शहर की भागती - दौड़ती ज़िंदगी में, आरव और नेहा की मुलाकात एक ट्रेन के सफर में हुई थी। आरव एक इंजीनियर था, जो अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में लखनऊ से मुंबई जा रहा था। वहीं नेहा, एक सामाजिक कार्यकर्ता, किसी गांव में लड़कियों की शिक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी।
दोनों अजनबी थे, पर बातों का सिलसिला यूँ ही चल निकला । नेहा की बातों में ईमानदारी थी और आरव की आँखों में अपने सपनों के लिए दीवानगी। एक छोटी - सी मुलाकात कब एक गहरी पहचान में बदल गई, दोनों को पता ही नहीं चला।
कुछ ही महीनों में आरव और नेहा एक - दूसरे के जीवन का हिस्सा बन गए । प्यार परवान चढ़ा, और उन्होंने तय किया कि वे शादी करेंगे।
शादी की तैयारियाँ शुरू हो गई थीं । लेकिन तभी आरव के परिवार को नेहा के सामाजिक कार्यों से ऐतराज़ होने लगा।
आरव की माँ ने साफ कह दिया, " बहू को घर संभालना चाहिए, ये गांवों में घूमना और लड़कियों को पढ़ाना हमारे संस्कारों में नहीं है। ये सब कुछ इसे छोड़ना पड़ेगा। "
नेहा चुप रही, पर अंदर से टूट गई। उसके लिए उसका काम उसका सपना था — लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना।
आरव दोनों तरफ से फँस गया — एक तरफ माँ - बाप की उम्मीदें, दूसरी तरफ नेहा का सपना।
नेहा ने आरव से कहा,
" अगर तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो, तो मुझे रोकोगे नहीं। प्रेम का पहला नियम होता है—स्वतंत्रता। मैं तुमसे बंधन नहीं, साथ चाहती हूँ। "
आरव रातभर सोचता रहा। उसने महसूस किया कि नेहा का प्रेम न तो स्वार्थी था, न ही अधिकार जताने वाला। वो तो चाहती थी कि आरव अपने परिवार के लिए खड़ा हो, और साथ ही उसका साथ दे—बिना उसकी पहचान मिटाए।
अगली सुबह आरव ने अपने माता-पिता को साफ-साफ कहा,
" नेहा जैसी लड़की मुझे जीवन में दोबारा नहीं मिलेगी। उसका सपना सिर्फ उसका नहीं, इस समाज के लिए ज़रूरी है। मैं उससे शादी करूंगा और उसके हर फैसले में उसका साथ दूंगा। यही प्रेम का दूसरा नियम है—समझ और समर्थन। और मैं दूसरा नियम भी निभाऊंगा। "
धीरे - धीरे नेहा का समर्पण देखकर आरव के परिवार का नज़रिया बदलने लगा। जिस काम को वे लोग बेकार मानते थे, वही अब उन्हें समाज की सेवा लगने लगा।
नेहा ने भी अपने परिवार को महत्व देना सीखा। वह अपने हर प्रोजेक्ट में आरव की माँ को शामिल करने लगी। माँ को जब गांव की लड़कियों ने " दादी माँ " कहना शुरू किया, तो उनकी आँखों में आँसू आ गए।
अब वे भी नेहा पर गर्व करने लगीं ।
आरव और नेहा की कहानी समाज के लिए एक मिसाल बन गई। उन्होंने सिखाया कि प्रेम का सबसे बड़ा नियम है :-
" प्रेम अधिकार नहीं, विश्वास है। प्रेम बंधन नहीं, स्वतंत्रता है। प्रेम एक-दूसरे को बदलने की नहीं, स्वीकारने की कला है। "
उनकी शादी सिर्फ दो दिलों का नहीं, दो विचारों का संगम था ।
" जहाँ प्रेम होता है, वहाँ समझ होती है । जहाँ समझ होती है, वहाँ त्याग होता है । और जहाँ त्याग होता है, वहाँ सच्चा प्रेम फलता-फूलता है । "