1. वही पुरानी बालकनी
दिल्ली की सर्द सुबह थी।
माया अपनी पुरानी बालकनी में बैठी थी — हाथ में चाय का कप, सामने वही सड़क, वही आवाज़ें, वही अकेलापन।
हर रोज़ की तरह उसने अपने पौधों को पानी दिया, और पुराने रेडियो से किशोर कुमार की आवाज़ बजने लगी —
> “कुछ तो लोग कहेंगे…”
वो मुस्कुरा दी।
लोगों ने हमेशा कहा ही था।
“इतनी पढ़ी-लिखी लड़की होकर अकेली क्यों रहती है?”
“शादी क्यों नहीं की?”
“ज़िंदगी ऐसे कैसे चलती है?”
माया हर सवाल का जवाब एक मुस्कान से देती थी।
क्योंकि कुछ जवाब सिर्फ़ दिल जानता है।
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2. वह दो साल
दो साल पहले तक माया की ज़िंदगी अलग थी।
रोज़ का हँसना, घूमना, प्यार में डूबे दिन…
रवि नाम था उसका।
इंजीनियर था, और माया की दुनिया भी।
दोनों का रिश्ता परफेक्ट नहीं था, पर सच्चा था।
एक दिन रवि बोला —
> “अगर ज़िंदगी कहीं फँस जाए, तो याद रखना… मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
माया ने मज़ाक में कहा — “मर गए तो भी?”
रवि हँसा — “मर गया तो वहीं रहूँगा, तुम्हारी चाय की खुशबू में।”
उसे क्या पता था — वो वाक्य आख़िरी मुलाकात बनेगा।
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3. हादसा
उस शाम रवि अपनी बाइक से लौट रहा था।
बारिश हो रही थी।
फोन पर माया से बात करते हुए बोला — “बस पाँच मिनट…”
पर वो पाँच मिनट कभी पूरे नहीं हुए।
एक ट्रक ने उसे टक्कर मारी।
फोन गिरा, आवाज़ रुकी, और माया की ज़िंदगी भी।
रात भर उसने हॉस्पिटल के बाहर बैठकर सिर्फ़ एक ही वाक्य दोहराया —
> “बस पाँच मिनट…”
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4. लोगों की दुनिया
समय बीता।
रवि नहीं रहा, पर उसकी यादें हर जगह थीं — किताबों में, दीवारों में, यहाँ तक कि चाय के प्यालों में भी।
लोगों ने समझाना शुरू किया —
“अब तो आगे बढ़ो।”
“इतने साल हो गए।”
पर माया के लिए आगे बढ़ना मतलब भूलना था —
और वो भूलना नहीं चाहती थी।
उसने नौकरी छोड़ दी, घर बदला नहीं।
बस वही बालकनी, वही कुर्सी, वही कप — जैसे रवि अब भी बैठा हो उसके सामने।
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5. अनजान चिट्ठी
एक दिन दरवाज़े पर लिफाफा गिरा मिला।
बिना पते, बिना नाम।
अंदर एक चिट्ठी थी —
> “कभी-कभी हम मरते नहीं, बस किसी की यादों में रह जाते हैं।
तुम अब भी वहीं बैठी हो, और मैं अब भी तुम्हारे पास हूँ — बस अलग वक़्त में।”
नीचे सिर्फ़ एक शब्द था — R।
माया की आँखें भर आईं।
वो बालकनी में बैठी —
एक कप चाय बनाई, और सामने वाली खाली कुर्सी पर रखा।
धीरे से बोली — “आज फिर दो कप चाय होगी।”
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6. नई सुबह
धीरे-धीरे उसने लोगों की बातें सुनना बंद कर दिया।
अब वो हर सुबह पौधों से बातें करती थी —
“देखो, रवि, ये पौधा अब फूल दे रहा है…”
और जब भी हवा चलती, उसे लगता —
कोई कह रहा है, “मैं यहीं हूँ।”
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7. एक मुलाकात
एक दिन पास वाले नए किराएदार ने दरवाज़े पर दस्तक दी।
युवा था, शांत चेहरा।
बोला — “माया जी, आपकी बालकनी से जो पुरानी खुशबू आती है, बहुत अलग है…”
माया मुस्कुरा दी — “वो चाय की नहीं, यादों की खुशबू है।”
वो हँसा — “क्या मैं भी एक दिन उस चाय का हिस्सा बन सकता हूँ?”
माया ने कुछ नहीं कहा, बस अंदर चली गई —
दो कप रखे — एक पुराना, एक नया।
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8. आख़िरी पन्ना
उस रात 6उसने अपनी डायरी में लिखा —
> “ज़िंदगी कभी खत्म नहीं होती, बस किरदार बदलते हैं।
शायद अब वक्त है — फिर से मुस्कुराने का।”
बाहर बारिश थी।
बालकनी में दो कप चाय रखे थे।
एक पुरानी यादों के नाम, दूसरा नई उम्मीद के लिए।
और हवा में वही खुशबू थी —
रवि की… और माया की मुस्कान की।
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समाप्त।
कभी-कभी ज़िंदगी को बस एक कप चाय और थोड़ी सी हिम्मत की ज़रूरत होती है।
- By Tanya Singh