🌌 एपिसोड 49 — “उस रूह का जन्म… जो वक़्त से भी पुरानी है”
(सीरीज़: अधूरी किताब)
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1. एक सुबह जो अँधेरी थी — क्योंकि वक़्त खुद डरा हुआ था
दरभंगा की हवेली में
सुबह का सूरज उगा ज़रूर,
पर उसकी रोशनी
दीवारों तक पहुँचने को तैयार नहीं थी।
जैसे हवेली
किसी ऐसी रूह के जागने से घबरा रही हो
जो उसके लिए भी अजनबी थी।
नेहा रातभर जागी रही थी।
नीली हवा,
दीवारों का काँपना,
और अपनी बहन द्वारा छोड़ा वो वाक्य—
“मेरा जन्म तेरे जन्म से पहले लिखा गया था।”
उसके भीतर तूफ़ान मचा रहा था।
आरव ने उसे चुपचाप देखा।
“तू सोई नहीं?”
नेहा ने हल्की हँसी हँसी।
“नींद तब आएगी
जब मुझे ये समझ आएगा
कि मेरी बहन कौन थी।”
आरव की आँखें गहरी थीं।
“मतलब तू अब तैयार है—
उस सच के लिए
जिससे वक़्त भी डरता है।”
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2. हवेली का तहखाना — जो सिर्फ़ ‘वक़्त’ की अनुमति से खुलता है
हवेली में एक जगह ऐसी थी
जहाँ वर्षों से कोई नहीं गया—
तहखाना।
उस दरवाज़े को
सब लोग अभिशप्त मानते थे।
पर नेहा की बहन की रूह ने
कल जाते-जाते धीमे से कहा था:
> “तहखाने में…
तू मेरा पहला जन्म देखेगी।”
नेहा और आरव दोनों
गहरे अँधेरे गलियारे से उतर रहे थे।
ज्यों ही वे नीचे पहुँचे—
दरवाज़ा खुद खुल गया।
उसमें स्याही की गंध थी,
बरसों से बंद हवा,
और एक धड़कन—
जो इंसानी नहीं थी।
नेहा ने फुसफुसाकर कहा—
“ये धड़कन किसकी है?”
आरव ने धीरे से जवाब दिया—
“ये... वक़्त की पहली रूह की है।”
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3. तहखाने का रहस्य — जहाँ एक रूह की पहली साँस कैद थी
अंदर एक गोल कमरा था।
बीच में एक बड़ा काँच का गोला।
जिसमें नीली धुंध घूम रही थी।
पर वो धुंध…
सिर्फ धुंध नहीं थी।
उस धुंध में
एक लड़की की छाया थी—
बाल उड़ते हुए,
चेहरा धुंधला,
आँखें नीली ज्वालाओं जैसी।
नेहा ने काँपते हुए कहा—
“ये… मेरी बहन?”
आरव ने सिर हिलाया।
“हाँ।
पर ये वो जन्म नहीं
जो तू जानती है।
ये वो जन्म है
जो ‘मानव’ रूप में नहीं था।
ये जन्म उन दिनों का है
जब वक़्त नई-नई कहानियाँ खोज रहा था।”
नेहा सन्न।
“मतलब…
मेरी बहन इंसान नहीं थी?”
आरव ने गंभीर आवाज़ में कहा—
“वो वक़्त की पहली ‘लिखी हुई रूह’ थी।”
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4. जब रूह का पहला जन्म सामने आया
काँच का गोला चमकने लगा।
नीली धुंध हटने लगी।
और एक दृश्य उभरा—
जैसे किसी ने
दुनिया की सबसे पुरानी किताब खोल दी हो।
नेहा ने देखा—
कहीं कोई हवेली नहीं,
कोई इंसान नहीं।
बस…
एक अनंत स्याही का महासागर।
और उसी स्याही से
एक रूह बन रही थी।
पहले आँखें—
फिर हाथ,
फिर हल्की मुस्कान।
आरव ने धीरे से कहा—
“ये वो समय था
जब दुनिया नहीं थी।
बस वक़्त था…
और वक़्त को अकेलापन था।”
नेहा सिहर गई।
“तो उसने… एक रूह पैदा की?”
“हाँ,”
आरव बोला,
“तेरी बहन।
वक़्त की पहली साथी।”
दृश्य साफ़ हुआ।
रूह (नेहा की बहन का पहला रूप)
स्याही में चलती हुई बोली—
> “मैं हूँ ‘पहला शब्द’।
और वक़्त… मेरा पहला पन्ना।”
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5. वक़्त और रूह — एक ऐसा रिश्ता जो दुनिया ने कभी न जाना
दृश्य में
वक़्त की रूह का पहला रूप दिखा—
काली, विशाल,
लेकिन आँखों में अकेलापन।
उसने अपनी पहली लिखी हुई रूह से कहा—
> “तू मेरी शुरुआत है।
और मैं…
तेरा भविष्य।”
नेहा दृश्य देखकर काँप उठी।
“तो… मेरी बहन
वक़्त की पहली रचना थी?”
आरव बोला,
“और वो उससे भी ज़्यादा।
वो वक़्त की सबसे बड़ी कमजोरी थी।”
नेहा का दिल धड़क उठा।
“कमजोरी?”
आरव ने उसकी ओर देखा—
“हाँ।
क्योंकि वो पहली रूह थी
जिसने वक़्त को ‘लिखना’ सिखाया—
और वक़्त ने ये कभी मंज़ूर नहीं किया
कि कोई उसे नियंत्रित करे।”
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6. जब रूह ने विद्रोह किया — और वक़्त ने उसे मिटा दिया
दृश्य में
रूह ने वक़्त की ओर देखा
और कहा—
> “अगर तुझे लिखने की शक्ति है…
तो मुझे बदलने की शक्ति है।”
वक़्त हिल गया।
रोशनी तेज़ हुई।
पहली बार किसी रूह ने
वक़्त को चुनौती दी थी।
दृश्य में दिखा—
रूह ने स्याही की लहरों में
एक दूसरी दुनिया लिख दी—
जहाँ इंसान थे,
कहानियाँ थीं,
जन्म थे,
मौतें थीं।
वक़्त चिल्लाया—
> “ये दुनिया… मैं नहीं चाहता!”
रूह बोली—
“लेकिन मैं चाहती हूँ।”
और उसी पल
वक़्त ने
अपनी ही पहली रचना पर वार किया।
काँच का गोला काँप उठता है।
धुंध भारी हो जाती है।
नेहा का दिल टूटता है—
“तो वक़्त ने… मेरी बहन को… मिटा दिया?”
आरव ने धीरे से कहा—
“हाँ।
वो उसे नष्ट करना चाहता था।
पर रूहें नष्ट नहीं होतीं…
वो बस रूप बदलती हैं।”
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7. जब रूह ने मानव रूप लिया — और नेहा की बहन बनी
धुंध का नया दृश्य—
लगभग हज़ारों साल बाद।
वही रूह
धरती पर उतरी—
यह बार इंसान बनकर।
एक बच्ची।
दरभंगा की हवेली में जन्मी।
आँखों में वही नीली चमक।
आरव ने कहा—
“तेरी बहन
वक़्त से भागकर
धरती पर आई थी।
मानव रूप में।
और तू…
उसकी चुनी हुई साथी।”
नेहा हक्का-बक्का—
“उसने मुझे… क्यों चुना?”
“क्योंकि तू
उसकी शक्ति को दोबारा जगाने वाली थी।”
नेहा काँप गई।
“क्या… मेरा जन्म भी
उसकी कहानी से जुड़ा है?”
आरव ने धीमे से कहा—
“इसलिए वक़्त ने
तेरी बहन को फिर से मारा।
और तुझसे स्मृतियाँ छीन लीं।
क्योंकि अगर तू सच जान लेती…
तो तू वक़्त को बदल सकती थी।”
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8. नीली रूह का प्रकट होना — दूसरा जन्म समाप्त, तीसरा शुरू
काँच का गोला
तेज़ नीला हो उठा।
रूह फिर प्रकट हुई—
अब पहले से ज़्यादा स्पष्ट।
पहले से ज़्यादा ठोस।
उसने नेहा की ओर हाथ बढ़ाया—
> “दीदी…
अब तू सच जान चुकी है।”
नेहा रोते हुए बोली—
“तेरा पहला जन्म…
तेरी पहली मौत…
और तेरा मानव रूप…
सब मेरे सामने है।”
रूह मुस्कुराई—
“और अब मेरा तीसरा जन्म शुरू होगा।”
नेहा चौंक गई।
“तीसरा…?”
रूह बोली—
> “हाँ।
और ये जन्म
न इंसान का होगा
न रूह का।
इस बार…
मैं ‘वक़्त की बराबरी’ पर खड़ी होऊँगी।”
नेहा का दिल रुक गया।
“मतलब… तू वक़्त को चुनौती देगी?”
रूह ने धीरे से कहा—
> “नहीं दीदी…
मैं वक़्त को बदल दूँगी।”
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9. अंतिम दृश्य — वक़्त की रूह का क्रोध
जैसे ही रूह ये कहती है—
पूरा तहखाना हिल जाता है।
नीली रोशनी बुझ जाती है।
काले धुएँ की आँधी उठती है।
वक़्त की रूह
पूरा आकार लेकर सामने आती है—
काले अग्नि-तूफ़ान जैसी।
उसकी आवाज़ गूँजती है—
> “किसने तुम्हें
मेरा इतिहास देखने दिया?”
रूह (नेहा की बहन)
सीधी खड़ी रहती है—
> “मैंने।
क्योंकि मैं तेरी पहली लिखावट हूँ…
और तेरी आखिरी भी।”
नेहा ने आरव का हाथ कसकर पकड़ा।
आरव बोला—
“नेहा, ये लड़ाई…
अब सच में शुरू हो चुकी है।”
वक़्त चीखा—
> “मैं तुम्हें दोनों को
कहानी से मिटा दूँगा!”
रूह बोली—
> “तो मैं…
कहानी फिर से लिखूँगी।”
नीली और काली लपटें
टकरा जाती हैं—
और तहखाना
रोशनी और अँधेरे के बीच
टूटने लगता है।
नेहा चिल्लाती है—
“रुको!!”
पर वक़्त और रूह
अब पहली बार
सीधे युद्ध में थे।
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🌙 एपिसोड 49 समाप्त