सुबह का उजाला गांव पर धीमे और थके हुए तरीके से उतरा. हवा में वह ठंड अभी भी थी जो रात भर घरों में छिपती रही. किसी ने बाहर कदम नहीं रखा.
सब जानते थे कि उदावीर और Salmon के बीच अंतिम संघर्ष हुआ है, लेकिन क्या हुआ यह कोई नहीं जानता था. गांव के चौक में मिट्टी की रक्षा रेखा मिट चुकी थी. दीपक टूटे पड़े थे. यह साफ था कि रात ने कुछ छीना है और कुछ पीछे छोड़ दिया है।
कुछ लोग हिम्मत जुटाकर रघु के घर की ओर बढ़े. दरवाजा आधा खुला था. अंदर अजीब सन्नाटा था, जैसे वहां समय रुक गया हो. घर में कदम रखते ही जमीन पर जली राख की मोटी परत दिखाई दी.
कमरे के बीचोंबीच उदावीर लेटा था. उसका शरीर शांत था, लेकिन उसकी आंखें खुली थीं, जैसे वह आखिरी क्षण में किसी गहरी चीज को देख रहा हो. उसके हाथ में वही लाल मिट्टी की माला थी जो अब टूटी पड़ी थी.
लेकिन सबसे डरावनी बात यह थी कि रघु, लाजो और सूरज कहीं नहीं थे. कोई निशान नहीं, कोई आवाज नहीं, यहां तक कि उनके कदमों की धूल तक गायब थी. दीवारें हल्की काली थीं जैसे किसी भारी छाया ने उन्हें चूमा हो. घर के कोने में पड़े दीपक की लौ अकेले टिमटिमा रही थी.
उसी समय बाहर जंगल की तरफ से धीमी सरसराहट सुनाई दी. गांव वाले डरकर पीछे हटे. पेड़ों के बीच से हल्का धुआं उठता दिखा. वह धुआं किसी इंसान की आकृति में बदलता दिखाई दिया और फिर हवा में घुल गया. किसी बूढ़े की टूटी हुई हंसी दूर से सुनाई दी. लोग समझ गए कि यह उदावीर की आवाज नहीं थी. यह वही थी जो रात में गूंजती रही थी.
गांव के मुखिया ने कांपते स्वर में कहा कि उदावीर ने अपनी जान देकर गांव की रक्षा की होगी. लेकिन तभी पास की मिट्टी धीरे से फट गई और एक काली रेखा उभर आई. वह रेखा उसी तरह की थी जैसी रघु और उसके परिवार के शरीर पर थी. यह देखकर सबकी सांस अटक गई. अगर दानव खत्म हो गया होता, तो उसका निशान मिट जाना चाहिए था. लेकिन यह निशान और गहरा हो रहा था.
इतने में एक बच्चा घबराकर गांव वालों के बीच आया और बोला कि उसने जंगल के किनारे किसी को चलते देखा है. वह कोई साधारण इंसान नहीं था. उसके पूरे शरीर से धुआं उठ रहा था और उसके पीछे दो छोटी परछाइयां चल रही थीं. परछाइयां बिल्कुल वैसी ही ऊंचाई की थीं जैसी रघु और उसके बेटे सूरज की.
लोगों का डर और भर गया. मुखिया ने हिम्मत कर पूछा कि क्या उसने उसका चेहरा देखा. बच्चा कांपते हुए बोला कि चेहरा इंसान जैसा नहीं था. आंखें अंदर धंसी थीं और उनमें एक अजीब सफेद चमक थी. बिल्कुल वैसी जैसी तांत्रिक ने बताई थी जब Salmon अपने सबसे मजबूत रूप में होता है.
गांव वाले एक दूसरे को देखने लगे. किसी ने कुछ नहीं कहा. तभी जंगल की ओर से एक लंबी, खिंची हुई सांस की आवाज आई. वह ऐसी थी जैसे कोई अभी भी खिल रहा हो, अभी भी बढ़ रहा हो. अचानक हवा तेज चली और घरों के दरवाजे जोर से हिले. हर ओर मिट्टी की काली लकीरें दिखने लगीं, जैसे कोई उन्हें धीरे धीरे छूकर जा रहा हो.
सबका दिल जोर से धड़कने लगा. उदावीर ने कोशिश की थी. उसने लड़ाई की थी. लेकिन शायद दानव ने उससे कुछ अधिक ले लिया था. शायद उसने उन आत्माओं को पूरी तरह अपने भीतर खींच लिया था और अब नया शरीर बना रहा था. शायद वह आज नहीं, लेकिन किसी रात लौटेगा.
और जैसे उसकी मौजूदगी की पुष्टि करते हुए, रघु के घर की खाली दीवार पर एक धुंधली आकृति उभर आई. वह धीरे धीरे हिल रही थी. उसके पास किसी की हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी.
“मैं अभी गया नहीं हूं.”
अगले ही पल वह आकृति गायब हो गई, पर उसके पीछे छोड़ी ठंड पूरे घर में फैल गई. गांव वाले समझ गए कि कहानी खत्म नहीं हुई है. दानव का अंत हुआ या नहीं, यह कोई नहीं जानता था.
लेकिन हर खिड़की पर, हर दरवाजे के पीछे, हर पेड़ की छाया में वही एक सवाल तैर रहा था.क्या Salmon सच में मरा या वह बस शरीर बदलकर कहीं और बढ़ रहा है?
और जवाब कहीं भी नहीं मिला. सिर्फ हवा में घूमती वह हल्की हंसी, जो बता रही थी कि आतंक अभी खत्म नहीं हुआ है।