जब भी पाकिस्तान का नाम आता है, हमारे मन में आतंकवाद, सेना और राजनीतिक अस्थिरता की छवि उभरती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में इस देश ने अपनी एक और काली पहचान बनाई है, नशे के कारोबार पर टिका राष्ट्र, यानी एक "नार्को-स्टेट"।
अमेरिकी कांग्रेस के गुप्त दस्तावेजों, द टेलीग्राफ और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे अंतरराष्ट्रीय समाचार स्रोतों के अनुसार, पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अफगानिस्तान और बलूचिस्तान में अफीम की खेती के जरिए एक विशाल आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया है। धर्म के नाम पर बने इस देश ने आज हेरोइन और आतंक के पैसों पर चलने वाला एक काला साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
1980 का दशक: हेरोइन साम्राज्य की नींव
यह कहानी शुरू होती है 1980 के दशक में, जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया था। अमेरिका सीधे इस युद्ध में उतरना नहीं चाहता था, इसलिए उसने पाकिस्तान के ज़रिए अफगान मुजाहिदीनों को मदद भेजी। इसी मदद के साथ पाकिस्तान में अफीम और हेरोइन की नई अर्थव्यवस्था खड़ी हुई।
अफगान सीमा से लगे बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा इलाकों में अफीम की खेती शुरू हुई, और धीरे-धीरे ये इलाके हेरोइन उत्पादन केंद्र बन गए। 1980 के दशक के आखिर तक पाकिस्तान दुनिया की लगभग 60% हेरोइन का सप्लायर बन गया था। उस समय अमेरिका का ध्यान सोवियत संघ पर केंद्रित था, इसलिए इन गतिविधियों को नज़रअंदाज़ किया गया।
आईएसआई और हेरोइन व्यापार
इसी दौर में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस व्यापार में सीधा दखल देना शुरू किया। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगान सीमा के पास कई हेरोइन फैक्ट्रियां आईएसआई की सुरक्षा में चलती थीं।
हेरोइन से कमाए गए पैसों का इस्तेमाल लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हक्कानी नेटवर्क जैसी आतंकवादी संगठनों को फंडिंग देने के लिए किया जाता था।
पाकिस्तान ने हेरोइन व्यापार से कमाए धन को आतंकवाद के लिए ईंधन की तरह इस्तेमाल किया और साथ ही खुद को दुनिया के सामने “आतंकवाद-विरोधी देश” के रूप में पेश किया।
बलूचिस्तान: नशे की छिपी राजधानी
बलूचिस्तान पाकिस्तान के कुल भूभाग का लगभग 40% हिस्सा है। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद हमेशा उपेक्षित रहा।
इस असंतोष का फायदा उठाकर आईएसआई ने यहां अफीम और हेरोइन का व्यापार फैलाया। बलूचिस्तान में तैयार होने वाली हेरोइन कराची, ग्वादर और ओरमारा बंदरगाहों से अरब देशों और यूरोप तक भेजी जाने लगी।
कई रिपोर्टों के अनुसार, कुछ मात्रा भारत के रास्ते भी तस्करी की गई। भारत की सीमाओं पर जब भी ड्रग्स के बड़े भंडार पकड़े गए, उनमें पाकिस्तानी सबूत स्पष्ट रूप से सामने आए।
तालिबान और नशे की अर्थव्यवस्था
1990 के दशक में अफगानिस्तान में तालिबान का उदय हुआ और पाकिस्तान ने उन्हें खुला समर्थन दिया। तालिबान ने अफीम उत्पादन को “इस्लामी अर्थव्यवस्था का हिस्सा” घोषित कर दिया।
इस समय अफगानिस्तान और पाकिस्तान मिलकर दुनिया की 85% से ज़्यादा हेरोइन का उत्पादन कर रहे थे।
अफगानिस्तान के तालिबान नियंत्रित इलाकों में तैयार हेरोइन पाकिस्तान के ज़रिए वैश्विक बाजार तक पहुंचाई जाती थी, और इस व्यापार से होने वाला लाभ आतंकवादी संगठनों को भेजा जाता था।
अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत गोपनीय रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान के कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने इस व्यापार से करोड़ों डॉलर कमाए, इन्हें “नार्को-जनरल्स” कहा जाने लगा।
आज का पाकिस्तान: कंगाली में भी नशे का कारोबार
आज पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। डॉलर की कमी, महंगाई और बेरोजगारी ने आम नागरिकों को त्रस्त कर रखा है।
लेकिन एक अर्थव्यवस्था अब भी मज़बूत है, वह है ड्रग्स की काली अर्थव्यवस्था।
संयुक्त राष्ट्र की UNODC रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग दो अरब डॉलर से अधिक मूल्य के नशीले पदार्थ पाकिस्तान से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भेजे जाते हैं। इनमें अधिकतर हेरोइन और मेथामफेटामाइन होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 10–12% हिस्सा इसी अवैध व्यापार से आता है।
भारत के लिए बढ़ता खतरा
भारत के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। पंजाब और राजस्थान की सीमाओं पर पिछले कुछ वर्षों में जब्त किए गए ड्रग्स के बड़े भंडारों के पीछे पाकिस्तानी नेटवर्क का हाथ स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
ड्रोन के माध्यम से भारत में हेरोइन और हथियार भेजने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
यह न केवल सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी संकट है, बल्कि यह भारत की आंतरिक स्थिरता के लिए भी खतरा है।
सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान का यह ड्रग व्यापार भारत के खिलाफ “हाइब्रिड वॉरफेयर” का हिस्सा है।
पाकिस्तान की दोहरी भूमिका
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान खुद को आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाला देश बताता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां हेरोइन के पैसों पर चलती हैं।
अमेरिका ने कई बार पाकिस्तान को चेतावनी दी, लेकिन भू-राजनीतिक कारणों से अब तक कोई कठोर कार्रवाई नहीं की।
पश्चिमी देशों को पाकिस्तान की यह दोहरी भूमिका भलीभांति पता है, लेकिन अफगानिस्तान की अस्थिरता और चीन के साथ संबंधों के कारण वे पाकिस्तान से पूरी तरह दूरी नहीं बना पाते।
आत्मघात की राह पर पाकिस्तान
धर्म के नाम पर बना पाकिस्तान आज नशे और आतंक के जाल में फंस चुका है।
उसकी सेना, आईएसआई और राजनेता देश को ऐसी दिशा में ले जा रहे हैं, जहां न नैतिकता बची है, न अर्थव्यवस्था और न ही समाज।
आज पाकिस्तान का भविष्य हेरोइन और आतंक के पैसों पर टिका है जितना खतरनाक, उतना ही आत्मघाती।
पाकिस्तान की यह सच्चाई केवल उसी के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी है।
क्योंकि जो देश अपने ही लोगों को ज़हर देता है, वह अपने पड़ोसियों को भी शांत नहीं रहने देता।
अब दुनिया को पाकिस्तान के इस “नार्को-टेरर मॉडल” को गंभीरता से लेना होगा, क्योंकि यह सिर्फ एक देश का मामला नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए चेतावनी है।