दिल के रंग
लेखक: विजय शर्मा एरी
परिचय
दिल का रंग क्या होता है? कोई कहेगा लाल, प्रेम का प्रतीक। कोई कहेगा काला, दर्द का साया। लेकिन सच्चाई तो यह है कि दिल के रंग अनगिनत हैं—हर इंसान के जीवन की कहानी में वे बदलते रहते हैं। यह कहानी है एक ऐसे युवक की, जिसका नाम है आरव। आरव का दिल कभी हरा था, उम्मीदों से भरा। कभी नीला, उदासी की गहराई में डूबा। और कभी सुनहरा, खुशियों की चमक से जगमगाता। 'दिल के रंग' आरव की यात्रा है, जहां प्रेम, विश्वासघात, संघर्ष और मुक्ति के रंग एक-दूसरे में घुलमिल जाते हैं।
आरव का जन्म एक छोटे से गांव में हुआ था, जहां पहाड़ियां हरी-भरी चादर ओढ़े सांस लेती थीं। उसके पिता एक किसान थे, मां एक स्कूल शिक्षिका। बचपन से ही आरव को कहानियां सुनने का शौक था। मां की गोद में बैठे वह सुनता, "बेटा, जीवन एक कैनवास है, और दिल उसकी ब्रश। रंग चुनना तेरे हाथ में है।" लेकिन जीवन ने उसे सिखाया कि रंग चुनना आसान नहीं।
हरा रंग: उम्मीद की शुरुआत
आरव के दिल का पहला रंग हरा था—वसंत की तरह ताजा, नया। कॉलेज के पहले दिन, जब वह दिल्ली पहुंचा, तो शहर की चकाचौंध ने उसके आंखों को चौंका दिया। लेकिन सबसे ज्यादा चमक उठी नेहा की मुस्कान से। नेहा, उसकी क्लासमेट, लंबे काले बालों वाली, आंखों में समंदर समेटे लड़की। "हाय, मैं नेहा। तुम नए हो न?" उसकी आवाज में मिठास थी, जैसे शहद की बूंदें।
आरव का दिल धड़क उठा। हरा रंग फैल गया—उम्मीद का, प्रेम का। वे साथ घूमने लगे, कॉफी पीने, किताबें साझा करने। नेहा को पेंटिंग का शौक था। "देखो आरव, रंगों में जादू है। हरा जीवन है, नीला शांति।" आरव मुस्कुराता, "और लाल?" नेहा शरमाती, "वो तो दिल का रंग है।" शामें कब बीत जातीं, पता न चलता। आरव सोचता, जीवन परफेक्ट है। नौकरी मिल गई एक आईटी कंपनी में, नेहा के साथ शादी की बातें होने लगीं। हरा रंग इतना गहरा हो गया कि आरव को लगा, यह कभी फीका नहीं पड़ेगा।
लेकिन रंग तो बदलते हैं। एक शाम, जब आरव ने नेहा को प्रपोज करने का फैसला किया, तो फोन पर उसकी आवाज कांप रही थी। "आरव, मुझे कुछ बताना है।" आरव का दिल बैठ गया। नेहा ने कहा, "मेरा परिवार मुझे विदेश भेज रहा है। और... मैं जा रही हूं।" कोई बहाना नहीं, बस विदाई। आरव समझ गया—प्रेम में भी शर्तें होती हैं। हरा रंग पीला पड़ने लगा।
पीला रंग: धोखे की छाया
पीला रंग आया—सूरज की किरणों जैसा चमकीला, लेकिन अंदर से जलता हुआ। आरव अकेला पड़ गया। ऑफिस में काम, लेकिन मन कहीं और। दोस्त कहते, "भूल जा यार।" लेकिन कैसे भूलें? नेहा के मैसेज आते— "ख्याल रखना।" हर शब्द चाकू की तरह लगता। एक दिन, फेसबुक पर देखा—नेहा की नई पिक्चर, किसी अनजान लड़के के साथ। कैप्शन: "नई शुरुआत।" आरव का दिल टूट गया। पीला रंग काला होने लगा।
वह रातें जागकर बिताता। "क्यों नेहा? क्या मैं कम था?" सवालों का सैलाब। नौकरी में गलतियां होने लगीं। बॉस ने डांटा, "आरव, क्या हो गया तुझे?" लेकिन कौन बताए? दिल का दर्द तो छुपा रहता है। एक शाम, बारिश में भीगते हुए वह सड़क पर चला। ट्रैफिक लाइट पर रुकते हुए सोचा, "जीवन खत्म हो जाए तो?" लेकिन तभी एक बूढ़ा आदमी आया, छाता थमाया। "बेटा, बारिश में भीगना अच्छा नहीं। चल, चाय पी।" उसका नाम था शर्मा जी, रिटायर्ड टीचर।
शर्मा जी की बातों ने आरव को छुआ। "दिल के रंग बदलते हैं बेटा। पीला दर्द है, लेकिन वो भी गुजर जाता है।" वे रोज मिलने लगे। शर्मा जी की कहानियां सुनता आरव—अपनी पत्नी को खोने की, फिर जीवन में नई उम्मीद ढूंढने की। "रंगों को अपनाओ, लड़ो मत उनसे।" धीरे-धीरे पीला रंग फीका पड़ा। आरव ने पेंटिंग सीखनी शुरू की, नेहा की याद में। कैनवास पर रंग उड़ेलता, दर्द को आकार देता।
काला रंग: गहरा अंधेरा
लेकिन जीवन ने फिर चाल चली। एक दिन फोन आया—पिता बीमार। आरव गांव भागा। पिता बिस्तर पर, सांसें टूटी-फूटी। "बेटा, खेत बेच दिए। कर्ज चुकाने को।" मां रो रही, "डॉक्टर कहते हैं, ऑपरेशन के पैसे..." आरव का दिल काला हो गया—अंधेरे का रंग, जहां रोशनी नहीं पहुंचती। शहर की चकाचौंध व्यर्थ लगी। वह नौकरी छोड़कर गांव लौटा। खेत संभाले, लेकिन बारिश न हुई। सूखा पड़ा। कर्ज बढ़ा। रातें अनिद्रा की। "भगवान, क्यों मेरे साथ?" प्रार्थना में भी शक।
गांव वाले कहते, "शहर जाकर कमाओ।" लेकिन आरव ने हार न मानी। एक एनजीओ से जुड़ा, जहां पर्यावरण पर काम होता। वहां मिली रिया। रिया, एक्टिविस्ट, आंखों में आग, हाथों में मिट्टी। "आरव, पानी बचाओ, जीवन बचाओ।" वे साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के प्रोजेक्ट पर काम करने लगे। रिया की हंसी ने काले रंग में हल्की सी दरार डाली। "देखो, बादल आ रहे हैं। उम्मीद है।" बारिश हुई, खेत लहलहाए। कर्ज चुकाने के पैसे आए। लेकिन काला रंग पूरी तरह न गया। रिया से प्रेम हुआ, लेकिन डर भी—फिर धोखा तो न?
नीला रंग: शांति की खोज
नीला रंग आया—समंदर जैसा गहरा, शांत। आरव और रिया की दोस्ती गहरी हुई। वे पहाड़ियों पर चढ़ते, नदी किनारे बैठते। "आरव, दिल के रंग बदलते हैं, लेकिन सच्चा रंग वही जो स्थायी हो।" रिया कहती। आरव ने नेहा को भुला दिया। एक दिन, शर्मा जी का फोन आया— "बेटा, मैंने तेरी पेंटिंग देखी। शो में डाल।" आरव हिचकिचाया, लेकिन रिया ने हौसला दिया। दिल्ली में शो हुआ। लोग सराहने लगे। "ये रंग... कितने जीवंत!" एक प्रकाशक ने किताब का ऑफर दिया— 'दिल के रंग'।
नीला रंग फैला। शांति मिली। पिता ठीक हो गए, मां मुस्कुराई। लेकिन जीवन रुकता कहां? रिया ने कहा, "आरव, मुझे गांव जाना है। मेरी मां बीमार।" आरव समझ गया—प्रेम में अलगाव भी होता है। रिया चली गई, वादा किया लौटने का। नीला रंग थोड़ा धुंधला पड़ा, लेकिन अब आरव जान चुका था—रंग बदलेंगे, लेकिन दिल मजबूत रहेगा।
लाल रंग: प्रेम की वापसी
लाल रंग लौटा—जोश का, जुनून का। महीनों बाद रिया लौटी। "आरव, मैंने फैसला किया। यहां रहूंगी, तेरे साथ।" आंसू, हंसी, गले लगना। शादी हुई, सादगी से। गांव में, पहाड़ियों के साये में। दिल का लाल रंग चमका। लेकिन लाल में भी भूरे छींटे आते हैं—झगड़े, गलतफहमियां। एक दिन रिया ने कहा, "तुम कितने स्वार्थी हो। हमेशा अपनी पेंटिंग।" आरव चुप रहा। रात को सोचा, "रंग संतुलित करने पड़ते हैं।"
उसने रिया को सरप्राइज दिया—एक पेंटिंग, जहां दोनों के रंग घुले हुए। "ये हमारा रंग।" रिया रो पड़ी, "माफ करो।" लाल रंग और गहरा हो गया। बच्चा हुआ—एक बेटी, नाम रखा रंगोली। जीवन में रंगों का मेलजोल। आरव की किताब छपी, बेस्टसेलर बनी। लोग पढ़ते, "दिल के रंग कितने सुंदर।"
सुनहरा रंग: मुक्ति का प्रकाश
अंत में आया सुनहरा रंग—सूर्योदय जैसा, चमकदार। आरव अब एक सफल लेखक, कलाकार। गांव में स्कूल खोला, जहां बच्चे रंग सीखते। शर्मा जी आए, "बेटा, तूने साबित कर दिया। रंग बदलते हैं, लेकिन इंसान नहीं।" नेहा का मैसेज आया— "किताब पढ़ी। गर्व है।" आरव मुस्कुराया, "धन्यवाद।"
रंगोली के साथ खेलते, रिया के कंधे पर सिर रखे, आरव सोचता—दिल के रंग अनगिनत, लेकिन हर रंग एक सबक। हरा सिखाता उम्मीद, पीला धोखा, काला संघर्ष, नीला शांति, लाल प्रेम, सुनहरा मुक्ति। जीवन कैनवास है, ब्रश हमारे हाथ में।
समापन
आरव की कहानी खत्म नहीं होती। हर दिन नया रंग जुड़ता है। आपका दिल क्या रंग लिए है? सोचिए। शायद यह कहानी आपके रंगों को छू ले। क्योंकि दिल के रंग, वे तो बस... रंग हैं।
(शब्द संख्या: लगभग १५००। यह काल्पनिक कहानी है, प्रेरणा से भरी।)