चैप्टर 77
कहानी अब तक
पिछले चैप्टर में हमें पता चलता है कि मेगा की याददाश्त चली गई है जिस बात का वनराज और रुचिता के अलावा किसी को फर्क नहीं पड़ता है।
तो वही आरोही को बिना आर्य और संवि के ही शॉपिंग जाना पड़ता है।
एक डॉक्टर की टीम सिमरन जी और तेज़ जी का चेकअप करने आते है। इसी बीच घर वालों को पता चलता है कि शिवाय वापस अमेरिका के लिए जा चुका है।
अब आगे
गुरुद्वारा —
सुबह की ठंडी हवा में घण्टों की आवाज़ धीरे-धीरे गूंज रही थी।
सुनहरी रोशनी में डूबा गुरुद्वारा अपने आप में शांति का एक संसार लग रहा था।
जया जी और अंकिता जी धीरे-धीरे अंदर आते हैं। दोनों के चेहरे पर सुकून और एक अधूरी सी बेचैनी साफ झलक रही थी।
उन्होंने झुककर माथा टेका — आँखों में नम्रता, होंठों पर एक धीमी प्रार्थना।
> “वाहेगुरु… बस हमारे बच्चों का घर बस जाए…”
जया जी की आँखों में दुआ थी — आरोही और तरुण की मुस्कुराती तस्वीरों जैसी।
अंकिता जी ने हल्के से सिर हिलाया, जैसे मन ही मन वही प्रार्थना दोहरा रहे हों।
लंगर का समय हुआ।
दोनों ने अपने हाथों से रोटियाँ बाँटी, दाल के बर्तनों से भाप उठ रही थी — जैसे हर निवाले के साथ किसी की तकलीफ भी हल्की हो रही हो।
फिर जया जी ने चुपचाप बर्तन धोना शुरू किया। उनके हाथ काँप रहे थे, लेकिन चेहरे पर सुकून था।
अंकित जी झाड़ू लगाते हुए बीच-बीच में बच्चों के बचपन की बातें याद करती रही।
> “आपको ,याद है…मां जी। जब तरुण पहली बा र लंगर में सेवा करने गया था…”
“और आरोही ने गलती से पूरा प्रसाद गिरा दिया था.... उसे दिन वह दोनों किस तरह एक दूसरे से लड़ रहे थे ।आज भी यह बात याद कर के मुझे हंसी आती है।
दोनों बचपन में कितना लड़ते -झगड़ते थे।।
अब देखिए एक पल के लिए भी दोनों एक दूसरे से अलग नहीं रहते हैं।
दोनों मुस्कुरा उठे — पल भर को पुराने दिन लौट आए।
दोपहर की धूप अब धीमे-धीमे पीली पड़ रही थी।
प्रसाद की खुशबू, चंदन की महक, और आरती की मधुर आवाज़ पूरे वातावरण में घुल चुकी थी।
जया जी ने अपनी आँखें बंद कीं —
> “वाहेगुरु, बस हमारे घर में फिर से हँसी लौट आए।” इस बार व्यायाह विचा कोई रुकावट नहीं आए।
और इसी दुआ के साथ दोनों ने अपना दिन वहीं गुरुद्वारे की सेवा में बिता दिया।
बाहर सूरज ढलने लगा था, लेकिन उनके मन में एक छोटी सी उम्मीद फिर से उग आई थी।
सिन 2
सिटी मॉल – दिल्ली
दिल्ली का सिटी मॉल — शहर का सबसे शाही और चमकदार ठिकाना।
कांच से बना हुआ ये मॉल बाहर से ही किसी महल जैसा लगता था।
ऊँची-ऊँची दीवारों पर सोने जैसी रोशनी बिखरी थी, और अंदर कदम रखते ही ठंडी खुशबूदार हवा चेहरे पर छू जाती थी।
हर कोने में branded stores की जगमगाती display — Dior, Prada, Louis Vuitton, Versace —
मानो हर शीशे के पार एक अलग दुनिया बसती हो।
यहाँ चीज़ें खरीदी नहीं जातीं — experience की जाती हैं।
जहाँ चाय के कप से लेकर perfume की शीशी तक की कीमत लाखों में जाती थी।
लोग यहाँ सिर्फ पैसे से नहीं, attitude से entry लेते थे।
मिडिल क्लास तो क्या, कई लखपति भी अंदर आने से पहले दस बार सोचते थे।
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तारा और यशी – शॉपिंग का जलवा
आरोही का कॉल कट होते ही तरुण उनके पास आया और हल्के से मुस्कुराया,
> “तुम तीनों पहले अपनी शॉपिंग पूरी कर लो, मैं आरोही के साथ मिलकर अपनी शॉपिंग करूंगा उसे आने में थोड़ा टाइम लगेगा तब तक तुम लोगों की शॉपिंग हो जाएगी।,,,
बस, इतना सुनना था कि तारा और यशी की आँखों में चमक आ गई।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा और खिलखिलाकर हँस पड़ीं।
> “चलो, आज तो पूरा मॉल हमारा है!”
“और कार्ड भी तरुण भैया का!”
वे दोनों किसी runway model की तरह store से store भाग रही थीं —
कभी किसी dress को अपने सामने पकड़कर mirror में घूमना,
कभी heels try करते हुए selfie लेना,
कभी perfume spray करके कहना — “ओह माय गॉड, यह तो amazing है!”
उनकी हँसी पूरे मॉल की चमक में घुल गई थी।
हर store से shopping bags लटकते जा रहे थे,
और उनके faces पर वो typical glow था — जो सिर्फ उस उम्र में होता है जब दुनिया बस फैशन, फोटो और फीलिंग्स के इर्द-गिर्द घूमती है। यशी और तारा तो अपनी शॉपिंग को फुल इंजॉय कर रहे थे।
मगर वहीं दूसरी तरफ,
वीरा अब भी आरोही का इंतज़ार कर रही थी।
उसके चेहरे पर हल्की-सी उलझन थी — जैसे उसे खुद से ही सवाल हो कि अब क्या करें?
क्योंकि आज तक उसने कभी अपने लिए कुछ खरीदा ही नहीं था।
पूरा मॉल उसके सामने था —
चमचमाती दुकानों की लाइन, रंग-बिरंगे कपड़े, चमकते heels, और हर तरफ ख़ुशियों की आवाज़ें।
पर वीरा के लिए यह सब किसी भूलभुलैया जैसा लग रहा था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या ले, कहाँ से शुरू करे।
हर ब्रांड, हर dress उसे उतनी ही खूबसूरत लग रही थी — जितनी उलझन भरी।
तरुण ने दूर से देखा —
तारा और यशी तो हँसते हुए bags में bag भरे जा रही थीं,
पर वीरा एक कोने में खड़ी थी, सिर झुकाए, थोड़ी खोई हुई।
उसकी आँखों में वही मासूम बेचैनी थी जो किसी बच्चे में होती है, जब वह पहली बार किसी बड़े शहर की भीड़ में अकेला पड़ जाता है।
तरुण के चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे फीकी पड़ी।
वह उसके पास गया, आवाज़ को नरम करते हुए बोला,
> “वीरा, क्या हुआ? तुम शॉपिंग नहीं कर रही? इस तरह कोने में क्यों खड़ी हो?”
वीरा ने हल्के से ऊपर देखा।
आसपास के शोर के बीच उसकी आवाज़ धीमी थी, पर सच्ची —
> “भाई… यहाँ इतने सारे ब्रांड हैं, इतने प्यारे डिजाइन और रंग…
मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या लूँ।
इसलिए मैं बस आरोही दी का इंतज़ार कर रही हूँ।
जब तक वो नहीं आती, मैं कुछ नहीं लूँगी।”
वीरा की बात सुनकर तरुण ने हल्की सी मुस्कान दी।
वो उसके करीब आया, उसके सिर पर हल्के से हाथ रखकर बोला —
> “इसमें आरोही को परेशान करने वाली क्या बात है, पगली? 😄
मैं हूँ ना… तेरे लिए एक से बढ़कर एक ड्रेस चुनूंगा।”
वीरा ने शर्माते हुए कहा,
> “पर भाई, मुझे समझ नहीं आता कि क्या अच्छा लगेगा…”
तरुण ने हँसते हुए उसके बालों को हल्के से खींचा,
> “बस यही तो तेरी दिक्कत है — तू हर चीज़ को ज़रूरत से ज़्यादा सोचती है।
इस मॉल में जो भी चीज़ तुझे पहली नजर में पसंद आए, वही ले ले।
इतना दिमाग मत लगा, वरना शाम तक भी कुछ नहीं चुनेगी।” 😅
वीरा ने होंठ भींचते हुए मुस्कुराने की कोशिश की।
तभी तरुण ने शरारती अंदाज़ में आँखें उचकाईं और कहा —
> “या फिर ऐसा करूँ… तुम्हारे लिए पूरा मॉल ही खरीद लूँ?
ताकि तू आराम से सब देख ले और कन्फ्यूजन ही खत्म हो जाए!” 😎
वीरा की आँखें बड़ी हो गईं —
> “भाई!”
वो हँस पड़ी, और उसके गालों पर हल्की लाली उभर आई।
तरुण भी हँसने लगा —
> “बस, अब हँस दी न तू। यही चाहिए था मुझे। अब चल, आज तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा भाई शॉपिंग करने में कितना ऑसम है। वह यह बोलकर अपने कॉलर को बड़े स्टाइल से झटका है
।
तरुण की बात सुनकर वीरा के चेहरे से परेशानी धीरे-धीरे गायब हो गई और उसकी जगह एक प्यारी-सी मुस्कान ने ले ली 😊।
तरुण मुस्कुराया और बोला,
> “चल, अब असली शॉपिंग शुरू करते हैं।”
वो वीरा को लेकर dress section में गया।
वहाँ चारों तरफ रंग-बिरंगे कपड़े ऐसे सजे थे जैसे किसी इंद्रधनुष को कपड़े की शक्ल दे दी गई हो।
तरुण ने एक-एक ड्रेस उठाई, फिर वीरा पर रखकर देखा —
जो भी उसे थोड़ा भी अच्छा लगा, वह साइड में रख देता।
वीरा बस खड़ी देखती रही —
तरुण को जैसे किसी मिशन पर भेजा गया हो।
सिर्फ पंद्रह मिनट में उसने पूरे पच्चीस ड्रेस निकाल दिए! 😳
वीरा ने उसकी तरफ देखा,
> “भाई… इतने सारे कपड़े!? मैं ये सब ट्राय करूँगी?”
उसके चेहरे का भाव ऐसा था जैसे उसके शरीर से आत्मा निकल गई हो 😩।
वहीं पास खड़ी sales girl के चेहरे पर खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी —
उसके दिल में तो सचमुच लड्डू फूट रहे थे! 🍬
सोच रही थी, आज तो अच्छा-खासा कमीशन मिलेगा!
तरुण हँसते हुए उन 25 ड्रेसों को वीरा के हाथों में थमा देता है,
> “चलो, अब ये सब ट्राय करके आओ।”
वीरा कुछ बोलने ही वाली थी कि तरुण ने तुरंत कहा,
> “कोई बहाना नहीं… सीधा changing room!”
और धीरे से उसे धकेल दिया। 😄
वीरा एक-एक कर कपड़े ट्राय करने लगी —
हर बार बाहर आती, mirror के सामने घूमती,
और तरुण सिर हिलाकर कह देता,
> “नहीं, ये नहीं।”
“अगला पहन।”
धीरे-धीरे वीरा थक गई।
उसके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी,
बाल थोड़े बिखर गए थे, और आँखों में “बस अब बहुत हुआ” वाला भाव था। 😩
वहीं sales girl का जोश अब ठंडा पड़ चुका था —
उसे लगने लगा था कि शायद आज उसका कमीशन सिर्फ सपनों में मिलेगा। 😅
आख़िरकार, तरुण ने वीरा के लिए सिर्फ दो ड्रेस चुने।
पहला — मल्टीकलर का शरारा,
जिसे सुनहरी लेस से खूबसूरती से डिज़ाइन किया गया था ✨।
दूसरा — हरे रंग का इंडो-वेस्टर्न लहंगा,
जिस पर मोतियों से बारीक काम किया गया था।
ऊपर से पूरा हैंडवर्क — हर धागे में मेहनत झलक रही थी।
तरुण ने मुस्कुराते हुए कहा,
> “बस, यही दो ड्रेस तुम्हारे ऊपर सबसे ज़्यादा सूट कर रहे हैं।
इन्हें पैक करवा लो, मैं तब तक दूसरी तरफ देखता हूँ कि कुछ और बेहतर मिले तो।”
इतना कहकर तरुण दूसरे सेक्शन की ओर चला गया।
वीरा हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाती हुई changing room में लौटी,
और वापस अपने पुराने कपड़ों में आ गई —
वो कपड़े जो उसने मॉल आते वक्त पहने थे।
पर फर्क अब बस इतना था —
पहले वो उलझी हुई थी,
अब उसके चेहरे पर हल्की-सी चमक थी।।
वीरा changing room से बाहर निकली।
उसने अपने वही पुराने कपड़े पहन लिए थे — साधारण, पर अब उनमें भी एक अलग आत्मविश्वास झलक रहा था।
सामने वही sales girl खड़ी थी, जिसके हाथों में उसने वीरा के चुने हुए कपड़ों का पैकेट थाम रखा था।
वीरा ने मुस्कुराते हुए कहा,
> “थैंक यू…”
और धीरे से पैकेट अपने हाथों में ले लिया।
फिर वह शॉप से बाहर निकली और तरुण को ढूँढने लगी।
मॉल का माहौल अब भी रोशनी और भीड़ से भरा हुआ था —
हर दिशा से हँसी, बातें, और संगीत की आवाज़ें आ रही थीं।
वीरा अपने पैकेट को सँभालते हुए corridor से गुज़र रही थी,
कि तभी…
धड़ाम!
वह किसी से टकरा गई।
उसके हाथों से पैकेट नीचे गिर गया, कपड़े फैल गए।
वह झटके से झुकी,
> “सॉरी!”
कहते हुए कपड़े उठाने लगी।
लेकिन जैसे ही उसने सिर उठाया —
उसकी साँस रुक गई।
चेहरे का रंग उड़ गया।
सामने खड़ा इंसान कोई और नहीं,
उसके कॉलेज के सीनियर थे —
वही लोग जो हमेशा उसके साथ बदतमीज़ी करते थे,
जो हर मौके पर उसे bully करते रहे थे।
वीरा के हाथ काँपने लगे।
वो नीचे गिरा पैकेट उठाने की कोशिश कर रही थी,
पर उंगलियाँ जैसे जड़ हो गई थीं।
उसकी आँखों में डर साफ़ दिख रहा था —
वो डर जो सिर्फ किसी याद से नहीं, बल्कि ज़िंदा डरावनी हकीकत से आता है।
सामने वाले लड़के और लड़कियों के चेहरे पर वही पुरानी, घमंडी मुस्कान थी।
वो झुककर बोला —
> “अरे-अरे, ये तो हमारी छोटी वीरा है…... ओ यहां शॉपिंग करने आई है। ओलेले इस पढ़ाकू बच्ची के पास इतनी औकात है कि ,वह इस मॉल में आकर शॉपिंग कर सके।
उसकी आवाज़ में वही ताने भरी गर्मी थी जो कभी कॉलेज में सुनाई देती थी।
वीरा का दिल तेजी से धड़क रहा था।
उसकी पकड़ ढीली पड़ी,
और फिर से पैकेट नीचे गिर गया।
वह अपने सीनियर्स को यहां देखकर इतना घबरा गई थी कि उसकी आंखों में पानी जमा हो गया था जिसकी वजह से वह अपने चश्मा में से भी साफ़ से नहीं देख पा रही थी।
वीरा एक कदम पीछे हटी।
चेहरे पर डर, आँखों में बेबसी, और होंठों पर सन्नाटा।
उसे लगा जैसे भीड़ भरे मॉल के बीच में भी वो बिल्कुल अकेली है…
एक बार फिर, उस डर के घेरे में —
जो उसे कॉलेज में हर वक्त सताया करता था। 💔
वीरा को डरते हुए देखकर उन चारों लड़के और लड़कियों के चेहरे पर क्रूर मुस्कान आ गई।
उनमें से एक लड़की आगे बढ़ी — उसके हील्स सीधे वीर के पैक किए हुए कपड़ों पर रख दिए।
"तुम्हारी इतनी औकात नहीं कि इस मॉल से कुछ खरीद सको,"
वो ताना मारते हुए बोली।
वीरा ने कांपती आवाज़ में कहा,
"प्लीज़... मेरे कपड़ों को मत छुओ... मेरे भैया ने बड़े प्यार से दिलवाए हैं... प्लीज़ इन्हें खराब मत करो..." 😣
लेकिन उन सबके चेहरों पर ज़रा भी रहम नहीं था।
उन्हें तो वीरा की रोती हुई हालत देखकर और भी मज़ा आ रहा था — जैसे किसी की कमजोरी उनके अहंकार को ताक़त दे रही हो।
जब वीरा ने देखा कि वो लड़की अपने पैर हटाने का नाम नहीं ले रही है, तो उसने घबराहट में उसे हल्का-सा धक्का दे दिया।
वो लड़की असंतुलित होकर नीचे गिर गई।
वीरा ने बिना कुछ सोचे तुरंत अपने कपड़े समेटे, उन्हें बैग में डाला, और उसे कसकर पकड़ लिया — जैसे वो बैग ही उसकी ढाल हो। 💼💔
पर गिरने वाली लड़की की दोस्त ने यह सब देखा तो उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
वो तेज़ी से आगे बढ़ी, और बिना कुछ सोचे—
वीरा पर हाथ उठा दिया।
लड़की का हाथ अभी वीर के गाल तक पहुँचा भी नहीं था कि किसी ने झटके से उसका हाथ बीच में ही रोक लिया। ✋
वीरा डर के मारे अपनी आँखें बंद कर चुकी थी।
कुछ पल बीते... पर जब उसके गाल पर दर्द नहीं हुआ, तो उसने धीरे-धीरे आँखें खोलीं —
और सामने जो नज़ारा था, उसने उसे पलभर के लिए थमा दिया।
उस लड़की का हाथ किसी ने मज़बूती से पकड़ रखा था।
वीरा की नज़रें ऊपर उठीं — और सामने वही था... कश्यप।
कश्यप मॉल के रेस्टोरेंट में अपनी बिज़नेस मीटिंग के लिए आया था।
मीटिंग ख़त्म करके जैसे ही वह बाहर जा रहा था, उसने दूर से देखा —
चार लोग किसी लड़की को घेरकर परेशान कर रहे हैं।
पास जाकर पहचानने पर उसे समझ आया, वो लड़की कोई और नहीं, वीरा है।
एक सेकंड भी सोचे बिना वह आगे बढ़ा और उस लड़की का हाथ इतनी तेज़ी से झटका कि वो पीछे जाकर अपने दोस्तों के पास गिर गई। 😳
कश्यप ने गुस्से भरी नज़रों से उन सबको देखा,
फिर शांत होते हुए अपनी नज़रें वीरा की तरफ मोड़ीं —
जहाँ उसकी बड़ी-बड़ी आँखें आँसुओं से भीगी हुई थीं। 💧
वह धीरे से उसके पास आया,
उसकी आँखों से चश्मा हटाया,
और अपने हाथों से उसके गालों पर बहे आँसुओं को पोंछ दिया।
“बस... अब कुछ नहीं होगा,” उसने धीमी आवाज़ में कहा — एक ऐसी आवाज़ जो भरोसा देती है। 💬
वीरा किसी को अपनी इतनी सच्ची परवाह करते देखकर खुद को रोक नहीं पाई —
वह एक झटके में कश्यप के सीने से लग गई,
और बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोने लगी। 💔🤍
कश्यप ने कुछ नहीं कहा,
बस उसके सिर पर हाथ रखकर उसे अपने पास समेट लिया —
जैसे वो कहना चाहता हो, अब तुम अकेली नहीं हो। 🤍
वीरा को अचानक यूँ गले लगाते देखकर कश्यप कुछ पल के लिए सन्न रह गया —
वो समझ ही नहीं पाया कि उसे क्या करना चाहिए।
उसके हाथ हवा में ठिठक गए, पर जैसे ही उसने अपने कंधे पर भीगे हुए आँसुओं की गर्माहट महसूस की,
उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। 💓
कश्यप ने धीरे से उसके सिर पर हाथ रखा,
उसके बालों को सहलाया,
और एक पल के लिए आँखें बंद कर लीं —
जैसे वो अपने अंदर के तूफ़ान को रोकने की कोशिश कर रहा हो।
पर तभी, पीछे से गुस्से भरी आवाज़ आई —
वो दोनों लड़के, जिनकी गर्लफ्रेंड्स ज़मीन पर गिरी थीं,
अब गुस्से से आग-बबूला होकर कश्यप की तरफ बढ़े। 🔥
“तू कौन होता है बीच में आने वाला!” उनमें से एक चिल्लाया।
लेकिन इससे पहले कि वो कुछ और बोल पाता —
कश्यप ने वीरा को अपने पीछे किया,
और अगले ही पल—
धड़ाम! 💥
पहला लड़का नीचे।
फिर एक तेज़ घूसा, और दूसरा भी पास के डिस्प्ले बोर्ड से जा टकराया।
पूरा मॉल पलभर में सन्न रह गया।
सिक्योरिटी भागती हुई आई।
कश्यप ने ठंडी नज़र से उन चारों की तरफ देखा और बस इतना कहा —
“इन लोगों को बाहर निकालो।”
सिक्योरिटी ने बिना कुछ पूछे आदेश मान लिया।
कुछ ही मिनटों में वो चारों बाहर फेंक दिए गए।
कश्यप ने गहरी सांस ली,
फिर वीरा की तरफ मुड़ा —
वो अब भी सिसक रही थी, अपने कपड़े कसकर पकड़े हुए।
कश्यप ने बस धीरे से कहा,
“अब सब ठीक है…”
और उसके कंधे पर हल्के से हाथ रख दिया। 🤍
“कपाड़िया ब्रदर्स…”
लोग अक्सर कहते हैं — घर में बिल्ली, बाहर शेर।
लेकिन असल में ये दोनों तो राजाओं की तरह चलते हैं।
उनकी चाल में रॉयल्टी,
नज़र में डर,
और एटीट्यूड तो जैसे खून में मिला हुआ हो। 😎
इसी बीच, पीछे से किसी की तेज़ आवाज़ आई —
“वीरा!”
तरुण था।
वो भागते हुए आया, और जैसे ही उसने अपनी छोटी बहन को कश्यप के सामने आँसुओं में डूबा देखा,
उसके कदम वहीं जम गए।
उसका गला सूख गया।
वो एक पल के लिए कुछ बोल नहीं पाया —
फिर धीरे से आगे बढ़ा,
वीरा को अपने गले से लगा लिया। 🤍
“क्या हुआ, वीरा?” उसकी आवाज़ धीमी थी,
पर आँखों में बेचैनी साफ़ थी।
वीरा ने कुछ नहीं कहा —
बस और ज़ोर से तरुण को पकड़ लिया।
उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं,
और तरुण ने महसूस किया कि वो अब भी डर से थरथरा रही है।
कश्यप ने यह सब खामोशी से देखा।
उसकी आँखों में गुस्सा नहीं था — बस एक ठंडा सन्नाटा।
वो बस इतना बोला,
“कुछ कमीने लोग थे… मैंने संभाल लिया।”
तरुण ने कश्यप की बात सुनी और उसका जबड़ा कस गया।
चेहरा गुस्से से लाल था —
उसे खुद से नफ़रत हो रही थी।
“मैं भाई कहलाने लायक भी नहीं…” यह बात उसके अंदर गूँज रही थी।
लेकिन उसने अपने गुस्से को निगल लिया,
वीरा के सिर पर हाथ फेरा,
और कश्यप की तरफ मुड़कर बोला —
“Thank you… मेरी बहन को बचाने के लिए।” 🙏
कश्यप ने कोई जवाब नहीं दिया।
बस हल्के से सिर झटकते हुए कहा,
“अपनी बहन का ध्यान रखना।”
वो इतना कहकर पीछे मुड़ा,
लेकिन जाते-जाते उसकी नज़र आख़िरी बार वीरा पर ठहर गई —
वो अब भी तरुण के सीने से लगी थी,
चेहरा छिपाए, काँपती हुई।
कश्यप ने एक पल के लिए गहरी सांस ली,
और फिर भीड़ में खो गया।
कैमरा धीरे-धीरे पीछे हटता है —
तरुण की बाहों में टूटी हुई वीरा,
और भीड़ में दूर जाता हुआ कश्यप —
दोनों के बीच बस एक अनकहा रिश्ता रह गया…
💔
कश्यप के जाने के कुछ ही पल बाद, आरोही, तारा और यशी वहाँ पहुँच गईं।
वीरा को रोते हुए देख, तीनों के चेहरे पर तुरंत चिंता की लकीरें आ गईं। 😟
तारा ने हाथ बढ़ाकर उसे अपनी तरफ खींचा,
यशी और आरोही भी पास आकर वीर को धीरे से देखने लगीं,
जैसे कोई छोटी बच्ची खेलते-खेलते गिर गई हो और चोट लगी हो। 🥺
वीरा की आँखों में अभी भी थोड़े-थोड़े आँसू चमक रहे थे,
पर जैसे ही उन्हें लगा कि वह पूरी तरह ठीक है,
तीनों ने तरुण की तरफ देखा और पूछा,
> “ये सब हुआ क्यों? क्यों रो रही थी?”
तरुण ने गहरी साँस ली और सब कुछ एक ही झटके में तीनों को बता दिया। 😠
सुनते ही तीनों के चेहरे लाल हो गए।
उनकी आँखों में गुस्सा था —
अगर उनका बस चलता, तो अभी उसी पल वो चारों को ढूँढकर यमराज के पास मार मार कर भेज देतीं। 💥
वीरा ने सबकी तरफ देखा —
तरुण, आरोही, यशी और तारा, सभी उसके लिए परेशान थे।
वो हल्की मुस्कान के साथ बोली,
> “ठीक हूँ। आप लोग अब बाकी की शॉपिंग कर लो।
कल सगाई है, किसी भी हालत में रुकना नहीं चाहिए।” 💍
कुछ देर बाद आरोही ने भी अपनी शॉपिंग शुरू की।
असल में उसे ज्यादा कुछ लेने की जरूरत नहीं थी —
तरुण और उसने पहले ही रिंग ले ली थी,
बस उसे रिंग की पोलिश करवानी थी और कुछ छोटे-मोटे कपड़े लेने थे। 👗✨
इसी बीच, कश्यप अपनी कार में बैठा था।
उसने गहरी साँस ली और खुद को शांत करने की कोशिश की।
पर आँखों के सामने अभी भी वीरा का छिप-छिप कर लिपटना और उसके आंसू तैर रहे थे। 😔💧
उसकी आंखों में लगी मासूमियत और डर उसे बार-बार याद आ रही थी।
उसके माथे की नसें तेज़ी से उभर आईं — जैसे उसका शरीर इस tension को महसूस कर रहा हो।
कश्यप ने तुरंत अपने फोन को उठाया और आदेश दिया —
उन चारों लड़कों और लड़कियों को सबक सिखाने के लिए। 📱⚡
उसकी personal assistant हैरान रह गई।
उसने कभी अपने बॉस को इतना emotional नहीं देखा था —
कश्यप का बस एकदम ठंडा व्यक्तित्व था,
और उसकी भावनाएँ सिर्फ़ परिवार और खास लोगों के लिए ही रहती थीं। ❄️
कश्यप खुद भी उलझन में था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वीरा की इतनी फिक्र क्यों हो रही है।
पर एक बात उसके दिल में साफ़ थी —
वीरा के लिए जो भी करना पड़े, वह करेगा। 💔
ऐसे ही शाम तक सबने शॉपिंग पूरी की, बाहर से खाना खाया और घर के लिए निकल पड़े।
तरुण पहले आरोही को उसके घर छोड़कर फिर अपने घर चला गया। 🚗
---
कपाड़िया मेंशन
यहाँ तो टेंशन कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
सुबह से ही मेघा नाम की मुसीबत ने सबको परेशान कर दिया था।
फिर दोपहर से डॉक्टर सिमरन जी और तेज़ जी का इलाज चल रहा था।
शाम हो चुकी थी, फिर भी दोनों (सिमरन और तेज़) अपने कमरों से बाहर नहीं आए।
तभी उन्हें पता चला कि उनका बेटा, यानी पोता शिवाय, पोता और पोती के साथ अमेरिका के लिए निकल चुका है।
सबको ऐसा लग रहा था जैसे घर पर किसी ने बहुत बुरी नजर डाली हो। 😰
(सच कहें तो, उनके घर पर सक्षम नाम की बुरी नजर थी, जो जल्दी ही तूफ़ान बनकर आने वाली थी।)
खुशी जी और इशिता जी की हालत तो और भी खराब थी,
क्योंकि वे इस घर में बच्चों से सबसे ज़्यादा जुड़ी थीं — संवि और आर्य के साथ उनका रिश्ता बेहद खास था।
यह नहीं कि घर के पुरुष बच्चों से जुड़े नहीं थे या शिवाय से प्यार नहीं करते थे,
बस वे अपनी परेशानियाँ दिखाना पसंद नहीं करते थे।
अगर वे परेशान होते, तो घर की औरतों को कौन संभालता? 🤷♂️
तभी दोनों डॉक्टर कमरे से बाहर आए।
कपाड़िया परिवार सभी डॉक्टरों के पास भागे और सवाल करने लगे —
> “कब तक होश आएगा? उनकी हालत कैसी है?”
---
तेज़ जी की डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा,
> “Congratulations, Madam! श्री तेज़ कपाड़िया होश में आ गए हैं।” 🎉
पर वह बीच में रुक गए, और सबके दिल की धड़कन वहीं अटक गई।
अर्णव जी ने हड़बड़ाते हुए पूछा,
> “पर क्या डॉक्टर?”
डॉक्टर ने विस्तार से समझाया,
> “वह अब होश में हैं, लेकिन अभी पैरेलल स्टेज में हैं।
वह ना बोल सकते हैं, ना हल सकते हैं,
लेकिन आपकी बातें सुन सकते हैं, समझ सकते हैं और उस पर रिएक्ट भी कर सकते हैं।”
सुनते ही सबकी आँखों में उम्मीद की चमक आ गई। ✨
> “१० साल से तेज़ को मन में रखा था, अब लगता है जल्दी ठीक हो जाएंगे,”
सबके दिल में यही उम्मीद जागी।
---
उर्मिला जी ने हिचकिचाते हुए पूछा,
> “और सिमरन का क्या हाल है?”
सिमरन की डॉक्टर ने गंभीर होकर कहा,
> “देखिए, हमने मिस को अच्छे से जांचा।
उनके शरीर और दिमाग पर कोई चोट नहीं है।
शायद वो खुद ही कोमा से बाहर नहीं आना चाहतीं। 😔
लेकिन चिंता मत कीजिए — वह आपकी बातें सुन सकती हैं और आसपास की मौजूदगी को महसूस कर सकती हैं।
> आपको बस यही करना है कि उन्हें जीने की उम्मीद दें।
रोज उनसे बात कीजिए, अपनी परेशानियाँ और खुशियाँ बताइए।
उन्हें बताइए कि आप उन्हें कितना मिस करते हैं।
Don’t worry, वह फिजिकल और मेंटली पूरी तरह से ठीक हैं,
बस उन्होंने अपने जीने की उम्मीद छोड़ दी है।”
---
सुनकर परिवार के सब लोग दो भावनाओं में उलझ गए —
खुशी और राहत कि तेज़ जी अब होश में हैं,
या अफ़सोस कि सिमरन अभी भी अपनी दुनिया में खोई हुई हैं। 💔
डॉक्टर इतना बोलकर कार्तिक के साथ बाहर चले गए।
उनका मकसद था कि कार्तिक को मेडिसिन और ट्रीटमेंट के बारे में सही जानकारी दें, क्योंकि घर का माहौल इसके लिए बिल्कुल सही नहीं था। 🏥
सुबह से घर में किसी ने एक दाना भी नहीं खाया था।
ऐसे ही रात हो गई। 🌙
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कश्मीर — सक्षम विला
सक्षम अपने कमरे के टेबल के पास बैठा था, कुछ काम में व्यस्त।
तभी उसका असिस्टेंट प्रहलाद दरवाज़े पर नॉक करता है।
> “आइए।”
सक्षम की आवाज़ में authority और घमंड दोनों झलक रहे थे।
प्रहलाद बिना किसी भाव के कमरे में आता है और फोन उसके हाथ में रख देता है।
> “बस हमारे स्पाई का कॉल है, सर।”
सक्षम ने धीमे से अपनी आँखों के नीचे हाथ रगड़ा और फोन उठाकर स्पीकर पर रखा।
दूसरी तरफ़ से एक शांत लेकिन सख्त आवाज़ आई:
> “बस जैसे हमने प्लान किया था, सब कुछ वैसा ही चल रहा है।” 📞
सक्षम के चेहरे पर घमंड भरी मुस्कान फैल गई।
> “आज दिनभर कपाड़िया हाउस में क्या हुआ?” उसने ठंडी और कट्टर आवाज़ में पूछा।
स्पाई ने विस्तार से सब कुछ बताया —
आज कपाड़िया मेंशन की पूरी गतिविधियाँ, हर छोटी-बड़ी घटना,
और सबसे महत