Quotes by Vijay Sharma Erry in Bitesapp read free

Vijay Sharma Erry

Vijay Sharma Erry Matrubharti Verified

@erryajnalvi
(499)

यह रही आपकी कविता "मैं कौन हूँ?", जिसमें आत्मा के अजन्मा, अमर और अजर स्वरूप को दर्शाया गया है —


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मैं कौन हूँ?

✍️ विजय शर्मा एरी

मैं कौन हूँ, ये रहस्य अनंत,
ना जिसका आरंभ, ना जिसका अंत।
ना जन्म मुझे, ना मरण का भय,
मैं अजर-अमर, मैं शाश्वत स्वयं।

बम, मिसाइल, तोपें सब हार गईं,
मेरी सत्ता के आगे बेकार गईं।
अग्नि जलाए तो भी मैं न जलूँ,
वायु उड़ाए तो भी मैं न ढलूँ।

ना पानी भिगो पाए मेरा अस्तित्व,
ना धरती में सीमित मेरा तत्त्व।
मैं वह ऊर्जा, जो अविनाशी है,
सत्य की ज्योति, जो निरंतर वासी है।

मैं ना देह, ना कोई आकार,
फिर भी मुझसे सारा संसार।
मैं वह राग, जो मौन में गूँजे,
मैं वह प्रकाश, जो तम में पूँजे।

समय के पहिये को मैं देखता हूँ,
हर युग, हर क्षण को मैं लेखता हूँ।
संसार बदले, देहें बदलें,
पर मैं न बदलूँ, मैं सदा अचलें।

मैं उपनिषदों की वाणी हूँ,
गीता की गूढ़ कहानी हूँ।
कृष्ण ने अर्जुन से जो कहा था,
वही मैं हूँ — "न हन्यते हन्यमाने शरीरे" का गहना था।

तो मत ढूँढो मुझको किसी रूप में,
मैं वास करूँ हर एक स्वरूप में।
सत्य, प्रेम और चेतना की धारा,
मैं आत्मा हूँ — न आदि, न किनारा।


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Who Am I
by Vijay Sharma Erry

I am not just the name they call,
Not just the face you see each day.
I am the whispers in my soul’s hall,
The dreams that never fade away.
I’m the spark in the darkest sky,
The answer to my own “Who am I?”

I am the footsteps that refused to stop,
On roads where storms were fierce and wild.
I’ve climbed from valleys to mountain tops,
Still holding the heart of a child.
Every scar and every tear I cry,
Shapes the truth of my “Who am I?”

I am the voice that speaks for the weak,
The hand that lifts the fallen near.
I search for wisdom the old ones seek,
And guard the hopes I hold so dear.
Not just to live, but to aim high,
Is the heartbeat of my “Who am I?”

I am the canvas of night and dawn,
Painted with colors joy and pain.
From every loss, a strength is born,
From every drought, I learn from rain.
I rise each time, I always try,
To earn the right to say “Who am I?”

I am the seed that breaks the stone,
The river carving its destined way.
I walk my path, though not alone,
For love still lights my every day.
The world may ask, the world may pry,
But only I can know “Who am I?”

And when my final breath I take,
May my story in the stars still glow.
That I was more than the life I make,
More than the things the world will know.
For I am a soul that dared to fly,
And that’s my answer to “Who am I?”

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Let's Climb the Stairway to the moon

#WritcoPoemPrompt63
Let's climb Poem: "Let’s Climb the Stairway to the Moon"
By Vijay Sharma Erry

Let’s climb the stairway to the moon,
Where silver beams sing a gentle tune,
Step by step through the starry light,
Leaving behind the restless night.

Hand.....

Check out complete Poem on Writco by Vijay Sharma Erry
https://writco.in/Poem/P79708092025104039

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कविता: ;इश्क़ के दो रंग
✍️ – विजय शर्मा एरी


पहला दौर – साठ के दशक का प्यार
वो चिट्ठियों में लिखा गया इश्क़ था,
हर अक्षर में बसी एक दस्तान थी।
बिना कहे सब कुछ कह जाना,
वो निगाहों की भी अपनी ज़ुबान थी।
साइकिल की सवारी, छत की मुलाक़ात,
इज़हार में भी एक पाकीज़गी की पहचान थी।


साधारण से तोहफ़े में भावनाएँ ढेरों,
गुलाब की पंखुड़ी में भी ख़ुशियाँ मिलती थीं।
वो चूड़ी की खनक, वो झील सी आँखें,
हर मुलाक़ात में दुआएं मिलती थीं।
माता-पिता की इज़्ज़त भी थी ज़रूरी,
इश्क़ में लाज, शर्म और मर्यादा खिलती थीं।


अब का दौर – 2025 का प्यार
अब तो प्यार मोबाइल की स्क्रीन में है,
कॉल, चैट, वीडियो में दिन-रात गुजरते हैं।
इमोजी बन गए हैं जज़्बातों के राही,
"Seen" पे भी अब लोग बिखरते हैं।
डेटिंग ऐप्स पे रिश्ते बनते-बिगड़ते,
कमी हो गई है उन नज़र की बातों की।


तेज़ी से बदलती है दिल की दुनिया,
पल में प्यार और पल में अलविदा।
फिल्टर लगे चेहरों में खो गया एहसास,
अब रिश्तों में ना वो गहराई ना सदा।
सच्चाई से ज़्यादा दिखावा है हावी,
और भरोसे की जगह शक है सजा।


प्यार तब इबादत था, अब तिजारत सा लगता है,
दिल की बजाय दिमाग से नापा जाता है।
साठ के इश्क़ में सुकून की बारिश होती थी,
अब तो कॉन्टेंट, स्टोरी और स्टेटस आता है।
एक वक़्त था जब प्यार ताजमहल बनवाता था,
अब रिश्ता सोशल मीडिया पे बनता और मिट जाता है।


फिर भी दिल में एक उम्मीद पलती है,
कि शायद कोई फिर से वैसा प्यार कर जाएगा।
जहाँ चुप्पी भी बातें करे, और इंतज़ार सच्चा हो,
जहाँ इश्क़ फिर इबादत बनकर लौट आएगा।

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यह रहे कुछ दोहे (दोहों की शृंखला) समकालीन सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं पर, हर दोहे में "एरी" (Erry) को प्रतीकात्मक रूप से जोड़ा गया है। ये दोहे कटाक्ष, व्यंग्य और जागरूकता का समावेश करते हैं।


1. गंदी राजनीति पर —
नेता बोले मीठ-सदा, भीतर करे सियासत भारी,
जनता सोचे मसीहा है, असल में लूटे एरी।


2. सामाजिक बुराइयों पर —
दहेज, भेद, जाति का, अब भी गरज रहा बाज़ार,
कितनी एरी सो गई, न्याय के खो गए तार।


3. शिक्षा का व्यापार —
गुरुकुल अब सौदा बने, ज्ञान बिके पैसों में भारी,
एरी सीटी बजाए ज्ञान, चुप बैठी लाचारी।*


4. स्वास्थ्य सेवाओं पर —
डॉक्टर अब व्यवसायी हैं, सेवा नहीं प्राथमिकता,
मरीज़ मरे एरी तले, दवा बन गई राजनीति।*


5. कानून का गंदा खेल —
कानून कहे सबके लिए, पर ताकतवर की सुनवारी,
एरी की कलम टूटी पड़ी, न्याय बना व्यापार भारी।*


6. भ्रष्टाचार पर —
ऊँचे महलों में सजे, रिश्वत के राजकुमार,
एरी जैसे ईमानदार, रहे फांसी पर हर बार।*


7. मीडिया की सच्चाई —
जिसकी थैली भारी हो, उसकी छपे ही तस्वीर,
सच की एरी खामोश पड़ी, बिकती है हर तहरीर।*


8. धर्म के नाम पर व्यापार —
मंदिर-मस्जिद में छुपा, अब स्वार्थ और दलाली,
एरी पूछे, कहां गया वो ईश्वर की सच्ची गाथा वाली?*


9. बेरोजगारी पर —
डिग्रियाँ तो हाथ में, पर रोज़गार कहाँ आए,
एरी रोज़ खड़ा सवाल लिए, चुपचाप सब सह जाए।*


10. महिला सुरक्षा पर —
कानून किताबों में रहे, सड़कें बनें रणभूमि,
एरी चीखे न्याय को, पर सुनवाई हो अधूरी।*


**यदि आपको ये दोहे सामयिक लगे हों,
तो कमेंट में आप भी अपने दोहे या विचार ज़रूर साझा करें —
एरी की आवाज़ तभी बुलंद होगी जब सब बोलेंगे!

📜✍️

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जीवन के मौसम
✍️ कवि विजय शर्मा एरी

जीवन भी मौसम सा रंग बदलता जाता है,
हर मोड़ पे एक नया अनुभव सिखाता है।
बचपन वसंत की तरह महकता और खिलता,
निर्दोष हँसी में हर ग़म को बहा ले जाता है।

जवानी की ऋतु है गर्मी सी तपती,
सपनों की आँधियों में हर राह उलझती।
कभी प्यार की ठंडी छाँव मिलती है राहों में,
तो कभी धोखों की लू हर उम्मीद को झुलसाती।

प्रौढ़ावस्था आती है शरद की शांति लेकर,
जीवन के फलसफे धीरे-धीरे समझ में आते।
मन थोड़ा थमता है, सोच गहरी होती है,
मगर भीतर कहीं छुपा सा बचपन फिर भी मुस्काता।

बुढ़ापा है जाड़े की ठंडी शामों जैसा,
सन्नाटे में डूबी हुई यादों की गठरी थामे।
शरीर थकता है, मन तन्हा हो जाता है,
पर अपनों की एक मुस्कान फिर से जीवन दे जाती है।

फिर एक दिन जीवन की ऋतुएँ थम जाती हैं,
मौसम की तरह हम भी खामोश हो जाते हैं।
मगर यादों की खुशबू हमेशा हवा में तैरती है,
क्योंकि जीवन के मौसम अमर गीत बन जाते हैं।

अगर किसी को मेरी कविता से सहमति न हो तो कृपया अपने विचार कमेंट करें। धन्यवाद।

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जिंदगी बेवफा

ज़िंदगी बेवफ़ा

ज़िंदगी, तुझसे मैंने बेहिसाब प्यार किया,
हर दर्द तेरे सीने में उतर के स्वीकार किया।
ये जानते हुए भी इक दिन तू साथ छोड़ देगी,
तेरी हर मुस्कान में अपना संसार बसा लिया।

तेरे वादों में कभी सावन की ठंडी बूँदें थीं,
कभी वीराने में तूने सपनों.....

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