Mythological truth in Hindi Spiritual Stories by Vijay Erry books and stories PDF | पौराणिक सत्य

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पौराणिक सत्य

पौराणिक सत्य 
एक हिंदी कहानी
लेखक: विजय शर्मा एरी
(शब्द गणना: लगभग १५००)
प्रथम अध्याय: गाँव का रहस्य
हिमालय की गोद में बसा था छोटा-सा गाँव 'कैलाशपुर'। चारों तरफ़ बर्फ़ीली चोटियाँ, बीच में एक प्राचीन शिव मंदिर। गाँव वाले कहते थे कि यहाँ की मिट्टी में भी शिव का आशीर्वाद है। पर एक बात थी जो हर घर में फुसफुसाई जाती—मंदिर के पीछे वाली गुफा। कोई उसमें जाता तो लौटकर नहीं आता।
गाँव का सबसे जिज्ञासु लड़का था अर्जुन। उम्र बीस साल। पिता पंडित रामेश्वर शर्मा गाँव के मुख्य पुजारी थे। माँ सरस्वती देवी घर संभालतीं। अर्जुन को बचपन से ही पुरानी कथाएँ सुनने का शौक़ था। पर एक कथा थी जो उसे सबसे ज़्यादा खटकती—
"पुत्र, गुफा में 'पौराणिक सच' छिपा है," पिता कहते, "पर जो भी उसे खोजने जाता है, या तो पागल हो जाता है या ग़ायब।"
अर्जुन हँसता, "पिताजी, ये अंधविश्वास है। मैं वैज्ञानिक हूँ।"
वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से भौतिकी में स्नातक था। गर्मियों की छुट्टियों में गाँव आया था।
द्वितीय अध्याय: स्वप्न का संकेत
एक रात अर्जुन को स्वप्न आया।
वह गुफा के अंदर था। चारों तरफ़ नीली रोशनी। सामने एक विशाल शिवलिंग। उस पर बैठी थी एक स्त्री—सफ़ेद साड़ी, लंबे काले बाल, आँखें बंद। उसने आँखें खोलीं—सोने जैसी।
"अर्जुन," उसने कहा, "सच जानना चाहते हो? तो आओ। पर याद रखो—सच हमेशा कड़वा होता है।"
अर्जुन ने पूछा, "आप कौन?"
"मैं पार्वती हूँ। पर यहाँ मैं 'सच' हूँ।"
सपना टूटा। अर्जुन की कमीज पसीने से भीगी थी।
सुबह उसने पिता को बताया।
"बेटा, ये संकेत है। मत जाओ।"
पर अर्जुन ने ठान लिया।
तृतीय अध्याय: गुफा का प्रवेश
अगले दिन दोपहर में अर्जुन ने बैग में टॉर्च, रस्सी, पानी, और एक पुराना ग्रंथ रखा—'शिव रहस्यम'। पिता ने दी थी।
गाँव वालों ने मना किया। "पिछले साल रामू चला गया था, लौटा नहीं।"
अर्जुन ने कहा, "मैं लौटूँगा।"
गुफा का मुँह छोटा था। अंदर अंधेरा। टॉर्च की रोशनी में दीवारों पर संस्कृत मंत्र उकेरे थे।
ॐ नमः शिवाय
सत्यं शिवं सुंदरम्
वह आगे बढ़ा। रास्ता संकरा होता गया। हवा ठंडी। अचानक एक खाई। नीचे गहरा अंधेरा।
अर्जुन ने रस्सी बाँधी, लटक गया। पैर ज़मीन पर पड़े। सामने एक दरवाज़ा—पत्थर का। उस पर लिखा:
"सच के द्वार पर झूठ का ताला। सच्चा प्रश्न पूछो, द्वार खुलेगा।"
अर्जुन सोचा। फिर बोला:
"मैं कौन हूँ?"
दरवाज़ा खुला।
चतुर्थ अध्याय: स्मृतियों का कक्ष
अंदर एक गोलाकार कक्ष। बीच में एक जलता दीपक। चारों तरफ़ दर्पण। हर दर्पण में अर्जुन का चेहरा—पर अलग-अलग।
एक में वह बच्चा था।
एक में बूढ़ा।
एक में राजा।
एक में भिखारी।
एक दर्पण में उसकी माँ रो रही थीं।
एक में पिता मंदिर में पूजा कर रहे थे।
अचानक एक आवाज़ गूँजी:
"यहाँ समय नहीं है। यहाँ केवल 'सच' है।"
अर्जुन ने पूछा, "पौराणिक सच क्या है?"
दीपक की लौ बड़ी हुई। सामने वही स्त्री प्रकट हुई—पार्वती।
पंचम अध्याय: पार्वती का रहस्य
"बैठो, अर्जुन।"
अर्जुन बैठ गया।
"तुम सोचते हो कि पौराणिक कथाएँ मिथक हैं। पर सच यह है—हर कथा एक कोड है।"
उसने हाथ बढ़ाया। हवा में चित्र उभरे।
१. रामायण का कोड
"राम ने रावण को मारा—यह सिखाता है कि अहंकार का अंत अनिवार्य है। पर असली सच? रावण के दस सिर थे—दस इंद्रियाँ। राम ने उन्हें नियंत्रित किया।"
२. महाभारत का कोड
"कुरुक्षेत्र युद्ध? बाहरी नहीं, भीतरी। पांडव = सद्गुण, कौरव = दुर्गुण। कृष्ण = अंतर्मन।"
३. शिव-पार्वती का कोड
"शिव आधे पुरुष, आधे स्त्री—अर्धनारीश्वर। इसका मतलब? पुरुष और स्त्री ऊर्जा एक ही। अलगाव भ्रम है।"
अर्जुन स्तब्ध।
"पर गुफा में लोग क्यों ग़ायब हो जाते हैं?"
पार्वती मुस्कुराईं।
"जो सच जान लेता है, वह दुनिया में नहीं रह सकता। वह 'सच' बन जाता है।"
षष्ठ अध्याय: परीक्षा
"अब तुम्हारी बारी। एक प्रश्न का उत्तर दो। ग़लत हुआ तो यहीं रहोगे।"
प्रश्न:
"तुम्हारा सबसे बड़ा झूठ क्या है?"
अर्जुन सोचा।
"मैंने कभी झूठ नहीं बोला।" —नहीं, यह झूठ होगा।
वह याद करने लगा।
बचपन में माँ से कहा था, "मैंने बर्तन नहीं तोड़े।"
कॉलेज में दोस्त से, "मैंने असाइनमेंट किया है।"
पिछले साल प्रेमिका से, "मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूँगा।"
पर सबसे बड़ा झूठ?
अचानक समझ आया।
"मेरा सबसे बड़ा झूठ है—'मैं वैज्ञानिक हूँ, मुझे अंधविश्वास पर विश्वास नहीं।' पर मैं भी तो डरता हूँ, प्रार्थना करता हूँ, माँ को याद करता हूँ।"
पार्वती हँसीं।
"सच स्वीकार किया। द्वार खुला।"
सप्तम अध्याय: वापसी
अर्जुन बाहर निकला। सूरज ढल रहा था। गाँव वाले हैरान।
"तू ज़िंदा है?"
अर्जुन ने कुछ नहीं कहा। घर गया। माँ-पिता को गले लगाया।
रात को मंदिर में बैठा। शिवलिंग के सामने।
अब उसे समझ आया—
पौराणिक कथाएँ मिथक नहीं, दर्पण हैं।
वे हमें खुद को देखने को मजबूर करती हैं।
अष्टम अध्याय: नया जीवन
अर्जुन ने दिल्ली लौटने का टिकट कैंसल किया। गाँव में ही रहा।
स्कूल खोला। बच्चों को कहानियाँ सुनाई—पर अब कोड के साथ।
"राम ने रावण को मारा—मतलब अपने गुस्से को मारो।"
"कृष्ण ने गोवर्धन उठाया—मतलब अपने आत्मविश्वास को उठाओ।"
लोग आते। सुनते। बदलते।
एक दिन एक लड़की आई—नाम था सीमा।
"सर, मुझे भी गुफा में जाना है।"
अर्जुन मुस्कुराया।
"गुफा बाहर नहीं, अंदर है। बंद आँखें। पूछो—'मैं कौन हूँ?'"
अंतिम अध्याय: पौराणिक सच
सालों बाद।
अर्जुन बूढ़ा हो गया। मंदिर के बाहर बैठा। बच्चे घेरे हुए।
एक बच्चे ने पूछा, "दादाजी, पौराणिक सच क्या है?"
अर्जुन ने आँखें बंद कीं।
"सच यह है—
तुम राम हो, रावण हो।
तुम शिव हो, शक्ति हो।
तुम जन्मे नहीं, मरे नहीं।
बस भूल गए हो।
कथाएँ याद दिलाती हैं।
गुफाएँ अंदर हैं।
और द्वार?
तुम्हारा सच्चा प्रश्न।"
बच्चा समझा नहीं। पर मुस्कुराया।
अर्जुन ने शिवलिंग देखा।
लौ अब उसके अंदर जल रही थी।
ॐ नमः शिवाय।
समापन शब्द
गाँव आज भी है। गुफा आज भी है।
पर अब कोई ग़ायब नहीं होता।
क्योंकि अब हर कोई जानता है—
सच बाहर नहीं, भीतर है।
और पौराणिक कथाएँ?
वे बस ख़त हैं—अपने आप को।
लेखक की टिप्पणी
यह कहानी काल्पनिक है, पर उसका सच शाश्वत।
हर पौराणिक कथा एक दर्पण है। उसे देखो। खुद को पहचानो।
—विजय शर्मा एरी
(कुल शब्द: १४९८)