Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 54 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रुमानियत है एपिसोड 54

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मेरे इश्क में शामिल रुमानियत है एपिसोड 54


✨ एपिसोड 54 — “जिन छायाओं में मेरा नाम लिखा था”

(सीरीज़: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)


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🌙 1. आधी रात का पहला सवाल

नेहा उस रात बिल्कुल नहीं सो पाई।
आसमान में बादल चल भी रहे थे
और रुक भी रहे थे…
जैसे कोई हवा को नियंत्रित कर रहा हो।

उसके कमरे की लाइट बंद थी,
खिड़की के पास एक हल्की नीली आभा घूम रही थी—

“क्या मेरा अतीत वापस लौट रहा है?”

उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं।
किताब “शब्दों की परछाईं” उसके सामने रखी हुई थी
और लगता था कि
किताब भी उसे देखने की कोशिश कर रही है।

अचानक—
दरवाज़े पर दस्तक।

धीमी…
बहुत धीमी…
पर इतनी गहरी कि दिल को चीर दे।

नेहा ने तेजी से दरवाज़ा खोला।

बाहर कोई नहीं था।
सिर्फ़ ठंडी हवा…
और फर्श पर एक काग़ज़ का टुकड़ा।

उसने झुककर काग़ज़ उठाया।

उस पर किसी ने सिर्फ़ एक लाइन लिखी थी—

“नेहा, जिस रात तुम्हारे पिता गए… तुमने अकेली सत्य नहीं देखा था।”

उसका दिल थम गया।

“कौन है?” नेहा ने अँधेरे में पुकारा।
“कौन मुझे ये बातें बता रहा है?”

अँधेरा एक पल को हिला—
जैसे कोई उसे सुन रहा था…
पर जवाब नहीं दिया।


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🌒 2. प्रखर का डर… और एक नई शक

सुबह 4 बजे प्रखर ने नेहा के कमरे का दरवाजा खटखटाया।
उसके चेहरे पर नींद नहीं, सिर्फ़ चिंता थी।

“नेहा, क्या तुम ठीक हो?
मेरे कमरे की टेबल पर भी कोई काग़ज़ रखा मिला है।”

नेहा चौक गई।
“काग़ज़…? क्या लिखा था?”

प्रखर ने हल्के डर के साथ कहा—

“‘जिसे तुम खोज रहे हो,
वह नेहा के अतीत में नहीं…
उसके दिल में दफ़न है।’”

नेहा का शरीर एकदम ठंडा पड़ गया।

“मेरा… दिल?”
उसने बमुश्किल बोला।

प्रखर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
“नेहा, तुमसे कुछ छुपाया जा रहा है।
और मुझे लगता है…
तुम खुद भी कुछ याद नहीं कर रही हो।
कुछ ऐसा… जो तुम्हारी यादों में दबा हुआ है।”

नेहा ने आँखें नीचे कर लीं।

क्या वह खुद अपनी जिंदगी का कोई अध्याय भूल चुकी है?

क्या उसके पिता की गुमशुदगी
वास्तव में उसी रात शुरू नहीं हुई थी?


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🌓 3. स्टडी-रूम में एक नया संकेत

दोनों नीचे पहुँचे।

स्टडी-रूम में टेबल पर
कलम की नोक से नीली आभा निकल रही थी।
जैसे किसी ने अभी-अभी उसे छुआ हो।

नेहा आगे बढ़ी—
पर जैसे ही उसने कलम को देखने के लिए झुकना चाहा,
उसकी कलाई पर कोई अदृश्य हाथ-सा लगा।

सिहरन फैल गई।

कलाई पर निशान उभरा—
एक पतली रेखीय आकृति,
जैसे किसी ने उसे खींचकर बनाया हो।

प्रखर घबरा गया।
“नेहा! ये कैसे हुआ?”

नेहा का दिल तेजी से धड़कने लगा।
“ये… ये निशान तो—
मेरे पिता के हाथ पर भी था।”

दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।
दहशत बढ़ चुकी थी।

अचानक—
कलम की नोक अपने आप हिली
और पुरानी डायरी के पेज पर शब्द उभरे—

“नेहा झूठ बोल रही है।
वह जानती है… उसने क्या देखा था।”

प्रखर ने एक कदम पीछे लिया।
“नेहा… इसका मतलब क्या है?”

नेहा की आँखें भर आईं।
“मैं—मैं वो रात बताना ही नहीं चाहती थी…”

“क्यों?” प्रखर चीखा।
“क्योंकि तुमने क्या देखा था?”

नेहा ने कंपकंपाती आवाज़ में कहा—

“मेरे पिता के गायब होने से पहले…
मैंने वहाँ किसी और को भी देखा था।”

प्रखर जड़ हो गया।
“कौन?”

नेहा ने धीरे से कहा—

“मुझे अपने बचपन का चेहरा याद नहीं…
पर मुझे उस रात वहाँ एक बच्ची दिखी थी।”

प्रखर चौंक गया।
“बच्ची? कौन?”

नेहा की आँखें ठिठक गईं।
उसका शरीर कांपा।

“वह…
मैं खुद थी।”


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🌗 4. दो नेहा – एक सच

कमरे की हवा अचानक भारी हो गई।

“नेहा, तुम क्या कह रही हो?” प्रखर लगभग फुसफुसाया।

नेहा ने आँखें बंद कर लीं।
“हाँ…
एक छोटी बच्ची… लगभग 8 साल की।
लंबे बाल… वही चेहरा…
और वह मुझे देख रही थी।”

प्रखर की रीढ़ में ठंड उतर गई।

“क्या—क्या ये संभव है कि…
वह तुम्हारा ही कोई दूसरा रूप था?”

नेहा ने धीरे से कहा—

“कलम सिर्फ़ किस्मत नहीं लिखती…
यह समय के धागों को मोड़ती है।
शायद…
मैंने अपने बचपन के ‘अपने को’ देखा हो।”

प्रखर ने उसका हाथ पकड़ा।
“नेहा, ये खतरनाक है।
ये खेल नहीं।
ये… समय की धड़कनें हैं।”

नेहा ने उसकी ओर देखते हुए कहा—

“मुझे पता है।
लेकिन मेरा अतीत मुझे पुकार रहा है…
हर तरफ़ से।”

अचानक बुकशेल्फ के पीछे
एक फुसफुसाहट हुई—

“तुम दोनों गलत दिशा में देख रहे हो।”

और शेल्फ़ के पीछे से
एक काला पन्ना फड़फड़ाता हुआ बाहर आया।

उस पर सिर्फ़ एक नाम लिखा था—

“रूह”

नेहा ने काँपते हुए पूछा—
“रूह कौन है?”

प्रखर ने सिर हिलाया।
“मैंने ऐसा कोई नाम नहीं सुना… पर—
शब्द बहुत पुराने लग रहे हैं।”

नेहा ने पन्ना हाथ में लिया।
और जैसे ही उसे छुआ—

उसे लगा जैसे
किसी ने उसके कान में धीरे से कहा—

“मैं ही वह बच्ची हूँ…
जिसे तुमने उस रात देखा था।”

नेहा की सांस अटक गई।


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🌘 5. जब भूतकाल ने दरवाज़ा खटखटाया

शाम ढलते-ढलते
हवेली का माहौल और भारी हो चुका था।

हवा में एक अनजाना डर था…
जैसे कोई अंदर आने की कोशिश कर रहा हो।

अचानक—
मुख्य दरवाज़ा ठक-ठक बजा।

नेहा और प्रखर दोनों ठिठक गए।
इतनी रात को…
यहाँ कौन आ सकता है?

प्रखर ने दरवाज़ा खोला।

बाहर एक बूढ़ी महिला खड़ी थी—
चेहरा झुर्रियों से भरा,
पर आँखें तेज़…
गहरी…
जैसे समय देख चुकी हों।

वह बोली—

“मैं रूह को ढूँढ रही हूँ।”

नेहा का दिल उछलकर गले में आ गया।
“पर यहाँ कोई रूह नाम की लड़की नहीं है…”

महिला ने नेहा को गहराई से देखा।
कई सेकंडों तक।
और फिर उसने कहा—

“तुम्हें सच में लगता है…
रूह तुम्हारे बाहर है?”

नेहा को लगा जैसे उसकी सांस बंद हो जाएगी।

महिला अंदर चली आई।
“मैं तुम्हारे पिता को जानती थी।
और मैं यह भी जानती हूँ कि
उस रात क्या हुआ था…”

नेहा और प्रखर दोनों चौंक गए।
“आप—कौन हैं?” प्रखर ने पूछा।

महिला मुस्कुराई।
“वही…
जिसने तुम्हारे पिता को सिखाया था
कि वक़्त की कलम को कैसे जगाया जाता है।”

नेहा कांप उठी।
“आप—मेरे पिता की गुरु थीं?”

महिला ने सिर हिलाया।

“और आज मैं यहाँ इसलिए आई हूँ
क्योंकि समय का धागा टूट रहा है।
जो बच्ची तुम्हें उस रात दिखी थी—
वह तुम्हारा भविष्य नहीं…
तुम्हारा दूसरा जन्म है।”

नेहा की आँखें फैल गईं।
“दूसरा जन्म…?”

महिला बोली—

“तुम दो बार जन्मी हो, नेहा।
एक शरीर में…
एक रूह में।”

प्रखर ने अविश्वास में कहा—
“ये… असंभव है…”

महिला ने उसकी ओर देखा।
“जब प्रेम अधूरा हो जाए…
तो रूह नया जन्म लेती है।
और नेहा के इश्क़ में कुछ ऐसा था
जो न पूरा हो पाया…
न मिट सका।”

नेहा ने काँपते हुए पूछा—

“तो…
क्या मेरी रूह का नाम रूह है?”

महिला धीरे से मुस्कुराई—

“हाँ।
और वह तुम्हें पुकार रही है…
क्योंकि वह भी तुम्हें ढूँढ रही है।”


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🌑 6. वह सच जिसने जमीन हिला दी

महिला ने मेज पर कलम रखी
और डायरी खोली।

“नेहा, क्या तुम जानती हो
कि तुम्हारे पिता क्यों गायब हुए?”

नेहा ने सिर हिलाया।
आँसू निकल पड़े।

महिला बोली—

“क्योंकि उन्होंने तुम्हारी रूह को बचाने की कोशिश की थी।
किसी ने तुम्हें मिटाने की कोशिश की थी…
और उस रात तुम्हारे पिता ने समय बदल दिया।”

प्रखर घबरा गया।
“कौन… कौन मिटाना चाहता था नेहा को?”

महिला ने धीरे से कहा—

“वही जिसे तुम अपना पहला प्यार समझती थीं।”

नेहा का चेहरा सफेद पड़ गया।

उसकी साँस रुक गई।

“मेरे… पहले प्यार ने?”
उसने बमुश्किल कहा।
“पर… वह तो—”

महिला ने उसे रोक दिया।

“नेहा, तुम्हारे इश्क़ में इतनी रुमानियत थी
कि वह प्रेम…
एक रूह में बदल गया था।
और वही रूह
तुम्हें अपना बनाना चाहती थी—
पूरी तरह।”

नेहा की आँखें भर आईं।
गला सूख गया।

“पहला प्यार…
कौन था?”

महिला ने उसकी आँखों में गहराई से देखा—

और धीरे-धीरे बोली—

“वह कोई और नहीं…
यही हवेली है।”

नेहा हैरान, स्तब्ध, टूटती हुई—
“हवेली…?
हवेली कोई इंसान नहीं…”

महिला ने कहा—

“हवेली इंसान नहीं थी…
पर उसमें रहने वाली रूह
तुम्हारे इश्क़ में शामिल थी।”

कमरा ठंडा हो गया।
दीवारें हल्की-सी कंपन करने लगीं।

महिला ने धीमी आवाज़ में कहा—

“नेहा…
तुम्हारा पहला प्यार—
एक रूह था।”


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🔥 एपिसोड 54 का हुक (ट्विस्ट):

“नेहा का पहला प्यार कोई इंसान नहीं,
बल्कि वही रूह थी…
जो आज भी उसकी किस्मत लिखना चाहती है।”


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