Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 53 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 53

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मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 53


✨ एपिसोड 53 — “जो लिखा नहीं गया… वही किस्मत बन गया”


🌙 1. नेहा और वह आवाज़ जो दीवारों से टकरा कर लौटती रही


कमरे की खिड़की आधी खुली थी।

बाहर शाम की हवा में हल्की-सी राख जैसी ठंड थी —

जैसे मौसम ने भी कोई रहस्य रोक रखा हो।


नेहा अपने बेड के किनारे बैठी थी,

उसी पन्ने को बार-बार पलटते हुए

जिसके आख़िरी शब्द अभी भी उसके सीने को चीर रहे थे—


“जो तुम्हें दिखता है… वह सच नहीं है, नेहा।”


उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि

ये लाइन किसी और ने लिखी है या

वह कलम खुद उसे बताने की कोशिश कर रही है।


अचानक दरवाज़े के पास हल्की-सी आवाज़ हुई —

एकदम धीमी…

मगर इतनी तीखी कि दिल धड़क उठा।


नेहा हड़बड़ा कर उठी।


“क…कौन है?” उसकी आवाज़ कांपी।


कोई नहीं।

सिर्फ़ सन्नाटा।


लेकिन सन्नाटा भी कभी-कभी जवाब देता है —

और आज उसी ने दिया।


कमरे के कोने में रखी पुरानी लकड़ी की शेल्फ़

अपने आप हिल गई।


एक किताब नीचे गिरी—


"शब्दों की परछाईं"


नेहा की साँसें रुक गईं।

यह वही किताब थी…

जिसके बारे में उसे चेतावनी मिली थी

कि इसे छूना तक मत।


पर किताब खुद उसके पैरों के पास आकर गिरी थी।


“क्यों?”

उसके मन ने पूछा।


जैसे किसी ने कान में फुसफुसाया—


“क्योंकि अब तुम तैयार हो। पढ़ने के लिए नहीं… लिखने के लिए।”


उसका हाथ काँपते हुए किताब की तरफ बढ़ा…


और जैसे ही किताब को छूने लगी—


दरवाज़ा ज़ोर से खुला।


प्रखर अंदर आया, तेज़ साँसों के साथ।

“नेहा!”

उसके चेहरे पर घबराहट थी।

“तुम ठीक हो? अभी नीचे स्टडी-रूम में कुछ हुआ है।”


नेहा ने तुरंत किताब उठाकर पीछे छुपाई।


“क्या हुआ?”


प्रखर ने घुटकर कहा—

“किसी ने… वक़्त की कलम छू ली है।”


नेहा का दिल रुक सा गया।


“किसने?”


“मैं नहीं जानता,” प्रखर बोला, “लेकिन जिस तरह की आवाज़ आई… मैं कसम खाकर कह सकता हूँ… कलम ने किसी को पहचान लिया है।”


नेहा के हाथ ठंडे पड़ गए।


वह कुछ कहना चाहती थी— पर तभी नीचे से एक औरत की चीख सुनाई दी।



---


🌒 2. अध्ययन-कक्ष में जो मिला… वह इंसानी नहीं था


दोनों दौड़ते हुए स्टडी-रूम पहुँचे।


कमरा बिखरा हुआ था।

मेज़ पर पड़ी पुरानी डायरियाँ हवा में ऐसे फड़फड़ा रही थीं

जैसे कोई अदृश्य हाथ उन्हें पलट रहा हो।


हॉल के बीच में

एक लड़की खड़ी थी।

चेहरा भय से पीला पड़ चुका था।

बड़ी-बड़ी आँखें…

जैसे उसने कुछ ऐसा देखा हो जो किसी इंसान को नहीं देखना चाहिए था।


उसका नाम था—


रिया।

स्टाफ की नई सदस्य।


प्रखर चिल्लाया— “तुम यहाँ कैसे आई? किसने कहा कि इस कमरे में आना है?”


रिया की आँखें फटी रह गईं।

वह काँपती आवाज़ में बोली—


“म…मैंने नहीं खोला सर।

दरवाज़ा खुद खुला।

और फिर…

कलम हवा में उठ गई।”


नेहा का दिल जोर से धड़का।


“उठ गई?” उसने धीरे से पूछा।


रिया ने सिर हिलाया, आँसू गिरते हुए।

“हाँ… जैसे कोई उसे पकड़ रहा हो।

मैं—मैंने किसी का चेहरा नहीं देखा…

लेकिन…”


वह रुक गई।

घुटी हुई सिसकी निकली।

“एक परछाईं मेरी ओर आई…

और बोली—

‘ये कलम तुम्हारी किस्मत नहीं लिखेगी… अभी नहीं।’”


कमरा कुछ पल के लिए बिल्कुल शांत हो गया।

इतना शांत…

कि नेहा को अपनी दिल की धड़कन भी किसी और के सीने से आती हुई लग रही थी।



---


🌓 3. नेहा की छुपी हुई सच्चाई


प्रखर ने रिया को बाहर भेज दिया।

फिर उसने नेहा की ओर देखा।


“तुम ठीक हो? तुम्हारा चेहरा बदल रहा है… क्या छुपा रही हो मुझसे?”


नेहा ने कुछ नहीं कहा।


मगर उसकी उँगलियों के बीच

अब भी किताब “शब्दों की परछाईं” थी,

जो उसने पीछे छुपाई हुई थी।


प्रखर ने कदम बढ़ाया।

“नेहा…

क्या तुमने उस किताब को—”


“नहीं,” नेहा ने तेज़ी से कहा,

पर उसकी आवाज़ में डर ज्यादा था, झूठ कम।


प्रखर समझ गया कि कुछ गड़बड़ है।

लेकिन उससे पूछने ही वाला था कि—


कलम की टेबल के पास रखी दीवार

अचानक काली पड़ने लगी।


जैसे भीतर से कोई रेंग कर बाहर आना चाहता हो।


नेहा के सीने में जकड़न हुई।

परछाईं गहरी होती जा रही थी।


और फिर—


दीवार के भीतर से

एक आकृति उभरी।


नाक, होंठ, आँखें साफ़ नहीं…

बस धुँधली-सी रूहानी आकृति।


उसने अपना सिर नेहा की तरफ झुकाया।


“किताब तुम तक लौट चुकी है।

अब छुपाना बंद करो।”


नेहा ज़मीन में जड़ हो गई।

प्रखर ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर पीछे किया—

“नेहा, इसके पास मत जाना!”


परछाईं बोली—


“तुम्हें रोकने वाला इसे समझ नहीं सकता।

तुम जानती हो नेहा…

तुम्हारा अतीत आज फिर जाग रहा है।”


नेहा की आँखों से आँसू निकल पड़े।


प्रखर ने घबराकर पूछा—

“ये क्या बोल रही है?

तुम्हारा कौन सा अतीत?”


नेहा ने होंठ दबाए।

गहरी साँस ली।

और पहली बार बोली—


“वो…

जिसके बारे में मैंने खुद को भी नहीं बताया।”


परछाईं नेहट कर वितरित हुई।

लेकिन जाते-जाते दीवार पर एक लाइन लिख गई—


“जो लिखा नहीं गया…

वही किस्मत बन जाता है।”



---


🌗 4. सच का पहला धागा


रात धीरे-धीरे उतर रही थी।


नेहा बालकनी में खड़ी थी।

हवा ठंडी थी…

पर उसके शरीर में अजीब गर्मी फैल रही थी—


जैसे कोई पुरानी याद अचानक खून की तरह दौड़ने लगी हो।


प्रखर उसके पीछे आया।

“नेहा…

मुझे बताओ।

क्या—क्या जानती हो तुम इस किताब के बारे में?”


नेहा ने धीरे से कहा—


“मैंने इस किताब को कभी खोला नहीं था…

पर इसे पैदा होते देखा है।”


“पैदा… होते?”

प्रखर का चेहरा सफेद पड़ गया।


नेहा की आँखें नम थीं।

“हाँ।

ये किताब लिखी नहीं जाती…

ये जन्म लेती है।”


प्रखर ने सांस रोककर पूछा—

“और… कौन इसे जन्म देता है?”


नेहा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—


“वही…

जो मेरे बचपन में एक रात अचानक गायब हो गया था।”


हवा एकदम रुक गई।

प्रखर समझ नहीं पाया।


“कौन?”


नेहा की आवाज़ टूट चुकी थी—


“मेरे पिता।”



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🌘 5. एक सवाल जिसने कहानी की दिशा बदल दी


प्रखर कुछ सेकंड तक बोल ही नहीं पाया।


“तुम्हारे… पिता?

वे… जीवित हैं?”


नेहा ने सिर हिलाया,

हवा की ओर देखते हुए बोली—


“वे जीवित नहीं…

पर मृत भी नहीं।”


उसकी साँस भारी हो गई।


“उन्होंने…

इस कलम को आख़िरी बार छुआ था।

और उसी रात वे दुनिया से गायब हो गए।

कोई शरीर नहीं मिला।

कोई निशान नहीं।”


प्रखर कांप गया।

“और तुमने कभी बताया नहीं?”


नेहा ने हंसने की कोशिश की,

पर वह हंसी दर्द से भरी थी—


“क्योंकि मैं भी यकीन नहीं कर पाई थी कि

जो मैंने उस रात देखा…

वह सच था या मेरा डर।”


प्रखर ने उसका हाथ पकड़ा।

“अब?

क्या तुम्हें लगता है… वे वापस आ सकते हैं?”


नेहा ने आँखें बंद कीं—


“आज…

जो आकृति दीवार से निकली…

वह उनकी तरह नहीं थी।

लेकिन जिस तरह उसने मुझे देखा…

ऐसा लगा जैसे…”


उसकी आवाज़ गले में अटक गई।


“जैसे कोई मेरे अंदर छुपी रूह को पहचान गया हो।”



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🌑 6. आने वाली रात का इशारा


नीचे स्टडी-रूम की टेबल पर

वक़्त की कलम चमक रही थी।


उसकी नोक से एक हल्की नीली रोशनी निकल रही थी।


मगर उस रोशनी के बीच

कोई शब्द उभरने लगे—


“अगला पन्ना लिखने वाला

नेहा नहीं…

उसका अतीत होगा।”


हवाओं में एक हल्की धमक उठी।


और तभी एक खिड़की अपने आप खुली—

ठंडी हवा तेज़ी से भीतर घुसी।


नेहा ने दूर आसमान की ओर देखा—


उसे


लगा जैसे

कोई उसकी तरफ देख रहा है।


कोई…

जो अभी लौटा नहीं है

लेकिन

जिसके आने की आहट शुरू हो चुकी है।


अतीत में दबी एक रूह जाग चुकी थी।


और यह पहली बार था

कि तकदीर खुद लिखे जाने से डर रही थी।



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🔥 एपिसोड 53 का हुक/ट्विस्ट:


“कलम ने जिस इंसान को पहचान लिया है…

उसका नाम नेहा के पिता नहीं—

नेहा खुद है।

लेकिन…

किस जन्म की नेहा?”