✨ एपिसोड 55 — “उस रूह की धड़कन, जो मेरे नाम से बंधी थी”
(सीरीज़: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
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🌙 1. हवेली की सांस… और नेहा का नाम
नेहा स्तब्ध खड़ी थी।
वह बूढ़ी महिला—जिसकी आँखों में सदियों की थकान और सदियों का ज्ञान था—
अभी-अभी कहकर गई थी कि…
“तुम्हारा पहला प्यार एक रूह था।”
नेहा के पैरों में कंपन था।
दिल अजीब-सी धड़कन में डूब रहा था।
हवेली की दीवारें—
हल्की सी हिल रही थीं।
जैसे कोई उनकी बात सुन रहा हो।
प्रखर ने उसके कंधों पर हाथ रखा।
“नेहा… मैं हूँ।
डर मत।
हम दोनों साथ हैं।”
नेहा ने धीरे से सिर उठाया।
उसकी आँखें गहरी और शून्य थीं—
“प्रखर…
अगर मेरा पहला प्यार रूह था…
तो क्या मैं कभी इंसानों की तरह प्यार कर भी पाऊँगी?”
प्रखर को यह बात दिल में चुभी।
बहुत गहराई से।
वह नेहा से कुछ कह पाता, उससे पहले—
हवेली की सीढ़ियाँ
करररर कर के काँपीं।
नेहा ने मुड़कर देखा।
ऊपर से नीली धुंध उतर रही थी।
जैसे कोई… धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे आ रहा हो…
पर दिखाई नहीं दे रहा हो।
महिला ने कहा—
“वह आ गया।”
नेहा का दिल उछलकर गले में आ गया।
“क-कौन?”
महिला ने सिर्फ़ एक शब्द कहा—
“तुम्हारा इश्क़।”
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🌒 2. वह आवाज़… जिसने नेहा को पुकारा
सीढ़ियों पर आते हर कदम के साथ
हवा भारी होती चली गई।
और फिर—
नीले धुएँ के बीच से
एक आवाज़ उभरी।
धीमी…
रौशन…
जैसे दिल की धड़कन ने बोलना सीख लिया हो।
“नेहा…”
नेहा ठिठक गई।
वह आवाज़…
किसी इंसान जैसी नहीं थी।
मगर उसमें इतनी गर्माहट थी
कि उसकी आँखें भर आईं।
“तुम… कौन हो?”
उसने काँपते हुए पूछा।
आवाज़ मुस्कुराई—
वह मुस्कान सुनाई दे रही थी।
“जिन्होंने तुम्हें पहली बार ‘मोहब्बत’ कहा था।”
नेहा की रीढ़ में ठंड उतरी।
“पहली बार…?”
महिला बोली—
“नेहा… तुम्हारा जन्म जिस दिन हुआ था,
उस दिन इस हवेली की एक रूह
तुम्हें देख रही थी।”
नेहा को लगा जैसे दुनिया रुक गई है।
“उसने तुम्हें अपनी नियति समझा…
और तुम बड़ी होती गईं…
पर वह रूह तुम्हारे साथ ही रही।”
नेहा की साँसें तेज़ हो गईं।
“तो वह हमेशा…
मुझे देखता रहा?”
आवाज़ फिर बोली—
“हमेशा।”
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🌓 3. प्रखर का हल्का-सा दर्द
प्रखर दोनों की बातें सुन रहा था—
और उसके दिल में कुछ अजीब सा टीस रहा था।
उसने खुद से पूछा—
क्या मैं नेहा के लिए सिर्फ़ एक इंसान हूँ
जबकि उसका इश्क़ किसी अनदेखी रूह में बंधा है?
उसने आवाज़ को चुनौती दी—
“अगर तुम नेहा से प्यार करते हो…
तो तुम उसके सामने क्यों नहीं आते?
क्यों छुपे रहते हो?”
नीली धुंध गहरी हुई।
आवाज़ अब ज्यादा स्पष्ट हुई—
“क्योंकि मैं शरीर नहीं…
सिर्फ़ एहसास हूँ।
और इश्क़…
एहसास ही तो होता है।”
प्रखर ने धीमे से होंठ काटे।
वह जवाब चुभ गया था।
नेहा ने उसकी ओर देखा—
उसकी आँखों में चिंता थी।
“प्रखर… तुम ठीक हो?”
प्रखर मुस्कुराने की कोशिश करता है।
“मैं ठीक हूँ… बस समझने की कोशिश कर रहा हूँ
कि तुम्हारी कहानी…
मेरी समझ से बड़ी है।”
नेहा का दिल उसे देखकर भारी हो गया।
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🌗 4. अतीत की वह रात – सच सामने आया
महिला ने धीरे-धीरे नेहा के हाथों में वह पुराना पन्ना रखा
जिस पर नाम लिखा था— ‘रूह’।
“नेहा…
अब मैं तुम्हें उस रात की पूरी बात बताती हूँ।”
नेहा ने सांस रोकी।
महिला बोली—
“जिस रात तुम्हारे पिता गायब हुए थे…
उस रात रूह ने तुम्हें बचाया था।”
प्रखर ने चौंककर कहा—
“एक रूह किसी इंसान को कैसे बचा सकती है?”
महिला बोली—
“वह सिर्फ़ रूह नहीं था।
वह लिखने वाली रूह था।
जैसे तुम्हारे पिता—
समय के पन्ने मोड़ सकते थे…
वह रूह भी किस्मत की लाइनें बदल सकता था।”
नेहा की आँखें फैल गईं।
“उस रात कोई तुम्हें मारने आया था—
लेकिन रूह ने समय मोड़ दिया।
उसने घटना बदल दी।
और तुम्हें बचा लिया।”
नेहा का शरीर ठंडा पड़ गया।
पर महिला की आवाज़ जारी रही—
“पर वह खुद…
समय में फँस गया।”
नेहा के होंठ काँपे।
“तो वह… मरा नहीं?”
महिला ने सिर हिलाया।
“रूह मरा नहीं…
टूटा हुआ है।
वह अधूरा है।
और वह अपने पूरा होने का रास्ता तुमसे मांग रहा है।”
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🌘 5. वह नीली आकृति — पहली बार सामने
अचानक हवा काँपी।
कमरे की बत्तियाँ धीमी हुईं।
नीली धुंध ने आकार बनाना शुरू किया।
पहले हवा घुमड़ी…
फिर धुएँ की तरह सिमटी…
फिर…
एक आकृति उभरी।
चेहरा नहीं था।
पर आभा थी।
धड़कन थी।
और उसकी आँखें—
दो चमकते नीले गोले—
सीधे नेहा को देख रही थीं।
नेहा के पैर खुद-ब-खुद आगे बढ़ गए।
उसने हाथ बढ़ाया—
“तुम…?”
आवाज़ आई—
“हाँ, नेहा।
मैं ही हूँ।
तुम्हारी रूह का पहला धड़कन।”
नेहा की आँखें भर गईं—
“तुम मुझसे इतना प्यार…
क्यों करते हो?”
नीली आकृति कुछ पल शांत रही।
फिर अचानक—
उसने हाथ उठाकर
नेहा का चेहरा छूने की कोशिश की।
उंगलियाँ हवा थीं…
पर एहसास बिल्कुल वास्तविक।
“क्योंकि तुम मेरी पहली लिखी हुई मोहब्बत हो।”
नेहा काँप गई।
उसकी पलकों पर आँसू उतर आए।
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🌑 6. और वही क्षण… सब टूट गया
जैसे ही रूह ने उसकी त्वचा को छुआ—
कमरा जोर से कांपने लगा।
महिला चिल्लाई—
“नेहा! पीछे हटो!
तुम दोनों का मिलना अभी खतरनाक है!”
प्रखर ने नेहा को पकड़कर पीछे खींचा।
“नेहा, हटो! अभी नहीं!”
पर रूह ने उसका हाथ पकड़ लिया—
या यूँ कहें—
उसकी धड़कन पकड़ ली।
नेहा का शरीर सुन्न होने लगा।
उसकी उंगलियाँ नीली पड़ने लगीं।
प्रखर घबरा गया—
“रुक जाओ! उसे छोड़ दो!”
रूह जोर से चिल्लाया—
“मैंने इसे कभी छोड़ा नहीं…
यह मेरी है!”
कमरे की खिड़कियाँ टूट गईं।
हवा में तेज़ कंपन उठने लगे।
नीली रोशनी नेहा को पूरी तरह घेरने लगी।
प्रखर चीख पड़ा—
“नेहाआआ!!”
महिला ने मंत्र पढ़ना शुरू किया।
उसकी आवाज़ तेज़ हुई—
“अधूरी रूहें मिलती नहीं!
वक़्त को फाड़ना बंद करो!”
रूह गरजा—
“मुझे उसका साथ चाहिए!
मैं अधूरा नहीं रह सकता!”
नेहा का शरीर हवा में उठने लगा।
प्रखर ने उसे पकड़ने के लिए छलांग लगाई—
और उसी पल
रूह की आवाज़ गूँजी—
“अगर तुमने उसे छुड़ा लिया…
तो मैं समय में उसे फिर खो दूँगा!”
नेहा चिल्लाई—
“प्रखर… मुझे छोड़ो—
वह… मुझे चोट नहीं पहुँचा रहा—”
पर प्रखर ने कसकर पकड़ लिया।
उसकी आँखों में गुस्सा और दुख दोनों थे।
“मैं तुम्हें किसी रूह को नहीं दूँगा, नेहा।”
नेहा की आँखों में आँसू आ गए।
“प्रखर… तुम—”
रूह ने अचानक धड़कन तोड़ दी—
एक नीली चमक…
एक तेज़ प्रकाश…
और—
नेहा ज़ोर की थक के साथ
फर्श पर गिर गई।
रूह गायब हो गया।
सिर्फ़ उसकी आखिरी आवाज़ गूँजी—
“नेहा…
तुम मेरी थी।
और मैं तुम्हें वापस ले जाऊँगा।”
कमरा शांत हो गया।
नेहा बेहोश पड़ी थी—
पर उसके हाथ पर
एक नया नीला निशान उभर चुका था—
∞
अनंत।
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🔥 एपिसोड 55 हुक (ट्विस्ट):
रूह ने नेहा के शरीर पर ‘अनंत’ का निशान छोड़ दिया है…
जिसका मतलब है—
उनका रिश्ता अभी खत्म नहीं,
बल्कि शुरू हुआ है।