पुरी के समुद्र से उठती नम हवा में शंखध्वनि घुली हुई थी। रथयात्रा का समय निकट था और श्रीजगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में अद्भुत ऊर्जा थी। इसी शहर में दूर गुजरात के वापि से आया एक युवक, रवि भानुशाली, चुपचाप मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा था। आँखों में थकान, मन में उलझन और दिल में एक ही सवाल—क्या उसकी ज़िंदगी कभी सही रास्ते पर आएगी?
रवि मेहनती था, पर किस्मत बार-बार परीक्षा ले रही थी। काम छूट गया था, पैसे कम थे और परिवार की ज़िम्मेदारियाँ भारी लग रही थीं। दोस्तों ने कहा था, “पुरी जाकर जगन्नाथ जी के दर्शन कर लो, मन को शांति मिलेगी।” रवि को शांति से ज़्यादा दिशा की ज़रूरत थी।
मंदिर के भीतर जब उसने महाप्रसाद लिया और भगवान जगन्नाथ की बड़ी, करुण आँखों को देखा, तो उसका मन भर आया। उसने मन ही मन कहा, “हे प्रभु, मैं कोई चमत्कार नहीं माँगता, बस सही रास्ता दिखा दीजिए।”
रात को वह समुद्र किनारे सो गया। लहरों की आवाज़ के बीच उसे एक सपना आया। उसने देखा कि रथयात्रा निकल रही है, और भीड़ के बीच भगवान जगन्नाथ स्वयं रथ से उतरकर उसके सामने खड़े हैं। वही मुस्कान, वही विशाल आँखें।
“रवि,” भगवान बोले, “तू अपने डर से बँधा हुआ है। मदद तब मिलती है, जब मन साफ़ और इरादा सच्चा हो।”
रवि घबरा गया, पर साहस कर बोला, “प्रभु, मैं मेहनत करता हूँ, फिर भी हर बार हार जाता हूँ।”
जगन्नाथ जी ने रथ के पहिए की ओर इशारा किया। “देख, रथ आगे बढ़ता है क्योंकि पहिए चलते रहते हैं। रुक जाएँ तो रथ भी रुक जाता है। तू भी चलते रह, दिशा मैं दिखाऊँगा।”
सुबह आँख खुली तो सूरज निकल चुका था। सपना इतना सजीव था कि रवि का मन हल्का हो गया। उसी दिन मंदिर में उसकी मुलाक़ात एक बुज़ुर्ग से हुई, जो स्थानीय कलाकारों के लिए काम करते थे। बातचीत में पता चला कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो कहानियाँ लिख सके और युवाओं के लिए नाटक तैयार कर सके।
रवि को अपनी लिखने की आदत याद आई। उसने कभी-कभी कहानियाँ लिखी थीं, पर कभी गंभीरता से नहीं सोचा था। बुज़ुर्ग ने कहा, “अगर मन से लिखते हो, तो जगन्नाथ जी रास्ता खोल देते हैं।”
रवि ने वहीं रुककर काम शुरू किया। उसने भगवान जगन्नाथ की लीलाओं पर एक छोटी कहानी लिखी, जिसे स्थानीय मंच पर पढ़ा गया। लोगों की आँखों में चमक थी। किसी ने कहा, “इस लड़के के शब्दों में सच्चाई है।”
धीरे-धीरे रवि को और मौके मिलने लगे। एक छोटे थिएटर समूह ने उसे स्क्रिप्ट लिखने को कहा। पैसों की तंगी थोड़ी कम हुई, पर उससे ज़्यादा उसके आत्मविश्वास में बदलाव आया। हर सुबह वह मंदिर जाता और भगवान जगन्नाथ को धन्यवाद देता।
एक दिन रथयात्रा के दौरान, भीड़ में भगदड़ जैसी स्थिति बन गई। रवि ने देखा कि एक बच्चा गिर पड़ा है। उसने बिना सोचे बच्चे को उठाया और सुरक्षित जगह पहुँचाया। तभी उसने महसूस किया कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा है। पलटकर देखा—वही बुज़ुर्ग मुस्कुरा रहे थे। बोले, “आज तुमने सेवा की, यही असली पूजा है।”
उस रात रवि को फिर सपना आया। भगवान जगन्नाथ बोले, “मदद मैंने की, पर हाथ तूने बढ़ाया। याद रख, मैं हर जगह हूँ—कभी सपने में, कभी लोगों के रूप में।”
कुछ दिनों बाद रवि अपने शहर लौट आया। अब उसके पास केवल नौकरी नहीं थी, बल्कि एक उद्देश्य था। उसने बच्चों के लिए कहानियाँ लिखना शुरू किया, मंदिरों और लोककथाओं पर आधारित। धीरे-धीरे उसकी पहचान बनने लगी। लोग उसे बुलाने लगे, सम्मान देने लगे।
एक शाम, जब वह अकेला बैठा था, उसने मन ही मन कहा, “प्रभु, आपने मेरी मदद की।”
समुद्र की लहरों जैसी शांति उसके भीतर उतर आई। उसे लगा जैसे कहीं से आवाज़ आई हो—“जब तू दूसरों की मदद करेगा, मैं हमेशा तेरे साथ रहूँगा।”
रवि मुस्कुरा उठा। उसे समझ आ गया था कि जगन्नाथ की मदद कोई एक दिन का चमत्कार नहीं, बल्कि हर उस कदम में है जो सच्चे मन से उठाया जाए।