🌘 एपिसोड 34 — “हवेली की खामोश पुकार”
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1. लाल गंध की दहलीज़
दरभंगा स्टेशन पर धुंध अब तक छँटी नहीं थी।
सुबह के पाँच बजे, प्लेटफ़ॉर्म पर बस कुछ परछाइयाँ हिल रही थीं।
एक आदमी उतरा — कैमरा उसके गले में, बैग में नोटबुक और रिकॉर्डर।
नाम था — अंशुमान शुक्ला,
दिल्ली का पत्रकार।
उसके चेहरे पर नींद की परत थी,
पर आँखों में एक अलग-सी बेचैनी —
जैसे कोई उसे यहाँ खींच लाया हो।
टैक्सी में बैठते ही उसने ड्राइवर से पूछा —
“दरभंगा के पुराने हिस्से में... वो हवेली है न, जहाँ कोई नहीं रहता?”
ड्राइवर ने हड़बड़ा कर शीशा ठीक किया,
“बाबू, उ हवेली में तो अब कौनो नहीं जाता... सुना है, उहां किताब जिन्दा है।”
अंशुमान हल्का मुस्कराया,
“किताब ज़िंदा नहीं होती, दोस्त… बस कहानी अधूरी रह जाती है।”
ड्राइवर ने नज़रें झुका लीं।
पर रास्ते में उसे हर मोड़ पर महसूस हुआ —
हवा में लोहे, राख और खून की गंध तैर रही है।
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2. हवेली की दस्तक
साढ़े छह बजे —
दरभंगा की पुरानी हवेली सामने थी।
टूटी हुई मेहराबें, बंद खिड़कियाँ,
और गेट पर जंग लगा ताला — जो खुद खुल गया,
जैसे उसे पहचान गया हो।
अंशुमान ने कैमरा ऑन किया।
“Location Entry — The Soul Script Haveli, Darbhanga.”
जैसे ही उसने पहला कदम रखा,
फ़र्श से लाल रेखा उभरी और दीवारों पर फैल गई।
> “तुम आ गए...”
आवाज़ हवा में तैर रही थी।
वो काँप गया।
“कौन है वहाँ?”
कोई जवाब नहीं —
बस सामने वही पुरानी टेबल थी,
और उस पर किताब —
The Soul Script — Blood Edition.
किताब के ऊपर एक तितली बैठी थी,
पर उसके पंखों से लाल बूँदें गिर रही थीं।
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3. अतीत की गूँज
अंशुमान ने कैमरा घुमाया —
लेंस में कुछ चमक रहा था।
धीरे-धीरे तस्वीर उभरी —
दीवार पर किसी महिला की आकृति… आर्या राठौर की।
उसकी आँखें सीधी कैमरे में देख रही थीं।
> “तुम्हें देर हो गई...”
अंशुमान हक्का-बक्का रह गया।
“तुम... तुम कौन?”
> “मैं वो कहानी हूँ... जो पूरी नहीं हुई।”
कमरे की हवा भारी हो गई।
टाइपराइटर फिर से अपने आप चलने लगा —
> “Chapter 3 — The Reader Arrives.”
अंशुमान ने किताब उठाने की कोशिश की —
पर उंगलियों पर वही लाल स्याही लग गई,
जो अब गरम थी... जैसे जीवित।
“ये… ये तो जल रही है!”
आर्या की रूह ने धीमे स्वर में कहा —
> “किताब अब खुद लिखती है... और तुम उसका अगला शब्द हो।”
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4. कैमरे में कैद मौत
रिकॉर्डर अपने आप ऑन हो गया।
टेप में आवाज़ आई —
> “हर अधूरी किताब, अपना पाठक चुनती है।”
अंशुमान ने फौरन नोटबुक निकाली।
“किसने कहा ये? आर्या राठौर? या कोई और?”
दीवार पर खून से अक्षर उभरे —
> “A R.”
अगले ही पल, कैमरे की स्क्रीन में झिलमिलाहट हुई —
आर्या नहीं, अब रूहानी सेन की परछाई उभरी।
उसने कहा —
> “वो हवेली अब किताब नहीं… एक दरवाज़ा है।”
अंशुमान ने कांपते हुए पूछा —
“कहाँ का दरवाज़ा?”
> “उन कहानियों का… जो कभी ख़त्म नहीं हुईं।”
अचानक हवेली की छत से लाल रोशनी उतरी,
और किताब के पन्ने अपने आप खुलने लगे।
हर पन्ने पर वही शब्द —
“Welcome, Anshuman Shukla.”
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5. खामोश पुकार
हवेली में अब कोई आवाज़ नहीं थी —
बस टिक... टिक... टिक...
जैसे किसी अदृश्य घड़ी की सुइयाँ चल रही हों।
अंशुमान ने देखा —
उसकी अपनी नोटबुक में खुद-ब-खुद शब्द उभर रहे थे।
> “लेखक मर चुके हैं।
अब पाठक लिखेगा।”
वो पीछे हटा, पर फर्श पर लाल लकीरें फैलने लगीं —
हर कदम के नीचे स्याही की जगह खून था।
> “भागो नहीं, अंशुमान…”
किताब खुद फड़फड़ाई।
उसके पन्नों से नीली लौ निकली और हवा में लहराने लगी।
वो लौ उसके चारों ओर घूमी,
और कानों में फुसफुसाई —
> “अब तुमसे कहानी पूरी होगी…”
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6. अंतिम दृश्य — खामोश हवेली
शाम को गाँव वाले बोले —
“साहब गया था हवेली में… पर लौटा नहीं।”
किसी ने अंदर जाकर देखा —
टेबल पर अब दो चीज़ें थीं —
एक पुरानी किताब और एक कैमरा।
कैमरे में आख़िरी रिकॉर्डिंग चलती रही —
हवा में वही आवाज़ गूंजती थी —
> “The Soul Script — New Chapter Loading…”
और किताब के नीचे एक नई पंक्ति उभरी —
> “By: Arya Rathore & Anshuman Shukla
(The Cursed Co-Authors)”
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🩸 एपिसोड 34 समाप्त
🕯️ आगामी एपिसोड 35 — “रक्त का रीडर”
जहाँ अंशुमान की आत्मा हवेली में फँसी हुई है,
और उसकी आवाज़ अब एक नए पाठक को बुला रही है —
“किताब को पढ़ो… ताकि मैं पूरा हो सकूँ…”