Adhuri Kitaab - 53 in Hindi Horror Stories by kajal jha books and stories PDF | अधुरी खिताब - 53

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अधुरी खिताब - 53

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✨ एपिसोड 53 — “अंधेरी आर्या की शर्त और रूह की स्याही का सौदा”

(सीरीज़: अधूरी किताब)


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🌫️ 1. हवेली शांत हुई… पर खामोशी तूफ़ान से पहले की थी

अंधेरी आर्या के गायब होते ही हवेली में पसरी दहशत ढीली पड़ी—
लेकिन हवा में अभी भी बर्फ़ जैसा सन्नाटा था।

फर्श के टूटे हिस्से धीरे-धीरे खुद-ब-खुद फिर जुड़ने लगे,
दीवारों की दरारें भरने लगीं,
और पुराने झूमर फिर से झिलमिलाने लगे।

रूहानी ने राहत की साँस ली—

“लग रहा था जैसे हम सब खत्म हो जाते…”

राज मल्होत्रा ने फिर भी डायरी को ज़ोर से पकड़ा हुआ था।

“नहीं… कहानी यहीं शांत नहीं होगी।
अंधेरी आर्या सिर्फ पीछे हटी है… हारी नहीं।”

शौर्य ने अलीशा को अपनी बाँहों में थाम रखा था,
जैसे किसी भी पल फिर खतरा लौट आए।

लेकिन इस बार…
अलीशा के भीतर डर नहीं—
फैसले की आग थी।


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✒️ 2. रूह की कलम — जिसने अलीशा को बदल दिया

अलीशा ने हाथ में कलम को देखा।
नीली रोशनी अब उसके स्पर्श में स्थिर थी,
जैसे कलम ने अपना मालिक स्वीकार कर लिया हो।

राज ने चौंककर कहा—

“ये कलम मंत्रों से नहीं चलती…
ये भावनाओं से चलती है।
मतलब… जो तुम्हारी रूह महसूस करेगी, वही लिखने की शक्ति बनेगा।”

रूहानी मुस्कुरा दी—

“तो दीदी की शक्ति… प्यार है!”

शौर्य ने हौले से मुस्कुराया,
लेकिन उसकी आँखों में चिंता साफ़ थी।

“प्यार… हाँ।
पर इस कहानी में प्यार हमेशा आसान नहीं होता।”

अलीशा ने उसकी उँगलियों को पकड़ा—

“चाहे जो आए… मैं पीछे नहीं हटूँगी।”

शौर्य ने उसका माथा छूकर कहा—

“और मैं तुम्हें टूटने नहीं दूँगा।”

कमरे में एक पल के लिए गर्माहट भर गई…
लेकिन तभी—

ठंडी हवा का काटा फिर बहा।


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🌑 3. अंधेरी आर्या की वापसी — और उसकी शर्त

झूमर की रोशनी बुझ गई।
काली धुंध कमरे में घूमी—
और उसी के भीतर से
अंधेरी आर्या मुस्कुराती हुई उभरी।

उसकी हँसी धीमी… लेकिन जहरीली थी।

“प्यार कितना भरोसेमंद होता है…
ये देखने का समय आ गया है।”

शौर्य ने तुरंत अलीशा को पीछे किया।
अलीशा ने कलम संभाली।

अंधेरी आर्या ने शांति से कहा—

“डरो मत।
मैं लड़ने नहीं आई…
सिर्फ सौदा करने।”

राज ने डायरी कसकर पकड़ी—

“सौदे हमेशा खतरे छुपाए रखते हैं।”

अंधेरी आर्या ने उसे अनदेखा कर दिया।

उसने सीधा अलीशा की आँखों में देखा—

“मेरे पास तुम्हारी रूह का आधा हिस्सा है।
और तुम्हारे पास मेरी अमरता का आधा हिस्सा।”

अलीशा ने चौंकते हुए पूछा—

“मतलब… हम दोनों अधूरी हैं?”

अंधेरी आर्या ने सिर झुकाया—

“हाँ।
और इसलिए हम दोनों तब तक चैन नहीं पाएँगे…
जब तक रूह पूरी न हो जाए।”

शौर्य गुर्राया—

“तुम्हें लगा कि अलीशा तुम्हारे साथ जुड़ जाएगी? कभी नहीं!”

अंधेरी आर्या हँसी—

“वो तभी होगा अगर उसके पास और कोई रास्ता न बचे।”

फिर उसने अपनी कलाई घुमाई—
और काली ऊर्जा हवा में बही।

हवा ने एक आकार लिया।
एक सुनहरी रेत की घड़ी।

उसने धीरे-से कहा—

“रूह को पूरा होने का सिर्फ एक तरीका है —
या तो मैं अलीशा के भीतर समा जाऊँ…
या फिर अलीशा मेरे भीतर।”

रूहानी चीख उठी—
“दीदी ऐसा कभी मत करना!”

अलीशा काँपी लेकिन बोली—

“अगर मैं मना कर दूँ तो क्या?”

अंधेरी आर्या की आवाज़ पत्थर की तरह ठंडी—

“तो जिस रूह ने उसे प्यार किया…
उसका अस्तित्व गायब हो जाएगा।”

और उसकी उँगली सीधे शौर्य पर उठी।

सबके चेहरों का रंग उड़ गया।


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⚠️ 4. शर्त — समय की मुहर

अंधेरी आर्या ने सुनहरी रेत-घड़ी अलीशा के हाथ में रख दी।

“जब तक इस रेत में आखिरी दाना गिरेगा—
तुम्हें फैसला लेना होगा।”

राज ने घबराकर पूछा—

“और ये समय… कितने का है?”

अंधेरी आर्या मुस्कुराई—

“प्यार हमेशा जल्दी में होता है…
तो समय भी कम है।”

घड़ी का ऊपरी हिस्सा आधा ही भरा था।

अलीशा ने हकबकाकर कहा—

“ये तो कुछ घंटे ही हैं!”

अंधेरी आर्या ने सिर हिलाया—

“हाँ। अगर तुम्हारा प्यार सच है…
तो इन्हीं घंटों में मुझे हराकर
खुद को पूरा कर लो।”

शौर्य दहाड़ उठा—

“वह किसी भी हाल में तुझसे नहीं जुड़ेगी!”

अंधेरी आर्या ने उसकी आँखों में झाँककर कहा—

“तो तैयार रहो गुमनाम मौत के लिए।”

और पलक झपकते ही—
वह गायब हो गई।


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🕯️ 5. लड़ाई नहीं — फैसला सबसे बड़ा युद्ध

अलीशा जमीन पर बैठ गई।
उसने रेत-घड़ी को हथेलियों में कसकर पकड़ा।

हर गिरता हुआ रेत का दाना—
जैसे उसकी साँसें ले रहा था।

रूहानी रोने लगी—

“दीदी, ऐसा कैसे करोगी…
अपनी रूह उसे कैसे दोगी?”

अलीशा की आँखें भीग गईं—

“अगर मैंने फैसला गलत लिया…
तो शौर्य नष्ट हो जाएगा।”

राज ने गुस्से से मेज़ पर मुक्का मारा—

“तो फिर फैसला नहीं…
सच्चाई ढूँढनी होगी!
कहीं न कहीं समाधान है!”

शौर्य धीमे से अलीशा के सामने घुटनों पर बैठा।

उसने उसके चेहरे को हाथों में थामा—

“मुझे बचाने के लिए अपनी रूह मत दोगी।
अगर तुम टूट गई…
तो मेरा बचना बेकार है।”

अलीशा ने आँसू रोकते हुए कहा—

“पर मैं तुम्हें खो नहीं सकती।”

शौर्य ने उसके माथे पर होंठ रखे—

“अगर प्यार सच्चा है…
तो रूह टूटेगी नहीं।
लड़ेगी।”

उसने रूह की कलम उसकी हथेली में फिर से रख दी।

“लिखो, अलीशा।
अपनी नियति खुद लिखो।”

अलीशा ने आँसू पोंछे।
उसने कमर सीधी की—
और रूह की कलम कागज पर रख दी।

वह लिखने ही वाली थी कि—

खिड़कियाँ कर्राकर खुलीं।
आवाज़ आई —
दरवाजे के बाहर कोई खड़ा है।

हवेली की घड़ी ने रात के बारह बजाए।

राज धीरे-धीरे बोला—

“लगता है… खेल का असली दौर अब शुरू होने वाला है।”

और रेत-घड़ी की रेत
तेज़ी से गिरने लगी।


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🌙 एपिसोड 53 समाप्त