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"🇮🇳 मैं जवान हूँ 🇮🇳" रात ठंडी है, पर मेरा खून उबलता है, सीमा पर खड़ा हूँ, जब देश मेरा मचलता है। नींद से भारी ये आँखें नहीं झुकती कभी, क्योंकि माँ की दुआओं में मेरे लिए आग जलती है। जब घर में दीप जलते हैं, मैं अंधेरे में देखता हूँ, हर सिसकती हवा में, वतन की खुशबू सूंघता हूँ। गोली चलती है तो दिल नहीं डरता, क्योंकि “भारत माँ” कहने से पहले कोई शब्द नहीं निकलता। मैं जवान हूँ — मिट्टी की सौगंध खाई है, हर सांस में तिरंगे की महक समाई है। मेरी वर्दी पर धूल नहीं, इज़्ज़त का ताज है, मेरे कंधों पर देश की सांसों का बोझ है। जब सरहद पर बर्फ गिरती है, मैं हँसता हूँ, अपने हड्डियों से आग बनाकर रातें गुज़ारता हूँ। हर ठंडी हवा में माँ की याद आती है, पर देश की हिफ़ाज़त — मेरी इबादत बन जाती है। वो जो कहते हैं "जंग क्या देगी?" — उन्हें क्या पता, वतन के लिए मरना भी ज़िंदगी होती है! हम हँसते हैं दर्द में, क्योंकि वादा निभाना है, कसम ली है — इस मिट्टी को फिर गुलाम न बनाना है। जब तिरंगा लहराता है, आँखें भीग जाती हैं, सीने पर हाथ रख, रूह मुस्कुराती है। हर शहीद की कब्र पर जब फूल गिरते हैं, तो लगता है जैसे आसमान झुककर सलाम करता है। मैं जवान हूँ — मौत से आँख मिलाई है, हर गोली में अपने देश की परछाई है। ना तन की फिक्र, ना जान की कहानी, बस एक ही धड़कन — "भारत मेरी माँ, तू अमर रहे सदा!" --- 🔥 यह सिर्फ़ कविता नहीं, एक एहसास है... हर उस बेटे के नाम जो रातों की नींद बेचकर, हमारे सवेरा बनता है। लेखक - "आदित्य राज राय" ( कार्तिक )
📖"किताबें कुछ कहना चाहती हैं"📙 शाम की खामोशी में, अलमारी के कोने से आती है एक हल्की सी आवाज़, जैसे कोई पुराना दोस्त पुकार रहा हो — “अरे, बहुत दिन हुए... हमें खोला नहीं तुमने आज।” धूल की परतों में लिपटी, वो किताबें कुछ कहना चाहती हैं, काग़ज़ों के बीच छुपे अक्षर अब भी किसी दिल की धड़कन जानना चाहते हैं। एक किताब मुस्कुराती है — “याद है, जब बारिश की रात में तुमने मुझे पढ़ा था? हर शब्द में तुम्हारा सपना था, हर पन्ने में तुम्हारी आँखों की चमक बसती थी।” दूसरी किताब शिकायत करती है, “अब तो मोबाइल में कैद हो गए हो तुम, जहाँ कहानियाँ स्क्रॉल बनकर बह जाती हैं, पर महसूस कोई नहीं करता, बस देखते हैं — फिसलते हुए गुम।” इन किताबों में अब भी स्याही से भीगी भावनाएँ सोई हैं, कहीं प्रेम है, कहीं विद्रोह, कहीं किसी कवि की अधूरी रुलाई रोई है। कभी एक पन्ना फड़फड़ाता है हवा से, जैसे कह रहा हो — “हम आज भी ज़िंदा हैं, बस किसी दिल के इंतज़ार में हैं जो हमें छू ले।” किताबें सचमुच बोलती हैं — बस सुनने वाला कोई चाहिए, जो पन्ने पलटते वक्त दिल से समझे, उंगलियों से नहीं। और शायद... कभी जब तुम अकेले बैठोगे, तो कोई पुरानी किताब खुद खुल जाएगी, कहती हुई — “चलो, फिर से वही कहानी शुरू करते हैं, जहाँ तुमने आख़िरी बार छोड़ा था...”📖 लेखक - "आदित्य राज राय"
💔“दर्द”💔 कभी किसी शाम यूँ ही हवा ने चेहरा छुआ था मेरा, लगा था जैसे कोई याद फिर से ज़िंदा हो गई हो भीतर गहरा। खामोश कमरों में अब भी तेरी हँसी की गूंज बची है कहीं, पर इन दीवारों को अब सिर्फ़ सिसकियों की आदत पड़ी है वहीं। हर सुबह जब सूरज निकलता है, तो उजाला भी बोझिल लगता है, क्योंकि तेरे बिना हर रंग अब फीका और अधूरा लगता है। लोग कहते हैं “समय सब ठीक कर देता है,” पर ये झूठ है — समय बस दर्द को सिखा देता है कि चुप रहना भी एक कला है। कभी-कभी सोचता हूँ, काश तू लौट आती किसी बहाने, भले फिर से टूट जाता मैं, पर वो पल, वो साँसें... फिर जी लेता बहाने। अब तो दिल भी थक गया है, हर रात आँसुओं से बात करता है, और नींद? वो तो जैसे किसी पराए शहर में बसती है अब। दर्द, तू भी अजीब दोस्त है मेरा, कभी चुपके से गले लग जाता है, कभी आईने में चेहरा बनकर मुझी को देख हँस जाता है। --- लेखक - @karthikaditya
💞 प्रेम की ख़ामोशी 💞 कभी-कभी, प्यार चीखता नहीं... बस ख़ामोशी से बोल जाता है। तेरी आंखों की झील में जब मैं डूबता हूँ, तो लगता है, हर लहर में मेरा ही नाम लिख जाता है। तू पास होती है, तो हवा में भी एक सुकून उतर आता है, और जब दूर जाती है, तो लगता है जैसे सांसों ने भी इजाज़त मांग ली हो। तेरी हंसी — वो मासूम झंकार, जिसे सुनकर दिल कहता है, "यही तो वजह है ज़िंदा रहने की।" कभी सोचा था, प्यार कोई कविता होगा, पर अब समझ आया — प्यार तू है, और मैं उसका एक अधूरा शेर। तेरे बिना ये ज़िंदगी एक सूनी किताब है, और तू — वो आख़िरी पन्ना, जिसे मैं बार-बार पढ़ना चाहता हूँ, पर पलटना नहीं चाहता। तू कहती है, "क्या प्यार इतना मुश्किल है?" मैं मुस्कुरा देता हूँ — क्योंकि तू नहीं जानती, तेरे बिना जीना ही सबसे बड़ा इम्तिहान है। --- लेखक - "आदित्य राज राय"
कविता: “क्या है मोहब्बत?” क्या है मोहब्बत? एक खामोशी, जो दिल में बसी हो, एक आग, जो बुझने का नाम ही न ले, एक सवाल, जो हर जवाब से गहरा हो। क्या है मोहब्बत? वो पल, जब कोई दूर हो और लगे जैसे साँसें थम गई हों, जैसे धड़कनों का शोर ही रुक गया हो। क्या है मोहब्बत? वो चुपके से आती है, कभी आँखों में, कभी खामोशी में, कभी हँसी में, कभी यादों के जख्म में। क्या है मोहब्बत? एक पल का धोखा, या उम्र भर का इंतजार? एक नजर की कसक, या आखिरी अलविदा की पीड़ा? एक कहानी, जिसकी शुरुआत भी अजनबी थी, और अंत भी अनकहा रह गया। क्या है मोहब्बत? शायद यही… जिसे महसूस किया जा सके, लेकिन कभी समझा न जा सके।
कविता शीर्षक :🛡️ छावा 🛡️ वीर शिवबाला का तेज उजाला, मराठा शेर, धरा का लाला। वह सिंह था युद्धभूमि का, जिससे काँपा था काल भी साला। रक्त में बहती थी ज्वाला, धरती ने देखा वह आला। सत्य धर्म की रखवाली में, काट दी देह, न दी गद्दारी को जाला। छावा — नाम ही गर्जन है, हर शब्द में रणभेरी का वचन है। मातृभूमि के लिए जिसने सहा, वह संभाजी, मराठा रतन है। मौत आई, पर आँख न झुकी, शौर्य की ज्वाला कभी न रुकी। हिंदवी स्वराज का प्रहरी बना, इतिहास में अमर “छावा” लिखी। 🔥 जय संभाजी महाराज! 🔥
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