गाँव के लोग कहते थे – “उस हवेली में मत जाना। जो गया, वह लौटा नहीं।”
गाँव के बाहर काली पहाड़ियों के बीचोंबीच खड़ी वह हवेली वर्षों से वीरान थी। टूटी हुई दीवारें, काई जमी छतें, और वटवृक्षों की घनी जड़ों ने उसे निगलने का प्रयास कर रखा था। लेकिन उसके भीतर छुपे रहस्य और खून की गंध आज भी ज़िंदा थे।
यह कहानी है *खूनी हवेली* के अंधेरे में छुपे रहस्यों की, और उन लोगों की जिन्होंने बार-बार उस हवेली से टकराने की हिम्मत की।
रात का समय था। गाँव के चार युवक – अर्जुन, समीर, रवि और मनीष – आपस में शर्त लगा बैठे।
समीर बोला – “अगर हिम्मत है, तो आज की रात हवेली में चलकर देखो।”
गाँव के बुजुर्ग जब भी हवेली का नाम लेते, चेहरा डर से पीला पड़ जाता। कहते थे उस हवेली के मालिक ठाकुर रणबीर सिंह की आत्मा अब भी हवेली में भटकती है।
चारों हँसते हुए निकले। चाँद बादलों के पीछे छुपा था और पेड़ों की परछाइयाँ रास्ते पर लम्बी हो रही थीं। हवेली करीब आते ही सन्नाटा ऐसा था जैसे किसी ने गाँव की सारी आवाज़ें निगल ली हों।
हवेली का बड़ा दरवाज़ा अपनी जगह पर टूटा-फूटा खड़ा था। अर्जुन ने ज़ोर से धक्का दिया और दरवाज़ा *कर्कश* आवाज के साथ खुला। उनके दिलों की धड़कन तेज़ हो गई।
रात की हवा में अचानक किसी ने कराहने की आवाज़ सुनी। समीर के कान खड़े हुए।
“ये कैसी आवाज़ें हैं?” वह घबराया।
तभी हवेली की दीवार पर जले-भुने निशान दिखे, जैसे कभी आग लगी हो। हवेली की कहानी गाँव में अक्सर सुनाई जाती थी :
ठाकुर रणबीर सिंह एक बेहद निर्दयी ज़मींदार था। वह गाँववालों से काम तो करवाता लेकिन मेहनताना नहीं देता। उसकी हवेली में महिलाओं से लेकर नौकरों तक के साथ अत्याचार किए जाते। कहते हैं ठाकुर की हवेली खून से रंगी हुई थी।
एक रात अचानक पूरी हवेली में आग लग गई। चीख-पुकार मच गई। कोई नहीं जानता कि वह आग कैसे लगी। ठाकुर, उसका परिवार और उसके नौकर सब उसी आग में जल मरे। लेकिन जलने से पहले ठाकुर ने कसम खाई थी कि जो भी इस हवेली में कदम रखेगा, उसे मौत से भी बदतर अंजाम झेलना होगा।
चारों मित्र टॉर्च जलाकर हवेली के अंदर उतरे। दीवारों पर अजीब निशान बने थे — जैसे किसी ने खून से हाथ रगड़े हों।
मनीष ने देखा कि ज़मीन पर जंजीरों के टुकड़े पड़े हैं।
अचानक ऊपर की मंज़िल से कदमों की आहट आई। सबके रोंगटे खड़े हो गए। अर्जुन ने हिम्मत करते हुए कहा – “आओ देखते हैं कौन है।”
वे धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़े। ऊपर पहुँचे तो लंबा गलियारा सामने फैला था। एक कमरा बंद था, जिसके दरवाज़े पर ताले जंग खाए पड़े थे। जैसे ही अर्जुन ने ताले को छुआ, दरवाज़ा अपने आप खुल गया।
कमरे के अंदर कोई बैठा हुआ दिखाई दिया। पाँचों की आँखें चौंधिया गईं। सामने जली हुई हड्डियों का ढेर पड़ा था और उसके बीच में खोपड़ी सीधी उनकी तरफ देख रही थी।
अचानक खोपड़ी हिलने लगी। चीख कर सब पीछे हटे। तभी कमरे की दीवार से लाल रंग की साड़ी पहने एक औरत बाहर निकली। उसका चेहरा जला हुआ था, और आँखों में अंगारे चमक रहे थे।
वह बोली – “क्यों आए हो मेरी नींद खराब करने? यहाँ इंसानों की जगह नहीं।”
समीर ने काँपते हुए पूछा – “तुम कौन हो?”
औरत हँसी – “मैं वही हूँ जिसे ठाकुर ने धोखे से मारा। मेरी आत्मा तब तक चैन से नहीं सोएगी जब तक इस हवेली का बदला पूरा न हो। हर आने वाले को मैं अपने श्राप का हिस्सा बनाती हूँ।”
चारों मित्र भागने लगे। लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो चुका था। वे हवेली में क़ैद हो गए।
रात बढ़ती गई। हवेली में भूतिया सरसराहट बढ़ती जा रही थी। कभी कदमों की आहट, कभी बच्चे के रोने की आवाज़, कभी किसी के हँसने की गूँज।
मनीष अचानक कहीं गायब हो गया। सब उसे खोजने लगे तो देखा कि हवेली के एक कमरे में उसकी लाश पड़ी है। उसका गला किसी ने दबा दिया था।
अब तीनों की साँसें और तेज़ हो गईं। अर्जुन रो पड़ा – “हमें यहाँ से निकलना होगा वरना हम सब मर जाएँगे।”
अगली सुबह गाँववालों को पता चला कि चारों मित्र हवेली में गए थे और सिर्फ तीन बचे हैं। गाँव के पुजारी ने बताया कि हवेली का श्राप तोड़ने के लिए संस्कार करना होगा।
रवि और अर्जुन ने पुजारी की मदद से हवेली में हवन का आयोजन किया। मंत्रों के बीच लाल औरत फिर प्रकट हुई। उसने चीखते हुए कहा – “जब तक ठाकुर की आत्मा मुक्त न होगी, कोई चैन नहीं पाएगा।”
अचानक हवा तेज़ हो गई। लगता था पूरा आसमान फट जाएगा।
हवेली की नींव से चीखने की आवाज़ आई। ज़मीन फटने लगी। राख के ढेर से एक विकराल आकृति उठी – ठाकुर रणबीर सिंह की आत्मा।
उसके हाथों में तलवार थी, और आँखों से रक्त टपक रहा था। वह गरजा – “कोई मेरी हवेली में ज़िंदा नहीं जाएगा।”
पुजारी ने शंख बजाया और मंत्रोच्चार तेज़ कर दिया। लेकिन ठाकुर की आत्मा शक्तिशाली थी। एक ही झटके में उसने रवि को घायल कर दिया।
अर्जुन ने साहस दिखाया। उसने पुजारी की मदद से उस कमरे का दरवाज़ा खोला जहाँ ठाकुर के अस्थि-अवशेष पड़े थे। वहाँ पर गंगाजल और मंत्रों से अभिषेक कर अस्थियाँ पवित्र अग्नि में प्रवाहित की गईं।
लगातार चीख-पुकार और आग की लपटों के बीच एक पल ऐसा आया जब अचानक हवेली की दीवारें काँपने लगीं। लाल औरत की आत्मा रोती हुई बोली – “अब मुझे मोक्ष मिल गया… धन्यवाद।”
जैसे ही ठाकुर के अस्थि-अवशेष अग्नि में विलीन हुए, उसकी आत्मा भी दहाड़ मारती हुई धुएँ में गायब हो गई। हवेली की दीवारें गिरने लगीं। अर्जुन और समीर किसी तरह भागकर बाहर आए।
जब सूरज की पहली किरण हवेली पर पड़ी, तो वहाँ सिर्फ मलबा बचा था।
गाँववालों ने राहत की साँस ली। अभिशप्त हवेली अंततः मिट्टी में मिल गई। लेकिन गाँव के लोग आज भी कहते हैं – “उस जगह से रात में मत गुज़रना। मिट्टी अब भी खून और चीखों की गंध सँभाले हुए है।”
और अर्जुन तथा समीर?
उन्होंने कसम खाई कि अब कभी भी अपनी जिज्ञासा के लिए मौत को न्योता नहीं देंगे।