Mother India in Hindi Film Reviews by Amreen Khan books and stories PDF | Mother India

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Mother India

(यह फिल्म 1957 में रिलीज़ हुई थी, निर्देशक — मेहबूब खान, मुख्य भूमिकाएँ — नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राज कुमार।)

🌾 मदर इंडिया – पूरी कहानी विस्तार से


प्रस्तावना (Opening Scene)


धूप से तपे खेतों में एक बुज़ुर्ग औरत चल रही है — सिर पर लाल चुनरी, हाथों में पूजा की थाली,

चेहरे पर झुर्रियाँ हैं, पर आँखों में एक अडिग चमक है।

वह है — राधा, गाँव की सबसे सम्मानित औरत।

गाँव में नया बाँध बन गया है, जो किसानों को पानी देगा।

गाँव के लोग कहते हैं —


> “माई, ये बाँध तो आपके हाथों से बनवाना चाहिए। आपने तो अपने खून-पसीने से ये धरती सींची है।”




राधा मुस्कुराती है और जब वह नारियल फोड़ने के लिए झुकती है,

तो उसकी आँखों के सामने उसके बीते सालों की तस्वीरें घूम जाती हैं...

और कहानी चली जाती है अतीत में।



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अध्याय 1: राधा और श्यामू का नया संसार


गाँव में डोली उठी है, बैंड बज रहा है।

राधा की शादी हो रही है श्यामू (राजेंद्र कुमार) से।

श्यामू के परिवार के पास थोड़ी सी ज़मीन है, लेकिन कर्ज़ में डूबी हुई।

शादी में सुक्खी लाला (कन्हैयालाल) दहेज के रूप में कुछ पैसे देता है,

पर वह चालाकी से राधा की सास के सामने एक दस्तावेज़ रख देता है —

जिसमें ज़मीन गिरवी होती है।


श्यामू और राधा अपनी छोटी सी झोंपड़ी में आते हैं।

राधा शर्मीली, लेकिन परिश्रमी और संस्कारी है।

वह खेतों में काम करने जाती है, घर संभालती है और पति की हर मुश्किल में साथ देती है।


श्यामू कहता है —


> “राधा, तू मेरे साथ है तो मुझे किसी चीज़ की कमी नहीं।”

राधा मुस्कुरा देती है —

“धरती का कर्ज़ भी तो चुकाना है श्यामू, नहीं तो सुक्खी लाला हमारी जान निकाल लेगा।”




दोनों मेहनत में जुट जाते हैं।



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अध्याय 2: सुक्खी लाला का अत्याचार


सुक्खी लाला गाँव का साहूकार है —

दिखावे में धर्मी, पर अंदर से लालची।

वह गाँव के गरीबों को ऊँचे ब्याज पर कर्ज़ देता है और उनकी जमीनें हड़प लेता है।


राधा और श्यामू हर साल मेहनत करते हैं,

लेकिन फसल का बड़ा हिस्सा ब्याज में चला जाता है।

जब राधा सुक्खी लाला से कहती है —


> “लाला, हमने जितना लिया था, उससे ज़्यादा चुका चुके हैं।”

तो सुक्खी लाला मुस्कुरा कर कहता है —

“अरी बहू, ब्याज तो बढ़ता है... जैसे बच्चा माँ की कोख में।”




राधा चुप हो जाती है, मगर उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलकता है।



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अध्याय 3: हादसा और तन्हाई


एक दिन खेत में हल जोतते हुए श्यामू का हाथ मशीन में फँस जाता है और कट जाता है।

अब वह अपाहिज हो जाता है।

घर में भूख बढ़ती है, कर्ज़ बढ़ता है, और उम्मीद घटती है।


श्यामू खुद को बोझ महसूस करने लगता है।

एक रात वह चुपचाप घर छोड़ देता है —

ना कोई विदाई, ना कोई आहट।

सिर्फ़ एक टूटता हुआ दीपक छोड़ जाता है।


सुबह राधा उठती है, देखती है —

दरवाज़ा खुला है, और श्यामू नहीं है।

वह टूट जाती है, लेकिन बच्चों की ओर देखती है —

बिरजू और रम्मू अभी छोटे हैं,

वह आँसू पोंछकर कहती है —


> “अब मैं ही माँ भी हूँ, बाप भी।”





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अध्याय 4: संघर्ष की ज़मीन


राधा खेतों में अकेले हल जोतती है।

कंधों पर फावड़ा, सिर पर टोपी,

और दिल में एक आग — “मैं हार नहीं मानूँगी।”


मौसम बेरहम है — कभी सूखा, कभी तूफ़ान।

एक दिन बाढ़ आ जाती है, पूरा गाँव डूब जाता है।

राधा की फसल बह जाती है।

वह मिट्टी में बैठकर रोती है —


> “हे धरती माँ, मुझसे क्या भूल हुई?”




गाँव वाले भी भूख से तड़पते हैं,

लेकिन राधा हिम्मत नहीं छोड़ती।

वह कहती है —


> “अगर भगवान ने हमें मिट्टी दी है, तो हिम्मत भी दी होगी।”





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अध्याय 5: बेटों की परवरिश


साल गुजरते हैं।

बिरजू और रम्मू बड़े हो जाते हैं।

रम्मू शांत और संस्कारी है,

वह माँ की बात मानता है, खेती करता है।

पर बिरजू का दिल आग बन चुका है।


बचपन में उसने देखा था कि कैसे

सुक्खी लाला उसकी माँ को नीचा दिखाता था।

वह हर बार कहता है —


> “माँ, वो लाला इंसान नहीं, शैतान है!”

राधा उसे समझाती है —

“बेटा, अगर बुराई से लड़ना है तो हाथ नहीं, दिल साफ़ रखो।”




लेकिन बिरजू अब गुस्से में जलता रहता है।

वह चोरी करने लगता है, कभी-कभी सुक्खी लाला को धमकाता है।

राधा उसे रोकती है, पर वह नहीं सुनता।



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अध्याय 6: सुक्खी लाला से टकराव


एक दिन सुक्खी लाला ब्याज माँगने आता है।

राधा कहती है —


> “लाला, हमने जितना बन पड़ा चुका दिया। अब और कुछ नहीं है।”

लाला व्यंग्य से हँसता है —

“तो बहू, तू अपना गहना गिरवी रख दे... या कुछ और...”




राधा समझ जाती है उसका मतलब।

वह चीख उठती है —


> “लाला! तेरी आँखों में शर्म नहीं है! तू सोच भी कैसे सकता है!”




गाँव वाले इकट्ठा हो जाते हैं।

लाला चला जाता है, मगर जाते-जाते कहता है —


> “तेरे घर की इज़्ज़त भी एक दिन इस कर्ज़ की तरह बिक जाएगी।”




उस दिन से बिरजू की आँखों में सिर्फ़ बदला रह जाता है।



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अध्याय 7: माँ और बेटे के बीच दीवार


राधा बिरजू को रोकने की कोशिश करती है।

वह कहती है —


> “बेटा, यह रास्ता गलत है।”

बिरजू जवाब देता है —

“माँ, जब न्याय नहीं मिलता, तो हथियार उठाना पड़ता है!”




राधा का दिल टूट जाता है।

वह सोचती है, क्या उसका बेटा अब वही कर रहा है,

जिसे रोकने की उसने ज़िंदगीभर कसम खाई थी?



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अध्याय 8: विद्रोह और विनाश


बिरजू अब डाकू बन चुका है।

वह गाँव के अमीरों को लूटता है और गरीबों में बाँटता है।

गाँव वाले उसे “बिरजू डाकू” कहने लगते हैं,

लेकिन कुछ लोग उसे “अपने हक़ का योद्धा” भी मानते हैं।


एक दिन वह सुक्खी लाला के घर पहुँचता है।

लाला काँप जाता है —


> “बिरजू! तू पागल हो गया है?”

बिरजू गरजता है —

“आज तेरी लूट का हिसाब होगा!”




वह सारा खज़ाना लूट लेता है,

और लाला की बहू को भी उठाने की कोशिश करता है।


तभी राधा आती है।

बंदूक उसकी काँपती हुई हथेलियों में है।

सामने उसका बेटा।


राधा की आवाज़ फट जाती है —


> “बिरजू! रुक जा... तू वो नहीं जो औरत की इज़्ज़त लूटे... तू मेरा बेटा है!”




बिरजू रुकता नहीं।

वह भागता है... और तभी —

धाँय! गोली चलती है।


राधा के हाथ से चली हुई गोली सीधे बिरजू के सीने में लगती है।

वह गिर जाता है।


राधा दौड़कर उसके पास पहुँचती है।

बिरजू धीरे से कहता है —


> “माँ... मैंने कुछ गलत नहीं किया... बस न्याय लिया...”

और उसकी आँखें बंद हो जाती हैं।





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अध्याय 9: माँ की अमरता


राधा चुप है।

उसके होंठ काँपते हैं, मगर कोई शब्द नहीं निकलता।

वह आसमान की ओर देखती है —

जैसे भगवान से पूछ रही हो,

“क्या यही इंसाफ़ था?”


फिर कैमरा वर्तमान में लौटता है।

राधा वही बुज़ुर्ग औरत है,

जो अब गाँव की माँ बन चुकी है।

गाँव के खेतों में नहर का पानी बहता है,

धरती हरी हो जाती है।


एक नौजवान पूछता है —


> “माई, अब तो सब ठीक हो गया ना?”

राधा मुस्कुराती है और कहती है —

“बेटा, धरती तो वही है... फर्क सिर्फ़ बीज का होता है। अगर बीज सच्चाई का हो, तो फसल हमेशा लहलहाएगी।”




फिल्म का अंतिम दृश्य —

राधा खेतों में जाती है,

पानी के बहाव में उसके आँसू मिल जाते हैं।

और आसमान में सूरज उगता है —

भारत माता की नई सुबह के साथ।



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🌺 फिल्म का संदेश


“मदर इंडिया” सिर्फ़ एक माँ की कहानी नहीं —

बल्कि उस भारत माँ की गाथा है जिसने अपने बच्चों के लिए सब कुछ सहा,

पर कभी अपनी इज़्ज़त, संस्कार और सच्चाई नहीं छोड़ी।


> “माँ मरती नहीं... वो हर युग में जन्म लेती है,

हर मिट्टी में बसती है,

और हर बेटे को यही सिखाती है —

सच्चाई सबसे बड़ा धर्म है।”





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