एपिसोड 33 — “रूहों की अगली दस्तक”
🌕 1. हवेली की नई सुबह
दरभंगा की हवेली आज अलग लग रही थी।
जहाँ कल तक नीली रौशनी रिसती थी, वहाँ आज सुनहरी धूप झर रही थी।
फूलों की खुशबू पूरे आँगन में बिखरी थी —
जैसे किसी ने रात भर हवेली को सजाया हो।
अर्जुन बरामदे में बैठा था, सामने वही पेंटिंग लटक रही थी —
अब उसमें रुमी और अर्जुन के बीच सुनहरी रोशनी नहीं,
बल्कि एक तीसरा साया उभरने लगा था…
धुंधला, मगर ज़िंदा।
अर्जुन के होंठ हिले —
> “रुमी… क्या तुम हो?”
हवा में धीमी फुसफुसाहट गूंजी —
> “मैं तो हमेशा थी अर्जुन,
पर अब कोई और दस्तक देने आया है…”
अर्जुन चौंका।
दीवार के पीछे से एक हल्की-सी आहट आई —
जैसे किसी ने पुराने लकड़ी के फ़र्श पर चलने की कोशिश की हो।
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🌘 2. पुरानी डायरी
अर्जुन ने उस दिशा में कदम बढ़ाए।
कोने में एक पुराना संदूक रखा था —
धूल से भरा, मगर उसके ऊपर नीले निशान थे,
बिलकुल वैसे ही जैसे रुमी की रूह जब प्रकट होती थी।
उसने ताला तोड़ा —
अंदर एक डायरी रखी थी।
कवर पर लिखा था —
“रूहान”
अर्जुन के उँगलियाँ काँप उठीं।
> “रूहान? कौन…?”
डायरी खोली —
पहला पन्ना पढ़ते ही हवेली में फिर वही नीली लपट उठी।
> “अगर ये शब्द पढ़ रहे हो, अर्जुन, तो समझो मेरी रूह ने तुम्हारे इश्क़ की ख़ुशबू पहचान ली है।”
> “मैं वो रूह हूँ जिसने रुमी को इस हवेली तक पहुँचाया था।”
अर्जुन की आँखें फैल गईं।
> “मतलब… रुमी की रूह अकेली नहीं थी?”
नीली हवा ने धीरे से जवाब दिया —
> “हर इश्क़ की रूह के पीछे एक गवाही होती है, और मैं वही गवाही हूँ — रूहान।”
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🌙 3. रूहान की परछाई
कमरा अंधेरा हो गया।
डायरी की स्याही से धुआँ उठा — और उसमें से एक परछाईं उभरी।
रूहान — लंबा कद, आँखों में नीली चमक, होंठों पर हल्की मुस्कान।
> “तुम अर्जुन हो ना? वो जिसने रुमानियत को शब्दों में बदल दिया…”
अर्जुन एक पल के लिए मौन रहा, फिर बोला —
> “रुमी मेरे भीतर है। तुम कौन हो?”
रूहान हँसा।
> “मैं रुमी का पहला जन्म हूँ।”
अर्जुन का दिल धड़क उठा।
> “क्या?”
> “हाँ, वो जो अब तुम्हारी रूह में बस गई है —
वो पहले मेरी थी… मेरे इश्क़ की रूह थी।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
अर्जुन की आँखों में गहराई उतर आई —
जैसे वक्त एक पल को रुक गया हो।
> “तो तुम लौटे क्यों हो?”
रूहान ने दीवार की ओर देखा जहाँ पेंटिंग टंगी थी।
> “क्योंकि हर अधूरा इश्क़ एक नई कहानी चाहता है।”
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🔥 4. तीन रूहों का संगम
नीली और सुनहरी रोशनी आपस में टकराने लगी।
अर्जुन की साँसें भारी हो गईं, और तभी उसकी छाती से एक धीमी हँसी उभरी —
रुमी की।
> “रूहान…”
उसकी आवाज़ दीवारों से गूंजी।
“अब वक्त आ गया है कि तुम भी मुक्त हो जाओ।”
रूहान की आँखों में आँसू चमक उठे।
> “मुक्त? या फिर मिट जाना?”
रुमी की परछाई हवा में तैर गई —
> “मिटना और मिलना एक ही बात है जब इश्क़ सच्चा हो।”
नीली लपट अर्जुन के चारों ओर घूमने लगी।
उसने महसूस किया कि तीनों रूहें — उसकी, रुमी की, और रूहान की —
अब एक ही रौशनी में विलीन हो रही हैं।
दीवार की पेंटिंग से तीसरा साया गायब हो गया,
पर उसकी जगह एक खुला द्वार बन गया —
जिसके ऊपर लिखा था —
> “रूहानियत का द्वार — जहाँ इश्क़ अनंत होता है।”
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🌕 5. हवेली की दस्तक
बाहर से रमाकांत पंडित भागे हुए आए।
> “अरे अर्जुन बाबू! ये कैसी रौशनी है? पूरा आसमान नीला हो गया!”
अर्जुन शांत खड़ा था।
उसकी आँखें अब सुनहरी और नीली दोनों थीं —
दो रूहों का संगम।
> “पंडित जी…” उसने धीमे स्वर में कहा,
“अब हवेली का हर कोना रुमानियत से धड़क रहा है।”
रमाकांत ने folded हाथ जोड़े —
> “तो अब डर ख़त्म हो गया?”
अर्जुन मुस्कुराया —
> “डर नहीं पंडित जी… अब बस एहसास बचा है।”
आँगन में हवा चली —
दीवारों से वही नीली खुशबू उठी,
और दूर से एक बच्ची की आवाज़ आई —
> “माँ… यहाँ से कोई गाना गा रहा है…”
पंडित जी चौंक उठे।
अर्जुन मुस्कुरा कर बोला —
> “वो गाना नहीं… किसी रूह का नया जन्म है।”
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💫 एपिसोड 32 — हुक लाइन :
अगली सुबह हवेली के दरवाज़े पर एक नई तख़्ती लगी थी —
> “यहाँ अब सिर्फ़ रुमानियत नहीं… रूहानियत भी बसती है।”
और हवा में किसी ने धीरे से कहा —
> “हर रूह का एक इश्क़ होता है,
बस उसे पहचानने के लिए एक दिल चाहिए…” ❤️🔥