Salmon Demon - 4 in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Salmon Demon - 4

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Salmon Demon - 4

उदावीर पूरी रात जागता रहा. उसने गांव के चौक में एक पुरानी मिट्टी की रेखा खींची और उसके चारों कोनों पर दीपक रखे. यह रेखा गांव की रक्षा के लिए थी, लेकिन वह खुद जानता था कि Salmon इतनी आसान सीमाओं में नहीं बंधेगा. रात बढ़ने लगी और हवा में धुंध भरने लगी. गांव वाले अपने घरों में छिपे थे. हर खिड़की बंद थी, फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे कोई भीतर झांक रहा हो. दीवारों पर हल्की खटखटाहट हो रही थी, जैसे बच्चे नाखून घिसकर खेल रहे हों.

उदावीर रघु के घर की तरफ बढ़ा. वहां पहुंचते ही जमीन पहले से ज्यादा काली दिखी. घर बिल्कुल शांत था. उसने धीरे से दरवाजा धक्का दिया. अंदर अंधेरा था और घुटन भरी ठंड. दीपक की लौ जैसे बर्फ की परत से ढकी हो, बस हल्की सी टिमटिमा रही थी. हवा में मिट्टी और सड़ांध की गंध थी. वह भीतर गया तो अचानक पीछे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया. वह समझ गया कि उसे भीतर फंसाया जा चुका है.

कमरे के बीच में रघु खड़ा था. उसकी आंखों में वही खालीपन था. उसके शरीर पर काली रेखाएं फैल चुकी थीं और हथेलियों से ठंडी भाप उठ रही थी. वह बिना पलक झपकाए उदावीर को देखता रहा. कुछ ही कदम दूर लाजो खड़ी थी. उसका चेहरा स्थिर था और उसकी आवाज ऐसी थी जैसे भीतर से दो लोग एक साथ बोल रहे हों. उसने कहा कि Salmon ने अपनी जगह चुन ली है और अब कोई उसे छू नहीं सकता।

अचानक कमरे की हवा भारी हो गई. फर्श पर राख की तरह काली मिट्टी उठने लगी और एक लंबी परछाई जमीन से ऊपर उठकर आकार लेने लगी. वही पिघला चेहरा, वही धंसी आंखें और उनमें वह लाल चमक जो किसी जीवंत इंसान पर नहीं दिखती. Salmon पूरी तरह सामने था. उसका शरीर धुएं की तरह हिल रहा था, लेकिन हर हिलावट में एक अजीब सी ताकत थी. वह आवाज नहीं निकाल रहा था, फिर भी कमरे में उसकी सांसों का दबाव महसूस हो रहा था.

उदावीर ने मंत्र पढ़ना शुरू किया. उसकी आवाज धीमी थी लेकिन स्थिर. उसने राख भरा पात्र खोला और उसे जमीन पर छिड़का. राख जैसे ही हवा में घुली, Salmon पीछे हटने लगा. लेकिन उसी पल सूरज ने अचानक तेज चीख मारी. वह बच्चे की चीख नहीं थी. वह किसी बूढ़ी आत्मा की आवाज जैसी थी. उसका शरीर कांपने लगा और उसकी आंखों की लाल चमक और तेज हो गई. Salmon ने उसे ढाल की तरह अपने सामने खड़ा कर दिया.

उदावीर पीछे नहीं हटा. वह जानता था कि अब सिर्फ मंत्र ही काम कर सकता है. उसने डंडा ऊंचा किया, लेकिन तभी रघु झपटकर उसके सामने खड़ा हो गया. उसने एक ऐसी ताकत से उदावीर की गर्दन पकड़ी कि उसकी सांसें रुकने लगीं. उदावीर ने पूरी ताकत से मंत्र दोहराया. रघु का शरीर हिलने लगा, जैसे कोई भीतर से निकलने की कोशिश कर रहा हो. लेकिन Salmon ने जोर से गुर्राहट जैसी आवाज निकाली और रघु दोबारा शांत हो गया, और भी गहरे कब्जे में.

कमरे की दीवारें कांपने लगीं जैसे कोई भीतर बंद होने से नाराज हो. दीपक एक एक करके बुझते गए. हवा और ठंडी और भारी हो गई. Salmon आगे बढ़ा. उसके कदम हवा में लटकते हुए उतर रहे थे.

उसने अपना सड़ा हुआ, काला हाथ उदावीर की तरफ बढ़ाया. वह हाथ किसी की आत्मा तक पहुंचकर उसे खींच लेने जैसा लग रहा था. उदावीर ने आखिरी बार मंत्र चिल्लाया तो जमीन का एक कोना चमक उठा. उस चमक ने कुछ पल के लिए Salmon को पीछे धकेल दिया, लेकिन वह उसे रोक न सकी.

Salmon फिर से आगे आया और इस बार उसकी आंखों की चमक लाल नहीं, बिल्कुल सफेद हो गई थी. यह उसका असली रूप था, उसका पूरा जागा हुआ रूप. कमरे की छत टेढ़ी होने लगी. लकड़ी जैसे खुद ही चीख रही हो. उदावीर को एहसास हुआ कि दानव अब अटल हो चुका है. वह किसी भी कीमत पर उसे और मजबूत बनने देना नहीं चाहता था. लेकिन उसकी सांसें तेज होने लगीं. उसकी आवाज लड़खड़ाने लगी.

अचानक सूरज ने फिर चीख मारी. इस बार उसकी चीख पूरे घर में गूंजने लगी. उसकी शरीर से धुआं निकलने लगा और उसके पीछे Salmon की परछाई और भी विशाल दिखाई देने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह बच्चे की आत्मा पूरी तरह पीकर उसे अपना बना रहा हो. रघु और लाजो दीवारों की तरह स्थिर थे. उनके चेहरे अब इंसानों जैसे नहीं थे. जैसे सारी अभिव्यक्ति उनसे छीन ली गई हो.

उदावीर जमीन पर बैठ गया. वह थक चुका था. लेकिन उसकी आंखों में निराशा नहीं थी. उसने अपने थैले से एक पुरानी लाल मिट्टी की माला निकाली. यह वही माला थी जो उसकी आखिरी रक्षा थी. उसने उसे कसकर पकड़ते हुए आंखें बंद कीं. तब Salmon ने एक लंबी, गहरी सांस ली और उदावीर के बिल्कुल सामने आ गया. कमरा धीरे धीरे अंधेरे में डूबने लगा और रोशनी पूरी तरह गायब हो गई.

गांव के बाहर हवा अचानक बंद हो गई. पेड़ों की पत्तियां रुक गईं. रात एकदम ठहर गई. यह संकेत था कि संघर्ष चरम पर पहुंच चुका है और किसी का भी अंत हो सकता है. लेकिन कौन बचा और कौन खो गया, किसी को पता नहीं था.

और इस भयानक खामोशी में एक हल्की, टूटी हुई हंसी फिर गूंजी, जैसे कोई जीतकर बाहर निकलने वाला हो....