैं,
पर उनका उपयोग केवल शिक्षा के लिए है।
उन्हें पूजना या उनमें उलझना अज्ञान है।

पाखंड का खेल

आज अधिकांश धर्मगुरु यही करते हैं।
वे भूत की कहानियाँ पीटते हैं,
महानता का भ्रम रचते हैं,
और भविष्य के सपने बेचते हैं।
स्वर्ग, मोक्ष, चमत्कार —
सब भविष्य की बिक्री है।
यही सबसे बड़ा पाखंड है,
जो वर्तमान को अपमानित करता है।

श्लोक ५

भूतं पीट्य महात्म्यं, भविष्यं स्वप्नविक्रयः।
धर्मो नायं पाखण्डः स्यात्, वर्तमानं हि कीर्त्यते।।

व्याख्या:
भूत को पीटना और भविष्य के स्वप्न बेचना धर्म नहीं।
यह पाखंड है।
धर्म केवल वर्तमान है।

निष्कर्ष

भूत और भविष्य संसार के लिए उपयोगी हैं —
भूत कारण बताता है,
भविष्य दिशा देता है।
लेकिन धर्म और आध्यात्म केवल वर्तमान का नाम है।
वर्तमान ही ईश्वर है,
वर्तमान ही सत्य है।

श्लोक ६

भूतं कारणमित्याहुः, भविष्यं च अपेक्षते।
वर्तमानं तु धर्मः स्यात्, सत्यं नित्यमिह स्मृतम्।।

व्याख्या:
भूत कारण के लिए है,
भविष्य अपेक्षा के लिए।
लेकिन धर्म केवल वर्तमान है,
और वही शाश्वत सत्य है।

सारांश

भूत कारण है।
भविष्य दिशा है।
पर धर्म केवल वर्तमान है।
जो इस क्षण में जीता है,
वही धर्म, ईश्वर और सत्य — तीनों को जान लेता है।

— 🙏🌸 अज्ञात अज्ञानी

#धर्म #आध्यात्मिक Philosophy ( philo- "loving" + sophia "knowledge" ) #vedanta #spiritualit

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