love witch in Hindi Love Stories by Rakesh books and stories PDF | चुड़ैल से प्यार

The Author
Featured Books
Categories
Share

चुड़ैल से प्यार

सर्द रात थी। गाँव के बाहर, जंगल के किनारे, पुरानी हवेली की खंडहर दीवारों से साँय-साँय की आवाज़ आ रही थी। लोग कहते थे, वहाँ एक चुड़ैल रहती है—लंबे काले बाल, लाल आँखें, और वो हंसी, जो सुनने वालों का खून जमा दे। गाँव में कोई रात को उस तरफ नहीं जाता था। पर रमेश को डर नाम की चीज़ छूती नहीं थी।  

रमेश, गाँव का नौजवान, हट्टा-कट्टा, और जरा सा बिंदास। लोग उसे बेवकूफ कहते, क्योंकि वो चुड़ैल की कहानियों पर हँसता था। "अरे, भूत-प्रेत सब बकवास है!" वो चौपाल पर ठहाके लगाते हुए कहता। एक रात, दोस्तों ने शराब के नशे में उससे शर्त लगाई: "जा, हवेली से वो पुराना ताबीज लाकर दिखा, जो चुड़ैल की खोह में है।" रमेश ने हँसकर शर्त मान ली।  

रात के बारह बजे, मशाल हाथ में लिए, रमेश हवेली की ओर चल पड़ा। जंगल में सन्नाटा, सिर्फ झींगुरों की आवाज़। हवेली के टूटे दरवाजे पर पहुँचते ही उसे ठंडी हवा का झोंका लगा। अंदर अंधेरा ऐसा कि मशाल की रोशनी भी डर रही थी। रमेश ने कदम बढ़ाया, और सीढ़ियों की चरमराहट ने उसका स्वागत किया।  

खोह के पास पहुँचा, जहाँ ताबीज होने की बात थी। वहाँ, एक पुरानी चौकी पर, चाँदी का ताबीज चमक रहा था। जैसे ही रमेश ने उसे उठाने को हाथ बढ़ाया, एक ठंडी साँस उसकी गर्दन पर महसूस हुई। पीछे मुड़ा तो वो खड़ी थी—लंबे काले बाल, लाल आँखें, पर चेहरा... इतना हसीन कि रमेश का दिल धक् से रह गया।  

"क... कौन हो तुम?" रमेश की आवाज़ काँप रही थी।  

"मैं वही, जिससे सब डरते हैं," उसकी आवाज़ में मिठास थी, पर ठंडक ऐसी कि रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। "मेरा ताबीज चुराने आए हो?"  

"न... नहीं, बस शर्त थी," रमेश ने हकलाते हुए कहा। "तुम... सचमुच चुड़ैल हो?"  

वो हँसी, और उसकी हंसी में दर्द झलक रहा था। "चुड़ैल? हाँ, लोग मुझे यही कहते हैं। पर मैं भी कभी इंसान थी।"  

रमेश को डर कम, उत्सुकता ज़्यादा हुई। उसने पूछा, "क्या हुआ था तुम्हारे साथ?"  

उसने बताया—उसका नाम माया था। सौ साल पहले, गाँव वालों ने उसे चुड़ैल समझकर जला दिया था। उसकी गलती? वो जड़ी-बूटियों से बीमारों को ठीक करती थी। बस, अंधविश्वास ने उसकी ज़िंदगी छीन ली। उसकी रूह उस ताबीज में बंध गई, जो उसकी माँ का आखिरी निशान था।  

रमेश का दिल पिघल गया। "ये गलत हुआ तुम्हारे साथ," उसने कहा। "मैं तुम्हें आज़ाद करवाऊँगा।"  

माया ने मुस्कुराकर कहा, "आज़ादी मेरे लिए मुमकिन नहीं। पर तुम... तुममें कुछ अलग है।"  

रातें बीतने लगीं। रमेश हर रात चुपके से हवेली जाता। माया से बातें करता—उसके बचपन की, उसकी हँसी की, उसके दर्द की। धीरे-धीरे, उसे माया से प्यार हो गया। वो चुड़ैल नहीं, एक तन्हा रूह थी, जो प्यार की एक बूँद को तरस रही थी।  

एक रात, माया ने कहा, "रमेश, ये ताबीज ले जाओ। इसे गंगा में बहा दो। मेरी रूह आज़ाद हो जाएगी। पर फिर... हम कभी नहीं मिलेंगे।"  

रमेश की आँखें भर आईं। "मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता, माया।"  

"प्यार खोने में नहीं, बल्कि आज़ादी देने में है," माया ने कहा।  

रमेश ने ताबीज लिया और गंगा के किनारे पहुँचा। आँसुओं के साथ उसने ताबीज पानी में बहा दिया। एक चमक, और माया की हल्की-सी मुस्कान हवा में गूँजी, फिर सन्नाटा।  

गाँव वालों ने रमेश की कहानी को मज़ाक समझा। पर रमेश जानता था—उसका प्यार सच्चा था, क्योंकि उसने अपनी माया को आज़ादी दी थी।