hidden wealth in Hindi Motivational Stories by Vijay Erry books and stories PDF | गुप्त धन

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गुप्त धन

गुप्त धन
लेखक: विजय शर्मा एरी
शब्द संख्या: लगभग १५००
गाँव का नाम था चंदनपुर। पहाड़ों के नीचे बसी यह छोटी-सी बस्ती सालों से शांत थी, पर पिछले कुछ सालों में यहाँ कुछ अजीब हो रहा था। लोग बीमार पड़ रहे थे, फसलें सूख रही थीं, और नदी का पानी दिन-ब-दिन कम होता जा रहा था। बुजुर्ग कहते थे कि गाँव के ऊपर वाले जंगल में कोई प्राचीन खजाना छिपा है, जिसे कोई छू लेगा तो गाँव पर विपदा आ जाएगी। युवा हँसते थे। उनमें सबसे आगे था रवि।
रवि उम्र में पच्चीस साल का, कद में लंबा और सपनों में बहुत बड़ा। शहर जाने की तैयारी कर रहा था। उसकी माँ विधवा थीं, छोटी बहन राधा दसवीं में पढ़ती थी। घर में दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से आती थी।
एक शाम रवि माँ से बोला, “माँ, मैं शहर जा रहा हूँ। वहाँ नौकरी करूँगा, पैसा कमाऊँगा, तुम्हें और राधा को अच्छे दिन दिखाऊँगा।”
माँ चुप रहीं। फिर धीरे से बोलीं, “बेटा, यहाँ से ऊपर जंगल में एक गुफा है। लोग कहते हैं वहाँ सोना-चाँदी दबा है। बहुत से गए, कोई लौट कर नहीं आया। तू वहाँ मत जाना।”
रवि हँसा, “माँ, ये अंधविश्वास हैं। अगर सच में खजाना है तो मैं निकाल लाऊँगा। एक रात की बात है।”
दूसरे दिन सुबह-सुबह वह जंगल की ओर निकल पड़ा। उसके साथ गाँव का एक और लड़का था, मोहन। मोहन डरपोक था, पर रवि के साथ आने को तैयार हो गया।
दोनों ऊँचे-ऊँचे देवदार के पेड़ों के बीच से होते हुए आगे बढ़ते गए। सूरज की किरणें भी मुश्किल से ज़मीन तक पहुँच पाती थीं। हवा में एक अजीब-सी खामोशी थी। कई घंटे चलने के बाद उन्हें एक पुरानी गुफा दिखी। बाहर पत्थरों पर कुछ लिखा था, पर घिस गया था।
अंदर काला अंधेरा। रवि ने टॉर्च जलाई। दीवारें नम थीं, कहीं-कहीं पानी टपक रहा था। अचानक मोहन की चीख निकली, “रवि, ये क्या है!”
सामने एक बड़ा-सा पत्थर का दरवाजा था, जिस पर सोने की तरह चमक रही थी एक ताला-जैसा यंत्र। उसके ऊपर लिखा था:
“जो लालच लेकर आएगा, वह यहीं दफन हो जाएगा।
जो जीवन का गुप्त धन समझेगा, वह बाहर निकल जाएगा।”
रवि ने हँस कर कहा, “पुरानी कहानी। चल, इसे तोड़ते हैं।”
पर जितना जोर लगाओ, दरवाजा नहीं हिला। मोहन डर गया। वह बोला, “चल रवि, वापस चलें। मुझे अच्छा नहीं लग रहा।”
रवि नहीं माना। उसने अपना बैग खोला, उसमें से रस्सी, हथौड़ा, छेनी सब निकाला। घंटों मेहनत की। आखिर में ताला टूट गया। दरवाजा धीरे-धीरे खुला।
अंदर का नजारा देख कर दोनों के होश उड़ गए। सोने-चाँदी के सिक्कों के ढेर। हीरे-जवाहरात। पुराने बर्तन। सब कुछ चमक रहा था। रवि की आँखें चौंधिया गईं। उसने बैग खोला और जितना हो सके भरने लगा। मोहन डर के मारे काँप रहा था।
अचानक गुफा में ज़ोर की आवाज हुई। पत्थर का दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अंधेरा छा गया। टॉर्च की रोशनी भी कमजोर पड़ने लगी। हवा बंद हो गई।
मोहन रोने लगा, “हम मर जाएँगे रवि! ये लालच हमें ले डूबा।”
रवि भी अब डर गया था। उसने सोना-चाँदी छोड़ दिया और दीवारें टटोलने लगा। कहीं रास्ता नहीं। हवा खत्म हो रही थी। साँस लेना मुश्किल।
तभी उसे दीवार पर कुछ लिखा हुआ दिखा। टॉर्च की कमजोर रोशनी में उसने पढ़ा:
“यहाँ सोना-चाँदी नहीं, जीवन का गुप्त धन छिपा है।
जो उसे समझ लेगा, दरवाजा अपने आप खुल जाएगा।
प्रश्न यह है – तुम्हारे लिए सबसे कीमती चीज क्या है?”
रवि सोच में पड़ गया। उसने सोचा – सोना? पैसा? नहीं, अब लग रहा था ये सब व्यर्थ है।
मोहन बोला, “मुझे माँ की याद आ रही है… रवि, मैं मरना नहीं चाहता।”
रवि की आँखों में आँसू आ गए। उसे अपनी माँ का चेहरा याद आया। राधा की हँसी याद आई। वो रातें जब माँ भूखी सो जाती थीं ताकि बच्चों को ज्यादा रोटी मिले। वो सुबहें जब राधा किताबें लेकर स्कूल जाती और रवि सोचता – एक दिन इसे अच्छा स्कूल भेजूँगा।
रवि ने ज़ोर से चिल्लाया, “सबसे कीमती चीज मेरे लिए मेरी माँ और बहन का सुख है! उनका प्यार है! उनके साथ बिताया हुआ हर पल है! पैसा नहीं, ये जीवन का असली धन है!”
उसकी आवाज गूँजते ही गुफा में रोशनी हो गई। दरवाजा अपने आप खुल गया। बाहर ताजी हवा का झोंका आया। दोनों बाहर निकले। पीछे मुड़ कर देखा तो गुफा फिर से पत्थर बन चुकी थी, जैसे कुछ था ही नहीं।
दोनों गाँव लौटे। रवि ने सारा सोना-चाँदी वहीं छोड़ दिया था। गाँव वालों ने पूछा, “क्या मिला?”
रवि मुस्कुराया, “बहुत कुछ मिला। जो मैं ढूँढने गया था, वो नहीं मिला। जो मैंने कभी गँवाया नहीं था, वो वापस मिल गया।”
उस दिन के बाद रवि बदल गया। उसने शहर जाने का इरादा छोड़ दिया। गाँव में ही रह कर खेती शुरू की। नदी का पानी कम हो रहा था तो उसने युवाओं को इकट्ठा किया और पहाड़ से नहर बनाने का काम शुरू किया। मेहनत की। साल भर बाद नदी फिर से लबालब बहने लगी। फसलें लहलहाने लगीं।
लोग पूछते, “रवि, तुम्हें वो खजाना नहीं ललचाया?”
वह हँस कर कहता, “खजाना तो मुझे मिल गया। माँ की गोद में सुकून, बहन की पढ़ाई, गाँव वालों का प्यार, मेहनत की रोटी – यही जीवन का गुप्त धन है। बाकी सब तो माया है, जो आँखें बंद होते ही छूट जाती है।”
राधा ने कॉलेज में टॉप किया। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। शाम को जब रवि खेत से लौटता तो माँ दरवाजे पर खड़ी उसका इंतजार करतीं। राधा दौड़ कर गले लग जाती।
गाँव के बच्चे अब रवि के पास आते और पूछते, “रवि चाचा, सच में गुफा में खजाना है?”
रवि उन्हें गोद में उठा कर कहता, “हाँ बेटा, है। पर वो सोने-चाँदी का नहीं है। वो यहाँ है (वह अपने सीने पर हाथ रखता), और यहाँ है (वह उनके गाल सहलाता)। इसे कोई छीन नहीं सकता। इसे कोई लूट नहीं सकता।”
चंदनपुर फिर से हरा-भरा हो गया। लोग खुश रहने लगे। और उस जंगल की गुफा आज भी चुपचाप खड़ी है। शायद किसी और लालची को इंतजार कर रही है… या शायद किसी ऐसे इंसान को, जो जीवन का गुप्त धन समझना चाहता हो।
समाप्त