# सुनी सुनाई बातें
**लेखक: विजय शर्मा एरी**
गाँव में एक पुरानी कहावत थी - "सुनी सुनाई बातों पर विश्वास मत करो।" लेकिन गाँव के लोग इस कहावत को भूल चुके थे। वे हर बात को बिना सोचे-समझे आगे बढ़ा देते थे, और हर बार कोई न कोई मुसीबत खड़ी हो जाती थी।
रामपुर एक छोटा सा गाँव था, जहाँ सब एक-दूसरे को जानते थे। गाँव के बीचोंबीच एक पुराना पीपल का पेड़ था, जिसके नीचे हर शाम गाँव के लोग इकट्ठा होते थे। यहीं पर सारी गपशप होती थी, यहीं पर अफवाहें जन्म लेती थीं और यहीं से पूरे गाँव में फैल जाती थीं।
गाँव में रहीम चाचा रहते थे। वे एक सीधे-सादे किसान थे, जो अपनी मेहनत से खेती करते और अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। उनकी पत्नी सलीमा और दो बच्चे थे - बेटा फैज़ान और बेटी आयशा। रहीम चाचा को गाँव में सब इज्जत की नज़र से देखते थे।
एक दिन गाँव में एक अजनबी आदमी आया। वह शहर से आया था और उसने बताया कि वह सरकारी अधिकारी है, जो गाँव के विकास के लिए सर्वे कर रहा है। उसने कई घरों में जाकर लोगों से सवाल पूछे और नोट्स लिए। शाम को जब वह चला गया, तो पीपल के पेड़ के नीचे चर्चा शुरू हो गई।
"मैंने सुना है कि सरकार हमारी ज़मीनें छीनने वाली है," गाँव के पटवारी रामलाल ने कहा।
"अरे हाँ, मुझे भी किसी ने बताया था कि यहाँ कोई बड़ा कारखाना लगने वाला है," दुकानदार मुकेश ने आगे बढ़ाया।
"और मैंने तो सुना है कि रहीम चाचा ने अपनी ज़मीन पहले ही बेच दी है उस अधिकारी को," बूढ़ी काकी ने फुसफुसाते हुए कहा।
यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई। अगले दिन सुबह तक पूरे गाँव में यह खबर थी कि रहीम चाचा ने गाँव के साथ धोखा किया है और अपनी ज़मीन बेचकर गाँव में कारखाना लगवाने की साजिश में शामिल हैं।
जब रहीम चाचा खेत से लौटे, तो उन्होंने देखा कि गाँव के कुछ लोग उनके घर के सामने जमा हैं। उनके चेहरों पर गुस्सा था।
"तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया, रहीम?" किसी ने चिल्लाकर पूछा।
"तुम्हें शर्म नहीं आती? पैसों के लालच में गाँव को बेच दिया!" दूसरे ने कहा।
रहीम चाचा हैरान थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। "क्या हुआ? मैंने क्या किया?" उन्होंने पूछा।
लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। भीड़ बढ़ती जा रही थी। कुछ लोग पत्थर उठाने लगे। स्थिति बिगड़ती देख रहीम चाचा के बेटे फैज़ान ने अपने पिता को घर के अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।
"अब्बू, गाँव में अफवाह फैली है कि आपने अपनी ज़मीन बेच दी है और गाँव में कारखाना लगने वाला है," फैज़ान ने डरते हुए बताया।
रहीम चाचा की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि गाँव के लोग, जिनके साथ उन्होंने जीवन भर रिश्ते निभाए, बिना पूछे ही उन पर विश्वास करना बंद कर देंगे।
अगले कुछ दिन रहीम चाचा के परिवार के लिए बहुत मुश्किल थे। कोई उनसे बात नहीं करता था। दुकानदार उन्हें सामान नहीं देते थे। बच्चों को स्कूल में परेशान किया जाता था। सलीमा रोज़ रोती थी।
इसी बीच, गाँव के स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर जी राजेश कुमार ने यह सब देखा। वे एक शिक्षित और समझदार इंसान थे। उन्होंने सोचा कि यह सब गलत है। बिना जाँच-पड़ताल के किसी पर आरोप लगाना ठीक नहीं।
मास्टर जी ने पता लगाना शुरू किया। उन्होंने पटवारी के दफ्तर जाकर ज़मीन के रिकॉर्ड देखे। रहीम चाचा की ज़मीन अभी भी उनके नाम पर थी। कोई भी लेन-देन नहीं हुआ था। फिर उन्होंने उस अधिकारी के बारे में पता लगाया जो गाँव में आया था। पता चला कि वह सच में एक सरकारी अधिकारी था, लेकिन वह सिर्फ जनगणना का काम कर रहा था, न कि ज़मीन का सर्वे।
मास्टर जी ने सारे सबूत इकट्ठे किए और एक शाम पीपल के पेड़ के नीचे सभा बुलाई। गाँव के सभी लोग इकट्ठे हुए।
"भाइयो और बहनों," मास्टर जी ने शुरुआत की, "हमने रहीम चाचा के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। हमने बिना सोचे-समझे, बिना सच जाने, सिर्फ सुनी-सुनाई बातों के आधार पर उन पर आरोप लगा दिए।"
उन्होंने सारे सबूत दिखाए। लोगों के चेहरे शर्म से झुक गए।
"लेकिन यह अफवाह शुरू किसने की?" किसी ने पूछा।
मास्टर जी ने बताया, "यह अफवाह हम सबने मिलकर बनाई। एक ने कुछ कहा, दूसरे ने कुछ जोड़ा, तीसरे ने कुछ और मिला दिया। और देखते ही देखते एक छोटी सी बात एक बड़े झूठ में बदल गई।"
गाँव में सन्नाटा छा गया। लोगों को अपनी गलती का एहसास हो रहा था।
"रहीम भाई को यहाँ बुलाइए," पंचायत के सरपंच ने कहा।
रहीम चाचा को बुलाया गया। जब वे आए, तो पूरा गाँव उनके सामने सिर झुकाए खड़ा था।
सरपंच ने कहा, "रहीम भाई, हमसे बहुत बड़ी गलती हुई। हमने आपकी बात तक नहीं सुनी। हमने सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास कर लिया। कृपया हमें माफ कर दीजिए।"
एक-एक करके सभी ने रहीम चाचा से माफी माँगी। बूढ़ी काकी, जिन्होंने सबसे पहले यह अफवाह फैलाई थी, रोते हुए उनके पैर पकड़ लिए।
रहीम चाचा की आँखों में आँसू थे। वे बोले, "मैं सबको माफ करता हूँ। लेकिन एक बात याद रखिए - सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करना बहुत खतरनाक है। इससे न सिर्फ किसी की इज्जत जाती है, बल्कि रिश्ते भी टूट जाते हैं। अगर आप लोगों ने एक बार मुझसे पूछ लिया होता, तो यह सब नहीं होता।"
मास्टर जी ने आगे कहा, "रहीम भाई सही कह रहे हैं। आज से हम सब यह संकल्प लेते हैं कि हम कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करेंगे। हम पहले सच जानेंगे, फिर कोई राय बनाएँगे।"
पूरे गाँव ने एक साथ कहा, "हम संकल्प लेते हैं।"
उस दिन के बाद से गाँव में बदलाव आया। लोग अब किसी भी बात को आगे बढ़ाने से पहले सोचते थे। वे सच जानने की कोशिश करते थे। अफवाहों पर रोक लग गई।
रहीम चाचा फिर से गाँव में इज्जत से रहने लगे। लेकिन जो घाव उनके दिल पर लगा था, वह कभी पूरी तरह नहीं भरा। कभी-कभी वे सोचते थे कि कैसे उनके अपने लोगों ने उन पर भरोसा नहीं किया।
मास्टर जी ने स्कूल में बच्चों को एक पाठ पढ़ाया - "सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करना अज्ञानता की निशानी है। हमेशा सच जानने की कोशिश करो। किसी के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले, उस व्यक्ति को अपनी बात कहने का मौका दो।"
बच्चों ने यह पाठ अच्छी तरह सीखा। वे अपने घरों में भी यही बात बताते। धीरे-धीरे पूरे गाँव में एक नई सोच विकसित होने लगी।
कुछ महीनों बाद, गाँव में एक और घटना घटी। किसी की भैंस खो गई। लोगों ने शक किया कि शायद किसी ने चुरा ली। लेकिन इस बार किसी पर आरोप नहीं लगाया। लोगों ने मिलकर खोजा और पता चला कि भैंस पास के जंगल में चली गई थी।
गाँव के लोगों को समझ आ गया था कि जल्दबाजी में किए गए फैसले कितने खतरनाक हो सकते हैं।
रहीम चाचा अक्सर मास्टर जी का शुक्रिया अदा करते। "अगर आप नहीं होते, तो न जाने क्या होता," वे कहते।
मास्टर जी हंसते हुए जवाब देते, "यह मेरा फर्ज था। एक शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं, बल्कि सही और गलत में फर्क समझाना भी है।"
आज भी रामपुर गाँव में वह पीपल का पेड़ है। शाम को लोग वहाँ इकट्ठे होते हैं। लेकिन अब वहाँ अफवाहें नहीं फैलतीं। लोग अपनी समस्याओं पर चर्चा करते हैं और मिलकर हल खोजते हैं।
गाँव के बुजुर्ग अक्सर नई पीढ़ी को रहीम चाचा की कहानी सुनाते हैं। यह कहानी एक सबक बन गई है - "सुनी-सुनाई बातों पर कभी विश्वास मत करो।"
और इस तरह, एक छोटे से गाँव ने एक बड़ा सबक सीखा। यह सबक था विश्वास, सच्चाई और इंसानियत का। यह सबक था कि कैसे अफवाहें किसी की ज़िंदगी बर्बाद कर सकती हैं और कैसे सच्चाई की ताकत सब कुछ ठीक कर सकती है।
रहीम चाचा ने सबको माफ कर दिया था, लेकिन गाँव के लोगों ने खुद को कभी माफ नहीं किया। वह घटना उनके लिए हमेशा एक याद दिहानी बनी रही कि हर इंसान को सुनने और समझने का मौका मिलना चाहिए।
आज भी जब कभी गाँव में कोई नई बात सुनाई देती है, तो लोग याद करते हैं - "याद है वह दिन जब हमने रहीम भाई के साथ क्या किया था? वैसी गलती फिर कभी नहीं होनी चाहिए।"
और यही है इस कहानी का असली संदेश - सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करने से पहले, सच जानो। किसी के बारे में राय बनाने से पहले, उसे अपनी बात कहने का मौका दो। क्योंकि एक बार टूटा हुआ विश्वास और एक बार खोई हुई इज्जत वापस पाना बहुत मुश्किल है।
**समाप्त**