💖 मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है
 
✨ एपिसोड 28 : “चाँदनी में लिखी तक़दीर”
 
 
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🌕 1. दरभंगा की सुबह — एक अनोखा सन्नाटा
 
सुबह की किरणें हवेली की दीवारों पर टकराईं,
पर आज हवा में कुछ अलग था — जैसे किसी अनकहे रहस्य ने रात भर अपनी साँसें रोकी हों।
 
दरभंगा का गाँव जाग चुका था, पर हवेली अब भी किसी गहरी ध्यानावस्था में थी।
दीवारों पर रात का लिखा नाम — “रूहनिशा राज़” — अब सुनहरी चमक में बदल चुका था।
 
गाँव वाले दूर से हवेली को देखते हुए कह रहे थे,
 
> “ई बार कुछ अउर बा… हवेली में रूह के साथ कोई इंसान भी जाग गइल बा।”
 
 
 
रूहनिशा खिड़की के पास खड़ी थी, उसके हाथ में वो पुरानी किताब थी — “रुमानियत की विरासत।”
उसने किताब खोली, और पन्नों के बीच से एक गुलाब की सूखी पंखुड़ी गिरी।
पंखुड़ी जैसे ज़मीन पर गिरते ही सुनहरी धूल में बदल गई।
 
> “हर जन्म में इश्क़ का एक निशान छोड़ जाता है…”
उसने किताब की पंक्ति पढ़ी,
और मुस्कुरा दी — “तो फिर इस बार, ये निशान मैं बनूँगी।”
 
 
 
 
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🌘 2. राज़ की नयी यादें
 
राज़ हवेली के पुराने आँगन में था।
उसकी आँखों में अब भी कुछ अनकहे किस्से तैर रहे थे — जैसे वो हर दीवार से कोई संवाद कर रहा हो।
 
उसने धीरे से हाथ दीवार पर रखा।
दीवार ठंडी थी, पर उसमें से कोई धड़कन सुनाई दी — जैसे हवेली खुद बोल रही हो।
 
> “राज़…”
 
 
 
उसने पलटकर देखा — रूहनिशा वहीं थी, सफ़ेद लिबास में, बालों में चाँदनी अटकी हुई।
 
“क्या तुम उसे सुन पा रहे हो?” उसने पूछा।
राज़ मुस्कुराया,
“हाँ… वो कह रही है कि इस बार हमें अपना अतीत नहीं दोहराना, बल्कि उसे मुकम्मल करना है।”
 
रूहनिशा ने किताब आगे बढ़ाई — “इसमें लिखा है कि हमें एक आख़िरी पन्ना पूरा करना है… तभी रूहें मुक्त होंगी।”
राज़ ने पूछा, “और वो पन्ना कहाँ है?”
रूहनिशा ने आसमान की ओर देखा —
 
> “उस तारे के नीचे… जहाँ पहली बार रुमानियत जन्मी थी।”
 
 
 
 
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🌒 3. पुरानी हवेली की छिपी तहखाना
 
शाम होते ही हवेली के अंदर अजीब सी सरसराहट शुरू हुई।
फर्श के नीचे से एक दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला।
 
रूहनिशा और राज़ ने मशालें उठाईं और नीचे उतरे।
नीचे की हवा ठंडी थी, पर उसमें गुलाब और मिट्टी की मिली-जुली खुशबू थी —
जैसे किसी अधूरे इश्क़ की साँसें अब भी वहाँ क़ैद हों।
 
दीवारों पर पुराने प्रतीक बने थे — सुनहरी लकीरें और नीले गोले।
राज़ ने हाथ बढ़ाया,
और तभी दीवार पर उनके स्पर्श से रोशनी फैल गई।
 
दीवार ने शब्द उकेरे —
 
> “जब दो रूहें एक साथ जागती हैं, तो तीसरा रहस्य प्रकट होता है।”
 
 
 
रूहनिशा ने देखा — तहखाने के बीच एक संगमरमर का तख़्त था,
जिस पर दो नाम उकेरे थे — “अनाया – राज़”
और नीचे जगह खाली थी।
 
राज़ ने कहा, “शायद यहाँ हमारे नाम लिखे जाने हैं…”
रूहनिशा ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं राज़, इस बार नाम नहीं… वादा लिखा जाएगा।”
 
 
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🌙 4. तीसरे रहस्य की दस्तक
 
रात गहराने लगी।
दोनों हवेली की छत पर पहुँचे — वही जगह, जहाँ पहली बार वो सुनहरी छाया उतरी थी।
 
आसमान में वही तारा चमक रहा था,
पर अब उसके आसपास सात हल्की रोशनियाँ उभर रही थीं — जैसे रूहें किसी राग में बंध रही हों।
 
रूहनिशा ने राज़ का हाथ थामा —
“इस तारे के नीचे हमें वो करना है, जो अनाया नहीं कर सकी…”
 
राज़ ने फुसफुसाया,
“इश्क़ को इंसानों तक पहुँचाना…”
 
दोनों ने आँखें बंद कीं।
नीली हवा उनके चारों ओर घूमने लगी।
उनकी हथेलियों से रोशनी निकली — और हवा में शब्द बने:
 
> “रुमानियत अमर है।”
 
 
 
हवेली की दीवारों ने उन शब्दों को सोख लिया।
और अचानक चारों ओर गुलाब की पंखुड़ियाँ बरसने लगीं।
 
 
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🔥 5. अधूरी आत्मा का आगमन
 
अचानक हवेली के कोने में एक परछाई हिली।
काले लिबास में कोई खड़ा था — उसकी आँखें नीली थीं, और हाथ में वही ताबीज़ था जो कभी अनाया पहनती थी।
 
राज़ ने कहा, “तुम… कौन?”
वो परछाई धीरे से आगे आई —
“मैं अनाया की अधूरी आत्मा हूँ। तुमने मुझे जगाया है।”
 
रूहनिशा की आँखें फैल गईं।
“अगर तुम यहाँ हो… तो फिर मैं कौन हूँ?”
 
वो आत्मा मुस्कुराई —
“तुम मेरा पूरा होना हो।”
 
हवेली की हवा काँप उठी।
राज़ ने दोनों की ओर देखा — दो रूप, एक आत्मा।
अब रुमानियत सिर्फ प्रेम नहीं, एक चक्र बन चुकी थी।
 
 
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🌹 6. आत्माओं का मिलन
 
रात का तीसरा पहर था।
चाँद की रोशनी अब नीली नहीं, सुनहरी हो गई थी।
 
राज़ ने कहा,
“इस जन्म में अगर हमें फिर से अलग होना पड़े… तो मैं अपनी आत्मा तुम्हारे भीतर छोड़ दूँगा।”
 
रूहनिशा ने उसकी आँखों में देखा —
“और अगर मैं चली गई, तो तुम्हारी धड़कन में लौट आऊँगी।”
 
दोनों ने हाथ मिलाए, और उसी क्षण तारा टूट गया —
उसकी रौशनी हवेली में समा गई, और दीवारों पर नया वाक्य उभरा:
 
> “रुमानियत का तीसरा अध्याय शुरू हो चुका है।”
 
 
 
 
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🌘 एपिसोड 27 – हुक लाइन :
अगली सुबह हवेली की छत पर एक नई परछाई उभरी —
ना वो राज़ थी, ना रूहनिशा…
बल्कि दोनों के मिलन से जन्मी “रूह-ए-रुमानियत” —
जिसकी आँखों में अब प्रेम नहीं, एक नया संसार चमक रहा था।