rain of dreams in Hindi Motivational Stories by Vijay Erry books and stories PDF | सपनों की बारिश

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सपनों की बारिश

सपनों की बारिश
लेखक: विजय शर्मा एरी
(अजय के लिए समर्पित)
भाग १: बादलों का आना
अजय की आँखें खुलीं तो कमरे में हल्की सी धूप थी। बाहर खिड़की से झाँकते हुए उसने देखा—आसमान पर काले बादल छा रहे थे। गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में घुल रही थी। मानसून की पहली बूँदें अभी-अभी गिरनी शुरू हुई थीं।
“आज बारिश होगी,” उसने बुदबुदाया।
अजय उन्नीस साल का था। गाँव का एक साधारण लड़का, जिसके सपने शहर की ऊँची इमारतों तक पहुँचते थे। पिता खेतों में दिन-रात मेहनत करते, माँ घर संभालतीं। स्कूल की दसवीं पास करने के बाद अजय ने कॉलेज का फॉर्म भरा था, पर फीस कहाँ से आए?
वह रोज सुबह उठकर खेतों की ओर जाता। आज भी गया। रास्ते में उसकी नजर पड़ी उस पुराने पीपल के पेड़ पर, जहाँ बचपन में वह झूला झूलता था। पेड़ के नीचे एक पुराना डायरी पड़ा था। उसने उठाया। कवर पर लिखा था—‘सपने लिखो, बारिश में उगेंगे।’
अजय ने हँसते हुए डायरी खोली। पहला पन्ना खाली था। उसने अपनी जेब से पेन निकाला और लिखा:
“मैं इंजीनियर बनूँगा। शहर में अपना घर होगा। माँ-पापा को आराम दूँगा।”
लिखते ही एक बूँद उसके कागज पर गिरी। स्याही फैल गई। अजय ने ऊपर देखा—बारिश तेज हो चली थी।
भाग २: गाँव की सच्चाई
बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। गाँव की मिट्टी कीचड़ बन गई। अजय का घर, जो कच्चा था, टपकने लगा। पिता ने छत पर प्लास्टिक चढ़ाई। माँ ने बर्तन इकट्ठे किए।
“बेटा, इस बार फसल अच्छी होगी,” पिता ने कहा।
अजय चुप रहा। उसे पता था—फसल अच्छी होने से भी कुछ नहीं होगा। कर्ज बढ़ता जा रहा था। गाँव का स्कूल बंद हो चुका था। निकटतम कॉलेज तीस किलोमीटर दूर था।
रात को अजय डायरी लेकर छत पर चढ़ गया। बारिश थम चुकी थी। तारे चमक रहे थे। उसने फिर लिखा:
“मुझे शहर जाना है। वहाँ नौकरी मिलेगी। सपने सच होंगे।”
अचानक हवा चली। डायरी का पन्ना पलटा। उस पर कुछ लिखा हुआ था—उसकी लिखावट नहीं।
“सपने बारिश में नहीं उगते, मेहनत में उगते हैं।”
अजय चौंक गया। उसने चारों तरफ देखा। कोई नहीं था।
भाग ३: शहर की पुकार
अगले दिन अजय ने फैसला किया। वह शहर जाएगा। पिता को बताया।
“पैसे कहाँ से आएँगे?” पिता ने पूछा।
“मैं मजदूरी करूँगा। पढ़ाई भी करूँगा,” अजय दृढ़ था।
माँ ने आँसू पोछे। उसने अपनी चाँदी की चूड़ियाँ निकालीं। “ये बेच देना।”
अजय ने मना किया, पर माँ ने जबरदस्ती थमा दीं।
ट्रेन में बैठते वक्त अजय ने डायरी जेब में रखी। शहर की भीड़ उसे डराती थी, पर सपने उसे खींच रहे थे।
मुंबई पहुँचा तो रात हो चुकी थी। स्टेशन पर ठंडी हवा चल रही थी। उसने एक चाय की दुकान पर काम माँगा। मालिक ने कहा, “सुबह आना।”
रात स्टेशन पर ही कटी।
भाग ४: संघर्ष की बारिश
शहर ने अजय को तोड़ा। सुबह चार बजे उठकर चाय बनानी, रात दस बजे दुकान बंद करनी। तनख्वाह—पाँच सौ रुपए महीना।
पढ़ाई? शाम को एक घंटा। पास के पार्क में। किताबें उधार।
एक दिन बारिश हुई। तेज। दुकान डूबने लगी। अजय ने बाल्टियाँ उठाईं। मालिक ने डाँटा, “कामचोर!”
अजय चुप रहा। रात को उसने डायरी खोली। लिखा:
“क्या यही है सपनों की बारिश?”
फिर वही अनजानी लिखावट:
“बारिश मिट्टी को तोड़ती है, ताकि बीज उग सके।”
अजय ने सोचा—शायद कोई मजाक है। पर डायरी उसकी ताकत बनती जा रही थी।
भाग ५: पहला सपना
तीन महीने बाद अजय को एक निर्माण कंपनी में मजदूरी मिली। दिहाड़ी—तीन सौ रुपए। अब वह सुबह चाय की दुकान, शाम को साइट।
एक दिन सुपरवाइजर ने पूछा, “पढ़े हो?”
“दसवीं पास,” अजय ने कहा।
“यहाँ ड्राइंग बनानी आती है?”
अजय ने सर हिलाया। उसने स्कूल में अच्छी ड्राइंग बनाई थी।
सुपरवाइजर ने पेपर दिया। अजय ने एक छोटा सा ब्रिज बनाया।
“कल से ड्राफ्ट्समैन का काम। सात सौ महीना।”
अजय की आँखें भर आईं।
भाग ६: परीक्षा का मौसम
अब अजय के पास समय था। उसने इंजीनियरिंग डिप्लोमा का फॉर्म भरा। पार्ट टाइम कोर्स।
पढ़ाई, काम, नींद—सब संतुलन में।
पहले सेमेस्टर में फेल हो गया।
रात को डायरी में लिखा:
“मैं हार मान लूँ?”
उत्तर आया:
“बारिश में डूबने से पहले पेड़ मजबूत होता है।”
अजय ने फिर कोशिश की। दूसरा सेमेस्टर—टॉप किया।
भाग ७: घर की याद
दो साल बाद अजय गाँव लौटा। हाथ में डिप्लोमा। जेब में दस हजार।
माँ ने गले लगाया। पिता चुप थे।
घर अब पक्का था। अजय ने बनवाया था।
“अब क्या?” पिता ने पूछा।
“शहर में नौकरी। फिर आपको ले जाऊँगा,” अजय ने कहा।
रात को पीपल के पेड़ के नीचे बैठा। डायरी खोली। आखिरी पन्ने पर लिखा था:
“सपने पूरे हुए। अब नई बारिश का इंतजार।”
अजय ने मुस्कुराते हुए लिखा:
“अब मैं बारिश बनूँगा। दूसरों के सपनों के लिए।”
भाग ८: नई शुरुआत
अजय शहर लौटा। अब वह इंजीनियर था। छोटी सी फर्म में। तनख्वाह—पंद्रह हजार।
एक दिन ऑफिस में नया लड़का आया। गाँव का। डरता हुआ।
अजय ने पूछा, “कहाँ से?”
“मेरा गाँव... आपके गाँव के पास,” लड़के ने कहा।
अजय ने डायरी निकाली। खाली पन्ना दिया।
“लिखो अपने सपने। बारिश आएगी।”
लड़के ने अचरज से देखा।
भाग ९: बारिश का रहस्य
एक रात अजय को याद आया—डायरी में अनजानी लिखावट। उसने ध्यान से देखा। स्याही पुरानी थी।
फिर समझ आया।
बचपन में वह पीपल के पेड़ के नीचे खेलता था। वहाँ एक बूढ़ा आदमी आता था। कहानियाँ सुनाता। एक दिन उसने डायरी दी थी।
“सपने लिखो। बारिश में उगेंगे।”
अजय को याद आया—बूढ़े का नाम था विजय।
शायद वही विजय शर्मा।
भाग १०: अंतिम बारिश
आज अजय अपने गाँव में स्कूल खोल रहा है। मुफ्त। गरीब बच्चों के लिए।
उद्घाटन के दिन बारिश हुई।
अजय ने बच्चों को डायरी दी।
“लिखो। सपने बारिश में उगते हैं।”
बच्चों ने लिखा।
बारिश रुक गई। धूप निकली।
एक बच्चे ने पूछा, “सर, सपने सच होते हैं?”
अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ। बस मेहनत की बारिश चाहिए।”
(कुल शब्द: १५०२)
समर्पित: अजय को, जो हर बारिश में सपने बोता है।