Towards the Light – Memoirs in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार साथियो

       मानव-जीवन जितना आसान है, उतना ही कभी गोल-गोल घुमाकर ऐसे जकड़ने लगता है कि हमें लगता है कि कहाँ फँस गए! जी का जंजाल सा लगने लगता है।

    होता यह है कि हम स्वयं ही अपना मन डाँवाडोल करने लगते हैं। जीवन है तो सीधी सड़क पर तो चलेगा नहीं, भई इसका भी अपना कोई हिसाब किताब होगा।

       मानू बहुत समझदार और किसी भी स्थिति में अपने आपको संभाल लेने वाली है किंतु हो जाता है कभी, मनुष्य ही तो हैं, कभी छोटी सी बात में दुखी और कभी बहुत बड़ी बात में भी ख़ुश नहीं!

    पिछले कुछ वर्षों से एक अच्छी बड़ी  कंपनी में कार्यरत है जहाँ उसको काम के बावज़ूद भी कोई प्रशंसा नहीं मिल पा रही थी।वह परेशान रहने लगी दूसरी ओर जब आसव को सफ़लता मिलने लगी उसका दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया ,वह मानू को अपने से छोटा,बेचारा मानने लगा । 

.     जब हमें सफलता  मिलने लगती है  , हमारे  पास काम आने लगता है , हमें  किसी से काम मांगना नहीं  पड़ता  तब   हम संतुष्ट रहते हैं,  हम स्वयं को भाग्यशाली व  blessed मानते  हैं। जब हमारे पास काम बहुत अधिक होता है और अपने और परिवार के लिए वक़्त बहुत कम तो अक्सर हम लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि मैं तो परेशान हो गया हूँ, दुखी हो गया हूँ काम बहुत ज्यादा है बिल्कुल भी समय नहीं है।  मेरे से अब नही हो रहा है, काम का बहुत प्रेशर  है आदि, या परिवार भी यह कहता है कि इतना भी क्या करना कि अपने परिवार के साथ या अपने आप इस सक्सेस को आप सेलिब्रेट भी न कर सकें । , आखिर कितना पैसा कमाओगे?  हमें कभी भी शिकायत नहीं करनी चाहिए बल्कि हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हमारी  पहचान सिर्फ हमारे  काम से है।  जिस दिन यह काम नही होगा तो हमारी  कोई कीमत  नही होगी। कोई हमें  नही पूछेगा। जो लोग आज हमारे  साथ अच्छा महसूस करते हैं, गौरवान्वित महसूस करते हैं वो ही हमें  क्रिटिसाइज करने लगेंगे या हमसे किनारा करने लगेंगे। जो आज वक़्त मांग रहे हैं वो कल सुख सुविधाएं और अनेक चीजें मांग रहे थे, कल कुछ और मांगेंगे, हमें बस इतना करना है कि अपनी राह से, अपने लक्ष्य से नजर नहीं हटानी है क्योंकि नजर हटी - दुर्घटना घटी!

 

      मानू के साथ यही हुआ ,खासी पोजीशन पर पूरा श्रम करके पहुँची मानू को उसके चारों ओर के लोग बिना बात ही रिमार्क पास करने लगे ,उसकी समझ में नहीं आ रहा था  कि आखिर जब वह इतने अच्छे पद पर काम कर रही थी,परिवार के लिए अपने को न्योछावर कर रही थी तब अगर उसने ज़रा अपने बारे में ,अपनी खुशी के बारे में सोचना शुरू किया ,उसमें भला क्या गलत था ? 

      होता यह है कि जब हम अपनी परवाह  न करके दूसरों के लिए  ही समर्पित हो जाते हैं ,लोग हमें मूर्ख समझने लगते हैं । हम उदास हो जाते हैं ,हमें लगता है कि हमने ही कोई गलती की है और धीरे-धीरे अपनी सफ़लता से हम नीचे सरकने लगते हैं, उठाने वाली भी याही दुनिया है,गिराने वाली भी! हम अपने आपको जीवन में असफ़ल समझने लगते हैं 

असफल होने पर हम  डिप्रेशन में जा सकते हैं । वैसे आज इस असफलता से दूर होने के लिए हमारे पास  दोस्त हैं, रिश्तेदार हैं, शुभचिंतक हैं और जरूरत पड़ी तो डॉक्टर और दवाइयां भी हैं । परंतु सफलता का नशा होने के बाद हम  सब को भूल जाते  हैं तो हम एकाकी खड़े रह जाते हैं । मतलब डिप्रेशन की तो दवा है परंतु सफलता के नशे की कोई दवा नही है क्योंकि इसको कोई बीमारी मानता ही नही । 

इसीलिए कहा गया है कि असफलता से इतने लोग ओर संबंध बर्बाद नहीं हुए हैं जितने की सफलता से!

असफल होने पर व्यक्ति गिर कर खड़ा हो सकता है परंतु सफ़ल व्यक्ति खड़ा खड़ा गिर सकता है। इसीलिए कहा गया है कि फलों से लदे हुए पेड़ झुक जाते हैं । मतलब हम जीतने  ऊपर जाएं, जितने सफल हों उतना ही विनम्र, सज्जन  बनें और इंसानियत को तवज्जो दें ।

     क्या कभी आपने अपने दिल की आवाज़ सुनते हैं ? वो रोज़ बोलता है पर हम सुनते नहीं।

हम सबके भीतर कहीं न कहीं घाव हैं—दिल के, मन के, सम्मान के, रिश्तों के। कुछ घाव पुराने हैं, कुछ किसी के शब्दों से बने हैं, कुछ किसी के व्यवहार से, कुछ इस दुनिया की भागदौड़ से।

और जब चोटें बढ़ती जाती हैं तो दिल चुप हो जाता है। मन ‘मौन’ में चला जाता है। हम बाहर से Strong दिखते हैं, वही अंदर ही अंदर टूटते जाते हैं।

हर जगह—ऑफिस में, घर में, समाज में—लोग घूम रहे हैं—जूझते हुए, मुस्कुराते हुए, ये घाव छुपाते हुए।

कहीं Validity नहीं मिलती, कहीं Appreciation नहीं मिलता,

कहीं Respect नहीं मिलता और दिल धीरे-धीरे थक जाता है।

तो फिर—कैसे ठीक करें खुद को?

कैसे भरेण  इन घावों को?  कैसे रोशन करें अपने भीतर का अंधेरा?

खुद को माफ कर देना  self-healing की पहली सीढ़ी है। 

हम दूसरों को माफ कर देते हैं, पर खुद को नहीं।

हम अपने फैसलों, अपनी गलतियों, अपने अतीत का बोझ उठाए चलते हैं।

हीलिंग वहीं से शुरू होती है—जहाँ हम खुद को माफ कर देते हैं।

मानू लोगों की बातों में आकर खुद को ही गुनहगार समझने लगी थी । जब उसे समझाया गया कि खुद के लिए सोचना सबसे महत्वपूर्ण है ,किसी के कहने से हम  पर इतना बोझ लाद  लेना बिलकुल भी सही नहीं । 

       मुझे कई लोगों को देखकर यह महसूस हुआ कि कोई भी चीज़ सीमा से बाहर हो जाए,उससे किसी न किसी प्रकार की परेशानी आती ही है इसलिए जरूरी हो जाता है कि हम हर चीज़ सीमा में रखकर करें,खुद के लिए भी पहले से ही सोचते रहें क्योंकि यदि पहले अपने को सब पर कुर्बान करके बाद में कभी अपने बारे में सोचने लगें,वह हमसे जुड़े लोगों को पच नहीं पाती ,परेशानी में हम ही पड़ते हैं । जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है इसलिए बेहतर है कि हम इस पर ध्यान दें ।

 

सस्नेह 

आपकी मित्र 

डॉ . प्रणव भारती