Adhuri Kitaab - 47 in Hindi Horror Stories by kajal jha books and stories PDF | अधुरी खिताब - 47

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अधुरी खिताब - 47

 

🌌 एपिसोड 47 — “वक़्त की कलम और अधूरी रूह”

 

(सीरीज़: अधूरी किताब)

 

 

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1. एक चोट जो दिखती नहीं — पर बाकी सब बदल देती है

 

नेहा जैसे ही अपने कमरे में लौटी,

उसे लगा जैसे कमरे में सब कुछ वही है,

पर कुछ ग़लत भी है —

जैसे हवा की खुशबू बदल गई हो,

जैसे दीवारों पर लटकी तस्वीरें पहले से हल्की लग रही हों,

जैसे दुनिया उसे पहचान रही हो

लेकिन वो दुनिया को नहीं।

 

टेबल पर “रूह की कलम” रखी थी।

उसकी नीली धड़कन धीमी थी,

जैसे वो किसी भारी नींद से जागी हो।

 

नेहा ने गहरी साँस ली —

और महसूस किया कि उसके भीतर

एक स्मृति की जगह खाली है।

जैसे दिल में एक दरवाज़ा है

जिसके पीछे कुछ था…

पर अब सिर्फ़ सन्नाटा है।

 

“वक़्त ने मुझसे क्या छीना?”

ये सवाल उसके भीतर गूँजता रहा।

 

पर जवाब… कहीं नहीं।

 

 

---

 

2. आरव की वापसी — पर क्या वो वही है?

 

दरवाज़े पर दस्तक हुई।

नेहा चौंकी।

दरवाज़ा खोला तो सामने आरव।

 

लेकिन इस बार वो इंसान की तरह दिख रहा था —

ना नीली आँखें

ना हवा में घुलने वाली परछाई।

 

वो मुस्कुराया —

“मैं… वापस आ गया हूँ।”

 

नेहा ने हैरानी से पूछा —

“तुम… पूरी तरह इंसान हो?”

 

आरव ने सिर हिलाया।

“वक़्त की किताब ने मुझे छोड़ा नहीं…

पर उसने मुझे तुम्हारी दुनिया में रहने की इजाज़त दे दी है।”

 

नेहा ने उसे गौर से देखा।

कुछ तो बदला था।

उसकी आँखों में गहराई थी —

जैसे वो हर सेकंड को पहचान सकता हो।

 

“क्या तुम्हें सब याद है?”

नेहा ने पूछा।

 

आरव शांत था।

“हाँ… और बहुत कुछ।”

फिर उसने जोड़ा,

“जो तू भूल चुकी है…

वो भी मुझे याद है।”

 

नेहा का दिल तेज़ हुआ।

“मुझसे क्या छीन लिया गया?”

 

आरव ने उसकी ओर देखा,

पर कुछ नहीं कहा —

बस उसकी आँखों में एक ऐसा दर्द उभरा

जिसे नेहा समझ तो गई

पर अर्थ नहीं पकड़ पाई।

 

 

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3. दरभंगा हवेली में हलचल — खोई हुई स्मृति जाग उठी

 

अचानक नेहा के फोन पर एक नोटिफिकेशन चमका।

Title था:

“दरभंगा हवेली में नीली रोशनी — फिर शुरू हुई आत्माओं की हलचल”

 

नेहा का दिल जैसे रुक गया।

हवेली का नाम आते ही

उसके भीतर एक ठंडी कंपन उठी।

जैसे कोई हाथ उसे वापस बुला रहा हो।

 

आरव ने स्क्रीन देखी।

“हवेली… तुझे पुकार रही है।”

 

नेहा ने लाल आँखों से कहा —

“क्या मेरी खोई हुई स्मृति का संबंध हवेली से है?”

 

आरव ने धीमे से कहा —

“हवेली ही वो वजह है

जिसके कारण वक़्त ने तेरी स्मृति ली।”

 

नेहा का गला सूख गया।

“मतलब… मैंने वहाँ क्या देखा था?”

 

आरव चुप रहा।

पर उसकी चुप्पी ही सबसे भारी उत्तर थी।

 

 

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4. हवेली में लौटना — भविष्य की सुगंध

 

नेहा और आरव रात की ट्रेन से दरभंगा पहुँचे।

रात ठंडी थी।

हवा में धुंध और नीली खुशबू घुली थी —

वही खुशबू

जो केवल रूह की कलम के आसपास होती है।

 

हवेली के बाहर का गेट आधा खुला था।

जैसे कोई उनका इंतज़ार कर रहा हो।

 

अंदर प्रवेश करते ही

दीवारें हल्की-हल्की नीली चमकने लगीं।

फर्श पर स्याही की लकीरें फैली थीं —

जैसे किसी ने घसीट कर पन्ना पलटा हो।

 

नेहा का दिल धड़क उठा।

“मैं यहाँ… पहले आ चुकी हूँ।

लेकिन मुझे याद क्यों नहीं?”

 

हवेली ने खुद जवाब दिया —

हल्की आवाज़ जैसे किसी की फुसफुसाहट —

 

> “क्योंकि तेरी स्मृति मुझे ही वापस मिली है।”

 

 

 

नेहा काँप गई।

“ये आवाज़… हवेली बोल रही है?”

 

आरव ने सिर हिलाया।

“रूहों ने जो तूने पहले मुक्त की थीं…

वो तुझे पहचानती हैं।”

 

अचानक हवेली का एक पुराना कमरा

अपने आप खुल गया।

 

 

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5. वो कमरा — जहाँ उसकी स्मृति कैद थी

 

कमरे में एक पुराना लकड़ी का बॉक्स था।

उस पर नीली स्याही की मुहर थी।

 

नेहा ने बॉक्स को छूते ही

उसे झटका लगा —

जैसे उसके भीतर बहुत पुराना दर्द छिपा हो।

 

आरव ने धीरे से कहा —

“यहीं… तेरा अतीत छिपा है।

वक़्त ने तेरी स्मृति तो ले ली…

पर उसका अंश यहीं छोड़ गया है।”

 

नेहा की उँगलियाँ काँपीं।

उसने बॉक्स खोला।

 

अंदर एक पुरानी तस्वीर,

अधूरी लाईनों वाला एक पन्ना,

और एक टूटा हुआ लॉकेट था।

 

तस्वीर में —

नेहा… और एक अनजान लड़की।

उस लड़की की आँखें बिल्कुल नेहा जैसी थीं।

 

नेहा घबरा गई।

“ये कौन है?”

 

आरव ने उसकी ओर देखा —

उसकी आवाज़ टूट रही थी।

 

“ये… तेरी बहन है।”

 

नेहा जम गई।

“मेरी कोई बहन नहीं है।”

 

आरव ने धीमे से कहा —

“थी।

और वो इसी हवेली में…

तेरे लिखे हुए अध्याय में मरी थी।”

 

नेहा की साँस अटक गई।

कमरा घूमने लगा।

हवा भारी हो गई।

 

वो चीखी —

“तो वक़्त ने मेरी बहन की स्मृति मुझसे छीन ली?”

 

आरव ने सिर हिलाया।

“हाँ।

क्योंकि तू ये दर्द सह नहीं पाती…

और क्योंकि उसके जाने में

तू खुद को दोष देती थी।”

 

नेहा की आँखें डबडबा गईं।

“मैं… कैसे भूल सकती हूँ…

कि मेरी एक बहन थी?”

 

 

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6. खोई हुई रूह — जो अब अधूरी है

 

अचानक कमरे में नीली हवा उठी।

एक ठंडी परछाईं उभरी —

धीरे-धीरे आकार लेने लगी।

 

वो एक लड़की की रूह थी।

उसकी आँखें बिल्कुल नेहा जैसी,

पर उसकी मुस्कान टूटी हुई।

 

उसने धीमी आवाज़ में कहा —

 

> “दीदी…”

 

 

 

नेहा वहीं गिर पड़ी।

“नहीं… ये सच नहीं हो सकता!”

 

रूह ने कहा —

 

> “तूने मुझे हर कहानी में लिखा…

हर किताब में छुपाया…

पर अंत में तूने मुझे ही खो दिया।”

 

 

 

नेहा रोते हुए बोली —

“मैंने तुझे कैसे खोया?”

 

रूह ने कहा —

“जब तूने पहली बार ‘रूह की कलम’ पकड़ी थी…

वो मुझे बचाने के लिए थी।

पर हवेली ने मेरी रूह को अपने अंदर कैद कर लिया।

और तू… मुझे बचा नहीं पाई।”

 

नेहा टूट गई।

उसका दिल जैसे फिर से चीरा गया हो।

 

“मैंने तुझे भुलाया कैसे?”

 

रूह ने फुसफुसाया —

 

> “क्योंकि तू बहुत दर्द में थी।

वक़्त ने तेरी स्मृति ले ली…

ताकि तू कहानी लिख सके

बिना टूटे हुए।”

 

 

 

नेहा ने हाथ बढ़ाया।

“मैं तुझे वापस लाऊँगी…

चाहे कुछ भी हो जाए।”

 

रूह ने सिर हिलाया।

“नहीं दीदी…

अब तू ऐसा नहीं कर सकती।”

 

“क्यों?”

नेहा ने चीखकर पूछा।

 

रूह धीरे से मुस्कुराई —

 

> “क्योंकि मेरा वजूद अब

‘वक़्त की कलम’ में बदल चुका है।

और मैं…

तेरे हर शब्द में सांस लेती हूँ।”

 

 

 

 

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7. एक अंतिम सच — जो सब कुछ बदल देता है

 

नेहा ने पन्ना उठाया —

जो बॉक्स में मिला था।

 

उस पर सिर्फ़ एक ही लाइन लिखी थी:

 

> “नेहा, अगर तू ये पढ़ रही है,

तो मैं हमेशा तेरे शब्दों में जिंदा रहूँगी —

तुझमें नहीं।”

 

 

 

नेहा के हाथ काँप गए।

उसकी बहन ने…

खुद अपना भविष्य लिख दिया था।

 

“वो जानती थी…”

नेहा फुसफुसाई,

“कि मैं उसे भूल जाऊँगी।”

 

रूह ने कहा —

 

> “और मैं चाहती भी यही थी।

क्योंकि तू टूट जाती…

और तेरे बिना किताब अधूरी पड़ जाती।”

 

 

 

नेहा ने सिर उठाया —

“अब मैं क्या करूँ?”

 

रूह मुस्कुराई —

“लिख।

मेरे लिए नहीं…

अपने लिए भी नहीं…

बल्कि वक़्त के लिए।”

 

 

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8. अंतिम दृश्य — वक़्त की कलम का नया अध्याय

 

नेहा ने टूटा हुआ लॉकेट उठाया।

उसे छूते ही

पूरे कमरे में नीली रोशनी फैल गई।

 

रूह गायब हो गई।

 

आरव उसके पास आया।

“अब तू जान चुकी है…

वक़्त ने क्या छीना।”

 

नेहा की आँखें लाल थीं,

पर चेहरा शांत था —

जैसे किसी दर्द को स्वीकार कर लिया हो।

 

उसने “रूह की कलम” को हाथ में लिया।

 

कलम नीली लौ की तरह चमकी —

और खुद पन्ने पर उतर गई।

 

लिखा आने लगा:

 

> “Chapter 1 — वो रूह जो समय बन गई।”

 

 

 

नेहा ने मुस्कुराकर कहा —

 

“तूने मेरी स्मृति ले ली…

अब मैं तेरा भविष्य

लिखूँगी।”

 

हवेली में रोशनी फैल गई।

दीवारों ने साँस ली।

और वक़्त…

नेहा के सामने खुद को झुका चुका था।

 

 

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🌙 एपिसोड 46 समाप्त

 

अगला भाग तैयार है:

 

✨ एपिसोड 47 — “दरभंगा की हवेली में लौटती रूहें”

जहाँ नेहा की बहन की रूह

पहली बार वक़्त की सीमाएँ तोड़कर

अपने असली अतीत का खुलासा करेगी —

 

और नेहा को पता चलेगा

कि उसकी कहानी…

उसकी बहन से कहीं ज़्यादा गहरी है।