Towards the Light – Memoirs in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों ! 

          हल्की -हल्की गुलाबी सर्दी का  मौसम  है फिर भी कुछ इलाकों में गर्मी का एहसास है। अजीब ही है मौसम की कारस्तानी,जैसे ऋतुओं ने भी  कुछ मन में ठानी । मैं अहमदाबाद की बात कर रही हूँ जहाँ कभी बहुत ठंड नहीं पड़ती लेकिन जब हवाएं चलती हैं  तो सीधे तीर सी चुभती हैं । ठंडे प्रदेशों में या दिल्ली की तरफ़ सर्दी पड़ती है तो काफ़ी पड़ती है लेकिन हम जैसे लोगों से कोई कहे कि सर्दी के मौसम में गुजरात से दिल्ली या उत्तर-प्रदेश की ओर आ जाओ तब हमें सोचने में ही सर्दी लगने लगती है । अरे!  हम लोग तो ठंड के मौसम के कपड़े भी अधिक नहीं रखते । हल्के-फुल्के मोटे कपड़ों से हमारा काम चल जाता है लेकिन यदि कभी दिल्ली अथवा उत्तर-प्रदेश ,हिमाचल में जाना हो तो वहाँ की  कल्पना से ही कंपकंपी  छूटने लगती है । 

      दरअसल,मनुष्य जहाँ रहने का आदी  हो जाता है ,वहीं अधिक सुरक्षित व आराम महसूस करने लगता है । जीवन में बदलाव आना भी उतना ही ज़रूरी है जितना मौसमों  का आना-जाना । हर मौसम की अपनी खुशबू,अपनी सुगंध ! परिवेश में बहती एक जीवन  की लहर जिसके साथ झूमने-गाने का अपना ही आनंद ! 

            जीवन में हम सभी हमेशा  किसी न किसी का इंतज़ार करते रहते हैं  और उस इंतज़ार में अविवेकी हो जाते हैं । । कभी मित्र का इंतजार, कभी संबंधियों का इंतज़ार ! कभी पढ़ने का इंतज़ार तो कभी परीक्षा का इंतज़ार!और फिर उसके परिणाम का इंतज़ार! ये इंतज़ार हम न भी करें तो मौसम के बदलाव का इंतज़ार तो रहता ही है । कभी गर्मी हुई तो बरसात का इंतज़ार-----कभी अधिक बरसात हो गई तो उसके  रुकने का इंतजार ! यह हम मनुष्यों की प्रकृति है कि अपनी वर्तमान परिस्थिति में कभी उससे संतुष्ट नहीं रह पाते । 

        इस इंतज़ार से एक बहुत मजेदार बात याद आई शायद आज की युवा पीढ़ी को इसकी स्मृति हो अथवा नहीं ? हम काफ़ी बड़े हो चुके थे जब  टेलीविज़न आया ,उसमें कुछ गिने-चुने कार्यक्रम  जिनका इंतज़ार सबको रहता ! रविवार को बचपन में चित्रहार का इंतजार रहता था, पूरे सप्ताह दिन गिना करते थे। आज के ज़माने में, जब सब चीज़ें आपके मोबाइल और टीवी पर उपलब्ध हैं, तो किसी चीज़ का इंतजार करने की जरूरत ही नहीं रही। लेकिन उस इंतजार का एक अलग ही मज़ा था, उससे सीख भी मिलती थी, और सहनशीलता  भी विकसित होती थी। पहले सब कुछ बहुत natural  था—चीज़ें कम थीं, विकल्प बहुत ही सीमित थे, इसलिए ज़िंदगी बहुत ही सरल । सहज थी।

      जैसे -जैसे चीज़ों का विस्तार होने लगा ,वैसे-वैसे हर चीज़ की कीमत कम होने लगी । पहले डिप्रेशन, एंग्जायटी और मोटापा जैसी समस्याएँ बच्चों में कभी देखने को नहीं मिलती थीं। क्योंकि आउट डोर गेम्स थे। आजकल तो इन चीज़ों को नियंत्रित करने के लिए आर्टिफिशियल scarcity  create करनी पड़ती हैं, क्योंकि हर चीज़ फिंगरटिप्स पर मौजूद है। यहाँ तक कि 10 मिनट डिलीवरी ऐप्स ने तो प्लानिंग की जरूरत भी खत्म कर दी है—जब चाहो, जहाँ चाहो, कुछ भी मंगवा सकते हैं । इस सबने प्लानिंग जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज भी जीवन से से खत्म कर दी है यदि दी हुई टाइम लिमिट से जरा सी भी देर हो जाये तो एंग्जायटी शुरू हो जाती है। या कहें कि पेशेंस कम होता जा रहा है। हमें अपने बच्चों में यह सब डेवेलप करना सिखाना होगा तभी वो अपने जीवन के अगले चरण के लिए तैयार हो सकेंगे।

         वाज़िब इंतज़ार हमें जीवन के कई नए चरण में ले जाता है । वह सिखाता है कि हम अपने समय से पहले ही किसी चीज़ को पाने की ज़बरदस्ती न करें । 'सहज पके सो मीठा!' आजकल फल और सब्ज़ियों में भी जो मिलावट मिल रही है ,उसका शरीर व मस्तिष्क पर कितना और कैसा प्रभाव पड़ता है,हम सब परिचित हैं ।

    आइए ,सब मिलकर देखने की ,सोचने की,समाधान की कोशिश करते हैं कि हम बेहतर जीवन कैसे जी सकते हैं जिसमें ज़्यादा एंकजायटी न हो,ज्यादा असहजता न हो,कठिनाई न हो । थोड़ा बहुत बदलाव भी यदि हम कर सकें तो हमारी भावी पीढ़ी बेहतर जीवन जीने के लिए तैयार हो जाए । 

 

    सस्नेह 

आपकी मित्र 

डॉ. प्रणव भारती