प्यारी पिकनिक
लेखक: विजय शर्मा एरी
सूरज की पहली किरणें जब हिमालय की चोटियों को छूती हैं, तो पूरा कश्मीर सोने की तरह चमकने लगता है। नवंबर का महीना था, ठंडी हवाएँ सरसराहट के साथ पत्तियों को सहला रही थीं। श्रीनगर के पास डल झील के किनारे, एक छोटा-सा परिवार अपनी आखिरी पिकनिक की तैयारी कर रहा था।
राहुल, उसकी पत्नी नेहा, और उनकी बारह साल की बेटी रिया। तीनों के चेहरे पर एक अजीब-सी उदासी थी, जो शब्दों में बयाँ नहीं की जा सकती। राहुल ने कार की डिक्की में बास्केट रखते हुए कहा, "आज बहुत अच्छा दिन है। चलो, रिया, तुम्हारी पसंदीदा चॉकलेट केक भी रख दिया है।"
रिया ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखें नम थीं। नेहा ने उसका हाथ थामा और बोली, "बेटा, आज सिर्फ खुशियाँ। कोई गम नहीं।"
तीनों कार में सवार हुए। राहुल ने पुराना बॉलीवुड गाना बजाया – "ये जहाँ है, रंगीन है..."। रिया खिड़की से बाहर देख रही थी। हरे-भरे चिनार के पेड़, जिनके पत्ते अब लाल-पीले हो चुके थे, तेज़ी से पीछे छूट रहे थे।
"पापा, क्या हम सचमुच पहलगाम जा रहे हैं?" रिया ने पूछा।
"हाँ बेटा। तुम्हारी मम्मी की ख्वाहिश थी ना – बर्फ से ढके पहाड़ देखने की।"
नेहा ने राहुल की ओर देखा। उसकी आँखों में आभार था, और दर्द भी। डॉक्टर ने तीन महीने पहले कहा था – कैंसर, स्टेज फोर। अब बस कुछ हफ्ते बाकी थे। नेहा ने फैसला किया था कि आखिरी दिन परिवार के साथ बिताएगी, बिना अस्पताल की बदबू, बिना दवाइयों के। सिर्फ खुशियाँ।
पहलगाम पहुँचते-पहुँचते दोपहर हो चुकी थी। लिद्दर नदी का पानी चाँदी की तरह चमक रहा था। ठंड थी, लेकिन धूप खिली हुई थी। राहुल ने कार रोकी। नेहा ने धीरे से दरवाजा खोला। उसकी कमजोरी साफ दिख रही थी, लेकिन चेहरे पर मुस्कान थी।
"वाह! कितना सुंदर है..." नेहा ने कहा।
रिया दौड़कर नदी किनारे पहुँची। उसने एक पत्थर उठाया और पानी में फेंका। पत्थर उछला – एक, दो, तीन... सात बार।
"देखो मम्मी! सात बार!" रिया चिल्लाई।
नेहा हँसी। उसकी हँसी में वो पुरानी मिठास थी, जो सालों पहले राहुल को पहली बार मिली थी।
तीनों ने कंबल बिछाया। नेहा ने बास्केट खोला – पनीर सैंडविच, चॉकलेट केक, गरमागरम चाय। राहुल ने छोटा-सा गैस स्टोव जलाया। रिया ने अपना स्केचबुक निकाला और ड्रॉइंग बनाने लगी।
"मम्मी, तुम्हारे लिए।" उसने एक चित्र दिखाया – तीन लोग, हाथ में हाथ डाले, पहाड़ों के बीच।
नेहा की आँखें भर आईं। "बहुत सुंदर है बेटा।"
दोपहर ढलने लगी। सूरज बादलों के पीछे छिपने लगा। हवा में ठंडक बढ़ गई। राहुल ने नेहा के कंधे पर शॉल डाली।
"याद है नेहा, हमारी पहली पिकनिक?" राहुल ने पूछा।
"कैसे भूल सकती हूँ। शिमला में। तुमने मेरे लिए गुलाब का फूल तोड़ा था, और काँटे हाथ में चुभ गए थे।" नेहा हँसी।
"और तुमने कहा था – 'अगर प्यार में दर्द ना हो, तो प्यार कहाँ?'"
रिया चुपचाप सुन रही थी। उसने मम्मी का हाथ थामा। "मम्मी, आप ठीक हो जाओगी ना?"
नेहा ने उसे गले लगाया। "बेटा, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। यहाँ," उसने रिया का सीना छुआ, "और यहाँ।" उसने अपना सीना छुआ।
शाम होने लगी। बादल गहरे हो गए। हवा में बर्फ की बू आ रही थी। राहुल ने आग जलाई। तीनों उसके इर्द-गिर्द बैठे। रिया ने गिटार निकाला – नेहा का पुराना गिटार, जो अब रिया बजाती थी।
"मम्मी, आपका पसंदीदा गाना।" रिया ने 'लग जा गले' बजाना शुरू किया।
नेहा की आँखें बंद थीं। उसका सिर राहुल के कंधे पर था। गाने की धुन हवा में घुल रही थी।
"राहुल..." नेहा ने धीरे से कहा।
"हाँ?"
"मैं डर नहीं रही। बस... रिया का ख्याल रखना।"
राहुल की आँखें नम थीं। "वादा है।"
रात होने लगी। तारे चमकने लगे। नेहा ने रिया को गोद में लिया। "बेटा, एक कहानी सुनाऊँ?"
"हाँ मम्मी!"
"एक थी राजकुमारी। उसका नाम था नेहा। वो बहुत खुश थी। उसका एक राजकुमार था – राहुल। और एक छोटी राजकुमारी – रिया। तीनों एक महल में रहते थे। एक दिन, जादूगरनी आई और कहा – 'राजकुमारी को तारों के पास जाना है।' राजकुमारी डर गई। लेकिन राजकुमार ने कहा – 'मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा।' तो राजकुमारी तारों के पास गई, लेकिन उसने अपना जादू राजकुमार और छोटी राजकुमारी को दे दिया। अब वो दोनों हमेशा खुश रहते हैं।"
रिया सो गई। नेहा की साँसें धीमी हो रही थीं। राहुल ने उसे गोद में लिया।
"नेहा... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"
नेहा ने आँखें खोलीं। "मुझे पता है। रिया को मेरी तरफ से कहना... मैं उसकी हर पिकनिक में रहूँगी।"
उसके बाद, नेहा चुप हो गई। उसकी आँखें तारों की ओर देख रही थीं। राहुल रो रहा था, लेकिन चुपचाप। रिया सो रही थी।
सुबह हुई। बर्फ गिरने लगी थी। राहुल ने नेहा को कंबल में लपेटा। रिया जगी। उसने मम्मी को देखा।
"पापा... मम्मी सो रही हैं?"
राहुल ने उसे गले लगाया। "हाँ बेटा। वो तारों के पास गई हैं। लेकिन वो हमें देख रही हैं।"
रिया ने आसमान देखा। एक तारा चमक रहा था, बाकी से ज्यादा।
"वो मम्मी हैं।" रिया ने कहा।
राहुल मुस्कुराया। "हाँ बेटा।"
दोनों ने नेहा को नदी किनारे दफनाया। रिया ने अपना चित्र उसके पास रख दिया। राहुल ने नेहा का पसंदीदा गुलाब का फूल रखा।
वापसी का रास्ता खामोश था। लेकिन रिया की आँखों में अब डर नहीं था। वो जानती थी – मम्मी हर पिकनिक में साथ हैं। हर हवा के झोंके में, हर तारे की चमक में।
कार श्रीनगर पहुँची। राहुल ने रिया का हाथ थामा। "चलो बेटा, घर चलें।"
रिया ने पीछे मुड़कर देखा। पहलगाम की ओर। एक तारा अभी भी चमक रहा था।
"पापा, अगली पिकनिक कब?"
"जल्दी ही बेटा। मम्मी के साथ।"
(शब्द गणना: १५०२)