✨ बेजुबान इश्क ✨ रोमांटिकअगले दिन सुबह 8:22 की लोकल हमेशा की तरह आई…भीड़ वही, स्टेशन वही, पर इंतज़ार अलग था।आदित्य खड़ा था—नजर बार-बार प्लेटफॉर्म पर दौड़ती।और फिर अन्या आई…धीरे-धीरे चलते हुए, आँखों में हल्की सी थकान,लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान।आदित्य ने चैन की सांस ली।दोनों बिना बोले एक-दूसरे के पास खड़े हो गए।कुछ देर की खामोशी के बादअन्या ने ही बात शुरू की—“आदित्य… क्या तुम आज मेरे साथ अगला स्टेशन चलोगे?थोड़ी दूर… थोड़ी बात?”आदित्य ने बस सिर हिलाया—“जहाँ तुम कहो।”---स्टेशन के बाहर एक शांत बगीचा था…दोनों एक बेंच पर बैठ गए।पत्तों में से आती हल्की धूप चेहरे पर पड़ रही थी।अन्या ने गहरी सांस ली—जैसे बहुत भारी बोझ उतारना हो।“आदित्य… मैं बहुत कुछ छिपा रही थी।”आदित्य उसकी आँखों में देख रहा था—बिना एक भी शब्द के।अन्या आगे बोली—“पिछले महीने मेरे पापा का एक्सीडेंट में निधन हो गया…माँ पहले ही हमें छोड़ चुकी थीं।”उसकी आवाज टूट गई।“इन दो दिनों में मैं हॉस्पिटल, कागज़ात, अकेले घर…सब सँभाल रही थी।मैं टूट रही थी… पर टूटना चाह भी नहीं सकती थी।”आदित्य का दिल कस गया।उसने बिना अनुमति उसके हाथों को अपने हाथों में ले लिया—मजबूती से, प्यार से।“अन्या… बोलने की जरूरत नहीं।मैं हूँ ना।जब तुम चुप रहो, तब भी मैं सुनूँगा।”अन्या रो पड़ी—सिर झुकाकर आधी हथेली से आँसू पोंछते हुए बोली—“मुझे डर लगता है… फिर से किसी को खो देने का।”आदित्य उसके और करीब आया,धीरे से बोला—“मैं खोने के लिए नहीं हूँ,मैं साथ चलने के लिए हूँ।”अन्या ने उसकी आँखों में देखा—वहाँ सिर्फ सच्चाई थी।पहली बार उसने आदित्य के कंधे पर सिर टिकाया।दोनों चुप थे…पर खामोशी भी बहुत बोल रही थी।---उसी पल…आदित्य ने धीमे से कहा—“अन्या, अगर तुम चाहो तो हम अपनी खामोश मोहब्बत कोएक नाम दे सकते हैं…”अन्या ने आँखें बंद कीं,गहरी सांस लेकर बस इतना कहा—“नाम की जरूरत नहीं…तुम साथ रहो बस।”आदित्य मुस्कुराया—“हमेशा।”और उस दिन,उनके बेजुबान इश्क को आवाज़ तो नहीं मिली,पर एक मजबूत शुरुआत ज़रूर मिली उस दिन के बाद से अन्या और आदित्य रोज़ उसी लोकल में मिलते रहे।अब उनकी खामोशियाँ भी मुस्कुराहटों में बदलने लगी थीं।अन्या पहले से हल्की, थोड़ा शांत, थोड़ी उजली लगने लगी।और आदित्य… वो उसे हँसते देखने के लिए कुछ भी कर सकता था।उसने मन में ठान लिया—“आज मैं अन्या को मुस्कुराऊँगा… दिल से।”---अगले दिन — लोकल में एक सरप्राइज़आज ट्रेन में अन्या आई तो देखा,आदित्य हमेशा वाली जगह पर खड़ा नहीं था।वो थोड़ा आगे किसी सीट पर बैठा मुस्कुरा रहा था।अन्या हैरान, थोड़ा नाराज़ भी—क्यों नहीं देखा उसने आज?वो जैसे ही पास गई,आदित्य ने अपनी बैग से एक छोटी डायरी निकाली,और उसकी ओर बढ़ा दी।कवर पर सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी— “आज बिना बोलें एक सफर साथ…”अन्या ने डायरी खोली।पहले पेज पर लिखा था—“चलो ट्रेन से उतरकर थोड़ी सी ज़िन्दगी जी लें?”– आदित्यअन्या ने उसे देखा—आँखों में हैरानी और होंठों पर अनजाना सा मुस्कुराहट।ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी,आदित्य ने हाथ आगे बढ़ाया—“चलें?”अन्या ने हल्के से हाथ उसके हाथ में रखा—पहली बार इतने करीब, बिना डर, बिना झिझक।---एक छोटी-सी पहली डेटदोनों स्टेशन के पास वाले छोटे कैफ़े में पहुँचे।वहाँ हल्की-हल्की बारिश होने लगी थी।खिड़की के पास की टेबल पर बैठे,गरम कॉफ़ी की भाप और बारिश की खुशबू हवा में थी।कुछ देर बाद आदित्य ने स्लिप पर लिखा—“कितने दिनों बाद तुमने दिल से मुस्कुराया?”अन्या ने पेन लिया और जवाब लिखा—“आज… बहुत दिनों बाद।”उसने पहली बार दिल खोलकर हँसी,इतनी सच्ची, इतनी गहरी—कि आदित्य बस उसे देखता रह गया।हँसी रोककर अन्या ने कहा—“तुम क्या जादू करते हो?”आदित्य मुस्कुराते हुए—“कुछ नहीं… बस तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ।”---वो पल…बारिश बाहर तेज़ हो गई।अन्या ने खिड़की से बाहर देखा और धीरे से कहा—“काश ये पल रुक जाते।”आदित्य ने उसकी ओर देखा—“हम रुक नहीं सकते… पर साथ चल सकते हैं।”अन्या ने उसकी आँखों में लंबे समय तक देखा—जैसे पहली बार सच में अपना कहीं कोई मिल गया हो।उसने धीमे से कहा—“आदित्य… शायद मैं फिर से जीना सीख रही हूँ।”आदित्य ने हाथ उसके हाथ पर रखा—“मैं यहीं हूँ… जब तक तुम पूरी बन जाओ।”--------next part