hindi in Hindi Love Stories by NBV Novel Book Universe books and stories PDF | वर्दी की खुशबू

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वर्दी की खुशबू

अध्याय 1: मुलाक़ात
शिमला की ठंडी वादियों में कोहरा धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था। पगडंडियों पर बर्फ की सफेदी और चारों तरफ़ नीली धुंध का आलम था। छुट्टियों पर अपने गाँव लौटा लेफ्टिनेंट आर्यन सिंह राठौड़ उस नज़ारे को देखकर मुस्करा रहा था। वर्दी की सख्ती और युद्ध की चपेट से कुछ पल की राहत — बस यही उसे यहाँ खींच लाई थी।
आर्यन की नजरें गाँव की मुख्य सड़क पर घूम रही थीं, तभी उसकी नज़र पड़ी एक लड़की पर। हल्की लाल शॉल में लिपटी हुई, मंदिर की सीढ़ियों पर बच्चों को मिठाई बाँट रही थी। उसका चेहरा इतना मासूम था कि आर्यन ने कुछ पल के लिए सांस लेना भूल गया।
लड़की की आँखें थोड़ी चमकदार थीं, और मुस्कान में एक गर्माहट थी जो ठंडी हवा में भी दिल को छू जाती। तभी लड़की ने बच्चों से कहा,
“चलो, जल्दी करो! मिठाई खाओ और फिर पढ़ाई की ओर ध्यान दो।”
एक बच्चा बोला,
“दीदी, फिर कभी और लाओगी?” लड़की मुस्कुराई और बोली,
 “जरूर, अगर तुम अच्छे रहोगे।”
आर्यन चुपचाप उसे देखता रहा। कुछ अजीब-सा एहसास उसके दिल में उमड़ने लगा — जैसे वर्दी और जिम्मेदारी के बीच भी कोई नरमी और अपनापन हो सकता है। उसने खुद से कहा,
“ये वही एहसास है, जो शायद मैं सालों से खोज रहा था। तभी लड़की ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान दी। आर्यन ने भी सिर हिलाकर जवाब दिया। वह पल कुछ सेकंड के लिए समय को थमाने जैसा था।
गाँव की हवा में सिर्फ़ बच्चों की हँसी, मंदिर की घंटियों की झनकार और उस अनकही मुस्कान की गर्माहट थी। आर्यन को लगा जैसे ये मुलाक़ात केवल एक शुरुआत है — शायद जीवन की सबसे खूबसूरत शुरुआत। और इसी वादियों में, आर्यन और सिया की कहानी का पहला कदम रखा गया — एक फौजी और एक मासूम लड़की, जिनकी राहें अब एक दूसरे से जुड़ने वाली थीं, भले ही वक्त और जंग उन्हें परखने वाला था।

अध्याय 2 — खतों का रिश्ता
आर्यन को सेना में लौटे हुए अब तीन हफ़्ते हो चुके थे। सीमा पर बर्फ से ढके पहाड़, दूर तक फैली खामोशी और बंदूक की ठंडी चमक — यही अब उसका संसार था। लेकिन उसके दिल में हर पल एक चेहरा रहता — सिया का।
हर रात, ड्यूटी खत्म होने के बाद वो कैंप के कोने में बैठकर एक कागज़ निकालता। सियाही से लिखे शब्द, लेकिन उनमें भावनाएँ लहू की तरह बहतीं।

> “प्रिय सिया,
यहाँ की रातें उतनी ही ठंडी हैं जितनी तुम्हारी मुस्कान गर्म थी। जब मंदिर की सीढ़ियों पर तुम्हें देखा था, लगा जैसे ज़िन्दगी के शोर में एक शांति मिल गई हो।
मैं नहीं जानता, ये क्या है… पर तुम्हारी मुस्कान अब हर गोली की आवाज़ से पहले याद आती है।”
— तुम्हारा, आर्यन

वो खत उसने भेज दिया। और कुछ दिन बाद जब जवाब आया, तो उसके हाथ काँप उठे। लिफाफे में से एक हल्की खुशबू आई — सिया की।

 “आर्यन,
तुम्हारा खत पढ़कर लगा जैसे किसी ने ठंडी हवा में सूरज रख दिया हो।
तुम्हारी बातें सच्ची लगती हैं, शायद इसलिए कि तुम एक फौजी हो।
मैं नहीं जानती ये रिश्ता क्या है, पर जब मंदिर में तुम्हें देखा था, तो कुछ महसूस हुआ था।
शायद यह भी कोई जंग है — दिल की।”

— सिया
आर्यन मुस्कराया। युद्ध के बीच यह खत उसकी ढाल बन गए थे।
हर दिन की थकान, हर गोली की आवाज़ — अब वो सब सिया के शब्दों से हल्की हो जाती।

धीरे-धीरे खतों का सिलसिला बढ़ा। हर खत में कुछ हँसी, कुछ आँसू, और थोड़ा-सा सपना होता।
सिया हर बार लिफाफे में थोड़ी-सी खुशबू डालती — गुलाब की — जो अब आर्यन की वर्दी से मिलने लगी थी।
उसके साथी कहते,
“लेफ्टिनेंट साहब, आपकी वर्दी में तो अब फूलों की खुशबू आने लगी है!”

आर्यन मुस्करा देता —

> “वर्दी की खुशबू ही तो ज़िन्दगी है, दोस्त… किसी के इंतज़ार की, किसी के प्यार की।”
रात के सन्नाटे में, जब आसमान में गोलियों की जगह तारे चमकते, आर्यन अपने खत पढ़ता और खुद से कहता —
कसम है, सिया… ये खत कभी खत्म नहीं होंगे, बस बढ़ते रहेंगे।”
उसे नहीं पता था — यही खत एक दिन सिया की ज़िन्दगी की आख़िरी उम्मीद बनेंगे।

अध्याय 3 — खतरों के साये
दिसंबर की ठंडी रात थी। सीमा पर हवा में बारूद की गंध तैर रही थी।
आर्यन अपने पोस्ट पर खड़ा था — हाथों में राइफल, आँखों में सतर्कता,
पर दिल में अब भी सिया की याद।
सामने बर्फीली घाटियाँ थीं, जहाँ सन्नाटा भी डर से थरथराता था।
कभी-कभी दुश्मन की गोलियों की आवाज़ दूर से आती —
जैसे किसी ने रात के अंधेरे में डर का तीर छोड़ा हो।
उस रात उसे सिया का एक नया खत मिला।
वो खत पढ़ते हुए उसकी आँखें भीग गईं।
“आर्यन,
हर बार जब मंदिर की घंटियाँ बजती हैं, मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करती हूँ।
मैं जानती हूँ, तुम सीमा पर हो — लेकिन क्या तुम्हें डर नहीं लगता?
मुझे तो तब से हर आवाज़, हर खबर में तुम्हारा नाम सुनाई देता है।

बस वादा करो… तुम लौटोगे। चाहे जैसे भी हालात हों।
तुम्हारी सिया।”

आर्यन ने खत को सीने से लगाया।
 “डर तो सबको लगता है, सिया… लेकिन फौजी डर को चेहरे पर आने नहीं देता।”
उसी वक्त, वायरलेस पर आदेश आया —
“लेफ्टिनेंट आर्यन, सरहद के उत्तर सेक्टर में हलचल देखी गई है। तुरंत तैयार रहें।”
वो खड़ा हुआ, हेलमेट पहना, और अपने साथियों से बोला —
“चलो भाइयों, अब हमारी ड्यूटी शुरू होती है।”
सामने अंधेरा था, और बर्फ में अजनबी कदमों के निशान।
हवा में किसी आने वाले तूफान का संकेत था।
आर्यन ने एक आख़िरी बार आसमान की ओर देखा।
तारों की झिलमिलाहट में उसे लगा, जैसे सिया की आँखें उस पर नजर रखे हुए हैं।

> “अगर कुछ हो भी गया,” उसने खुद से कहा,
“तो कम से कम मेरी वर्दी उसकी खुशबू को महसूस कर चुकी है।”
सियाचिन की बर्फ अब लाल होने को थी…
और आर्यन के खतों की स्याही अब आँसुओं और खून से मिलने वाली थी।

अध्याय 4 — वादा
बर्फ की चादर तले ठंडी हवा चल रही थी।
आर्यन अपने टेंट में बैठा था — एक मोमबत्ती की हल्की लौ, एक पुराना नोटबुक, और सिया की तस्वीर उसके सामने रखी थी।

बाहर गोलियों की आवाज़ें अब रोज़ की बात बन चुकी थीं,
पर आज उसके दिल में कुछ अलग बेचैनी थी — जैसे कुछ कहना ज़रूरी हो।

उसने कलम उठाई और लिखना शुरू किया —

> “प्रिय सिया,
अगर ये खत तुम तक पहुँचे, तो समझ लेना मैं ठीक हूँ।
यहाँ की ठंड तुम्हारे बिना और भी सख्त लगती है।
पर तुम्हारी याद मुझे गर्म रखती है।

सिया… तुमने पूछा था कि क्या मुझे डर लगता है?
सच कहूँ तो हाँ — डर लगता है।
पर वो डर मौत का नहीं…
डर इस बात का है कि कहीं मैं तुम्हारा वादा न तोड़ दूँ।

मैं लौटूँगा, सिया।
चाहे कितनी भी दूर क्यों न जाना पड़े,
मैं लौटकर आऊँगा, उस मंदिर की सीढ़ियों तक,
जहाँ तुम पहली बार मुस्कराई थीं।

ये वादा है…
एक फौजी का, एक प्रेमी का।”

— तुम्हारा, आर्यन



खत लिखने के बाद उसने उसे अपने सीने से लगाया,
और हवा में देखा — बर्फ के फाहे गिर रहे थे,
मानो आसमान भी उस वादे का गवाह बन रहा हो।

अगली सुबह, आर्यन को आदेश मिला —

> “सभी सैनिकों को तैयार रहना है, सीमा पर बड़े हमले की सूचना है।”



उसने वर्दी पहनी, हेलमेट लगाया, और आख़िरी बार सिया की तस्वीर को देखा।

> “सिया, अब मैं वादा निभाने जा रहा हूँ…”

वह मुस्कराया, बंदूक उठाई, और बाहर निकल गया —
जहाँ हवा ठंडी थी, पर उसकी वर्दी में अब भी सिया की खुशबू थी।

अध्याय 5 — जंग का सामना

सुबह का आसमान लाल था — जैसे सूरज नहीं, बल्कि जंग खुद उग रही हो।
सियाचिन की बर्फ अब सफेद नहीं रही… गोलियों की गूंज में उसकी शांति डूब चुकी थी।

लेफ्टिनेंट आर्यन सिंह राठौड़ अपनी पलटन के साथ मोर्चे पर तैनात था।
सामने दुश्मन की हलचल दिखी — धुंध के पार, अंधेरे में चमकते हेलमेट।
आवाज़ आई —

> “सभी जवान अपनी पोज़िशन पर! आदेश का इंतज़ार करो!”

आर्यन ने अपनी राइफल कसकर पकड़ी।
दिल की धड़कनें तेज़ थीं, लेकिन आँखों में एक अजीब-सी शांति।
सीने की जेब में रखा सिया का खत उसकी सबसे बड़ी ताक़त था।

पहली गोली चली —
और आर्यन ने जवाब दिया, एक गूंज के साथ।
गोली, धुआँ, चिल्लाहटें, आदेश — सब कुछ मिलकर एक ही आवाज़ बन चुके थे।

एक साथी चिल्लाया —

> “लेफ्टिनेंट, सामने की चोटी पर हमला हो रहा है!”



आर्यन बिना सोचे दौड़ पड़ा।
बर्फ उसके पैरों के नीचे से उछलती, और हर कदम के साथ उसकी साँसें भारी होती जा रही थीं।
गोलियाँ उसके चारों ओर से गुजर रही थीं —
लेकिन उसके मन में सिर्फ़ एक आवाज़ थी —

> “मैं लौटूँगा, सिया…”



वह चोटी तक पहुँचा, मशीन गन संभाली, और दुश्मन के हमले को रोक दिया।
उसके हाथ खून से सने थे, लेकिन चेहरे पर गर्व की मुस्कान थी।

तभी एक तेज़ धमाका हुआ —
धूल, धुआँ, और उसके साथियों की चीखें।
आर्यन ज़मीन पर गिर पड़ा… उसके कानों में अब भी सिया की आवाज़ गूंज रही थी।

> “बस वादा करो… तुम लौटोगे।”



उसने काँपते हाथ से जेब से खत निकाला, उसे सीने से लगाया —
और धीमे से बोला,

> “वादा निभ गया, सिया… मैं लौट रहा हूँ… बस थोड़ी देर में।”



आसमान में बर्फ के फाहे गिर रहे थे —
और उनमें मिल चुका था एक फौजी का खून, एक वादे की कीमत।

अध्याय 6 — अंतिम खत

शिमला की वादियाँ उस दिन अजीब-सी चुप थीं।
मंदिर की घंटियाँ तो बज रही थीं, पर सिया का मन बेचैन था।
हर सुबह की तरह उसने डाकिए की राह देखी,
पर आज हवा भी कुछ उदास लग रही थी।

और तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई —
डाकिया खड़ा था, हाथ में एक लिफाफा और साथ में भारतीय सेना का प्रतीक चिह्न।

> “सिया जी… ये खत है लेफ्टिनेंट आर्यन सिंह राठौड़ का,”
डाकिए ने धीमे स्वर में कहा,
“वो… अब नहीं रहे।”



सिया का दिल रुक गया।
उसके कानों में कुछ सुनाई नहीं दिया, बस हवा की आवाज़ और अपनी धड़कनों की गूंज।

उसने काँपते हाथों से लिफाफा खोला।
भीतर आर्यन की लिखावट थी — सधी हुई, लेकिन शब्दों में विदाई की महक थी।


---

> “प्रिय सिया,
जब तुम ये खत पढ़ रही होगी,
शायद मैं उस सीमा पर अपनी ड्यूटी निभा चुका होऊँ।

मौत का डर तो नहीं है,
लेकिन तेरा चेहरा बार-बार आँखों के सामने आता है।

अगर मैं लौट न सका,
तो समझ लेना कि मेरा वादा झूठा नहीं था —
मैं लौट आया हूँ, बस किसी और रूप में।

जब भी हवा तेरे बालों को छूएगी,
समझ लेना मैं वहीँ हूँ।

जब भी मंदिर की घंटियाँ बजेंगी,
मैं तेरे पास खड़ा रहूँगा।

सिया,
फौजी मरते नहीं — वो बस सरहद का हिस्सा बन जाते हैं।
और अब मैं वहीं रहूँगा…
तेरे हर खयाल के पास।

— हमेशा तुम्हारा,
आर्यन।”

खत पढ़ते-पढ़ते सिया की आँखों से आँसू टपकने लगे।
उसने आसमान की ओर देखा —
बर्फ गिर रही थी, बिलकुल वैसी ही जैसे उस दिन जब उसने आर्यन को पहली बार देखा था।

वो मुस्कराई, आँसू पोंछे, और बोली —

> “तुमने वादा निभाया, आर्यन…
वर्दी की खुशबू अब मेरी ज़िन्दगी की सांस बन गई है।”

मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं,
और हवा में वाकई आर्यन की मौजूदगी महसूस हो रही थी —
शायद हर बर्फ के फाहे में उसकी रूह थी,
हर झोंके में उसका प्यार।

अध्याय 7 — इंतज़ार

समय बीत गया…
जंग खत्म हो चुकी थी, पर सिया की दुनिया अब भी वहीं रुकी थी —
जहाँ एक फौजी ने वादा किया था कि वो लौटेगा।

हर सुबह मंदिर की घंटियों के साथ सिया का दिन शुरू होता।
वो वही सीढ़ियाँ थीं, जहाँ उसने पहली बार आर्यन को देखा था।
वहीं बैठकर वो आर्यन का आख़िरी खत पढ़ती,
जैसे हर शब्द में उसकी सांसें बस गई हों।

उसने आर्यन के नाम की माला बनाई थी —
जिसमें हर मोती एक खत की तारीख़ था।
वो अक्सर कहती,

> “वो गया नहीं… बस ड्यूटी पर है।”
गाँव के लोग अब उसे “फौजी की सिया” कहने लगे थे।
वो मुस्करा देती, पर उसकी मुस्कान में अब एक सन्नाटा रहता।

कभी-कभी शाम को हवा चलती,
तो उसके बालों से वही खुशबू आती — वर्दी की खुशबू।
वो आँखें बंद कर कहती,

> “आर्यन… तुम यहीं हो न?”

रात को जब आसमान में तारे चमकते,
तो उसे लगता जैसे वो हर तारा उसकी तरफ़ देख मुस्करा रहा है।
एक तारा बाकी सब से ज़्यादा चमकता था —
सिया उसे “आर्यन का तारा” कहती।

वर्षों बाद भी सिया ने शादी नहीं की।
वो उसी छोटे से घर में रही,
जहाँ दीवार पर आर्यन की वर्दी टंगी थी —
और नीचे रखा था वो अंतिम खत,
जिसकी स्याही अब भी महकती थी।

कहते हैं, हर पूर्णिमा की रात मंदिर की घंटियों के बीच
वहाँ एक हल्की सी खुशबू आती है —
गुलाब और बारूद की मिलीजुली महक…
वर्दी की खुशबू।


---

> “कुछ वादे वक्त नहीं तोड़ता,
कुछ लोग मरकर भी लौट आते हैं —
हवा बनकर, याद बनकर, खुशबू बनकर।”

THE END 


लेखक - अनुज श्रीवास्तव