भाग 16
रचना: बाबुल हक़ अंसारी
“साज़िश का तांडव और एक बलिदान की कीमत”
पिछले भाग से…
"कभी-कभी लगता है, आर्या… मैं तुम्हें खो दूँगा।"
रात की वो आग… जो सब कुछ बदल गई
रात शांत थी, लेकिन हवा में बेचैनी घुली हुई थी।
कॉलेज के बाहर एक पुरानी जीप धीरे-धीरे रुकी।
चार नकाबपोश उतरे — हाथों में पेट्रोल के ड्रम और माचिस की तीलियाँ।
उसी वक्त, अंदर आर्या अनया के साथ अगले दिन की रैली की तैयारी कर रही थी।
"हमें ये पांडुलिपि कल सुबह चौक पर सबके सामने पढ़नी है।
अगर लोगों ने इसे सुन लिया, तो डर की दीवार गिर जाएगी," अनया बोली।
आर्या मुस्कुराई —
"डर तो अब पीछे छूट गया, अनया… अब सिर्फ़ जंग बाकी है।"
इतने में बाहर धमाका हुआ।
खिड़कियाँ हिल उठीं।
आग की लपटें दीवारों तक पहुँच गईं।
अनया चिल्लाई —
"नीरव कहाँ है?"
दरवाज़े की ओर भागती ही थी कि दूसरी तरफ़ से धुआँ अंदर घुसा।
आग तेजी से फैल रही थी।
नीरव दौड़ता हुआ पहुँचा।
"आर्या! अनया! बाहर निकलो!"
लेकिन दरवाज़ा जल रहा था।
लकड़ी की चिटकनी पिघलकर गिर चुकी थी।
आर्या चीख़ी —
"नीरव! हम फँस गए हैं!"
नीरव ने बिना सोचे दीवार पर लात मारी,
एक खिड़की तोड़ी, और अंदर घुस गया।
धुएँ में उसकी साँसें उखड़ रही थीं।
उसने अनया को पकड़कर बाहर धकेला, फिर आर्या की ओर हाथ बढ़ाया —
"चलो! जल्दी!"
आर्या झिझकी,
“नीरव, तुम बाहर निकलो पहले…”
नीरव ने गुस्से में कहा —
“मोहब्बत बची रहे, इसलिए तो लड़ रहे हैं!”
वो उसे खींचकर बाहर लाया —
पर तभी छत का एक हिस्सा गिरा…
नीरव वहीं दब गया।
आर्या चीख़ पड़ी —
"नीरव!!!"
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गुरु शंकरनंद का आत्म-संकल्प
अगली सुबह अस्पताल के बाहर भीड़ जमा थी।
अनया के कपड़े अब भी धुएँ और राख से सने थे।
वो डॉक्टर से पूछती रही —
"नीरव बच जाएगा ना?"
डॉक्टर ने सिर झुका लिया —
"वो ज़िंदा है, लेकिन हालत नाज़ुक है। उसे वक्त चाहिए… और दुआ भी।"
उसी वक्त, गुरु शंकरनंद अंदर आए।
उनकी आँखों में थकान थी, पर भीतर कोई निर्णय जल रहा था।
“बेटी…” उन्होंने धीमे से कहा,
“कल मैंने डर के कारण चुप्पी चुनी थी, आज मैं बोलूँगा।
तुम्हारे पापा के नाम पर छपी ये किताब अब मैं खुद प्रेस में ले जाऊँगा।
अगर सरकार रोकने आए, तो सबसे पहले मुझे गोली मारी जाए।”
अनया की आँखों में आँसू थे,
“गुरुजी… ये आपका प्रायश्चित है या मेरा सहारा?”
गुरुजी मुस्कुराए —
“दोनों।”
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आर्या की कसौटी
अस्पताल के कमरे में आर्या ने नीरव का हाथ थामा हुआ था।
वो बेहोश था, पर उसकी उँगलियाँ हल्की-हल्की काँप रही थीं।
आर्या फुसफुसाई —
“तुमने कहा था न… कि अगर मैं साथ खड़ी रहूँगी तो जीत पक्की होगी।
अब तुम्हारे बिना ये जंग अधूरी है, नीरव।
तुम वापस आओ, वरना मैं भी लड़ाई छोड़ दूँगी।”
दरवाज़े पर खड़ी अनया ने सब सुना।
उसने आर्या के कंधे पर हाथ रखा —
“नहीं, आर्या… अगर तुमने हार मान ली, तो नीरव की कुर्बानी बेकार जाएगी।
अब ये सिर्फ़ किताब की नहीं, हमारी ज़िंदगी की लड़ाई है।”
आर्या ने आँसू पोंछे।
उसकी आँखों में अब डर नहीं था, बल्कि वही नीरव वाला जज़्बा लौट आया था।
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आख़िरी पन्ना — “क्रांति की शुरुआत”
गुरु शंकरनंद ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में किताब का पहला पन्ना उठाया —
“रघुवीर त्रिपाठी की आख़िरी आवाज़ अब बंद नहीं रहेगी।”
उन्होंने पन्ना सबके सामने पढ़ना शुरू किया।
कैमरों की फ्लैशें चमक रही थीं।
भीड़ में किसी ने फुसफुसाया —
“इतिहास दोबारा लिखा जा रहा है।”
और उसी पल, अस्पताल में नीरव की उँगलियाँ हल्की सी हिलीं।
आर्या मुस्कुराई…
“वो लौट रहा है, अनया।”
अनया बोली —
“हाँ, क्योंकि अब किसी की आवाज़ दबेगी नहीं।”
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(जारी रहेगा…)
अगले खंड में आएगा:
सत्ता की पलटवार — गुरु शंकरनंद पर सीधा हमला।
नीरव की वापसी और उसका नया मिशन।
आर्या और अनया का गठजोड़ — “कलम बनाम गोलियों” की निर्णायक लड़ाई।